आज किशोर कुमार का जन्मदिन है और अगर उनके किस्सों की बात करें तो एक आर्टिकल, एक वीडियो या एक दिन में पूरा होने वाला नहीं है। मेरे जैसे किशोर प्रेमियों के लिए तो एक उम्र भी कम पड़ सकती है। पर मुझे रेडियो पर सुना वो किस्सा याद आता है जब किशोर दा ने तबतक गाना नहीं गाया था जब तक उनके ड्राईवर ने चाय नहीं पी ली थी।अरे नहीं नहीं, बल्कि उनके ड्राईवर ने ये नहीं कह दिया था कि उसने चाय पी ली है, तबतक वह गाते नहीं थे।
उस मज़ेदार किस्से से पहले एक दो छोटे-मोटे मज़ेदार किस्से भी पढ़ते चलिए। किशोर दा क्रिस्चियन कॉलेज इंदौर में पढ़ते थे। उस वक़्त भी उनको गाने का इतना शौक था कि वह पूरे कॉलेज में गवैये के रूप में मशहूर थे। लेकिन, स्टेज पर चढ़कर गाना उन्हें गंवारा न था। उन्हें स्टेजफोबिया था। लेकिन यूँ गाने के लिए उनके पास हमेशा वक़्त होता था। एक बार उनके दोस्तों ने उन्हें स्टेज पर ज़बरदस्ती गाने के लिए बुला ही लिया। बोले आभास (किशोर कुमार नाम उन्हें बाद में अशोक कुमार से मिला था) आज तो तू हर हाल में स्टेज पर कुंदन लाल सहगल का गाना गायेगा ही गायेगा।
अब मरता क्या करता वाली सिचुएशन में फँसे किशोर दा बोले, “ठीक है, मैं गाऊंगा लेकिन मैं स्टेज पर नहीं जाउंगा, मैं बैक स्टेज गाऊंगा और कोई शख्स मेरी तरफ से स्टेज पर सिर्फ लिप्सिंक करेगा”
अब किशोर दा इतना मान गये थे तो दोस्तों ने भी ज़्यादा हुज्जत न की। जब किशोर कुमार ने गाना गाया तो सिर्फ तारीफ ही न मिलीं, बल्कि उस बार का सिंगिंग अवार्ड भी वही ले गये। अब अवार्ड के साथ कोई रिवॉर्ड भी था कि नहीं ये तो नहीं पता, हाँ इतना ज़रूर पता चला कि उन्होंने अपने सारे दोस्तों को जम के खिलाया पिलाया। यूँ भी उनपर कैंटीन का उधार रहता ही था, उस रोज़ और बढ़ गया। अब कैंटीन वाले ने तकादा किया तो किशोर दा उसे भी गाना सुनाने लगे और सुनाते-सुनाते कब रफूचक्कर हो गये पता ही न चला। कैंटीन वाला उनकी हरकतों से परिचित था। वो भी गर्दन हिलाता हँस दिया।
अब सोचिये कि कैंटीन का उधार कितना था?
जिस समय में दस बीस पैसे बहुत बड़ी बात होती थी, उस समय किशोर कुमार ने 5 रूपये और क़रीब 75 पैसे उधार था। 75 पैसे, उस समय ‘आना’ चला करता था। एक ‘आना’ सवा छः पैसे के बराबर होता था यांनी 4 आना 25 पैसे कहलाता था तो 75 पैसे हुआ? 12 आना!
जी हाँ, सही समझा, पाँच रुपैया बारह आना। यहीं से इंस्पायर होकर उन्होंने अपनी फिल्म ‘चलती का नाम गाड़ी’ ,में मधुबाला के साथ गीत ‘लेकिन पहले दे दो मेरा, पाँच रुपैया बारह आना’ गाना गाया और शब्दों में पिरोया था।
इस फिल्म की मेकिंग को लेकर भी एक नायाब किस्सा है। किशोर दा जिन दिनों ख़ूब गा रहे थे, जम के एक्टिंग कर रहे थे और हर तरफ से पैसा बटोर रहे थे कि उन्हें एक नई चिंता सताने लगी। उन्हें लगने लगा कि अब अगर मैं इतना कमा रहा हूँ तो किसी दिन मेरी कमाई देखकर कहीं इनकम टेक्स वाले मेरे घर रेड न मार दें।
अब इस चिंता से दूर भागने का किशोर दा को एक नायाब आइडिया सूझा, उन्होंने सोचा के फ्लॉप सी फिल्म बनाता हूँ, ऊटपटांग सी एक्टिंग करूँगा और फिल्म किसी को पसंद न आयेगी तो इनकम टैक्स वालों से जान छूटेगी। अब भला फ्लॉप फिल्म बनाने वाले से कौन टैक्स मांगेगा।
यही सोच उन्होंने अपने बड़े भाइयों, अनूप और अशोक कुमार को लेकर फिल्म ‘चलती का नाम गाड़ी’ प्लान की और उसमें जो मन आया वो किया। ख़ूब उल्टी-पलटी हरकतें कीं। मधुबाला भी उनकी दोस्त थीं। सो उन्हें भी ले लिया। पर ये फिल्म फ्लॉप होने की बजाए इतनी बड़ी हिट हुई कि किशोर कुमार की इनकम टैक्स वाली चिंता डबल हो गयी।
