धर्मेन्द्र को आज भी याद है वो दिन, वो लम्हे, वो राखी की रेशमी डोरी, जब बहना ने भाई की कलाई से प्यार बाँध दिया था

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By Mayapuri Desk
धर्मेन्द्र को आज भी याद है वो दिन, वो लम्हे, वो राखी की रेशमी डोरी, जब बहना ने भाई की कलाई से प्यार बाँध दिया था
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ब्रिटिश इंडिया के नस्राली, पंजाब राज्य के कपूरथला फगवाड़ा में जन्मे बॉलीवुड के गरम धरम प्राजी भले ही बॉलीवुड के एवरग्रीन ही मैन, स्टार धर्मेन्द्र के रूप में पहचाने जाते हैं, लेकिन दिल से आज भी वे एक किसान है, एक घरेलू कॉमन इंसान, जो भारतीय रीत रिवाज, परम्पराओं, मान्यताओं को सिर्फ मानते ही नहीं बल्कि निभाते भी हैं। राखी त्योहार को लेकर वे खास तौर पर भाव विभोर होते हैं। बहुत साल पहले जब मायापुरी के संस्थापक श्री ए पी बजाज दादू और मेरे लेखन गुरुजी श्री पन्नालाल व्यास के साथ मैं भी धर्मेंद्र से मिलने गई थी तो वो अगस्त का ही महीना था। बजाज दादू ने धर्मेन्द्र को गुलाब के फूलों का एक बुके दिया और धर्मेन्द्र उनके गले लग गए थे।

धर्मेन्द्र को आज भी याद है वो दिन, वो लम्हे, वो राखी की रेशमी डोरी, जब बहना ने भाई की कलाई से प्यार बाँध दिया था

उसी बुके में से एक फूल निकाल कर धरम जी ने मुझे देते हुए कहा था, “मायापुरी की बनइ तमचवतजमत के लिए ये फूल।“ बातचीत के दौरान वे बजाज जी और पन्नालाल जी से कई पुरानी बातें कर रहे थे। वे मुंबई के प्रति बहुत प्रेम और इमोशन रखने की बातें कर रहे थे और यह भी कह रहे थे कि चाहे वो कहीं भी रहे लेकिन अपने गांव की याद हमेशा उन्हें सताती रहती है। खासकर जब वे फगवाड़ा में आर्य हाई स्कूल और रामगढ़िया कॉलेज में इंटरमीडिएट में पढ़ते थे तब का ज़माना उन्हें बहुत खींचता है। रक्षा बंधन के त्योहार में उनके मकान के आसपास बहुत सारी लड़कियां उन्हें राखी बांधती थी।

धरम जी ने बताया था, “बेबे (माँ) बहुत बढ़िया खाना बनाती थी, घरेलू मिठाईयां बनाने में उनका कोई जवाब नहीं था, जो कुछ भी घर में होता था उससे वे इतनी अच्छी मिठाई बना लेती थी कि हम बच्चे इंतज़ार करते थे कि कब कोई त्योहार आये और माताजी मिठाई बनाए। मेरी माँ इन्ही त्योहारों पर, चाहे वो राखी हो, दीवाली हो या होली हो मिठाई बनाकर घर भर को खिलाती थी और पड़ोस में भी बाँटती थी। राखी के दिन वो खास तौर पर अपने हाथों से पूरी छोले और मिठाई बना कर पड़ोस की बहनों को खिलाती थी। मेरी माताजी हम बच्चों को पैसा बचाने को कहती थी ताकि वक्त बेवक्त काम आ सके। वे खुद भी घर खर्च में से थोड़े थोड़े पैसे बचाती थी और जब भी कोई त्योहार आता था तो वे उसे दान कर देती थी उन गरीब  लड़कियों को जिन्हें पैसों की ज़रूरत होती थी। माताजी सबको राखी के त्योहार पर शगुन के पैसे दिया करती थी। भले ही वे मेरी सगी बहनें नहीं थी लेकिन मुझे सगी बहन जैसा ही प्यार करती थी।'

धर्मेन्द्र को आज भी याद है वो दिन, वो लम्हे, वो राखी की रेशमी डोरी, जब बहना ने भाई की कलाई से प्यार बाँध दिया था

इस मुलाकात के बहुत सालो बाद मुझे पता चला कि राखी के हर त्योहार पर धरम जी सिर्फ अपने गाँव की बहनों को ही नहीं बल्कि मुंबई में रहने वाली एक बड़ी मुँहबोली बहन को भी बहुत याद करते हैं जिनका नाम था लक्ष्मी और उन्हें याद करके धरम जी बहुत भावुक हो जाते है। उनकी आंखें भीग जाती है। उन्होंने कहा, “माटुंगा मुंबई में अपने रेलवे क्वाटर नम्बर 75 में रहती थी मेरी देवी जैसी वो बहन। वो मेरे ही गाँव की थी। उन दिनों मेरे पास मुंबई में रहने की जगह नहीं थी, फिल्मों में स्ट्रगल कर रहा था। बिल्कुल अकेला था, ना खाने का ठिकाना, ना रहने का, मुफलिसी के दिन थे। तब मेरी इस प्यारी बहना ने मेरे सबसे कठिन संघर्षों के दिन में मेरा साथ दिया था, मुझे अपने घर की बॉलकोनी में रहने की जगह दी थी। एक सगी बहन की तरह मेरी देखभाल की थी। आज वे इस दुनिया में नहीं है। मुझे उनकी बहुत याद आती है। हर रक्षा बंधन के दिन वो मुझे राखी बांधती थी। उनकी याद आते ही भावुक हो जाता हूँ। राखी के पावन अवसर पर देश की सारी बहनों को जी जान से प्यार और दुआएँ  और बधाई देता हूं।'

धर्मेन्द्र को आज भी याद है वो दिन, वो लम्हे, वो राखी की रेशमी डोरी, जब बहना ने भाई की कलाई से प्यार बाँध दिया था

आज धर्मेन्द्र मुंबई से दूर अपने फार्म हाउस के बंगले में रहते हैं,  अपने फार्म में अपने हाथों से खेती करने का मज़ा लेते हैं। गाय का दूध दुहते हैं। और खाली समय में शेर ओ शायरी लिखते हैं और याद करते हैं हर गुज़रे हुए लम्हों को। बहुत सारी फिल्मों में भी धर्मेंद्र देओल ने एक जिम्मेदार और भावुक भाई की भूमिका निभाई है। फ़िल्म ’रेशम की डोरी’  में एक भाई की भूमिका जो उन्होंने निभाई वो आज तक सबको याद है। इस फ़िल्म का गीत ’बहना ने भाई की कलाई में प्यार बांधा है“ आज भी राखी के दिन याद रहता है।

खबरों के अनुसार धर्मेन्द्र की एक सगी बहन सुरिंदर भी थी जो बचपन में ही, जब बहुत छोटी थी तब टाइफॉयड से गुज़र गई थी।

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