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फिल्म में सिर्फ एक सांसारिक और धुंधली कहानी है कि कैसे रामप्रसाद भार्गव के निधन पार उनकी मृत्यु का शोक मनाने के लिए 13 दिनों के लिए पूरा भार्गव परिवार एक ही छत के नीचे एक साथ रहता है।
जो यह दिखता है की यह पुनर्मिलन कुछ आंतरिक वास्तविकताओं को कैसे सामने लाता है, जो परिवार के प्रत्येक सदस्य के दिलों की गहराई दबा हुआ हैं।
ज्योति वेंकटेश
छह बच्चों और विभिन्न अन्य रिश्तेदारों की उपस्थिति
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शुरुआत करने के लिए, आप फिल्म के शुरुआती दृश्यों में देखते हैं, भार्गव परिवार के कुलपति, राम प्रसाद भार्गव (नसीरुद्दीन शाह) की अचानक मृत्यु हो जाती है।
इस प्रकार उनके बड़े परिवार के सदस्यों को जबरन अपने पुराने बंगले में वापस आना पड़ता है, जहाँ राम प्रसाद भार्गव की पत्नी सावित्री (सुप्रिया पाठक कपूर) अब अकेली रहती हैं।
छह बच्चों और विभिन्न अन्य रिश्तेदारों के आगमन से पथेटिक सिचुएशन की अव्यवस्था बढ़ जाती है, जो कई बार बहुत गंभीर हो जाती है।
मकाबरे की स्थिति हर एक को बुरी लगती है जब यह पता चलता है कि रामप्रसाद पर बैंकों का बहुत बड़ा कर्ज है और अब उसे वापस भुगतान करने का खामियाजा भुगतने के लिए उनके बच्चों को आगे आने के लिए सहमत होने जरुरत पड़ी।
बेटों और उनकी पत्नियों में भी बहुत झगडे सामने आते है जब बात आती है कि उनकी माँ की देखभाल कौन करेगा, जब अब उनके पिता का निधन हो गया है।
दर्शक को यह सोच बेचैन कर देती है कि संसार में क्या नवीनता दिखाई जा रही है
हालांकि अभिनेत्री सीमा पाहवा ने फिल्म निर्देशन की शुरुआत की (उन्होंने फिल्म भी लिखी है) इस रीयलिस्टिक फिल्म के साथ, हालांकि वह एक भारतीय सेटिंग में पारिवारिक संबंधों का रीयलिस्टिक वर्णन करने का प्रबंधन करती है।
अफसोस की बात है कि उनका लेखन आधे-अधूरे प्रयास की तरह दिखता है, क्योंकि यह पारिवारिक नाटक न तो मज़ेदार है और न ही भावनात्मक।
जो आपको पूरे समय तक जोड़े रख सके, दर्शक को यह सोच बेचैन कर देता है कि संसार में क्या नवीनता दिखाई जा रही है।
जहां तक प्रदर्शन चलता हैं, यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि मनोज पाहवा, जैसा कि परिजनों में सबसे बड़ा था, अपने पोकर फेस के साथ कुछ खिलखिलाकर हंसने वाली हंसी को लाने में कामयाब रहे है।
जहां नसरुद्दीन बिस्तर पर लेटे रहते हुए भी हमेशा की तरह उत्कृष्ट हैं, वहीं विनय पाठक और निनाद कामत अपने-अपने तरीकों से कथा के सीमित रखने और धीमी गति से आगे बढ़ने वाले कथानक को आगे बढ़ाने में काफी हद तक सफल रहे हैं।
बंगाली सुपर स्टार परमब्रत चट्टोपाध्याय सबसे छोटे और सबसे जिम्मेदार भाई के रूप में सामने आते हैं। उनकी ऑन-स्क्रीन पति, कोंकणा सेन शर्मा के साथ उनके तनावपूर्ण संबंध को अच्छी तरह से चित्रित किया गया है।
प्रसाद के पोते, राहुल का किरदार विक्रांत मैसी द्वारा निभाया गया
सुप्रिया पाठक कपूर ने अपने चरित्र सावित्री के माध्यम से होने वाली पीड़ा को दर्शाया है, हालांकि उनकी प्रतिभा को साबित करने के लिए उनके पास कई सरे दृश्य नहीं हैं।
लेकिन फिर भी उनकी उपस्थिति को सीमित स्क्रीन टाइम के भीतर फील करने की कौशिश करती है। प्रसाद के पोते, विशेष रूप से राहुल विक्रांत मैसी द्वारा निभाया गया किरदार और पड़ोस की लड़की के साथ उनका रोमांटिक एंगल कुछ हास्य तत्व को ड्रामा में जोड़ता है।
हालांकि, सीमा पाहवा अपनी पहली फिल्म के लिए सभी प्रसिद्धी की हकदार हैं, लेकिन मैं यह कह सकता हूं कि फिल्म ‘रामप्रसाद की तेहरवी’ गर्मजोशी से भरे एक पारिवारिक जीवन पर आधारित नाटक से ज्यादा कुछ नहीं है।
यह एक ऐसी फिल्म है जो आप खुद से रिलेट कर पाते है, इस सच के बावजूद कि यह आपको एक कथा के कोर के लिए भावनात्मक रूप दर्शाने की कौशिश करती है।
प्रोडूसर- मनीष मुंद्रा
डिरेक्टर- सीमा पाहवा
स्टार कास्ट- नसीरुद्दीन शाह, सुप्रिया पाठक, विक्रांत मैसी, परमब्रता चटर्जी, कोंकणा सेन शर्मा, मनोज पाहवा, विनय पाठक, निनाद कामत और दीपिका अमीन
जेनर- सोशल
रेटिंग- ढाई (1/2) स्टार
अनु- छवि शर्मा
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