शांतिस्वरूप त्रिपाठी
नोटः यह अक्टूबर 2014 में लिया गया इंटरव्यू है, जिसे हम ज्यों का त्यों पेश कर रहे हैंः
बादशाह खान और किंग खान के नाम से मषहूर फिल्म अभिनेता शाहरुख खान से अक्टूबर 2014 में उनकी फिल्म ‘‘हैप्पी न्यू ईयर’’ के प्रदर्शन से पहले मुलाकात हुई थी, उस वक्त उन्होने अपनी प्रोडक्शन कंपनी ‘‘रेड चिल्ली’’ का काफी विस्तार किया था। तब उनसे हुई बातचीत इस प्रकार रही थी।
आपके अंदर तकनीक व बिजनेस का ज्ञान कहां से आया?
-मुझे बिजनेस का कोई सेंस नहीं है.सच कहूं तो मैंने जिस जिस बिजनेस की शुरूआत की उसमें मैं फेल हुआ हूं. पर मेरी सफलता को देखकर लोगों को लगता है कि मैं बिजनेस मैन के रूप में सफल हूं. मेरी कई फिल्में नहीं चली.‘अशोका द ग्रेट’ ही क्यों ‘पहेली’ भी नहीं चली. एक अंग्रेजी पत्रिका ने तो मुझे हाशिए पर धकेल दिया था.इन असफलताओं से मैंने अहसास किया कि बिजनेस सीखने वाली चीज है. खैर, अब मेरे साथ कुछ लोग ऐसे आ गए हैं, जिन्हें लगता है कि मुझे बिजनेस की समझ नही हैं. तो मैंने उनकी बात सुननी शुरू कर दी है. मैं उनकी बातें मान लेता हूं. मैं किड्सजानियां से भी जुड़ा हुआ हूं.क्योंकि मैं चाहता हूं कि बच्चों के लिए कुछ किया जाए. मुझे अच्छा लगता है.यह एज्युकेटिव प्राॅपर्टी है.
इसलिए मैं इससे जुड़ा हूं. मुझे जो चीज पसंद आती है, मैं उसी में बिजनेस करता हूं. मुझे खेल से प्यार है. इसलिए मैंने आईपीएल में क्रिकेट टीम खरीदी. मैं शेयर बाजार में पैसा नहीं लगाता. मैं प्राॅपर्टी खरीदने व बेचने का बिजनेस नहीं करता. जो चीजें आपके दिल के साथ जुड़ी हों, उन्हीं में बिजनेस करने में असफल होते हैं, तो तकलीफ कम होती है. बल्कि इच्छा होती है कि एक कोशिश और की जाए. माॅर्केटिंग का सीधा मतलब यह है कि हम लोगों को अपनी फिल्म के बारे में सब कुछ बता दें. यदि हम दुकान से कोई सामान खरीदते हैं, और वह खराब निकला, तो हम उसे वापस कर देते हैं. उसको बदलकर कुछ दूसरा लेकर आते हैं. पर दर्शक पांच सौ रूपए की सिनेमा टिकट खरीदता है. उसे फिल्म पसंद नहीं आती, तो पैसे वापस नहीं मिल सकते. ऐसे में मेरा फर्ज बनता है कि हम दर्शक को फिल्म के बारे में सब कुछ सही सही पहले से बता दें.
आपकी फिल्म ‘हैप्पी न्यू ईयर’ का ‘की प्वाइंट’ है-‘लूजर एंड अपाॅच्र्युनिटी’. इसे आप अपनी जिंदगी व कैरियर में कैसे देखते हैं?
