जन्मदिन विशेष: प्रदीप कुमार के बारे में कुछ खास बाते

New Update
जन्मदिन विशेष: प्रदीप कुमार के बारे में कुछ खास बाते

हिन्दी फ़िल्मों के अभिनेता प्रदीप कुमार का जन्म 4 जनवरी 1925 को हुआ था। हिन्दी सिनेमा में उनको एक ऐसे अभिनेता के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने 1950 और 60 के दशक में अपने ऐतिहासिक किरदारों के जरिये दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। उस जमाने में फिल्मकारों को अपनी फिल्मों के लिए जब भी किसी राजा, महाराजा, राजकुमार अथवा नवाब की भूमिका की जरूरत होती थी तो वह प्रदीप कुमार को याद करते थे। उनके उत्कृष्ट अभिनय से सजी ‘अनारकली’, ‘ताजमहल’, ‘बहू बेगम’ और ‘चित्रलेखा’ जैसी फिल्मों को दर्शक आज भी नहीं भूले हैं।

पश्चिम बंगाल में चार जनवरी 1925 को ब्राह्मण परिवार में जन्में शीतल बटावली उर्फ प्रदीप कुमार बचपन से ही फिल्म अभिनेता बनने का सपना देखा करते थे। इस ख्वाब को पूरा करने के लिए वह रंगमंच से जुड़े। हालांकि इस बात के लिए उनके पिताजी राजी नहीं थे। वर्ष 1944 में उनकी मुलाकात निर्देशक देवकी बोस से हुई जो एक नाटक में प्रदीप कुमार के अभिनय को देखकर काफी प्रभावित हुए। उन्हें प्रदीप कुमार में एक उभरता हुआ सितारा दिखाई दिया और उन्होंने अपनी बंगला फिल्म ‘अलख नंदा’ में उन्हें काम करने का मौका दिया।

publive-image

फिल्म ‘अलख नंदा’ से प्रदीप कुमार नायक के रूप में अपनी पहचान बनाने में भले ही सफल नहीं हुए लेकिन अभिनेता के रूप में उन्होंने सिने कैरियर के सफर की शुरूआत कर दी। इस बीच प्रदीप कुमार ने एक और बंगला फिल्म ‘भूली नाय’ में अभिनय किया। इस फिल्म ने सिल्वर जुबली मनायी। इसके बाद उन्होंने हिंदी सिनेमा की ओर भी अपना रुख कर लिया। वर्ष 1949 में प्रदीप कुमार अपने सपने को साकार करने के लिए मुंबई आ गये और कैमरामैन धीरेन डे के सहायक के तौर पर काम करने लगे। 1 वर्ष 1949 से 1952 तक वह फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। प्रदीप कुमार को फिल्मों में नायक बनने का नशा कुछ इस कदर छाया हुआ था कि उन्होंने हिंदी और उर्दू भाषा की तालीम हासिल करनी शुरू कर दी।

फिल्म ‘अलख नंदा’ के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली, वह उसे स्वीकार करते चले गये। इस बीच उन्होंने कृष्णलीला, स्वामी, विष्णुप्रिया और संध्या बेलार रूपकथा जैसी कई फिल्मों में अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बाक्स आफिस पर सफल नहीं हुई। वर्ष 1952 में प्रदर्शित फिल्म ‘आनंद मठ’ में प्रदीप कुमार पहली बार मुख्य अभिनेता की भूमिका में दिखाई दिये। हालांकि इस फिल्म में पृथ्वीराज कपूर जैसे महान अभिनेता भी थे। फिर भी वह दर्शकों पर अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे। इस फिल्म की सफलता के बाद प्रदीप कुमार बतौर अभिनेता फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए।

उन्हें 1999 में लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड-कलाकार अवार्ड मिला था. 2001 में, प्रदीप कुमार 76 की उम्र में कोलकाता में ही दुनिया छोड़ गए।हिन्दी फ़िल्मों के अभिनेता प्रदीप कुमार का जन्म 4 जनवरी 1925 को हुआ था। हिन्दी सिनेमा में उनको एक ऐसे अभिनेता के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने 1950 और 60 के दशक में अपने ऐतिहासिक किरदारों के जरिये दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। उस जमाने में फिल्मकारों को अपनी फिल्मों के लिए जब भी किसी राजा, महाराजा, राजकुमार अथवा नवाब की भूमिका की जरूरत होती थी तो वह प्रदीप कुमार को याद करते थे। उनके उत्कृष्ट अभिनय से सजी ‘अनारकली’, ‘ताजमहल’, ‘बहू बेगम’ और ‘चित्रलेखा’ जैसी फिल्मों को दर्शक आज भी नहीं भूले हैं।

पश्चिम बंगाल में चार जनवरी 1925 को ब्राह्मण परिवार में जन्में शीतल बटावली उर्फ प्रदीप कुमार बचपन से ही फिल्म अभिनेता बनने का सपना देखा करते थे। इस ख्वाब को पूरा करने के लिए वह रंगमंच से जुड़े। हालांकि इस बात के लिए उनके पिताजी राजी नहीं थे। वर्ष 1944 में उनकी मुलाकात निर्देशक देवकी बोस से हुई जो एक नाटक में प्रदीप कुमार के अभिनय को देखकर काफी प्रभावित हुए। उन्हें प्रदीप कुमार में एक उभरता हुआ सितारा दिखाई दिया और उन्होंने अपनी बंगला फिल्म ‘अलख नंदा’ में उन्हें काम करने का मौका दिया।

publive-image

फिल्म ‘अलख नंदा’ से प्रदीप कुमार नायक के रूप में अपनी पहचान बनाने में भले ही सफल नहीं हुए लेकिन अभिनेता के रूप में उन्होंने सिने कैरियर के सफर की शुरूआत कर दी। इस बीच प्रदीप कुमार ने एक और बंगला फिल्म ‘भूली नाय’ में अभिनय किया। इस फिल्म ने सिल्वर जुबली मनायी। इसके बाद उन्होंने हिंदी सिनेमा की ओर भी अपना रुख कर लिया। वर्ष 1949 में प्रदीप कुमार अपने सपने को साकार करने के लिए मुंबई आ गये और कैमरामैन धीरेन डे के सहायक के तौर पर काम करने लगे। 1 वर्ष 1949 से 1952 तक वह फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। प्रदीप कुमार को फिल्मों में नायक बनने का नशा कुछ इस कदर छाया हुआ था कि उन्होंने हिंदी और उर्दू भाषा की तालीम हासिल करनी शुरू कर दी।

फिल्म ‘अलख नंदा’ के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली, वह उसे स्वीकार करते चले गये। इस बीच उन्होंने कृष्णलीला, स्वामी, विष्णुप्रिया और संध्या बेलार रूपकथा जैसी कई फिल्मों में अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बाक्स आफिस पर सफल नहीं हुई। वर्ष 1952 में प्रदर्शित फिल्म ‘आनंद मठ’ में प्रदीप कुमार पहली बार मुख्य अभिनेता की भूमिका में दिखाई दिये। हालांकि इस फिल्म में पृथ्वीराज कपूर जैसे महान अभिनेता भी थे। फिर भी वह दर्शकों पर अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे। इस फिल्म की सफलता के बाद प्रदीप कुमार बतौर अभिनेता फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए।

उन्हें 1999 में लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड-कलाकार अवार्ड मिला था. 2001 में, प्रदीप कुमार 76 की उम्र में कोलकाता में ही दुनिया छोड़ गए।

Latest Stories