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बॉलीवुड की नगरी मुंबई 'कोरोना विस्फोट' के मुहाने पर! - शरद राय
लो, साहब, बहुत हो गया। ऐसा लगता है अब बॉलीवुड नगरी मुम्बई कोरोना रूपी बारूद के विस्फोट के मुहाने पर खड़ी है।आंकड़ों पर तथा 'मनपा' के नोटिस पर विश्वास करें तो विस्फोट का सायरन बज भी चुका है। कोरोना की दूसरी लहर शुरू है जो बहुत तेज और घातक है। सरकार ने कहा है कोरोना सम्बन्धी कोई खबर बिना सरकारी-अनुमति के ना छापी जाए। लेकिन, जो घोषित आंकड़े दिए जा रहे हैं उनके मुताबिक पूरे देश के संक्रमण का लगभग 70% महाराष्ट्र से है। इनमे 50% मुम्बई और अकेले 30% फिल्म इंडस्ट्री - यानी जिसको हम बॉलीवुड कहते हैं - उनके लोगों की संक्रमित संख्या है। क्या यह सितारों के लिए भी चौकानें वाली बात नहीं है? कब तक! आखिर कब तक वे छुपे रहकर अपने आलीशान - दड़बे में चुप बैठे रहेंगे? कब वे आएंगे जनता के काम?
लोग कहते हैं बॉलीवुड के सितारे देश की सामान्य जनता की नब्ज होते हैं। वे जब चुनाव प्रचार में उतरते हैं तब जीत कर दिखाते हैं। जब फण्ड रेजिंग में जाते हैं - वहाँ सर्वाधिक कलेशन का रिकॉर्ड बना देते हैं। जब टैक्स भरने की बात आती है तब वे ही अगली कतार में होते हैं। पर अब जब विपदा आन पड़ी है उनके ही अपने लोगों पर, उनके दर्शकों पर और खुद उन पर भी.. वे क्यों नही कोविड-19 से लोगों को सावधान रहने का संदेश देने के लिए आगे आते? जब उनकी अपील चुनाव में कारगर है, बॉर्डर पर जवानों के हौसले बढ़ाने में कारगर होती है तो वे क्यों नहीं कोरोना पर रेडियो- स्पीच जारी करते? क्यों नहीं अपनी वीडियो देते या फिर सुरक्षित कैम्प लगाकर लोगों को इस जानलेवा बीमारी से बचने का संदेश प्रसारित करते?
क्यों ऐसा नहीं हो पा रहा है?
हम आगाह करना चाहेंगे सितारों को कि वे जनता के हैं, दर्शकों के पैसे पर ऐश करते हैं। सिर्फ 51 दिन में 91000 लोगो को संकमित करने वाला यह विषाणु नहीं पहचानता कि कौन फिल्मी है कौन गैर फिल्मी है, कौन स्टार है कौन रिक्शा ड्राइवर है। सिर्फ बॉलीवुड नगरी में प्रतिदिन लगभग 5 हज़ार संक्रमित होने वाले लोग क्या सिर्फ सरकार की तरफ़ आंख लगाए बैठे रहें? फिल्म इंडस्ट्री के छोटे कर्मचारी जिनका काम पूरे पिछले साल से ठप्प पड़ा था- कोरोना के कारण ही, वे अब तक जैसे-तैसे जिंदा हैं। कोरोना की दूसरी लहर ने दोबारा शुरू होते काम को फिर से रोक दिया है। अब वे किसकी तरफ देखें? बॉलीवुड के भगवानों! उनकी तरफ देखो। फिल्म स्टार हों या स्टार गायक हों, क्या उनकी नैतिक जिम्मेदारी नही है? अकेले सोनू सूद ही उदाहरण मिलते हैं इतने बड़े बॉलीवुड में जिन्होंने कुछ करने की कोशिश तो की हैं। जबकि उनकी पोजिशन उन सितारों से छोटी है जो सरकार के पैसों से विज्ञापन करते हैं।
प्रसंगवश याद दिला दें कि आदरणीय अक्षय कुमार का एक कोरोना सम्बंधित विज्ञापन इन दिनों चल रहा है जिसमे वह दो चम्मच च्यवनप्राश खिलाकर कोविड-19 से बचाव की बात कहते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह एक बड़ी ब्रांड कम्पनी का विज्ञापन है जिसके लिए उन्होंने करोड़ों रूपये लिये हैं। सिर्फ अक्षय ही नहीं, बिग बी अमिताभ बच्चन भी मोबाइल फोन पर कोरोना- संदेश देने के लिए पैसे लेते थे जो अब शिकायतों के बाद हटा दिया गया है। दूसरे सभी सितारे पैसे के लिए कोई भी विज्ञापन करने के लिए तैयार रहते हैं। क्या सामाजिक कार्य के लिए मुफ्त में जागरूकता का संदेश देने के लिए वे वही काम नहीं कर सकते? सिर्फ स्टार ही क्यों, देखें तो लाखों कमाई करने वाले गायक- गायिका भी इस बीमारी के लिए कब सोचते हैं!
जिनकी आवाज हम रोज सुनते हैं, घर के अंदर टीवी पर सुनने के साथ उनको देखते भी हैं, वे लोग कब कोरोना के खिलाफ जंग में शामिल होंगे ? गंगा नदी का एक गीत - 'नमामि, नमामि गंगे' (निर्मल गंगा) का एक वीडियो भी गौरतलब है। मशहूर गायक- कैलाश खेर, सुरेश वाडेकर , शान और अनूप जलोटा की आवाज में। गीत गाने के साथ वे वीडियो में भी दिखाई दे रहे हैं। लेकिन, क्या इन धुरंधर गायकों को कभी कोरोना-पीड़ितों के लिए भी कुछ गाने या वीडियो देने का ख्याल आता है? शायद नही! निर्मल गंगा भी ज़रूरी हैं लेकिन क्या कोरोना से पीड़ितों की आवाज से ज्यादा ज़रूरी हैं गंगा की लहरें हैं या च्यवनप्राश का खाया जाना ? हम तो बस, यही अपील करेंगे- मुफ्त में भी आपदा के लिए कुछ करो सितारों! तुम जिनके दम पर अपना साम्राज्य फैलाए बैठे हो, वे आज तकलीफ में हैं। कम से कम अपने प्रशंसकों के लिए, देशवासियों के लिए, अपने तकनीशियन के लिए ही सही 'कुछ करने' के लिए अब तो 'स्पॉन्सर' की राह मत देखो। यह टाइम है DO OR DIE का।