-इतना स्पेसिफिक करके बताना मुश्किल है. पर कई बार हम सोचते हैं कि हमने जैसा सोचा, वैसा नहीं हो पाया. या हम उस तरह से काम नहीं कर पाए.मेरा मानना है कि इंसान को यथार्थ परक होने के साथ साथ पैंशंस वाला होना चाहिए. पैंशंस तभी आता है, जब आपका यकीन सही हो. आपको यकीन होना चाहिए कि जिंदगी में एक मौका जरूर मिलेगा. हमेशा सकारात्मक सोच रखनी चाहिए. बार बार लक या भगवान को दोष देना गलत है. मेरी क्रिकेट की टीम लगातार तीन साल हारती रही, तो मैंने किसी एक खिलाड़ी को दोष देने की बजाय पूरी टीम ही बदल दी. एक अखबार में छपा था कि मैं अपनी टीम बेच रहा हूं. किसी ने कहा कि दादा ने बंगाल का नाम खराब कर दिया. यह सब सुनकर मुझे दुःख होता था. इसलिए पूरी टीम बदलना ही मैंने सही समझा. अब मैंने अपनी क्रिकेट टीम की देखभाल करने के लिए एक सीईओ रखा है. ऐसा नियम बना दिया है कि यदि मुझे अपनी टीम से मिलना है, तो सीईओ से इजाजत लेनी पड़ेगी. मेरे कहने का अर्थ यह है कि यदि आप कहीं हार रहे हैं या नुकसान में हैं, तो आपको सोचना पड़ेगा कि कहां कमियां हैं और उसे दूर करने का रास्ता निकालना पडे़गा.
मेरी कमजोरी रही कि मैं अपनी टीम के हर मेंबर के साथ निजी स्तर पर जुड़ गया था और उनके साथ मेहनत कर रहा था. पर मेरी टीम का कोई भी खिलाड़ी अच्छे ढंग से खेल नहीं रहा था. जबकि सभी अच्छे खिलाड़ी थे. दूसरी टीम में जाते ही सभी ने सौ सौ रन बना दिए.मेरा मानना है कि मेरी अभी की जो टीम है,वह सर्वश्रेष्ठ टीम है.टीम में कोई दो लोग नही होते हैं, पूरे 11 या 15 लोग होते हैं. इसी तरह बतौर निर्माता मेरी फिल्में नहीं चली,तो भी मैं फिल्में बनाता रहा.पुरानी कहावत है कि,‘अकेले हम कुछ भी नही हैं, साथ में बहुत कुछ हैं.’ फिल्मों में फरहा और मैं साथ में आते हैं, तो एक अच्छी फिल्म बन जाती है. आदित्य चोपड़ा और मैं मिलकर एक अच्छी टीम बन जाते हैं. जबकि हम दोनों अपनी अपनी जगह टैलेंटेड हैं. इसी तरह कुछ अभिनेत्रियों के साथ हमारी अच्छी टीम बनती हैं.हम काजोल से मिलते भी नही हैं,पर जब भी किसी फिल्म में एक साथ काम किया, फिल्म अच्छी रही.उस फिल्म में जादू हो गया. रोहित शेट्टी और अजय देवगन दोनों अच्छे है, पर जब दोनों एक साथ आते हैं तो एक टीम बन जाती है.
पिछले दिनों जैकी श्राॅफ ने कहा कि शाहरूख़ खान ने बहुत तामझाम बढ़ा दिया है. फिर भी आप अकेले हैं. इस पर क्या कहेंगे?
-देखिए, हम सभी अपनी जिंदगी में उस चीज का चयन करते हैं, जिससे हमें ख़ुशी मिले. एक मुकाम पर आकर हर इंसान,अपने काम को सबसे ज्यादा श्रेष्ठ मानने लगता है. मैं मानता हूं कि जो कुछ मुझे दे दिया गया है, वह दूसरों के पास नहीं है. मुकाम सिर्फ टैलेंट के आधार पर नहीं मिलता. मुकाम मिलने की कई वजह होती हैं. एक खास मुकाम पर पहुंचने के बाद जब मैं कोई काम करता हूं या सोचता हूं, तो मैं उस नजरिए से करता हूं, जिसे मैंने देखा है. मैं दावा नहीं करता कि हर बार मैं सही होता हूं.लेकिन मैं जिस मुकाम से जिंदगी डील कर रहा हूं,उस मुकाम पर ज्यादा लोग नहीं है. तो वहां खुद को अकेला महसूस करना स्वाभाविक है. पर दुःख इसलिए नहीं, क्योंकि उसे चुना भी तो मैंने ही है. जिस जिंदगी को मैं जी रहा हूं,उस तरह की जिंदगी जीने वालों की संख्या बहुत कम है. मैं अब हर किसी से अपनी जिंदगी के बारे में बात तो नही कर सकता.
