जी. के. बनजारा
फिल्मी दुनिया के लोगों को मैंने अक्सर यह कहते हुए सुना है कि हरि भाई (संजीव कुमार) आजकल बड़ा घमण्डी हो गया है। कंजूस तो इतना है कि अशोक कुमार की तरह पक्का मक्खीचूस है। यह बातें सुनता हूं और मन ही मन सोचने लगता हूं कि यार-आज से कुछ समय पहले जब संजीव से फिल्म सीता और गीता के सेट पर मिला था तब तो वह ऐसा नहीं था, अब शायद हो गया हों तो मालूम नहीं।
आखिर एक दिन हरि भाई से मेरी मुलाकात फिल्मीस्तान स्टूडियो में हो गई। संजीव कुमार -उस दिन फिल्म “धूप-छाँव’’ की शूटिंग के लिये आये थे। सेट पर पहुंचा तो देखा कि वहां पर कैमरे की गड़बड़ी की वजह से कैमरा-मैन व -डायरेक्टर कैमरे पर झुके हुए थे। गर्दन साईड में घुमाई तो देखा कि संजीव साहब एक कुर्सी पर बैठे हुए सिगरेट के कस ले रहे थे।
मैं उनके करीब पहुंचा। उन्होंने दुआ-सलाम के बाद, सामने वाली कुर्सी पर बैठने का इशारा किया। मैंने आराम से पसर कर बैठते हुए संजीव से ऊपर की गई चर्चा के बारे में पूछा तो संजीव ने सिगरेट का एक कश बड़ी गहराई से खींचा फिर धुंये को बाहर फेंकते हुए बोले, “भई, रुपया-पैसा कमाना कोई आसान बात तो है नहीं।
मेहनंत करनी पड़ती है चाहे वह बिजनैस लाइन हो या फिल्म लाइन। फिर मेरे पास फालतू पैसा तो है नहीं कि मैं लोगों में बाँटता फिरूँ और लोगों के मुंह से यह कहलाऊं कि संजीव बड़े दिल वाला आदमी है। मैं ऐसा नहीं कर सकता।”
“खैर, संजीव भाई यह बताइये कि आजकल या पिछले दिनों इतने फिल्मी एवार्ड स्टारों को दिये गये थे, उनमें आपको कोई भी एवार्ड नहीं दिया गया। इस बात पर आपका क्या ख्याल है?
संजीव ने मुझे देखा, फिर कुछदेर ठहर कर बोले, “देखिये मैं कलाकार हूं, स्टार नहीं, और जो स्टार अपनी जेब से खर्च करके एवार्ड खरीदते हैं वे कलाकार नहीं हैं। रही मेरी बात, अगर लोगों को मेरी एक्ंिटग में दम लगेगा तो मुझे आगे होकर एवार्ड देंगे। वैसे ऐसी बात नहीं कि मुझे एवार्ड नहीं मिले हैं। मिले हैं मेरी कला के दम पर मैंने अपनी जेब के दम से एवार्ड कभी नहीं खरीदे।”
बातों का सिलसिला चलता रहा। बीच में मैंने एक प्रश्न पूछ डाला, “संजीव साहब, आप अपने सीनियर और बराबरी के कलाकारों के साथ काम करते वक्त क्या महसूस करते हैं?
” संजीव मेरे प्रश्न को सुन कर कुछ मुस्कराये, फिर बोले, “बन्धु, यूं तो फिल्म आर्टिस्ट के लिये, हर फिल्म उसकी कला, उसकी लगन, उसकी मेहनत का इम्तहान हुआ करती है। उनके साथ मैंने! काम भी किया है पर फिल्म के सेट पर मैं कभी किसी को चैलेंज। नहीं किया करता। बस मैं अपना काम ईमानदारी से उन सीनियर या बराबरी वालों के साथ करता रहता हूं। कौन मुझसे अच्छा काम कर रहा है। इन सब बातों का अन्दजा तो सिफ् मैं दर्शकों से ही लगा पाता हूं।
मेरा अगला सवाल था-“संजीव साहब आपको अब तक जितनी भी प्रसिद्धि मिली है, इसमें किसका हाथ है। मेरा मतलब है कि क्या किसी निर्देशक ने आपके लिये कुछ किया।” मेरी इस बात पर संजीव ने एक बार फिर कड़वा सा मुंह बनाया, फिर बोले-“जी हां, हाथ था तभी तो मैं एक एकस्ट्रा से हीरो बन सका। मैंने बीच में ही पूछा-“किसका...? “मेरे टेलेन्ट का? हां, मुझे आगे बढ़ाने में मेरे टेलेन्ट का ही सबसे बड़ा हाथ है। किसी ने भी मेरे लिये कोई कहानी या रोल तलाश नहीं किया। हां, एक बात अवश्य कहूंगा कि स्व. के. आसिफ ने मुझे बढ़ावा दिया, साथ ही महेश कौल ने भी मेरा साहस बढ़ाया। खास तौर पर मैं एस. पी. ईरानी का एहसान जिन्दगी भर नहीं भूलूंगा कि उन्होंने मेरे टेलेन्ट को देखते हुए, मुझे पहली बार एक एक्स्ट्रा से हीरो बनाया वह भी डबल रोल हीरो फिल्म थी (निशान वरना इसके पहले तो मैं फिल्मी दुनिया में अपने हाथ पांव मार रहा था।
आपने फिल्म, हम हिन्दुस्तानी” देखी होगी। उसमें मैंने एक पुलिस इन्सपेक्टर का रोल किया था। पर किसी ने मुझे पर्दे पर एक भी डॉयलॉग बोलने को नहीं दिया, फिर जॉय मुखर्जी के साथ आओ प्यार करें! फिल्म में उसके दोस्त का रोल मिला था। अगर मेरे अन्दर कुछ भी टेलेन्ट नहीं होता तो आज मैं जहां पर हूं, वहां पर कैसे पहुंच जाता।”
बातें करते करते संजीव अपनी पुरानी यादों में खो गया। तो मैंने हेमा मालिनी के बारे में कुछ पूछा। संजीव जैसे सोते से जगा हो। फिर अपने को संयत करते हुए बोला- “भाई उसके (हेमा मालिनी) बारे में मैं अधिक कुछ नहीं कहुंगा बस इतना ही कहुंगा-इतनी बातें फेलीं हैं, चर्चा हुई हैं फिर भी हेमा के लिये मेरे घर के दरवाजे हमेशा खुले रहेगें जब जी चाहे वह आ सकती है।”
यह बताइये संजीव साहब कि आप हेमा को प्यार करते हैं? क्या आपने यह जानने की कोशिश की, कि वह आपको प्यार करती है कि नहीं?
संजीव बीच में ही बोल उठे, यार आग तो दोनों तरफ लगी हुई है पर कुछ लोग हैं जो उस आग को बुझाने का प्रयत्न कर रहे है। यह तो संयोग की बात है कि अगर हेमा मेरी किस्मत में होगी तो दुनिया की कोई ताकत उसे मुझसे छीन नहीं सकती।” “मेरे चेहरे पर मुस्कराहट आती देख कर संजीव भी मुस्कराये। फिर बोले, “ये किसी फिल्म के डॉयलॉग मत समझना हकीकत है। दिल से निकली बात है।”
और संजीव के दिल से निकली हुई बात को सफलता के बारे में मैं मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करते हुए लौट आया।