कभी कभी पुरानी बातें सोचकर हमलोग प्रफुल्लित होते हैं भले ही उन बातों का सम्बंध हमसे कम ही हो और बात दूसरों की हो। हमारे लिए यही गुदगुदाने वाला होता है कि बातें हमारे लिए आँखों देखी होती हैं। और, बात जब किसी ‘सेलेब्रिटी’ से जुड़ी हो तो, फिर क्या कहना! राज बब्बर और स्मिता पाटिल के रोमांस की चर्चा करना हमारे लिए एक ऐसा ही प्रसंग है।
बात 81 के अंत और 82 के शुरूआत के दिनों की है। राज बब्बर और स्मिता पाटिल दोनो स्टारडम के पायदान पर मजबूती से पांव जमा चुके थे। एक साथ फिल्म करते हुए भी वे एक दूसरे के सामने संभल कर बातें करते थे। दोनों की नजरों में कुछ था, इस खामोशी की कहानी ना वे जानते थे ना कोई और समझ सकता था। अब समझ मे आता है कि वो भविष्य में घटने वाली एक कहानी का प्रादुर्भाव वाला समय था। हम बात कर रहे हैं एक फिल्म की शूटिंग के दिनों की। फिल्म थी ‘भींगी पलकें’, निर्देशक थे-शिशिर मिश्रा। इस फिल्म में राज बब्बर और स्मिता पाटिल पहली बार साथ में काम कर रहे थे। शिशिर मिश्रा से मेरे मधुर संबंध थे, मैं अक्सर इस फिल्म के सेट पर जाया करता था।
कभी जुहू, कभी चांदिवली, कभी किसी बंगले में- शिशिर जब शूटिंग करते थे हमको बुलाते थे। उनदिनों शिशिर और राज बब्बर के मतभेद के किस्से भी हमने छापा था। जिसपर राज बब्बर नाराज भी हुए थे। राज बब्बर पर उनकी पहली फिल्म बी.आर.चोपड़ा की ‘इंसाफ का तराजू’ का खुमार था- जिसके लिए वह फिल्मफेयर अवार्ड के लिए नॉमिनेट हुए थे। स्मिता पाटिल आर्ट-फिल्मों के लेवल से बाहर निकल कर कमर्सियल सिनेमा में पकड़ बनाने की कोशिश में थी। उन दोनों का शॉट्स के बाद आस पास कुर्सी पर बैठकर एक दूसरे को झुकी पलकों से देखना। शायद प्यार का निहारना ही था। शूटिंग पूरी होते होते प्यार का एहसास दोनों को हो चुका था।
हम पत्रकार कईबार जब स्मिता से बात कर रहे होते थे, राज बब्बर वहां आ जाते थे, तब बातचीत का सिलसिला टूट जाता था। वे आपस मे बातें करने में लग जाते थे और किसी बहाने से हमें बाहर कर देते थे। हमारे साथ होते थे साउथ के पत्रकार फोटो ग्राफर मित्र- वी टी कुमार। वे हमें मेकअप रुम में राज बब्बर के अंदर आते ही इशारा करते थे- ‘समझ जाओ...!’ और, हमसब समझने लगे थे दो स्टारों के प्यार की उस शुरूआत को। बाहर हमारे बीच आपस मे डिबेट होता था-राज बब्बर तो शादी सुदा हैं न! फिर? तो क्या हुआ?
खैर, ‘भींगी पलकें’ की कामयाबी के बाद इस जोड़ी ने कई फिल्में साथ किया। ‘तजुर्बा’, ‘शपथ’, ‘हम दो हमारे दो’, ‘आनंद और आनंद’, ‘पेट प्यार और पाप’, ‘आज की आवाज’, ‘जवाब’ आदि। स्मिता पाटिल से मेरे अच्छे संबंध थे, यह कहने की वजाय मैं कहूँ की वह मेरे लिए बहुत स्नेहपूर्ण भाव रखती थी तो कहना ज्यादा ठीक होगा। मैं अक्सर समाचार पत्रों में और फिल्म पत्रिकाओं में उनके इंटरव्यू छापता था।एक बार तो कमाल ही हो गया। स्मिता पाटिल का एक ही इंटरव्यू मेरा लिखा हुआ करीब 28 पेपरों में छप गया था।मैंने एक फीचर एजेंसी (जउच) के मार्फत छापा था। एक रोचक टॉपिक था। दक्षिण के निर्देशक दुराई स्वामी एक फिल्म हिंदी में बना रहे थे- पेट, प्यार और पाप।
फिल्म दक्षिण की री-मेक बन रही थी। जब शुरू हुई थी नाम ओरिजिनल था, बाद में नाम बदलना पड़ा था। यह एक बोल्ड फिल्म थी। फिल्म के बारे में लिखने के लिए बहुत कुछ था। स्मिता ही फिल्म की सेंट्रल करेक्टर थी। राज बब्बर, तनुजा, अरुणा ईरानी, अमजद खान और अमिताभ बच्चन (ऐज अमिताभ) फिल्म के कलाकार थे। उनदिनों पेट प्यार और पाप के सेट्स पर मैं और मायापुरी की पत्रकार छाया मेहता बहुत जाया करते थे। जब जाते थे स्मिता कीचड़ों से भीगी साड़ी में ही दिखाई पड़ती थी। शूटिंग से फुर्सत पाते ही वह हमदोनो को अपने साथ मेकअप रूम में बुला लिया करती थी।
ड्रेस चेंज करना होता था तब मुझसे कहती थी- तुम बाहर चला जा। और, मेकअप रूम से बाहर हमें राज बब्बर टहलते दिखाई दे जाते थे।एकबार तो राज और स्मिता में अनबन चल रही थी। राज ने हमें बाहर निकलते देखा तो बोले- चले मत जाना। मैं वहां अंदर आऊंगा तब भी तुम दोनों बैठना, जाना मत। बाद मे मुझे समझ मे आया कि तब वहां हमारे होने पर ही वे एक दूसरे से बात करना चाहते थे। बादमे, हमलोग खूब गप्पा मारे थे और उनका पैचअप हो गया था। बाद के और कई मौकों पर फिर वही।
जब राज बब्बर अंदर आजाते थे, स्मिता बड़े स्नेह से हमलोगों को देखकर मुस्कराती थी और हम बाहर निकल जाते थे। स्मिता मुझे ठिठोली मारते कहती थी- तुम लिखते हो मेरे लिए कि राज के लिए? मेरे इंटरव्यू में 20 जगह तुमने उनके बारे में ही लिखा है। बोलती मैं हूं- टॉपिक श्वो होते हैं, ऐसा क्यों? अब मैं कैसे कहता कि मैडम आप बोलती ही वही हो, सिर्फ उनके बारे में!
फिर यह बोलने की रश्म टूटी सन 86 में, जब ये दोनों प्रेमी से युगल बन गए थे और हम भी सबकी तरह बैन हो गए थे।