आपको कौन सपोर्ट करता है?
-लोग सहानूभूति दिखा सकते है. सपोर्ट कोई नहीं कर सकता.
क्या किसी मुसीबत के समय अपने परिवार से भी मदद नहीं लेते?
-एक फिल्म स्टार का परिवार होना सबसे बड़ी मुसीबत है. इसीलिए मैंने अपने पूरे परिवार, पत्नी बच्चे बहन भाई सबको दूर रखा हुआ है. अन्यथा शुक्रवार से शुक्रवार उनको भी परेशानी होगी. हमने अपने घर का माहौल ही ऐसा बना रखा है कि मैं सेट पर घटी किसी भी घटना का जिक्र घर पर नहीं करता. हमने घर को सिनेमा का सेट नहीं बनाया है. मैंने घर के अंदर प्रोडक्शन या डिस्ट्रीब्यूशन आफिस भी नहीं बनाया.
मेरे घर के अंदर परिवार है. मैं कभी भी डिनर टेबल पर बच्चों से या पत्नी से अपनी दिन भर की समस्याओें का जिक्र नहीं करता. मैं अपने बच्चों की जिंदगी को एक सुपर स्टार की जिंदगी के साथ कभी नहीं मिलाता. जब मेरे बच्चे सड़क पर जाते हैं, तो उन्हें देखने के लिए डेढ़ लाख लोग थोड़े ही खडे़ होते हैं. एक सुपर स्टार की जिंदगी पब्लिक ओरिएंटेड हैं. घर में मैं बहुत आम इंसान की तरह रहता हूं.
यानी कि आप यह मानते हैं कि एक सुपर स्टार के परिवार का होना उसके लिए मुसीबत होती हैं?
-जी हां!मुझे अच्छी तरह से याद है कि कई साल पहले पेषावर में मेरे एक अंकल एक्टर थे, जिनका नाम ‘ब्रह्मचारी’था.जब उन्होंने अभिनेता बनने का निर्णय लिया,तो साथ में यह भी निर्णय लिया था कि वह कभी षादी नहीं करेंगे.मैंने उनकी एक दो तस्वीरें देखी हैं. बहुत ही खूबसूरत हैंडसम इंसान थे. वह उस समय स्टेज पर काम किया करते थे. फिल्मों में नहीं. जब मैं बहुत छोटा था तब मेरे पिता ने मुझे उनके बारे में बताया था. उस वक्त ऐसे लोगों को तमाशबीन कहा जाता था. मेरे अंकल ने कहा कि वह तमाशबीन बनना चाहते हैंू और तमाषा करेंगे. तमाशबीन के पास अपना कोई परिवार नहीं होना चाहिए. इसीलिए उन्होने शादी नहीं की.मेरे पिता का नाम ताज और मेरे एक चाचा का नाम गुल मोहम्मद था. पर इनका नाम ब्रह्मचारी था. उस वक्त लोग मानते थे कि यदि आप तमाशबीन हैं, आप पब्लिक फिगर हैं. तो आपका अपना परिवार नहीं होना चाहिए.मुझे यह बात याद थी.इसलिए मैं अपने बच्चों पर कोई दबाव नहीं डालना चाहता.उन्हें जो बनना है, बन जाएं. जबकि हमारी फिल्म इंडस्ट्री में बहुत ज्यादा प्रेशर होता है.
