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फिल्मों का स्वास्थ्य खराब करने में टिकटाॅक ऐप का डोज़ भी है

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By Mayapuri Desk
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फिल्मों का स्वास्थ्य खराब करने में टिकटाॅक ऐप का डोज़ भी है

इन दिनों जिस फिल्म वाले से बात करिये, एक बात सामान्य सुनने में आती है - ‘कुछ ठीक नहीं चल रहा है! बाॅलीवुड की अंदरूनी हालत खराब है।’ दूसरे शब्दों में कहें तो बाॅलीवुड इन दिनों बीमार चल रहा है। सभी पुराने फिल्मकार अभिनेता और तकनिशियन घर मंे बैठे दिखाई दे रहे हैं। दूसरी तरफ एक जमात युवाओं की है जो थिएटर (सिनेमा हाल) से दूर हो रहा है और खूब व्यस्त है। जवानों से लेकर स्कूल के बच्चें तक बिजी हैं। ये लोग ‘नेट की दुनियां’ या कहे नेट के समय की पैदाईश हैं। जवान वर्ग वीडियो (यू-ट्यूब) बनाने में लगा है तो बच्चे टिकटाॅक। और, सचमुच सिनेमा हाॅल की फिल्मों से किसी को कुछ लेना देना नहीं रह गया है। ये लोग मोबाइल फोन पर मस्त हैं। और, हों भी क्यों न? सब कुछ तो मोबाइल फोन पर उपलब्ध है। फिल्म, सीरियल, समाचार, क्राइम, देश-विदेश की बदलती तस्वीर... और तो और पाइरेटिड फिल्म भी रिलीज के अगले दिन लीक हो जाती है, वाॅर और नरसिम्हा भी लीक हो चुकी है, इसलिए युवा ही नहीं बुजुर्ग भी शरमाते हुए इस मीडिया से रूबरू होने लग गये हैं। थिएटर की फिल्मों के प्रचार में जिन फिल्मों का कलेक्शन 100-200 करोड़ बताया जाता है, उन फिल्मों के थिएटर में झांकिये तो दस से पन्द्रह दर्शक पैर फैलाकर पूरे थिएटर में फिल्म देखते दिखाई देंगे। इनमें भी वे जो स्कूल-काॅलेज के कपल लड़के-लड़कियां होते हैं। ताज्जुब होता है जब उन फिल्मों के सितारों को करोड़ों का स्टार कहा जाता है। अब सवाल आता है कि फिल्मों के बिगड़ते स्वास्थ्य को संजीवनी में क्या दिया जाए? सरकार सोशल मीडिया पर रोक लगाने की नीयत नहीं रखती। फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाॅग्राम, बिगो वीडियोज और यू-ट्यूब की अनसेन्सर्ड- नियमितता से हटकर कोई सिनेमाघर में फिल्म देखने क्यों जाए? जब मुफ्त में सब मनोरंजन उपलब्ध है तो 500-1000 खर्च करके कोई मनोरंजन ढूंढने क्यों जाएगा? टीवी ने बड़े सितारों को देखने की उत्सुकता खत्म कर दी है। फिल्म की रिलीज से पहले सितारे अपनी फिल्म की तारीफ करते नज़्ार आते है, यू-ट्यूब ने सितारों की घरेलू जिंदगी को नंगा करके रख दिया है। महिलाएं कमोबेश टीवी धारावाहिकों से सबक ले रही हैं और बच्चों ने टिकटाॅक देखने और बनाने में महारथ हासिल कर ली है। सोलह सेकेंड के टिकटाॅक ऐप में जब हर बच्चा और जवान लड़के-लड़कियां अपनी इच्छा पूरी कर पाने में सक्षम हो रहे हैं तो फिर वो क्यों जाएं थिएटर? तात्पर्य यह है कि न सिर्फ सोशल मीडिया, बल्कि टिकटाॅक ने भी फिल्मों का स्वास्थ बिगाड़ने में बड़ा डोज़ दिया है। एक खबर के मुताबिक पिछले छः महीनों में भारत में पचास हजार टिकटाॅक वीडियो बने हैं। यानी पचास हजार बनाने वाले और उतने ही देखने वाले उस समय सिनेमा से दूर रहे होंगे। जब एक करोड़ लोग किसी इंडस्ट्री से दूर खींच दिये जाएं तब तो उस इंडस्ट्री के लोग कहेंगे ही कि बहुत खराब हालत चल रही है बाॅलीवुड की।’

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