क्या यह वही मिथुंन हैं जो.... By Mayapuri Desk 13 Mar 2021 | एडिट 13 Mar 2021 23:00 IST in एंटरटेनमेंट New Update Follow Us शेयर मुझे नहीं पता कि राजनीति का खेल कैसे खेला जाता है। मैं आखिरी बार रियल पॉलिटिक्स में तब शामिल हुआ था जब कॉलेज में मेरे प्रोफेसर अंधेरी नामक एक उपनगर से कांग्रेस के उम्मीदवार थे और लोग उनकी गतिविधियों से बहुत हैरान थे, खासकर जब वह अंधेरी पुलिस स्टेशन में सीनियर पुलिस ऑफिसर को फोन करते थे और उनसे अपने प्रतिद्वंद्वियों (राइवल्स) और उनके आदमियों को मारने और उनके अंगों को तोड़ने के लिए उन्हें विकलाग कर देने के लिए कहते थे ताकि वे कोई कैंपेन न कर सकें। वह आखिरी दिन था जो मैंने एक ट्रेनी पॉलिटिशियन के रूप में बिताया था। मैंने राजनीति छोड़ दी और एक कैंपेन मैनेजर के रूप में अपने अनुभवों के बारे में लिखा, जिसे इंडियन एक्सप्रेस के एडिट पेज पर एक फुल पेज के रूप में पब्लिश किया गया था। मैंने शिवसेना के साथ अपने प्रारंभिक चरणों में भी कुछ समय तक काम किया था, बाल ठाकरे द्वारा दिए गए भाषणों के लिए मेरा आकर्षण ही वह कारण था जिसने मुझे शिवसेना के प्रति आकर्षित किया, जो मर गई और उनके अनुयायी ने उनकी मजबूत रणनीति का इस्तेमाल किया था। मैं कैंपस पॉलिटिक्स में शामिल था और कैंपस टाइम्स का सहायक संपादक भी था, जो एक हार्ड हिटिंग मैगजीन थी। मैंने वाईस चैन्सलर पर हमला करते हुए एक कविता लिखी थी जिसका नाम टी. के. टोपे था और वह मुंबई यूनिवर्सिटी को बदनाम करने वाली गतिविधियों के बिल्कुल खिलाफ थे। मेरा कविता पाठ, “हमारे नए वाइस चैन्सलर एक आदमी हैं जिन्हें टी. के. टोपे कहा जाता है और हमें उम्मीद है कि वह डोप नहीं हैं” पत्रिका को टोपे द्वारा बेन किया गया था और इसने एक कैंपस पॉलिटिशियन के रूप में मेरे जीवन के अंत को चिह्नित किया था। -अली पीटर जॉन मैंने पूरी कोशिश की है कि मैं राजनीति के संपर्क में रहूं, लेकिन मैं कसम खा सकता हूं कि मैं अभी भी समझ नहीं पाया हूं और न ही समझना चाहता हूं कि इस गंदे खेल जिसे राजनीति कहा जाता है क्या हैं। पिछले 6 सालों से, मैं इससे दूर रहने को कौशिश करता रहा हूँ, क्योंकि जिस तरह से मेरे दोस्त अमिताभ बच्चन ने राजनिति को ‘एक गटर’ कहा था मैं उनकी इस बात से परेशान हो गया था। लेकिन मैं पिछले कुछ दिनों के दौरान उतना परेशान नहीं हुआ था जितना इन कुछ दिनों के दौरान हुआ, जब मेरे एक अन्य मित्र, मिथुन चक्रवर्ती ने मुझे और देश के सभी समझदार लोगों को शॉक (झटका) दिया (क्या हमारे पास इस महान देश में समझदार लोग हैं?) जब वह खुले तौर पर और बिना कुछ कहे एक पॉलिटिकल पार्टी में शामिल हो गए, जिसका उपयोग वह तब करते थे जब उसे उसी लीडर द्वारा राज्यसभा भेजा जाता था, जिसे वह अब अपने नए नेताओं की मदद से हराने की कोशिश कर रहे है, जो उन्हें अपने जाल में फँसाकर बहुत खुश हैं। मैं इस बात की राजनीति में नहीं जाना चाहता कि मिथुन ने ये क्या क्यों किया है, लेकिन उन्होंने जो किया है वह मुझे मिथुन के रंगीन और विवादास्पद अतीत के फ्लैशबैक में जाने के लिए प्रेरित करता है। एक अभिनेता के रूप में ट्रेन होने के लिए पूना में एफटीआईआई में शामिल होने वाले मिथुन कि मुंबई में एक नक्सली होने के बारे में अफवाह फैली थी। यह यहां था कि उन्हें एक प्रसिद्ध बंगाली फिल्म निर्माता द्वारा खोजा गया था जिसने उन्हें ‘मृगया’ में उन्हें उनका पहला ब्रेक दिया था जिसके लिए उन्होंने बेस्ट एक्टर का राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीता था। वह काम की तलाश के लिए मुंबई आए थे, लेकिन उन्हें ‘फूल