मैंने अपनी इंडस्ट्री के दो बच्चों के साथ काम किया है, जिनके पापा इस इंडस्ट्री में सुपर स्टार हैं. अभिषेक बच्चन के पिता अमिताभ बच्चन और विवान शाह के पिता नसीरूद्दीन शाह इंडस्ट्री में स्टार हैं. इन दोनों बच्चों के उपर हमेशा एक प्रेशर बना रहता है.अभिषेक बच्चन को तो मैं बचपन से जानता हूं. जिस क्षेत्र में आपके पिता को ख्याति हासिल है, उस क्षेत्र में यदि आप हैं,तो कितना पे्रषर आता है, इसका मुझे अहसास है. इसलिए मैं अपने बेटे पर दबाव नहीं पड़ने देना चाहता. वह पढ़ाई कर रहा है, उसे वही करने दें. मेरी जो समस्याएं हैं, वह मेरी अपनी हैं. मेरी समस्या से उनका क्या लेना देना? मैं कमा रहा हूं, वह थोड़े ही कमा रहा हैं? मैं स्टार हूं, लोग मुझसे प्यार करते हैं, मेरे परिवार से नहीं.
मैं यहां पर बताना चाहूंगा कि जब मेरा बेटा आर्यन ढाई साल का था, तब लोग आते जाते उससे कहते थे कि,‘तू भी हीरो बनेगा?’ अरे भाई क्यों हीरो बनेगा? जिसे अपना नाम नहीं पता, उसे क्या पता? मेरा बड़ा बेटा अभी 17 साल का है, जब वह 13 साल का था, तभी लोगों ने उससे पूछना शुरू कर दिया था कि,‘बेटा तुम हीरो बनोगे.’ एक दिन उसने मुझसे पूछा कि,‘पापा क्या मैं हीरो बनूंगा? क्या आप मुझे फिल्म स्टार बनाना चाहते हैं?’ मैंने उससे कहा, ‘तुम क्या बनना चाहते हो?’ तो उसने कहा,‘मुझे नहीं पता.’ मेरा मानना है कि 12-13 साल के बच्चे को बिल्कुल नहीं पता होना चाहिए कि उसे क्या बनना है.उसे सिर्फ पढ़ाई करनी चाहिए.जिंदगी जीनी चाहिए.पढ़ाई पूरी होने के बाद वह सोचेगा कि उसे क्या करना है.
यानी कि आपका बेटा बड़ा होकर अभिनेता बनना चाहता है?
-मैं अपने बेटे को कन्फ्यूज नहीं करना चाहता. उसे जो बनना होगा, वह बनेगा.यदि अभिनेता बनना होगा, तो अभिनेता बन जाएगा. पर अभी उसे पढ़ाई करनी चाहिए.मैं पढ़ाई करते समय उससे यह कहकर कि उसे अभिनेता बनना चाहिए,क्यों कन्फ्यूज करूं. एक पिता के तौर पर मैं सोचता हूं कि उसे सबसे पहले पढ़ाई करनी चाहिए.यदि वह पढ़ा लिखा नही है,तो अभिनेता बनना बेकार है.अनपढ़ इंसान बेकार है. इसलिए मैंने उसे पढ़ने लंदन भेजा है. वास्तव में यहां उसे स्कूल में या जहाॅं जो भी मिलता था,वह उससे एक ही बात पूछता था कि ‘क्या तुम भी आगे चलकर अपने पिता की तरह अभिनेता बनोगे?’ पर अब लंदन में उससे यह सवाल कोई नहीं करता. वहां लोग जानते हैं कि उसके डैडी बहुत बडे़ फिल्म स्टार हैं. लोग उसके डैडी की इज्जत करते हैं. वहां पर मेरा पोस्टर भी लगा हुआ है. इसके बावजूद वहां हर कोई उससे यह नहीं पूछता कि वह बड़ा होकर क्या बनेगा? षायद वह इंजीनियर बन जाए. या शायद वह अभिनेता बन जाए. पढ़ाई पूरी होने के बाद जब वह मुझसे पूछेगा कि ‘मेरी पढ़ाई पूरी हो गयी और अब मेरी इच्छा एक्टर बनने की है’, तो मैं उसे सलाह दूंगा.
