देवेन वर्मा का जन्म 23 अक्टूबर, 1937 पुणे, महाराष्ट्र में को हुआ था। वह भारतीय सिनेमा में हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध हास्य अभिनेता थे। उन्होंने हिन्दी फ़िल्मों में अपने शानदार हास्य अभिनय से सभी का दिल जीत लिया था। देवेन वर्मा ने लगभग 149 फ़िल्मों में काम किया। 'गोलमाल', 'अंगूर', 'खट्टा मीठा', 'नास्तिक', 'रंग बिरंगी' आदि उनके कॅरियर की बड़ी फ़िल्मों में से एक रही थीं। 'बेशर्म' सहित कुछ फ़िल्मों का निर्माण और निर्देशन भी उन्होंने किया था। 'चोरी मेरा काम', 'चोर के घर चोर' तथा 'अंगूर' फ़िल्मों के लिए उन्हें बेस्ट कॉमेडियन के फ़िल्मफेयर अवॉर्ड से भी नवाजा़ गया था।
Deven Verma Suicide Shopping Scene
उनका पालन-पोषण पुणे में हुआ। उन्होंने यहीं से राजनीति विज्ञान तथा समाजशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी। देवेन वर्मा अपने समय के प्रसिद्ध अभिनेता और 'दादा मुनि' के नाम से मशहूर अशोक कुमार के दामाद थे। अशोक कुमार की सबसे छोटी पुत्री रूपा गांगुली से उनका विवाह हुआ था।
वर्ष 1959 में पढ़ाई समाप्त कर देवेन वर्मा मुम्बई आ गए। फ़िल्मी कॅरियर आरंभ करने में उन्हें ज्यादा परेशान नहीं हुई। 'दादा मुनि' अशोक कुमार के वे दामाद थे। 'बीआर फ़िल्म्स' और 'यशराज फ़िल्म्स' में लगातार उन्हें काम मिला, क्योंकि इस बैनर से दादा मुनि के अंतरंग सम्बन्ध थे। देवेन वर्मा का फ़िल्मों में प्रवेश 1961 में बी. आर. चोपड़ा के बैनर तले फ़िल्म 'धर्मपुत्र' से हुआ। इसका निर्देशन यश चोपड़ा ने किया था। इस फ़िल्म में उनका छोटा-सा रोल था, जिस पर किसी ने अधिक ध्यान नहीं गया। 1964 में आई फ़िल्म 'सुहागन' में उनके अभिनय पर निर्माताओं की नजरें इनायत हुईं। 'देवर' फ़िल्म में उनका निगेटिव रोल था, तो दूसरी फ़िल्म 'मोहब्बत जिंदगी है' में उन्होंने हास्य भूमिका निभाई। दोनों फ़िल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता पाई।
यह समय देवेन वर्मा के लिए निर्णायक था। उन्हें कॉमेडी या खलनायकी में से किसी एक को चुनना था। उन्होंने कॉमेडी की ओर अपनी दिलचस्पी दिखाई। देवेन वर्मा के अभिनय की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि वे बड़ी आसानी से किरदार को अपने अंदर उतार लेते थे। वह फ़िल्मी जीवन में सिर्फ अभिनय करने ही नहीं आए थे। उन्हें निर्माता-निर्देशक बनकर अपनी अतिरिक्ति ऊर्जा को भी दर्शाना था।
फ़िल्म 'चोरी मेरा काम' (1975) में देवेन वर्मा परवीन भाई पब्लिशर के रूप में परदे पर आते हैं। एक किताब के प्रकाशित होते ही सबका ध्यान उनकी ओर आकर्षित होता है। इसी रोल को कुछ साल बाद 'चोर के घर चोर' (1978) फ़िल्म में और आगे ले जाया गया, जैसा इन दिनों सीक्वेल फ़िल्मों में किया जा रहा है। उनके कॅरियर की यादगार फ़िल्में थीं- 'गोलमाल' (1979), 'अंगूर' (1982) तथा 'रंग बिरंगी' (1983)। बासु चटर्जी, ऋषिकेश मुखर्जी, गुलज़ार जैसे संवेदनशील निर्देशकों की फ़िल्मों में काम करने से देवेन को पुरस्कार भी मिले और प्रतिष्ठा भी। शेक्सपीयर के मशहूर नाटक 'कॉमेडी ऑफ़ एरर्स' पर भारत में कई फ़िल्में बनी हैं, जिनमें गुलज़ार निर्देशित 'अंगूर' सर्वोत्तम मानी जाती है। इन फ़िल्मों के अलावा भी देवेन वर्मा ने कई फ़िल्मों में यादगार भूमिकाएं निभाईं और दर्शकों को तनाव मुक्त किया। उन्होंने कॉमेडी करने के लिए अश्लीलता का कभी सहारा नहीं लिया और हमेशा अपने संवाद बोलने के अंदाज और बॉडी लैंग्वेज के जरिये दर्शकों को हंसाया। उनके परदे पर आते ही दर्शक हंसने के लिए तैयार हो जाते थे।
देवेन वर्मा बड़े पर्दे पर आखिरी बार 'कलकत्ता मेल' फ़िल्म में नजर आए थे। मशहूर कॉमेडी फ़िल्म 'अंदाज अपना अपना' में उन्होंने आज के सुपर स्टार आमिर ख़ान के पिता की भूमिका निभाई थी।
देवेन वर्मा ने अशोक कुमार की बेटी को बनाया था हमसफर
दिल का दौरा पड़ने और किडनी फेल होने से निधन
हिंदी फिल्मों के अलावा वर्मा ने कुछ मराठी और भोजपुरी फिल्मों में भी काम किया। 2 दिसंबर 2014 को पुणे में दिल का दौरा पड़ने और किडनी फेल होने के कारण उनका निधन हो गया।
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