कुछ लोग कहते हैं वो म्यूजिक के मसीहा थे ...
कुछ लोग मानते हैं कि, वो संगीत और सुर का समुंदर थे
कुछ लोग जानते थे कि, उनके जैसा दूसरा कोई गाने वाला फिर नहीं आयेगा, ना आ सकता है
कोई उनकी आवाज़ सुन कर दीवाना हो जाता था और आज भी दीवाने होते हैं
कोई उन्हें पैगम्बर मानता था
कोई उन्हें साधु, संत या फकीर मानते थे
कोई उन्हें ईश्वर का दूत कहते थे, ईश्वर की आवाज मानते थे
कुछ मेरे जैसे लोग उन्हें आज भी खुदा मानते हैं
वो मोहब्बत के गीत गाते थे
वो अमन और शांति के गीत गाते थे
वो प्यार और भाईचारे के गीत सुनाते थे
वो देशभक्ति और विश्वास के गीत गाते थे
वो दोस्ती के गीत गाते थे
वो मानव प्रेम और भावनाओं के गीत गाते थे
वो अमीर, गरीब और राजा महाराजाओं के लिए गाते थे
वो हमेशा मुस्कुराते रहते थे, उनके चेहरे पर ऐसा नूर था जो कभी किसी ने इंसान के चेहरे पर नहीं देखा था
उनकी आवाज आसमान और आसमां के पार पहुंचा दी थी, लेकिन वो जब बोलते थे तो सिर्फ खामोशी की आवाज सुनाई देती थी।
उनके बारे में कभी कुछ गलत सुनने में नहीं आया
उनको देख कर तो खुदा को भी थोड़ी-सी जलन आ ही जाती थी
उन्होंने हर शब्द और अहसास को नया मतलब दिया। उनकी आवाज से
उन्होंने सात सुरों को भी नई दिशाएं दी...
वो कोई मसीहा नहीं थे
वो कोई पैगम्बर नहीं थे
वो कोई दूत नहीं थे
वो कोई साधु, फकीर या महंत नहीं थे
वो कोई महान गायक भी नहीं...
वो सिर्फ मोहम्मद रफी थे जिन्होंने अपनी जान उनके हर गीत में डाली, और आखिर उन पर एहसान का, सुरों का और शब्दों का बोझ उनके दिल पर इतना पड़ा की उनका दिल एक दिन टूट ही गया और वो यहां से वहां पहुंच गये।
वो जहां भी गए होंगे वहां उन्होंने दिल जीत लिए होंगे क्योंकि वो मोहम्मद रफी थे और मोहम्मद रफी कभी मर नहीं सकेंगे, न यहां, न वहां
और आज कल सोचता हूं कि वहां एक गजब की महफिल जमी होगी जिसमें तीन यार मिल गए होंगे, दिलीप कुमार, नौशाद और मोहम्मद रफी
और वो महफिल क्या गजब की महफिल होगी