मोहब्बत की सल्तनत के शाही शहंशाह By Mayapuri Desk 25 Oct 2020 | एडिट 25 Oct 2020 23:00 IST in एंटरटेनमेंट New Update Follow Us शेयर कभी कभी एक यश चोपड़ा ही आते हैं और हमेशा के लिये यादें छोड़ जाते हैं कहते हैं कि अगर किसी मकसद को पूरा करना हो या किसी कठिन से कठिन मंजिल पर पहुंचना हो और जुनून से उनको पाने कि कोशिश करें, तो सारी कायनात जुड़ जाती है उनको कामयाब करने के लिये। अगर ये बात सच है, तो उस आदमी का क्या कहे जिसके सिर से पांव तक जुनून ही जुनून है। आप समझ गये होंगे कि हमारा इशारा किसके लिये है, जी हां ऐसा इंसान हमने कई सालो में एक ही जाना और देखा है, यश चोपड़ा जी! यश जी के पिताजी चाहते थे कि उनका बेटा एक बेहतर आई. सी. एस. ऑफिसर बने और बात यहाँ तक हो गई थी कि यश जी को मुम्बई भेजा गया जहाँ से उसकी लंदन के लिये फ्लाइट बुक हो गई थी। उन्होंने अपने बड़े भाई बी. आर. चोपड़ा के घर कुछ दिन बिताए और जब उनकी वहां पर मशहूर शायर साहिर लुधियानवी से मुलाकात हुई, तो उनकी जिंदगी की दिशा ही बदल गई। उन्होंने अपने भाई से पिताजी को मनाने के लिये कहा कि वह आई. सी. एस. ऑफिसर बिल्कुल नहीं बनना चाहता था और वो अपने भाई के साथ असिस्टेंट डायरेक्टर बनना चाहता था पिता और भाई ने समझाने की बहुत कोशिश लेकिन उस जवान जंनून का कोई क्या कर सकता था ? यश जी के जुनून की आखिर जीत हुई और उन्होंने अपने भाई की फिल्म ‘नया दौर’ में बतौर सहायक काम किया जहाँ उनको एक नई दुनिया दिखाई दी जब उनकी मुलाकातें उनके चहेते शायर साहिर और दिलीप कुमार के साथ गहरी दोस्ती हो गई। जब उनके भाई को यश जी के जुनून का पता चला तो उन्होंने उनको दो फिल्में बनाने का मौका दिया, ‘धर्मपुत्र’ और ‘धूल का फूल’ और सिर्फ इन दो फिल्मों ने यश को एक जगह बनाने का हांैसला दिया और फिर उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनकी अगली ही फिल्म ‘वक्त’ ने उनके लिये एक अपने आप को चुनौती दी और हर फिल्म के साथ एक अदभुत चमत्कार सा करते गये। यश चोपड़ा का नाम चारो ओर धूम मचाता रहा। इस दौर में उन्होंने अपने भाई के बैनर के लिये जैसी फिल्में बनाई ‘आदमी और इंसान’ और ‘इत्तफाक’। लेकिन वो अपने अंदर के जंनून का क्या करते ? एक दिन वो अपने बड़े भाई से मिले और बहुत ही अदब से कहा कि उनको अपने पैरों पर खड़ा होने का दिल चाहता था और कुछ देर सोचने के बाद वो अपने भाई से अलग हो गये और आज से पचास साल पहले उन्होंने अपने बैनर यश राज फिल्म्स कि स्थापना की। उनके इस नये दौर में अगर किसी का जबरदस्त साथ मिला ,तो वो थे गुलशन राय, वी. शांताराम , साहिर, एडिटर प्राण मेहरा और कैमरामैन के. जी. कोरेगाओंकर। उनका पहला आफिस वी. शांताराम ने उन्हें एक तोहफे के तरह भेंट किया जो राजकमल स्टूडियो का एक छोटा हिस्सा था। वहाँ से यश चोपड़ा ने एक ऐसी उड़ान भरी जो अगले कई साल तक जारी रही, यश चोपड़ा ने वक्त-वक्त पर ये साबित किया कि वो कैसे