अली पीटर जॉन
उन दिनों यश चोपड़ा बहुत ज्यादा व्यस्त थे, और उनके दिमाग और दिल मे कई और फिल्में बनाने कि सोच दौड़ रही थी, उनको हल्का सा पता था, कि उनके बड़े बेटे आदित्य को फिल्मों का कितना शौक है, और उनको यकीन था कि आदित्य एक दिन निर्देशक बन जायेगा!
यश जी को ये जानकर खुशी थी, कि उनके बैनर के भी पच्चीस साल पूरे होने को थे, और वो कई बार मुझसे पूछते थे, कि पच्चीस साल का जश्न कैसे मनाया जाये, कहते थे पार्टी वार्टी तो सब मनाते है, लेकिन मुझे कुछ अलग करना है, उनको क्या पता था कि आदित्य उनको सबसे बड़ा जश्न मनवाएँगा,
एक सुबह आदित्य यशजी को मिलने उनके विकास पार्क वाले ऑफिस में गए, और बहुत ही कम बोलने वाला आदित्य ने अपने पापा से कहा, कि उसको यशराज फिल्म्स के लिए फिल्म बनानी है, और यशजी खुशी से झूम उठे और उन्होंने अगले दिन मुझसे कहा कि अब उन्हें जश्न मनाने की कोई जरूरत नही ,
आदित्य ने उन्हें एक जश्न तोहफे में दे दिया था, आदित्य ने सिर्फ एक बार यशजी को अपना स्क्रिप्ट सुनाई और यशजी ने कहा ‘ये तुम्हारी फिल्म है और मैं सिर्फ तुम्हारा प्रोड्यूसर हूँ और मैं पूरा साथ दूँगा, लेकिन मैं तुम्हारे सेट पर कभी नही आऊँगा!
फिल्म सेट पर जाने से पहले आदित्य ने अपना कास्ट जमा दिया था और कुछ ही हफ्तों में दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ की शूटिंग शुरू हो गई और अगले कुछ महीनों तक चलती रही और आदित्य ने हर सीन से साबित कर दिया कि वो एक मंझा हुआ निर्देशक है और उसके सारे टीम को उस पर एक अजीब सा कॉन्फिडेंस हो गया जिसमें कुछ जवान और कई बुजुर्ग भी थे, जैसे शाहरुख खान जो उसका सबसे बड़ा स्पोर्ट था, काजोल जो उसकी बेस्ट फ्रेंड थी, करण जौहर जो उसका बचपन से दोस्त था और ‘दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ में चीफ असिस्टेंट डायरेक्टर भी था और शाहरुख के दोस्त का किरदार भी निभा रहा था और सबसे अच्छी बात ये थी कि अमरीश पुरी और फरीदा जलाल जैसे सीनियर एक्टर भी उसकी हर बात मानने को तैयार रहते थे!
फिल्म जैसे कि सबको पता है, फिल्म कि ज्यादातर शूटिंग लंदन में हुई थी, लेकिन आदित्य को अपने काम पर इतना कमाल का भरोसा था कि वो मुश्किल से मुश्किल काम को आसान कर देता था, बिना कोई शोर शराबे के यशजी ने अपना वादा निभाया और जैसे उन्होंने कहा था वो सेट पर तब तक नही आये जब तक आदित्य ने उनसे रिक्वेस्ट नहीं की और उनको फिल्म के क्लाईमेक्स के शूटिंग पर निमंत्रित किया।
क्लाईमेक्स एक पुरानी रेलवे स्टेशन पर हो रही थी, मुंबई से थोड़ी दूर पर आपटे गाँव में और उसमें सारी कास्ट एक साथ थी, वो फिल्म का सबसे अहम सीन था और आदित्य ने एक बार फिर दिखाया, कि उनको अपनी फिल्म पर कितनी पकड़ थी, और मेन सीन जो एक ट्रेन पर शूट किया जा रहा था, उस दिन के मुख्य अतिथि यशजी अपनी स्टाइल वाली टोपी पहनकर सीन का जाएजा ले रहे थे जैसे कोई और गेस्ट करते है!
लेकिन जैसे-जैसे शूटिंग चलती रही मैंने (मुझे यशजी ने खास बुलाया था) देखा कि कैसे यशजी का जो अंदर डायरेक्टर था वो उत्सुक हो रहे थे, और जब उनके अंदर के डायरेक्टर से संभला नही गया, वो आदित्य के पास गए और मुझे नही पता कि यशजी ने आदित्य के कान में क्या कहा, लेकिन मैंने देखा कि उसके बाद कई सारे सीन्स में बाप और बेटा एक साथ काम कर रहे थे ।
शाम को जब शूटिंग खत्म हुई तो यशजी ने मुझसे कहा अली, मुझे कही मेरे दिल से ये आवाज आ रही है कि मेरा बेटा मेरे से कई ज्यादा आगे बढ़ेगा और ये मेरी दुआ भी है और आदित्य के लिए मेरा आशीर्वाद भी फिल्म एकबार चली तो बस चलती रही और आदित्य को समीक्षकों ने, फिल्म इंडस्ट्री में और आम लोगो मे नाम, शोरहत और बेशुमार कामयाबी हासिल हुई ।
ये एक और दिन था, जब बेटा अपने पापा को उनके ऑफिस में मिलने आया था, और उसने एक कागज अपने पापा के सामने रख दिया, उस कागज पर लिखा था कि ‘क्क्स्श्र’ने कई सौ करोड़ का बिजनेस किया था कुछ ही हफ्तों में,
पापा के आँखों मे खुशी के आँसू छलक रहे थे और बेटा अपने पापा को पूरे आदर से देख रहा था, लेकिन उसके चेहरे पर कोई भी फीलिंग या इम्मोशन ये दिखाने को तैयार नही थे, कि उसने पहले ही फिल्म में कितनी कामयाबी हासिल की थी और कैसे उसने अपनी फिल्म से फिल्म इंडस्ट्री में एक नया मोड़ ला दिया था और कैसे वो अपने आपको उन सारे दिगदर्शो के साथ खड़े हो गया था,
जिसमें उसके ना सिर्फ पापा बंल्कि उसके बड़े चाचा बी.आर.चोपड़ा भी शामिल थे, फिल्म कि कामयाबी से ही आदित्य खुश थे, उसको अपने पापा के लिए कुछ और करना था बिना अपने पापा को बताये ।
एक सुबह 11 बजे आदित्य फिर अपने पापा के ऑफिस में अचानक आ गया, उसने अपने ही अंदाज में अपने पापा से कहा, आपने बहुत सारे स्टूडियोज में दिन-रात काम किया है
अब ऐसा नही होगा और आदित्य ने यशजी को यशराज स्टूडियोज का पूरा प्लान बताया और यशजी दोनों आँखे मूंदकर और दोनों हाथों से अपना सर पकड़कर आदित्य को सुनते रहे और जब आदित्य निकल गया मैंने एंट्री की और मैंने पहली बार यशजी को जोर जोर से रोते हुए देखा, मैने उनसे पूछा क्या प्राॅबलम है और यशजी मुझे गले लगाकर रोते भी रहे और बोलते भी रहे, मैने कुछ अच्छा ही किया होगा जो मुझे ऐसा बेटा मिला, अब मुझे कोई तमन्ना नही है न कोई उम्मीद बाकी है, आज मुझे लगा कि मेरा बैनर चलता रहेगा और आने वाले कई सालों तक मेरा बैनर लहराता रहेगा ऊंचा और ऊँचा, उस दिन लंच तक यशजी के आँखों से खुशी के आँसू बहते रहे!