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गायन से परे भूपिंदर सिंह!

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By Mayapuri
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Bhupinder Singh beyond singing!

उनका गायन भावपूर्ण, अत्यधिक भावुक है. भूपिंदर सिंह आरडी के ऑर्केस्ट्रा में गिटार बजाते थे. 'दम मारो दम' में उन्होंने गिटार बजाया था. आरडी से दोस्ती की वजह से उन्हें गुलजार की 'प्रचाया' में गाने का मौका मिला. ठीक 50 साल हो गए हैं. भूपिंदर मूल रूप से गजल गायक हैं. उन्होंने साठ साल तक ग़ज़ल गाने का आनंद लिया. भूपिंदर ने वायलिन भी बजाया. 1964 में, मदन मोहन ने उन्हें ऑल इंडिया रेडियो निर्माता सतीश भाटिया द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में सुना और उन्हें दिल्ली से मुंबई आमंत्रित किया. मदन मोहन ने उन्हें हकीकत में 'होके महबूर मुझे ईशा भइला होगा' गाने में रफी के साथ गाने का मौका दिया. उसके बाद भूपेंद्र सिंह ने कुछ कम बजट की फिल्मों में गाना गाया. लेकिन उनकी पहचान नहीं हो पाई. 'परिचय' के उनके दो गाने 'बिटी ना बिटाई रैना' और 'मितवा बोले मीठे बोल' ने उन्हें काफी लोकप्रिय बना दिया. फिल्म इंडस्ट्री के संगीतकार भूपिंदर को गंभीरता से लेने लगे.

भूपिंदर ने दिल खुंदोता है, नाम गुम जाएगा, एक अकेला इस शहर में के गुलजार के गीतों को एक संगीतमय अर्थ दिया. उन्होंने कई निजी गाने गाए. 1968 में, भूपिंदर के तीन गाने, खुद द्वारा रचित, एक एल.पी. पर जारी किए गए थे. दस साल बाद उनकी ग़ज़लों की एक एल.पी. उस एल.पी. पर उन्होंने स्पेनिश गिटार बजाया था और ढोल की गजल शैली का इस्तेमाल किया था. भूपिंदर ने सारंगी और तबला संगत पर ही ग़ज़लों को एक नया, अनोखा रंग दिया. यह उनका नवाचार था. ग़ज़लों में, भूपिंदर ने संगीतकार के रूप में और अधिक आर्केस्ट्रा लाया. उनकी एल.पी. 'वो जो शायर था' 1980 में रिलीज हुई थी. गुलजार की कविता भूपिंदर द्वारा रचित थी और गिटार भी बजाती थी. उन्होंने भूतिया प्रभाव पैदा करने के लिए सिंथेसाइज़र, इलेक्ट्रिक गिटार, ड्रम सेट और तबले का इस्तेमाल किया. जब मुंबई दूरदर्शन पर 'आरोही' नाम का एक कार्यक्रम हुआ करता था. तब हरिहरन, येसुदास, कविता कृष्णमूर्ति, सुरेश वाडकर और भूपिंदर आदि गायकों ने इसमें पूरे मन से गाने गाए थे. भूपिंदर और उनकी पत्नी मिताली ने एक साथ देश भर में कई शो किए.

उनके रिकॉर्ड जारी किए गए. हाल ही में उनका एल्बम 'सुरमयी रात' रिलीज हुआ था और इसके बोल गुलजार के थे. भूपिंदर की आवाज शायद आखिरी 'मूल' आवाज है. खय्याम का साक्षात्कार भूपिंदर ने लघु फिल्म 'खय्याम की संगीत यात्रा' में किया था. किसी नजर को तेरा इंतजार आज भी है, करोगे याद तो हर बात याद आएगी, जिंदगी मेरे घर आना यह अनगिनत लोगो के पसंदीदा भूपिंदर गाने हैं. भूपिंदर ने खुद चुरा लिया है तुमने, चांद मेरा दिल, यादों की बारात निकली है, महबूबा महबूबा, अनेवाला पाल में गिटार बजाया. उन्होंने हिंदी फिल्म संगीत में बारह-स्टिंग गिटार को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. भूपिंदर सिंह ने गीता की पवित्रता और अर्थ को जानकर अपने स्वरों के माध्यम से इसे और गहराई देने का काम किया. उन्होंने कवि बहादुर शाह जफर की गजल 'लगता नहीं है जी मेरा उजदे दयार में' गाकर प्रशंसा प्राप्त की. 'होके महभार' गाने में रफी, मन्ना डे, तलत और भूपिंदर की आवाजें हैं. रिकॉर्डिंग के समय चार गायकों के लिए केवल दो माइक्रोफोन थे. तलत और मन्ना ने एक माइक और रफी और भूपिंदर ने एक माइक साझा किया था!

खास बात यह है कि तीनों वरिष्ठ गायकों ने भूपिंदर को गाने के लिए प्रोत्साहित किया. वह कभी नर्वस नहीं होता. इस गाने में भूपिंदर खुद पर्दे पर नजर आ चुके हैं. बेशक एक एकल गायक के रूप में उन्होंने 'आखिरी खत' में क्लब गीत 'रूट जवान जवान' गाया, जो उन पर फिल्माया गया था. इस गाने में उन्होंने गिटार बजाया था. भूपिंदर ने आरडी के ग्रुप में भानु गुप्ता से स्पेनिश गिटार बजाने की तकनीक सीखी. इसके लिए उन्होंने दो साल तक कड़ी मेहनत की. आरडी और भूपिंदर का सहयोग 'अभिलाषा' से शुरू हुआ. उन्होंने राम-लक्ष्मण, नौशाद, सोनिक ओमी आदि के लिए गिटार भी बजाया. भूपिंदर रफी के 'हंसते जान' के अत्यधिक प्रयोगात्मक गीत 'तुम जो मिल गए हो' में गिटार बजाते हैं. उस्ताद विलायत खान ने 'कादंबरी' के लिए अद्भुत गीत 'अंबर की एक पाक सुरही' की रचना की. उन्होंने 'रजिया सुल्तान' के गाने में गिटार भी बजाया. भूपिंदर ने 'पाकीजा' के थीम सॉन्ग और 'अब्दुल्ला' के लिए भी गिटार बजाने का प्रयोग किया. 'पाकीजा' में उन्होंने सरोद की तरह गिटार बजाया, इसे ऐसा क्लासिकल ट्विस्ट दिया कि नौशाद भी दंग रह गए! भूपिंदर और मिताली के एल्बम जैसे आरजू, चांदनी रात, गुलमोहर, ग़ज़ल के फूल, एक आरजू बहुत हिट हुए. इसी तरह, जगजीत और चित्रा के साथ एल्बम 'याद ऐ महबूब' हिट हुआ. उन्होंने लता, किशोर, रफी के साथ काम करके एल्बम 'मेरी आवाज ही अंजा है' को लोकप्रिय बनाया. भूपिंदर ने इतनी गर्मजोशी और जोश के साथ गाया कि सुनकर लोग खुश हुए . वह गाने में पूरी तरह लीन रहते थे. यह 'फरसाद के रात दिन' अब सिर्फ याद रहेगा… हमारी मायापुरी की भूपिंदर सिंह को श्रद्धांजलि!

के.रवि (दाद)

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