/mayapuri/media/post_banners/1c523a3ac411bc5c7fa75252cf2af2eba579c8032718db6dcccfea7edadd522a.jpg)
पिछले दिनों अफवाह फैली की रावण-अरविंद त्रिवेदी नहीं रहे! मेरे सामने रामानंद सागर की रामायण के ‘रावण का पूरा युग’ घूम गया। अच्छा हुआ कि अरविंद जी के भतीजे कौस्तुभ ने, फिर सुनील लहरी (लक्ष्मण) और दीपिका (सीता) ने भी ट्विटर एकाउंट पर तुरंत खबर दिया कि लंकेश-अरविंद त्रिवेदी को लेकर उठी खबर फेक है। वह ‘फिट एंड फाइन’ हैं। 82 साल के इस वरिष्ठ कलाकार के साथ जुड़ी मेरी कई यादें ताजा हो गई। - शरद राय
...बात तब की है जब रामानंद सागर की ‘रामायण’ शुरू हुई थी-1987... रामायण के टेलीकास्ट के समय पूरी सड़कों पर सुनाकाल हो जाया करता था। बिजली सप्लाई कटने पर कई पॉवर स्टेशन जला दिए जाने की चर्चा हुआ करती थी। दूरदर्शन के इतिहास में ना भूतो ना भविष्यति की टी.आर.पी. (70 करोड़ के पार) पाने के दिन थे वो। उस समय हमने मायापुरी फिल्म साप्ताहिक के लिए ‘रामायण- विशेषांक’ निकाला था। किसी भी टीवी शो के लिए यह भारत मे पहला विशेषांक आयोजन था- कवर पेज से आखिरी पेज तक। जिसे मैंने अकेले कवर किया था (‘थैंक्स टू प्रकाशक-सम्पादक पी. के. बजाज साहब’- प्रेम सागर ने पत्र भेजा था)। इस अंक में हमने ‘रामायण’ के सभी मुख्य कलाकारों को शामिल किया था। प्रेम सागर साहब ने हमें चित्र व डिटेल उपलब्ध कराया था और रामायण के ही एक कलाकार जाम्बवन्त-राज शेखर उपाध्याय ने मुझे एक एक करके सबका इंटरव्यू करवाया था। सच कहूँ तो उस समय राम (अरुण गोविल), सीता (दीपिका), हनुमान (दारा सिंह), जाम्बवंत ( राज शेखर) सबको मिलकर अच्छा लगा, लेेकिन जो आत्मीयता रावण से मिली, मेंरे लिए यादगार रही है। मुम्बई में वह पंचवटी बिल्डिंग (कांदिवली वेस्ट) में रहते थे। उनके ऊपरी मंजिल के फ्लेट तक हर सीढ़ी पर किसी न किसी भगवान की तस्वीर साइड में लगी हुई होती थी। यह अरविंद जी ने ही लगवाया था।
वह भगवान शिव के और राम के परम भक्त उसी समय से रहे हैं जब रावण बने भी नही थे। पहली मीटिंग में ही वह मुझे रावण संहिता सुनाए थे। उन्होंने मुझे बताया था कि रावण की भूमिका उनके पास अमरीशपुरी को क्रास करके आयी थी। सब चाहते थे कि भूमिका अमरीशपुरी जी करें। ऑडिशन से अरविंद जी वापस हुए तब उनकी चाल और अंदाज देख कर रामानंद सागर ने पीछे से आवाज दिया- ‘लंकेश ! मुझे मेरा रावण मिल गया!’ फिर तो मैैं प्रायः उनके घर आने जाने लगा था। मैं सांताक्रुुुज से बस में जब लम्बी यात्रा करके उनके घर पहुचता था , उनकी पत्नी नलिनी जी मुझे कुछ अच्छा खाने के लिए रखा करती थी। इंटरव्यू छपकर आने तक उनकी कोई पहचान नहीं थी क्योंकि तब तक वह टीवी पर आना शुरू ही हुए थे। धीरे धीरे वह पॉपुलर होते गए। गुजराती सिनेमा और थियेटर पर उन्होंने बहुत काम किया हुआ था लेकिन हिंदी फिल्म व टीवी जगत के लिए वह एकदम नए जैसे ही थे।
टीवी पर रामायण की पॉपुलेरिटी बढ़ने के साथ रावण पॉपुलर होता गया। हमने उनका एक और इंटरव्यू छापा। मायापुरी में हमलोग तब कलाकारों का पता भी छापा करते थे जिससे कलाकार को उसकी फैनमेल आया करती थी। रावण के लिए जो फैनमेल आनी शुरू हुई तो उसने सारे बड़े बड़े सितारों का रिकॉर्ड तोड़ दिया। पोस्ट ऑफिस वाले बड़ी बड़ी बोरियों में भर भर कर चिट्ठियां लाते थे। यह रोज का नियम था। अरविंदजी अपनी फैनमेल पढ़ भी नहीं पाते थे। और, उनके बरामदे में प्रशंसको- चाहने वालों की चिट्ठियों का ढेर लगता जा रहा था। वह फैन मेल की तरफ देखकर मुझसे कहते थे- ‘सब मायापुरी की माया है।’ वाकई फैन मेल का ऐसा मंजर फिर कभी नहीं दिखा !
समय आगे बढ़ा। अरविंदजी बइबि से जुड़े। गुजराती फिल्मों के सुपर स्टार अपने भाई उपेंद्र त्रिवेदी से उनको बड़ा लगाव था। गुजराती थिएटर उनको बहुत प्रिय थे। वह मोरारी बापू के बड़े भक्त थे। रावण संहिता का श्लोक जब घर मे बोलते उनसे सुनता था तब लगता था स्वयं रावण सामने है। वह पहले ऐसे खलनायक थे जिससे लोगों को प्यार था।
रावण धरती का सम्भवतः पहला खलनायक था जिसको जनता ने चुनकर संसद पहुचाया। गुजरात के साभरकाटा से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतने के बाद वह दिल्ली और गुजरात में ही रह पा रहे थे। मुम्बई से सम्पर्क कम हो गया था उनका या कहूं कि मेरा सम्पर्क कट गया था। फिर , एक लंबे गैप के बाद जुहू के होटल सेंटोर में सुधाकर बोकाडे की एक फिल्म की लांचिंग पार्टी में वह अतिथि बनकर आये थे। सांसद भी थे तब,भीड़ थी चारों तरफ। अचानक मुझे देखे , जोर से आवाज दिए- ‘शरद!...शरद !!’ फिर तो वह जब तक पार्टी में रहे मेरे कंधे पर हाथ रखकर घूमते रहे। लोगों से मिलते रहे, मुझे मिलवाते रहे, जैसे अतिथि वो नहीं मैं था। ऐसे बहुत से अनुभव हैं मेरे पर्दे के रावण के साथ।
वाकई संस्कारों का बड़प्पन जो अरविंद त्रिवेदी में रहा है, विरले ही मिलता है। आप लंबी उम्र जीएं अरविंद जी यही कामना है