मुझे लगता है कि जब आप बहुत बड़े सेलेब्रिटी हों,तो परिवार होना बहुत मुश्किल हो जाता है. इसीलिए मैंने परिवार और प्रोफैषन दोनों को अलग रखने का निर्णय ले रखा है. इसलिए जब कोई मुझसे कहता है कि मेरे पास सब कुछ होते हुए भी मैं अकेला हूं, तो मुझे लगता है कि यह तो मेरी अपनी पसंद है. मैंने निर्णय लिया था कि मैं दुनिया का सबसे ज्यादा चर्चित चेहरा बनूंगा.तो अब स्टार बनने के बाद मैं काले रंग का चश्मा पहनकर नहीं घूमता. आखिर मैं अपना चेहरा क्यों छिपांऊ? जब मैंने स्वयं शोहरत पाने की बात सोची, तो फिर मैं क्यों चेहरा छिपाकर घूमूं? जब मेरा बेटा छोटा था, तो उसने एक दिन उसने मुझसे कहा कि उसे एस्ट्रोनेट बनना है. फिर अक्सर लोग उससे पूछने लगे कि ‘क्या तुम एक्टर बनोगे’? तो एक दिन उसने मुझसे कहा कि,वह एस्ट्रोनेट और एक्टर दोनों बनना चाहता है. मैंने उससे कहा कि आप दोनों क्यों? एक ही बन जाओ? तो उसने कहा कि,‘मैं दिन में एक्टर और रात में एस्ट्रोनेट बनूंगा.’ तो मुझे लगा कि वह कन्फ्यूज है. इससे मैं भी परेषान हो गया क्योंकि मेरे परिवार में मेेरे अलावा कोई एक्टर है ही नहीं.
इंसान की असली ताकत क्या होती है?
-मेरा मानना है कि इंसान तब ताकतवर होता है,जब वह स्वीकार कर लेता है कि उसके अंदर क्या कमजोरियां हैं. उसकी क्या कमियां हैं. मैं अपने बच्चों को हमेषा सिखाता हूं कि ‘रैष’ होना या ‘ताव’ में आना हमेषा नुकसान दायक होता है. यदि आप अपनी कमजोरी नहीं जानते,तो आप कभी विजेता नहीं बन सकते.अपनी कमियों को ना जानने वाला बुद्धू होता है.
आम चर्चाएं हैं कि भारतीय सिनेमा और भारत देश बदलाव के दौर से गुजर रहा है.आपकी नजर में हमारे देष की सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
-चुनौती की बातें करना बड़े लोगों के चोंचले हैं.लोग कहते हैं कि फिल्म ‘ बैंग बैंग’ में रितिक रोशन ने चुनौतीपूर्ण एक्शन किया है. पर मेरी नजर में यह सब बकवास है. हम सब यह कर सकते हैं. हमें लगता है कि हमने दुनिया को बदल दिया.पर ऐसा कुछ नही होता. देखिए, जब तक बिजनेस या राजनीति में जो पाॅवरफल हैं, वह ट्रिगर डाउन नहीं करेंगे कुछ नहीं होगा. जो लोग गरीबी में जी रहे हैं, उनसे कहें कि तुम्हें ऐसा करना चाहिए, यह कोई उचित बात नहीं है. जब पाॅवर में बैठे लोग सोचना शुरू करेंगे कि वह लोगों के अपलिफटमेंट/उन्हे उंचा उठाने की कोशिश कर रहे हैं,तब कुछ बदलाव आएगा.
लेकिन आपको नहीं लगता कि बिजनेस या राजनीति सहित हर क्षेत्र में वही पाॅवर फुल हैं,जो कि गलत हैं?
