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मायापुरी अंक 48,1975
आमतौर पर लोगों का विचार है कि फिल्म वालों के पास बेशुमार दौलत होती है। किंतु किसी को इस बात का अहसास नहीं होता कि उनके सुख और ऐशो आराम कितने अस्थाई होते हैं उस दिन हमने टी.वी. पर मिनर्वा के शेर सोहराब मोदी को देखा था। और दूसरे ही दिन फेमश में उनके दर्शन हो गए। लेकिन उनकी हालत देखकर हमारी आंखे नम हो गई। उन्होंने सफेद कमीज और सफेद पतलून पहन रखी थी। जिस पर सलीके से इस्त्री तक नहीं थी। और कपड़ो की खस्ता हाली के साथ उसमें पेबंद भी लगे हुए थे।
सोहराब मोदी की हालत देखकर हमें लगा कि फिल्म वालों का वर्तमान और भूतकाल में कितना अंतर होता है? वह नहीं जानते कि उनका भविष्य क्या होगा? इसी मुंबई शहर में एक भरे पूरे बस स्टॉप पर खड़ा वह बूढ़ा आदमी याद आ गया तो धूप में तपते हुए बस का इंतजार कर रहा था। बस आई और लाइन में खड़े लोगों ने जोर आजमाईस शुरू कर दी। वह वृद्ध शख्स बड़ी कठिनाई से बस में चढ़ सका। लेकिन इस पर भी कंडक्टर ने शहीद बेमुखती का प्रदर्शन करते हुए उसे धकेल कर नीचे उतारने की कोशिश की। उस वृद्ध आदमी से पहले दो औरतें जबरदस्ती आगे बढ़कर बस में घुस गई थीं। इसलिए उसने उसूल की लड़ाई लड़ते हुए बस से उतरने से इंकार कर दिया। बस अपनी मंजिल की ओर जाने की बजाय पुलिस स्टेशन पहुंच गई। उसने लाख अपनी बात अधिकारियों तक पहुंचाने की कोशिश की किंतु उसकी एक न चली और उसे जबरदस्ती बस से खींच कर नीचे उतार दिया गया। और फिर बस फर्राटे भरती हुई आगे को दौड़ गई। वह बेचारा वृद्ध आदमी हसरत से उसे जाते देखता रह गया।
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आप जानना चाहते है कि वह बूढ़ा आदमी कौन था? वह था रणजीत मूवीटोन का मालिक सरदार चन्दूलाल शाह! जी हां, वही सेठ चन्दूलाल शाह जो रणजीत मूवीटोन ही नहीं बल्कि रणजीत स्टूडियो का भी मालिक था। जिन्होंने कितनी ही बेशुमार यादगार फिल्में बनाई थी। और अनगिनत सितारों को जन्म दिया था जिनकी जगमगाहट से सारी दुनिया में प्रकाश फैल गया था।
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