अलग अलग किस्म की फिल्में बना सकते थे। लेकिन यश जी ने अपने आपमें ये ढूंढ लिया कि अगर वो किसी सब्जेक्ट को प्यार से और आसानी से बना सकते थे वो था मोहब्बत जिसको लोग इश्क और इबादत के नाम से भी जानते हैं। उन्होंने ‘दीवार’, ‘त्रिशूल’ और ‘काला पत्थर’ भी बनाई। लेकिन वो एक अलग ही दुनिया मे खो जाते थे जब वो रोमांटिक फिल्में बनाते थे जैसे ‘दाग’ ‘कभी कभी’, ‘सिलसिला’, ‘लम्हे’ ‘चांदनी’, ‘दिल तो पागल है’, ‘वीर जारा’ और ‘जब तक है जान’। यश जी ने मोहब्बत के जैसे मायने ही बदल दिये थे। उनके किरदार, फिल्म के डायलॉग, फिल्म के गाने और यहाँ तक के उनके डांस और लोकेशन्स में भी मोहब्बत ही मोहब्बत का रंग होता था और मोहब्बत लोगो की सांसों में महकती थी। यश जी का सबसे बड़ा कमाल था कि वो सारे यूनिट को मोहब्बत के परिभाषा को खुद समझाते थे जो उनके एक्टर्स कभी कभी उनसे मुकाबला करते करते थक जाते थे और हार भी जाते थे। यश जी कीे फिल्मों में गानो की बहुत अहमियत होती थी। हर गाना अपने आप मे एक कहानी होती थी। अगर आपको ‘वक्त’ का वो गाना ,‘आगे भी जाने न तू ,पीछे भी जाने न तू ,जो भी है , बस यही एक पल है’ तो आपको पता चलेगा कि हम ऐसा क्यों कह रहे हैं और हमारी चुनौती है कि कोई दिग्दर्शक शायद ही कभी उस जैसा गाने को दर्शाये आज भी और कभी भी। और क्या क्या बताये हम एक ऐसे फिल्मकार के बारे मे जिसकी फिल्मों के बारे में किताबें लिखी गई हैं और पीएचडी भी की गई है और जिनके नाम से और काम से हजारों लोग शपथ लेने को तैयार होते हैं। यश जी का जुनून ना सिर्फ फिल्मों में दिखाई देता है बल्कि उनके जिन्दगी में भी। वो दोस्तों के दोस्त थे। दिलीप कुमार, लता मंगेशकर और साहिर को वो खुदा का दर्जा देते थे और बार बार ये कहते थे ‘इनके बिना मैं क्या खाक जियूँगा, इनके बिना तो मेरा मर जाना अच्छा है। यश जी को खाने का इतना शौक था कि कभी अगर खाना अच्छा नहीं आता था शूटिंग में तो वो शूटिंग बंद करा देते थे उनको दुनिया की हर वो जगह मालूम थी, जहाँ अच्छा खाना मिलता था और उनकी अपने मोहब्बत के दास्तानों का क्या कहना! कभी उनको मुमताज से मोहब्बत थी और बात शादी तक पहुंच चुकी थी लेकिन अफसोस ! कभी उनको साधना से बेहद मोहब्बत थी और बारह बारह घंटे फोन पर उनकी बातें होती थी। कभी कभी वो हमसे कहते थे,‘जिन्होने मोहब्बत नहीं कि वो खाक जिन्दा होते हैं’ और कभी कहते थे ‘अगर मोहब्बत के बारे में फिल्म बनाओ तो हीरोइन से मोहब्बत करना बहुत जरूरी होता है।’ आज वो जो मोहब्बत की सल्तनत यश जी ने स्थापित की थी उसके पचास साल पूरे हो गये हैं,वो सबकुछ है जो यश जी चाहते थे, लेकिन लेकिन अब यशजी यहाँ नहीं है। जब तब जान है, जब तक जुनून है और जब तक मोहब्बत है यश चोपड़ा जी का नाम रहेगा और सिर इज्जत से झुकेगा, हम सबके हाथ उठेंगे उनको प्यार से सलाम करने के लिये। #Yesh Chopra #शहंशाह हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article