-इस तरह की सोच ही गलत है. जब मेरे पिता जिंदा थे, उस वक्त लोग टेबल के नीचे से घूस लेते थे. उस वक्त मेरे पिता ने मुझसे कहा था-‘‘तुम पढ़े लिखे लोग करप्ट हो सकते हो, लेकिन टेबल के नीचे से घूस नहीं लोगे. ’’अब सवाल यह है कि हमारे यहां करप्शन आया कहां से? देश में अंगे्रजों का शासन था और हम बाबू लोग थे. तो हम बाबू लोग सोचते थे कि यदि हमने थोड़ा सी घूस ले ली, तो हमने अंगे्रजों को ही नुकसान पहुंचाया है. यह घूस का कल्चर जैसा हो गया. इसे बाबू कल्चर भी कहते हैं. अंगे्रज बहुत सख्त थे. हम सभी उनसे बहुत डरते थे. इसलिए चुराने की भावना पैदा हुई. हमारे जो परदादा थे,वह यही सोचते थे कि हम अंगे्रजों के लिए काम कर रहे हैं. तो इसकी चोरी करना ठीक है. इसके साथ करप्ट होना ठीक है. पर वही एक प्रोसेस बन गया.आजादी के बाद भी वह प्रोसेस चलता रहा.पर अब मैंने महसूस किया है कि यह हमारी जो नयी पीढ़ी है, वह करप्ट नहीं है. क्योंकि उन्हें पता ही नहीं कि हम कभी गुलाम थे.यही पीढी देश को आगे ले जाएगी.
इसके बाद की जो पीढ़ी आएगी,वहां तो बिल्कुल भ्रष्टाचार नहीं होगा. हमारी पीढ़ी खुद सोचती है. बहुत स्टेट फाॅरवर्ड है. विकास की बात सोचती है. मैं भी स्टेट फाॅरवर्ड हूं. मैं मानता हूं कि ईमानदारी से पैसा कमाओ,खुश रहो.हमारे बच्चे भी कमाऐंगे और मौज करेंगे.हमारे बच्चों की पीढ़ी करप्ट नहीं हो सकती, गलती भले कर जाए. पुराने जमाने में लोग असुरक्षित थे कि हमारा बाॅस सब कुछ ले जाएगा. जमीन पर मैं काम करता हूं, फिर भी हमें गुलाम बना रखा है. पर अब हर क्षेत्र में यंग जनरेषन आ रही है,जो कि सब कुछ बांट कर खाना चाहती है. कोई भ्रष्ट नहीं है. भारत देश बहुत विशाल है. हर मामले में आगे है, तभी तो पूरा विश्व हमारे पीछे घूमता है.हमारे यहां 125 करोड़ की जनता है. हमारे पास खरीदने की ताकत है.इसलिए बेचने वाले हमारे आगे पीछे घूम रहे हैं. हम ही तो बाॅस हैं. धीरे धीरे यह बदलाव आप सभी को नजर आएगा.
चर्चाएं हैं कि अब आप अपनी फिल्म निर्माण कंपनी ‘‘रेड चिल्ली’’ को विशाल रूप देने जा रहे हैं?
-हम पिछले आठ दस साल के दौरान 12 फिल्में बना चुके हैं. हमारी कंपनी में करीबन 80 प्रतिशत लोग वही हैं, जो कि हमारे साथ 12 फिल्मों के निर्माण से जुड़े रहे हैं. फिर चाहे वह एकाउंट्स,माॅर्केटिंग या प्रोडक्शन का विभाग हो. इन्हें फिल्म निर्माण का काफी अनुभव हो गया है. दो साल पहले हमने अपनी कंपनी को विस्तार देने के लिए सोचना शुरू किया था. हमने पिछले दो साल के दौरान कुछ नए लोगों को अपने साथ जोड़ा है. हम कुछ और लोगों को जोड़ना चाहते हैं,जिनके नामों पर हमने विचार किया है. अब तक कहानी चुनने से लेकर हर डिपार्टमेंट को मैं ही देख रहा था. पर अब मैंने कहानी चुनने से लेकर हर अलग अलग डिपार्टमंट के लिए खास लोगों को चुन लिया है.
हमने जिन लोगों को अपनी कंपनी के साथ जोड़ा है, उन्हें अपने साथ जोड़ते समय हमने साफ साफ बता दिया था कि हम कल से काम नहीं शुरू करेंगे.एक दो साल वह लोग हमारे साथ रहें. हम उन्हें व वह हमें समझें. फिल्म के बिजनेस को समझे और हम लोग एक योजना बनाएं. फिल्म प्रोडक्शन में हमारे साथ करूणा व करीम जैसे लोग जुड़े हुए हैं, जो कि हमारे साथ तीन फिल्में बना चुके हैं. यह लोग बड़े बजट या छोटे बजट या मीडियम बजट की फिल्म बना सकते हैं. हम बड़े बजट व छोटे बजट के साथ साथ मीडियम बजट की फिल्में भी बनाना चाहते हैं.मगर अंतिम रूप से कुछ भी तय नहीं हुआ है.