वह जहाँ भी इस फिल्म को रिलीज़ करते, वहाँ हाउसफुल हो जाती। तंग आकर किशोर दा ने इस फिल्म के राइट्स अपने असिस्टेंट ‘अनूप शर्मा’ के नाम कर दिए। सोचिये, सन 1958 में किशोर कुमार को अपनी कमाई से इतना खौफ़ हो गया था कि उन्होंने अपनी फिल्म ही अपने असिस्टंट के नाम कर दी और उस असिस्टंट की किस्मत देखिये, इस अकेली फिल्म की कमाई के चलते उसे और किसी काम की कभी ज़रुरत न पड़ी।
यहाँ एक आयरनी ज़िक्र भी शामिल है। किशोर दा ने कोई 18 साल बाद 1978 में इसी फिल्म के टाइटल को आगे बढ़ाते हुए बढ़ती का नाम दाढ़ी बनाई और वो फिल्म, जो उनके मुताबिक सुपरहिट होनी चाहिए थी, मुँह के बल गिरी।
आपको स्कूल टाइम का वो किस्सा याद है न जो किशोर कुमार ने अपने दोस्त को स्टेज पर कर प्लेबैक सिंगर बन अवार्ड जीता था। तो उसी किस्से को याद कर उन्होंने सन 1968 में रिलीज़ हुई कॉमेडी फिल्म ‘पड़ोसन’ में उन्होंने सुनील दत्त को खिड़की पर बिठाकर ख़ुद छुपकर गाना गाया था।
इस फिल्म के सारे गानों की रिकॉर्डिंग के वक़्त किशोर कुमार फिल्म में अपने करैक्टर की भांति ही एक तरफ से पान की पीक निकाले पान दबाते रिकॉर्ड करते नज़र आए थे।
अब मैं उस किस्से पर पहुँचता हूँ जिस किस्से से इस लेख की शुरुआत हुई थी।
किशोर कुमार के बारे में ये विख्यात था कि वो जब तक पूरी पेमेंट नहीं ले लेते, तबतक वह गाना रिकॉर्ड नहीं करते। इस मामले में उनका ड्राईवर अब्दुल पूरी तरह ट्रेंड था।
1975 में मशहूर डायरेक्टर फिल्ममेकर बिश्वजीत एक फिल्म लेकर आए। नाम था “कहते हैं मुझको राजा”
अब इस फिल्म के लिए जब संगीतकार पंचम दा यानी आरडी बर्मन फाइनल हुए तो गाने भी किशोर कुमार से ही गंवाने की बात तय हुई। इसके एक अजीबोंगरीब गाने की रिकॉर्डिंग के लिए किशोर दा स्टूडियो पहुँचे। पर उस रोज़ बिश्वजीत किसी काम से स्टूडियो न आ सके और उनका असिस्टेंट किशोर कुमार के बारे में ज़्यादा नहीं जानता था।
किशोर दा ने आते ही मजरूह सुल्तानपुरी से दुआ सलाम की। उनसे गाने के बोल पूछे और फिर अब्दुल की ओर देखते हुए पूछा “अब्दुल चाय पी?”
अब्दुल बोला “नहीं साहब! चाय तो अभी तक नहीं मिली”
बस किशोर कुमार वापस मजरूह सुल्तानपुरी के साथ गाना डिस्कस करने में जुट गये। उधर बिश्वजीत के असिस्टेंट ने घबराकर अब्दुल के लिए तुरंत चाय का इंतज़ाम करवा दिया। चाय पीने के बाद कुछ समय बीता, फिर किशोर दा ने पूछा “अब्दुल चाय पी?”
अब्दुल फिर वैसे ही बोला “नहीं चाय, चाय तो अबतक नहीं मिली”
असिस्टंट ने फिर चाय भिजवा दी। किशोर दा फिर मजरूह साहब के साथ बातों में लग गये।
ऐसा करते-करते अब्दुल के पास कोई 20 चाय पहुँच गयीं पर अब्दुल ने हर बार पूछने पर बस यही कहा “नहीं साहब! चाय तो अभी नहीं मिली”
असिस्टंट घबरा गया। थोड़ी देर बाद किशोर दा गाने के बोल लेकर स्टूडियो से अब्दुल समेत खिसक लिए। रात में बिश्वजीत आए। उन्होंने गाने की रिकॉर्डिंग के बारे में पूछा तो पता चला गाना तो रिकॉर्ड हुआ ही नहीं। बस चाय की मांग चलती रही और उनका ड्राईवर बीस चाय पीने के बावजूद यहीं कहता रहा कि नहीं साहब, चाय तो मिली नहीं।
तब बिश्वजीत ने अपने माथे पर हाथ मारा और बोले “अरे बेवकूफ वो किशोर दा का कोड वर्ड है, मतलब गाने की फीस मिली या नहीं?”