खिले हैं गुलशन गुलशन’ और ‘दो अंजाने’ जैसी फिल्मों में छोटी भूमिकाएं ही मिली थी। वह अपने गोल्ड मैडल और अवाॅर्ड्स और पीआरओ दिनेश पाटिल के साथ मेरे ऑफिस आए थे, जिनके पास खुद की अपनी एक आटे की मिल थी। उन्होंने मेरे सीनियर पर अपना प्रभाव डालने की पूरी कोशिश की, लेकिन कुछ भी काम नहीं किया और मिथुन निराश नजर आए और जब वह बाहर की ओर जा रहे थे तो मैंने उन्हें वापस बुलाया और फिर मैंने उनसे बात की और उनके बारे में लिखा। यह हमारे एक बहुत लंबे जुड़ाव की शुरूआत थी। मैंने उन्हें तब भी संघर्ष करते देखा जब उन्होंने कुछ बी ग्रेड एक्शन फिल्में कीं। लेकिन उनका भाग्य बदल गया जब उन्होंने ‘डिस्को डांसर’ की जो एक डांस फिल्म थी। फिल्म की रिलीज ने उन्हें अमिताभ बच्चन के बाद दूसरा सुपर स्टार बना दिया था और उन्हें ‘गरीब आदमी का अमिताभ’ कहां जाने लगा। वह अब एक स्टार थे। उनके पास मड आईलैंड में अपने रिसॉर्ट , कॉटेज थे, जहां उन्होंने खुद के लिए एक जगह बनने से ज्यादा, अपने कुत्तों के लिए विशाल केनल बनवाया था और यह कुत्ते दुनिया के विभिन्न हिस्सों से लाए गए थे और उनकी देखभाल करने के लिए उनके पास एक बड़ी टीम थी। जब मैंने एक बार उनसे उनके कुत्तों के प्रति उनके इस प्यार के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा था कि, “आदमी बेवाफा होता हैं, कुत्ता कभी नहीं।” किशोर कुमार की पूर्व पत्नी योगिता बाली से शादी करने से पहले उनके कई अफेयर्स रहे थे। उनके अपने ‘डैडी’ के साथ कुछ मतभेद थे और कुछ ही समय में वह और उनका परिवार बॉम्बे से ऊटी शिफ्ट हो गए था जहाँ उन्होंने अपना होटल ‘द मोनार्क’ बनाया था और वह वहाँ रहते भी थे। उन्होंने ऊटी में एक पैरेलल फिल्म इंडस्ट्री शुरू की और ऊटी के बाहर कहीं भी शूटिंग करने से इनकार कर दिया, लेकिन ऐसे कई फिल्म निर्माता थे जो उनके नियमों का पालन करने के लिए तैयार थे। उन्हें इंडिविजुअल इनकम टैक्स पएर घोषित किया गया, जिन्होंने टैक्स के रूप में 1 करोड़ का भुगतान किया था। ऊटी में उनका पैरेलल सिनेमा मूवमेंट एक ठहराव पर हैं और उनके बेटे मिमोह के एक स्टार बनने की चाह उन्हें वापस मुंबई ले आईं हैं। वह उम्रदराज थे और उन्हें केवल चरित्र भूमिकाएँ मिलीं जो उन्होंने एक क्लास और आत्मविश्वास के साथ निभाईं। अंतिम अच्छी चरित्र भूमिका उन्होंने ‘द ताशकंद फाइल्स’ में निभाई थी। उनके असफल स्वास्थ्य और कभी-कभी उनकी मृत्यु के बारे में भी कई अफवाहें सामने आई हैं। वह अपने सह-कलाकार के रूप में अनुपम खेर के साथ ‘द कश्मीर फाइल्स’ में एक और प्रमुख भूमिका निभा रहे थे और जिसके निर्देशक विवेक अग्निहोत्री थे। और जल्द ही जब उन्होंने फिल्म की शूटिंग पूरी कर ली, तो उनके पार्टी में शामिल होने के बारे में हर तरफ अफवाहें फैल गई। और अंत में, कोलकाता में लोगों की एक सभा से पहले सच्चाई सामने आ गई, जहां का एटमाॅस्फेयर हेल्दी माइंड के लिए बिल्कुल अनुकूल नहीं। और जिस चीज की मुझे उम्मीद थी वही हुआ। उन्होंने उस पार्टी का हिस्सा बनने की शपथ ली, जिसका उन्होंने कभी मजाक उड़ाया था और उसे सभी तरह के बेकार नामों से बुलाया था। ऐसा कयों होता हैं? ऐसे एक शरीफ आदमी अपना होश क्यों खो देता हैं, ऐसा करके एक शरीफ इंसान अपने सालों की कमाई हुई शान और इज्जत क्यों खो देता हैं? यह सिर्फ मेरा सवाल नहीं हैं, यह सवाल देश के कई करोड़ हेरान लोग पूछ रहे हैं, उसको क्या कहते हैं, हां, नेशन वांट्स टू नो। अनु- छवि शर्मा #mithun हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next 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