अगर बात करने या कहने का सार अछा हो तो उसे बयां करने में कुछ खामियां भी हो तो उसे नजर अंदाज करना चाहिए. कुछ ऐसा ही मामला यंग डॉयरेक्टर कुलदीप कौशिक की इस फिल्म का भी है, बॉलीवुड के टॉप मेकर या फिर नामी स्टार कबड्डी पर फिल्म बनाना घाटे का सौदा मानते है क्योंकि उन्हें लगता है की कबड्डी पर बनी फिल्म मेजर सेंटर में नही chl पाएगी और बी सी सेंटरों से आप फिल्म की लागत भी नही निकाल पाएंगे लेकिन निर्माता सुनील तायल की तारीफ करनी होगी की उन्होने नए कलाकारो को लेकर सीमित बजट में कबड्डी पर एक ऐसी फिल्म बनाने की हिम्मत तो दिखाई बेशक फिल्म में तकनीकी तौर पर बहुत खामियां है लेकिन मेकर्स की नियत अच्छी और नेक है तो हमे इन कमियों को नजर अंदाज करना चाहिए.
स्टोरी प्लाट बृज के एक छोटे से गांव में जब से भैरो सिंह ने अपने गुंडों के साथ देता डाला तभी से गांव के सारे मर्द बेवड़ा बन गए भैरो सिंह ने गांव में शराब की दुकान खुलवा दी और जमीन के कागज गिरवी रख कर गांव के मर्दों को शराब पीने का आदी बना दिया, एक दिन भैरो सिंह ने गिरवी रखी जमीन पर एक बड़ी फैक्ट्री खुलवाने का ऐलान कर दिया और किसानों की जमीन पर कब्जा करने का अल्टीमेटम दे दिया, वही भैरो सिंह ने गांव की महिलाओं को ये चैलेंज भी दिया कि अगर गांव की महिलाओ की टीम भैरो सिंह के आदनियो की टीम को कबड्डी के मैच में हराती है तो वाह उनकी अपने पास गिरवी जमीन को वापस कर देगा, गांव की महिलाएं अब अपनी एक टीम बनाती है और जुट जाती है भैरो सिंह की टीम को पूर्णमासी के दिन होने वाले कबड्डी के मैच में हराने के लिए. क्या ऐसी महिलाए जिन्होने कभी कबड्डी नही खेली वो तीन मर्दों की टीम को हरा पाएगी?
फिल्म का विषय अच्छा है, नए कलाकारो की एक्टिंग बस ठीक ठाक है फिल्म की शुरूआत कमजोर है लेकिन क्लाइमैक्स जानदार है, अगर आप एक साफ सुथरी मैसेज देती फिल्म देखना चाहते है तो इस फिल्म को एक बार देखा जा सकता है कलाकर, मन्नत सिंह, दीक्षा वर्मा, उर्वशी सिंह, पूजा वर्मा, अक्षिता गुप्ता, शेयरन वर्ण, ललित परियू, निर्माता, सुनील तायल, निर्देशक, कुलदीप कौशिक, सेंसर सर्टिफिकेट, यू ऐ, अवधि 124 मिनट.