अब अगले रोज़ बड़ी मिन्नतें करके बिश्वजीत ने किशोर दा को फिर स्टूडियो बुलाया और साथ ही साथ अब्दुल को किशोर दा की फीस दी जो उस समय, सन 75 में एक लाख रुपए थी।
किशोर दा ने फिर भी कन्फर्म किया “अब्दुल, चाय पी?”
अब्दुल अबकी मुस्कुरा के बोला “जी साहब, पूरी पी ली”
“हाँ तो मजरूह साहब, लाइए गाने के बोल लाइए, आज रिकॉर्डिंग करते हैं”
मजरूह साहब बड़े हैरान हुए। कहने लगे कि “बोल तो किशोर दा आपको कल दे दिए थे। आप यहाँ से अपने साथ रेहअर्स करने के लिए ले गये थे”
किशोर दा ने बहाना मारा “ओह सॉरी सॉरी, वो न गाड़ी में ही रह गये, आप ऐसा करो, मुझे दूसरी कॉपी दे दो या दोबारा लिख दो”
लेकिन उस दौर में कोई ज़ेरोक्स तो होती नहीं थी। मजरूह सुल्तानपुरी के पास वो ही एक हस्तलिखित गीत थे जो उन्होंने किशोर दा को दे दिए थे। फिर रही बात गाड़ी में छूट जाने की, तो गाड़ी से तुरंत मंगवाए जा सकते थे। आख़िर अब्दुल किसलिए था। (फिर अब तो उसने चाय भी पी ली थी)
लेकिन अब्दुल ने एक नया ही ख़ुलासा कर दिया, बोला “अरे साहब, आप कल वडा पाव खाने के लिए रास्ते में रुके थे न, तब आपने उसी कागज़ पर पाव खाकर उसी से हाथ पोछकर फेंक दिया था”
अब ये बात सुनकर सोचिये मजरूह साहब और बिश्वजीत का कैसा दिल टूटा होगा।आख़िर उस कागज़ पर किसी की मेहनत के बोल थे। लेकिन किशोर दा भी ऐसे ही हरफनमौला नहीं कहलाते थे। उन्होंने तुरंत ख़ुद गीत लिखा और उसी दिन पूरा गाना, बिना किसी गलती के रिकॉर्ड भी कर दिया और सबको फ्री कर दिया। मज़े की बात इसमें ये भी है कि उन्होंने फिर भी, गीत लिखने का क्रेडिट मजरूह सुल्तानपुरी को ही दिया। लिरिक्स क्रेडिट में अपना नाम नहीं लिखवाया।
यह गाना था – बमबम चिक
अब एक इसी का ठीक उल्टा किस्सा भी जानिये। ऐसे ही एक रिकॉर्डिंग के वक़्त किशोर दा ने अब्दुल से पूछा “अब्दुल चाय पी?”
अब्दुल ने नया जवाब दिया “साहब ज़रुरत नहीं”
सब रिकॉर्डिंग रूम में सब बैठे थे। किशोर दा भला खुलकर कैसे बोलते। उन्होंने फिर पूछा, फिर वही जवाब मिला। “साहब आज ज़रुरत नहीं है”
उन्हें लगा शायद आज अब्दुल की तबियत ठीक नहीं है। वो धीरे से खिसियाते हुए अब्दुल के पास पहुँचे और उसके कान में फुसफुसाए “अरे अब्दुल पेमेंट-पेमेंट, बांगड़ू पेमेंट मिली की नहीं?”
अब्दुल भी वैसे ही फुसफुसाया “साहब पेमेंट कहाँ से मिलेगी, इस फिल्म में तो आप ही प्रोड्यूसर हैं”
“अरे तेरे की भूला” किशोर कुमार ने दांतों तले उँगलियाँ दबा लीं और फुदकते हेउ रिकॉर्डिंग रूम की ओर दौड़ गये।
हालाँकि पैसे के लिए इतने फ़िक्रमंद यही किशोर कुमार थे जिन्होंने सत्यजित रे से पैसे लेने से मना कर दिया था। सत्यजित रे ने गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर के लिए उनकी आवाज़ मांगी थी। वहीं सत्यजीत रे की फिल्म पाथेर पांचाली के लिए किशोर दा ने 5000 रुपए बिना किसी सवाल जवाब के लिए दिए थे।
इतना ही नहीं, राजेश खन्ना के प्रोडक्शन में बनी पहली फिल्म ‘अलग-अलग’ के पाँच गानों के लिए एक रूपये भी फीस नही ली थी। जो किशोर दा दस रूपये न छोड़ने के लिए कुख्यात थे, उन्होंने पाँच लाख से ज़्यादा की फीस फ्री कर दी थी।
तो ये थे हरदिलअज़ीज़, हरफनमौला, संगीत की दुनिया के लख्तेजिगर किशोर कुमार के सैकड़ों में से कुछ किस्से। जैसा मैंने आपसे कहा ही था, दुनिया से कागज़ ख़त्म हो सकता है लेकिन उसपर लिखने के लिए किशोर कुमार के किस्से नहीं।
सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’