सिनेमा का सम्बन्ध चुनाव की राजनीति से बहुत पुराना और गहरा है। जब भी देश में चुनाव आता है सितारे जमीं पर आ जाते हैं। इस लोकसभा चुनाव (2019) में भी ‘स्टारवार’ वैसा ही है जैसा हर आम चुनाव में होता आया है। देश की 543 सीटों वाली पार्लियामेंट में बहुमत के लिए 272 का जादुई आंकड़ा पार करना पड़ता है। इस बार देश भर में करीब 28 कैंडिडेट सिनेमा उद्योग से हैं यानी-बहुमत के आंकड़े का करीब 10 प्रतिशत (अगर सब जीत जाएं तो) और यही अंकों का खेल है जो सितारों को चुनाव की राजनीति में लाता है।
उर्मिला मातोंडकर (मुंबई उत्तर पश्चिम), हेमा मालिनी (मथुरा), जयाप्रदा (रामपुर), प्रकाश राज (बंगलुरु मध्य), मूनमून सेन व बाबुल सुप्रियो (आसन सोल), शत्रुघ्न सिन्हा (पटना साहिब), राम्या (कर्नाटक), राज बब्बर (फतेहपुर-सीकरी), स्मृति ईरानी (अमेठी), दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ (आजमगढ़)... ये वो महत्वपूर्ण सीटे हैं जिन पर सबकी नजर है। चुनाव की राजनीति में सितारों का उतारा जाना नया नहीं हैं। कभी सुनील दत्त के नाम का दबदबा होता था। वे चुनाव जीतने के मामले में अजेय थे। अब उनकी बेटी प्रिया दत्त भी चुनाव में खड़ी हो रही हैं कभी बिग-बी अमिताभ बच्चन ने भी चुनाव लड़ा था। वह इलाहाबाद से हेमवती नंदन बहुगुणा को जितने वोटो से हराये थे, वो एक रिकॉर्ड है। गोविन्दा भी लड़े थे और राजेश खन्ना, विनोद खन्ना भी लड़े थे और जीते थे। मूनमून सेन कभी बहुत बड़ी स्टार नहीं थी लेकिन जब पहली बार 2014 में बांकुरा से चुनाव लड़ी तो उनके सामने थे नौ बार के विजेता सी.पी.एम. के भारी भरकम नेता बासुदेव अचारी। मूनमून ने उनको पटखनी दे दी। इस बार मूनमून का टकराव आसनसोल में गायक व केन्द्रिय मंत्री बाबुल सुपिय्रो से है। दक्षिण के सितारों को तो वोटर सर आंखों पर बिठाते हैं। डळत्एछज्त्, जयललिता, करूणानिधि ने सिनेमा से राजनीति में कदम रखा था। रजनीकांत और कमल हासन भले खुद को चुनाव से अलग रख रहे हैं, उनके ‘वोटर’ उनको मुख्यमंत्री बनाने के लिए सदैव तैयार रहते हैं। दरअसल सितारों का इस्तेमाल राजनैतिक पार्टियां भारी भरकम प्रत्याशी को टक्कर देने के लिए करती हैं। गोविन्दा ने रेल व जहाजरानी मंत्री (इनदिनों उत्तर प्रदेश के राज्यपाल) राम नाईक को हराया था। इस बार उसी सीट पर उर्मिला को लड़ाया जा रहा है। भारी भरकम नेता गोपाल शेट्टी से सामना कराने के लिए। भोजपुरी स्टार निरहुआ आजमगढ़ में सपा के अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को ‘टक्कर’ देने के लिए लाए गये हैं। वेसे ही जैसे स्मृति ईरानी को राहुल गांधी के सामने लाया गया है सितारे टकराते भी हैं और भीड़ भी जुटाते हैं तथा जीतते भी हैं। यही है उनको राजनीति में लाये जाने की वजह!