एक बार हमारी क्लास में हमारे सर ने एक कहानी सुनाई. कहानी कुछ यूँ थी कि...
एक बार एक बाज़ का अंडा गलती से मुर्गी के अण्डों में जा कर गिर गया. अब वो अंडा वहीँ पे फूटा और उसमें से बाज़ का बच्चा निकला. उसने अपने आस पास देखा तो नज़र आये मुर्गी के बच्चे. अब बाज़ का बच्चा और मुर्गी के बच्चे एक साथ ही बड़े हुए. उस बाज़ ने देखा कि मुर्गी के बच्चे तो उड़ ही नहीं सकते तो क्यूंकि वो भी उन्ही कि बिरादरी का है तो वो भी कैसे उड़ सकता है. इसलिए उसने अपनी सारी ज़िन्दगी ज़मीन पर ही निकाल दी. जब भी वो ऊपर आसमान में किसी पंछी को ऊंचा उड़ते हुए देखता तो सोचता, “काश, मैं भी इतना ऊंचा उड़ सकता. आसमान को नाप सकता.” सारी ज़िन्दगी वो एक ग़लतफहमी में रह जाता है और कभी उड़ नहीं पाता.
हम भी तो उस बाज़ के अंडे के समान हैं. हम पैदा हुए और फ़िर अपने आस पास के लोगों स मिले, दोस्त बनाए. हम भी कहां अपनी असली ताक़त जानते हैं. बस आस पास के लोगों जैसा ही खुद को समझते हैं. किसी एक किताब में लिखा था कि, “यू आर, द काइंड ऑफ़ पीपल यू सराउंड योरसेल्फ विथ.”
यह बात सच है. हमारे आस पास के लोग हमारी पहचान को बहुत प्रभावित करते हैं. और मुश्किल कि बात यह है कि हम उन्हें प्रभावित करने देते हैं और अपनी अहमियत और असल ताक़त का हमें अंदाजा नहीं होता.
जैसे मेरे आस पास अगर मेरी ज़िन्दगी मैं 8 लोग हैं. तो मेरी ज़िन्दगी उनसे बहुत प्रभावित होगी. अगर वो लोग अपनी ज़िन्दगी में खुश नहीं हुए, कामचोर हुए, मेहनत ना करने वाले हुए तो उनकी इन ख़ामियों का असर मेरी ज़िन्दगी में भी होगा. आँखें मेरी होंगी मगर मैं उनकी नजर से अपनी ज़िन्दगी को देखूंगी और फ़िर खुद को भी मुर्गी का बच्चा समझ के सारी ज़िन्दगी ज़मीन पे बैठ के आसमान को नापने के सिर्फ सपने ही देखती रह जाऊंगी.
तो इस समस्या का समाधान क्या है? क्या दोस्त बनाना छोड़ दें? क्या अकेले रहना शुरू कर दें? नहीं. हम इंसान हैं और जैसे कि अंग्रेजी में कहा जाता है,
मैन इस ए सोशल एनिमल.
हमारा तो काम ही है सार्वजनिक तरीके से रहना, हर दम चार लोगों से घिरे रहना. मगर यह चार लोग होंगे कोन यह हमारे बस में है. इन लोगों का चयन हम खुद कर सकते हैं. हाँ हम यह भी जानते हैं कि सब के सब दोस्त तो हमें अच्छे नहीं मिलते. तो एक काम किया जा सकता है कि उन दोस्तों कि जो अच्छी खूबिया हैं हम वो अपनी ज़िन्दगी में उतार सकते हैं और बाक़ी सब निकाल के बहार फ़ेंक सकते हैं. उस तरीके से हम अपनी ताक़त पहचान सकते हैं और बेशक़ हमें ज़मीन पे रखा गया हो मगर एक दिन ज़रूर हम बाज़ कि तरह ऊपर उड़ सकते हैं. बस खुद पर विश्वास होना चाहिए.
इस संसार में हर कोई बाज़ का अंडा होता है मगर बस एक ग़लतफहमी का शिकार हो जाता है कि उसमें इतनी काबिलियत कहां कि वो आसमान में उड़ सकें, क्यों? क्योंकि अगर उसके आस पास के मुर्गी के बच्चे नहीं उड़ पा रहे तो वो क्या उड़ेगा. मगर यह एक सफ़ेद झूठ है. हमारी काबिलियत दूसरों से पता नहीं चलती बल्कि खुद से ही पता चलती है.
तो अब मालूम हुआ कि तुम्हारी असली पहचान क्या है?
अब तो आसमान की तरफ़ देख कर नहीं कहोगे ना की काश मैं उड़ सकता?