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"घर" महज महंगी प्रॉपर्टीज का नाम नही होता… सन 1978 में बनी माणिक चटर्जी की फिल्म कितनी सामयिक है आज के दौर में, इसपर एक नज़र!

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By Sharad Rai
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"Ghar" is not just the name of expensive properties… Take a look at how contemporary Manik Chatterjee's 1978 film is in today's era!

आज जब बॉलीवुड सितारों में महंगे और सौ- सौ करोड़ से अधिक दाम वाले बंग्लोज रखने की चर्चा है, याद आती है माणिक चटर्जी की 1978 में बनी फिल्म "घर". इस फिल्म में बताया गया था कि सिर्फ दीवारों से घर नही बनता. फिल्म का एक पुरावलोकन:

फिल्म की कहानी दो प्रेमी युगल के दाम्पत्य में बंधकर नए अपार्टमेंट में रहने के लिए जाने से शुरू होती है. विकास चंद्र (विनोद मेहरा)और आरती (रेखा) की  ज़िंदगी खुशहाल शुरू होती है.एक रात दोनो सिनेमा जाते हैं आखिरी शो देखने के लिए निकट के एक सिनेमाघर में. लौटते समय मध्य रात्रि में उनको कोई टैक्सी आदि साधन नही मिलता और दोनो पैदल ही चल पड़ते हैं. कुछ दूर चलने पर उनपर चार गुंडे हमला कर देते हैं.विकास को मार लगती है वो बेहोश हो जाता है.गुंडे आरती को घायल कर उठा ले जाते हैं. विकास को होश आता है तो वह खुद को एक हॉस्पिटल में पाता है.उसे मालुम पड़ा कि आरती भी उसी अस्पताल में बेहोशी हालत में है जिसके साथ बलात्कार हुआ था और जो घायल थी. आरती ट्रोमा में होती है जो किसी पुरुष पर भरोसा नही करती. घर आकर दो प्यार के परिंदों की ज़िंदगी बिल्कुल बदल जाती है. दोनो एक छत के नीचे हैं लेकिन अपरिचितों की तरह. उनके बीच का प्यार एक हादसे में कहीं गुम हो गया होता है.उस खो गए प्यार को कोई स्पार्क मिलेगा भी एक सवाल सामने खड़ा होता है.

दिनेश ठाकुर की लिखी इस कहानी का सार यही है कि ईंट और पत्थर की दीवारों से घर नही होता. इस फिल्म का गीत-संगीत बहुत पॉपुलर हुआ था. गुलज़ार के लिखे गीतों को आर डी बर्मन ने संगीतबद्ध किया था. गीत- "फिर वही रात है" तो भावनाओं को छू लिया था. दूसरे गीतों में "आजकल पांव ज़मीन पर नही पड़ते मेरे"(लता मंगेशकर),  "आपकी आंखों में कुछ महके हुए से राज हैं"(लता, किशोर कुमार) तथा "तेरे बिना जिया जाए ना, तेरे बिना जिया जाए ना"( लता, किशोर) आज भी कानों को अपनी ओर खींच लेते हैं.

"घर" एक ऐसी हिंदी फिल्म थी जिसका रूपांतरण साउथ की फिल्मों में किया गया था. इस फिल्म को तमिल में बनाया गया था kaadhal नाम से और मलयालम में बनी Aarathi नाम से. फिल्म में डॉ.प्रशांत की भूमिका में थे दिनेश ठाकुर जो फिल्म के लेखक भी थे.लेखक के रूप में फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड के लिए उनका नामांकन भी हुआ था. रेखा भी फ़िल्म फेयर अवार्ड के लिए उस वर्ष नामांकित हुई थी. अन्य  कलाकार थे- प्रेमा नारायण, असित सेन, असरानी, मदनपुरी आदि.  

सचमुच आज के परिवेश में जब सितारों में मंहगे घर खरीदने की होड़ चल रही है ज़रूरी है कि लोग घर की महत्ता को समझें. घर को लोग प्रोपर्टी समझने की बजाय काश! यह सोच सकें कि घर मे रहने वाले प्रोपर्टी होते हैं.

आज कल पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ते मेरे song

आज कल पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ते मेरे song लिरिक्स

आज कल पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ते मेरे
आज कल पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ते मेरे
बोलो देखा हैं कभी तुमने मुझे उड़ाते हुए
आज कल पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ते मेरे

जब भी थामा हैं तेरा हाथ तो देखा हैं
जब भी थामा हैं तेरा हाथ तो देखा हैं
लोग कहते हैं के बस हाथ की रेखा हैं
हमने देखा हैं दो तकदीरों को जुड़ते हुए
आज कल पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ते मेरे
बोलो देखा हैं कभी तुमने मुझे उड़ते हुए
आज कल पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ते मेरे

नींद सी रहेती है, हलकासा नशा रहता हैं
रात दिन आखों में एक चेहरा बसा रहता हैं
पर लगी आखों को देखा हैं कभी उड़ते हुए
आज कल पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ते मेरे
बोलो देखा हैं कभी तुमने मुझे उड़ते हुए
आज कल पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ते मेरे

जाने क्या होता है हर बात पे कुछ होता हैं
दिन में कुछ होता है और रात में कुछ होता हैं
थाम लेना जो कभी देखो हमे उड़ते हुए
आज कल पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ते मेरे
बोलो देखा हैं कभी तुमने मुझे उड़ते हुए
आज कल पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ते मेरे

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