नारी-सम्मान पर कई बार प्रश्नवाचक चिन्ह छोड़ती हालिया रिलीज फिल्म ‘कबीर सिंह’ ने निर्माता कंपनी की जेब जरूर गरम कर दी है, पर अपने पीछे सवाल छोड़ रही है कि ‘यूथ’ को जिनके लिए यह फिल्म बनी है। उनको क्या शिक्षा दे रही है? शाहिद कपूर-कियारा आडवाणी अभिनित इस फिल्म की कथा क्या है, इसे जाने बगैर सिर्फ फिल्म का कलेक्शन जानकर युवा सिनेमा घर की तरफ दौड़ पड़ा है। सिर्फ एक साप्तहांत में 110 करोड़ की क्लेक्शन देकर फिल्म ने सबको हैरत में डाल दिया है।
हैरानी तो इस बात पर भी है कि पिछले कुछ महीनों में जिन दर्शकों की रूझान नारी सम्मान और देश-भक्ति से ओतप्रोत होने की ओर थी, वे अचानक नारी-सम्मान के प्रति इतनी असहिष्णु कैसे हे गई है। ‘कबीर सिंह’ का नायक एक ब्रिलियंट सर्जन है, एक लड़की को टूटकर चाहता है। जब गुस्सा होता है सारी सभ्यता, नैतिकता, बौद्धिकता भूलकर टपोरी हो जाता है। नारी का सम्मान उस क्षण उसके लिए पैर की जूती हो जाता है। लगता है तब हम आज की जनरेशन की सोच से बहुत पीछे पहुंच गये हैं। किन्तु तभी, नायिका अपने मां.बाप के सामने तेवर तेज करती विफरी हुई कहती है- ‘हां, जो तुमने सोचा सब किया है... हमने सौ बार (सेक्स)। मां शर्मिन्दा होती कहती- ‘बाप के सामने ऐसी बात करती है?’ सचमुच फिल्म को बनाने का उद्देश्य क्या है, यही समझ में नहीं आया! एक अवसर पर नशाखोर नायक हीरोइन (जो शूटिंग कर रही होती है) से सेक्स करने के लिए फिजिकल फेवर मांगता है। आगे गाड़ी में क्या होता है... बताने की जरूरत नहीं है। तात्पर्य यह कि ‘कबीर सिंह’ की कामयाबी बॉक्स-ऑफिस पर भले ही सफलता की कहानी लिखे, इसमें दर्शायी गई प्रेम की पराकाष्ठा ‘यूथ’ को भ्रमित करने के अलावा कुछ नहीं है। काश, फिल्म निर्माता इस सच को भी ध्यान में रखा करते! नंगई या नारी-असम्मान हमारा आदर्श कभी नहीं हो सकता!! खासकर आज के माहौल में।