फिल्म निर्माण कंपनी का विस्तार करते हुए किस तरह की फिल्में बनाने की इच्छा है?
-हर तरह की फिल्में बनाएंगे. मैं जो फिल्म करता हूं, वह अलग तरह की व बहुत बड़े बजट की फिल्म होती है. पर मैं उन फिल्मों को भी बनाना चाहूँगा , जिस तरह की फिल्मों में मैं अभिनय नहीं करता हूं. मैं थिएटर से भी जुड़ा रहा हूं, इसलिए मैं कुछ अलग तरह की फिल्में भी बनाना चाहता हूंू. हमारी प्रोडक्शन कंपनी की सोच यह है कि फिल्म छोटी हो या बड़ी पर तकनीकी स्तर पर बेहतर होनी चाहिए. हमारे पास एडीटिंग, वीएफएक्स, पोस्ट प्रोडक्शन सहित सारी बेहतरीन तकनीक उपलब्ध है. हम गुणवत्ता को लेकर कहीं कोई समझौता नहीं करने वाले हैं. जहां तक रचनात्मकता का सवाल है,तो उसमें कुछ हमारी पसंद होगी. कुछ दर्शकों की, तो कुछ दूसरे लोगों की पसंद शामिल होगी.मैं सिर्फ अपनी पसंद की फिल्म नहीं बनाना चाहूंगा.
अब हमने लोगों की एक टीम बनायी है, जो यह निर्णय लेगी कि कौन सी फिल्म बनानी है. अभी हमारी टीम कुछ फिल्मों पर काम कर रही है. फिल्म के बजट आदि पर काम किया जा रहा है. मेरी कोशिश रहेेगी कि मैं अपनी हर फिल्म के निर्देशक, लेखक और तकनीशियन को पूरी खुली छूट दूं, जिससे वह मन मुताबिक काम कर सकें. लेकिन उससे पहले एक बार उस फिल्म को लेकर हम इनके साथ विस्तृत बातचीत जरूर करेंगे.
मल्टीप्लैक्स के आने के बाद भारतीय सिनेमा के सामने हालीवुड फिल्मों के रूप में नया संकट खड़ा हो गया है. अब मल्टीप्लैक्स में हाॅलीवुड फिल्में हिंदी,तमिल व मलयालम भाषाओं में डब होकर रिलीज होने लगी हैं.इस संकट से निपटने के लिए भी आपके पास कोई योजना है?
-हाॅलीवुड की फिल्मों को आने से हम रोक नहीं सकते.ऐसे में अब हमारे पास एक ही रास्ता है कि हम भारत के क्षेत्रीय सिनेमा को बढ़ावा दें. जरूरत है कि हम रचनात्मकता के साथ साथ गुणवत्ता के स्तर पर भी बेहतरीन फिल्में बनाएं. इन दिनों हमारा क्षेत्रीय सिनेमा काफी अमैजिंग हो गया है. तो यह क्षेत्रीय सिनेमा ही हाॅलीवुड सिनेमा को अच्छी टक्कर दे सकता है.जब हम क्षेत्रीय सिनेमा के साथ अपना इनपुट डालेंगे, तो वह और बेहतर हो जाएगा.इससे यह नहीं होगा कि विदेशी फिल्म आयी और उसने हमारे सिनेमा को उखाड़ दिया. क्षेत्रीय सिनेमा जड़ों से जुड़ा हुआ है. मसलन,हम क्रिकेट टीम में भी बदलाव करते रहते हैं. नए लड़कों को भी मौका देते हैं.
तो क्या आप क्षेत्रीय सिनेमा बनाएंगे?
