छत्रपति शिवाजी राजे कॉम्प्लेक्स की कालोनी में करीब साढ़े तीन हजार फ्लैट्स हैं, जिसमें तकरीबन दस हजार लोग रहते हैं। एक स्थानीय संस्था ने सर्वे किया तो पता चला बॉलीवुड के बहुतायत लोग इस कालोनी में रहते हैं। लेकिन, सर्वे की दूसरी रिपोर्ट चौंकाने वाली थी। यहां हफ्ते भर में, किसी भी घर से थिएटर में फिल्म देखने कोई नहीं गया था। यह हालत, मुंबई की है जहां फिल्मों का बोलबाला हुआ करता है। कमोबेश यही से सर्वे किया जाए तो देश के हर शहरों का यही हाल होगा, गांवों की तो बात ही छोड़िए। सवाल है- फिल्में तो सौ करोड़ से पांच सौ करोड़ की क्लैक्शन कर रही हैं तो सिनेमाघरों में मातम का माहौल क्यों है? और, यह विकट सवाल संकेत देता है कि थिएटरों में ताला लगने के दिन आ रहे हैं। वजह ? वजह सोचकर हम खुद भी हैरान हो सकते हैं। सुबह-सुबह मोबाइल फोन उठाते हैं तो फेसबुक, वाट्सअप, मैसेन्जर, यू-ट्यूब या..दूसरे ऑन लाइन-डिजिटल मैसेजों में दर्जनों वीडियो दिखाई दे जाते हैं और शाम तक यह संख्या सैंकड़ों में पहुंच चुकी होती है। मुफ्त में मिले (या सब्सक्राइब किये गये) इंटरनेट कनेक्शनों ने 80 साल के बुर्जुग को भी मोबाइल फोन पर व्यस्त कर दिया है। फिर सिनेमाघर जाकर एक परिवार पांच सौ - हजार रूपए का टिकट लेकर फिल्म देखने की जहमत क्यों उठायें। साल 2017-2018 में तो हालत यह रही है कि मिनिमम गारंटी वाली फिल्में भी थिएटरों से गायब होती देखी गई हैं। जाहिर है डिजिटल प्लेटफॉर्म, फिल्मों को देखने का स्थान परिवर्तित करा रहा है। नेटफ्लिक्स, अमोजॉन जैसी संस्थाओं ने पुराने से पुराने डिस्ट्रीब्यूटरों के अड्डे, जैसे नाज सिनेमा कैम्पस, रंजीत स्टूडियो, फेमस और एसी मार्केट के लगभग सभी दफ्तर बंद हो चुके हैं। सिनेमाघरों पर लोग जाते हैं मगर किसी ‘बाहुबली’, ‘पद्मावत’ या ‘कबीर सिंह’ के आकर्षण से, बड़े पर्दे पर चित्राबली देखने के मोहपाश में, बस! जाहिर है कुछ किया नहीं गया तो ऑन लाइन-डिजिटल सिनेमा थिएटरों पर ताला लगवाने की ओर बढ़ रहा है।
क्या ऑन लाइन-डिजिटल-सिनेमा ताला लगवायेगा थिएटरों पर ?
New Update