-जी हां!बातचीत चल रही है. मराठी या बंगाली फिल्म बना सकता हूं. मैं कलकत्ता जाता रहा हूं,तो इस बारे में मैंने अपनी टीम से कहा हुआ है. पर हमें मराठी सिनेमा या कलकत्ता के सिनेमा का बिजनेस नहीं पता है.उसे भी समझने की कोशिश कर रहे हैं.
आपको नहीं लगता कि विदेशी फिल्मों में तकनीक महत्वपूर्ण होती है,जबकि भारतीय सिनेमा में कहानी महत्वपूर्ण होती है?
-मैं आपकी इस बात से सहमत नही हूं.मेरा मानना है कि विदेशी फिल्मों में तकनीक के साथ कहानी भी होती है.मेरा मानना है कि हर तकनीक,कहानी को समृद्ध करती है.फर्क इतना ही है कि सीन सही ढंग से फिल्माए जाने चाहिए.यदि आपकी फिल्म में हीरो दस लोगों को मारता है और वह हवा में उड़ता है,तो उनका हवा में उड़ना सही ढंग से होना चाहिए.यदि आप आलसी हैं, यदि आप तकनीक के बारे में दर्शकों को शिक्षा नहीं दे रहे हैं.तो आपका सिनेमा आगे कैसे बढे़गा? हमें दर्शकों को ग्रांटेड मानकर नहीं चलना चाहिए.
भारतीय सिनेमा का सबसे कमजोर पक्ष क्या है?
-पटकथा लेखन सबसे कमजोर पक्ष है.हमारे यहां कहानी लेखन और पटकथा लेखन का कोई स्कूल ही नहीं है. हमारे यहां होता यह है कि कुछ भी लिख दो. लोग कहते हैं कि यह सीन डालना पड़ेगा,नही तो लोगों को बात समझ में नहीं आएगी. चीजों को सिम्बाॅलिंक भी दिखाया जा सकता है. आपका कहानी कथन इस ढंग से हो कि वह सुंदर लगे.स्क्रीन प्ले लेखन भी एक विज्ञान है,यह स्वीकार कर काम करना पड़ेगा.मैंने कई अमरीकन फिल्में देखी हैं,वैसे वह भी हमारी ही तरह कुछ खराब फिल्में बनाते हैं.पर मैंने महसूस किया कि उनकी फिल्मों का स्क्रीन प्ले बहुत बेहतरीन होता है.मैं अभी दो दिनों के लिए अमरीका के एले शहर गया हुआ था. सड़क पर हर चैथी दुकान में मुझे स्क्रीन प्ले राइटिंग स्कूल नजर आया.भारत में एक भी नहीं है.
आप अब ‘रेड चिल्ली’ को काॅरपोरेट कंपनी बनाने जा रहे हैं?
-मुझे लगता है कि हम अभी भी सेमी काॅरपोरेट हैं.फिल्म मेकिंग को सेमी काॅरपोरेट ही रहना चाहिए. हमारी कंपनी में फिल्म मेकिंग अलग होगा और माॅर्केटिंग का विभाग अलग होगा.
काॅरपोरेट कंपनियों के आने से रचनात्मकता को नुकसान हो रहा है या फायदा?
-यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम किस काॅरपोरेट कंपनी के साथ काम करते हैं.राॅनी स्क्रूवाला क्रिएटिव इंसान हैं.वह फिल्म को लेकर काफी सोचते हैं. फाॅक्स वाले भी काफी क्रिएटिव हैं. मैं देख रहा था कि ‘बेंग बेंग' में मेंहनत की है.ज्यादा काॅरपोरेट के साथ मैंने काम किया नहीं.इसलिए कुछ कह नहीं सकता.
आप निर्देशक कब बन रहे हैं?
-फिलहाल,तो कोई योजना नही है. अभी मुझे बतौर निर्माता व कलाकार बहुत कुछ काम करना है.निर्देशन तो फुल टाइम जाॅब है.निर्देशक बन गया तो अभिनय नहीं कर पाउंगा.जबकि अभी मैं अपने आपको अभिनय से जुदा नहीं कर पाऊंगा.