संजय लीला भंसाली ने अपनी अद्भुत स्टोरीटेलिंग के दम पर विजुअल एक्स्ट्रावैगांज़ा और पिक्चरेस्क म्यूजिकल्स को एक नई परिभाषा दी है। अपनी फिल्म मेकिंग के हर पहलू को परफेक्ट बनाने के लिए मशहूर इस डाइरेक्टर ने अपने सिनेमा के माध्यम से ग्लोबल ऑडियंस को चकित कर दिया है। चाहे उनकी पहली फिल्म ‘खामोशी: द म्यूजिकल’ हो या उनकी पिछली फिल्म ‘पद्मावत’, भंसाली ने हर कहानी के साथ कोई न कोई नायाब और दिलकश चीज पेश की है।
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में 25 साल पूरे करने वाले इस डाइरेक्टर को हमेशा इंडियन सिनेमा को दिए गए उनके योगदान के लिए सेलीब्रेट किया जाता है। हाल ही में खुले दिल से हुई एक बातचीत के दौरान संजय लीला भंसाली ने अपने डाइरेक्टर बनने के पीछे की कहानी सुनाई। बचपन में पहली-पहली बार देखी एक फिल्म की शूटिंग को याद करते हुए डाइरेक्टर ने बताया, 'मुझे याद है कि जब मैं 4 साल का बच्चा था, तब मेरे पिता जी मुझे एक शूटिंग दिखाने ले गए थे। वह अपने दोस्तों से मिलने चले गए और मुझसे बोले कि मैं वहीं एक जगह पर बैठूं। कहने लगे कि अपने दोस्तों से मिल कर बस अभी लौटते हैं। उनके जाने के बाद मैं स्टूडियो में बैठा-बैठा सोच रहा था कि मेरे लिए इस जगह से ज्यादा सुकून भरी कोई और जगह हो ही नहीं सकती; यह स्कूल, खेल के मैदान, किसी कजिन के घर या दुनिया की किसी भी जगह से ज्यादा आरामदायक है। मुझे लगा कि यह पूरी दुनिया की सबसे खूबसूरत जगह है। मेरी नजरों के सामने एक कैबरे डांस की शूटिंग चल रही थी और वे इसे बार-बार दोहराते रहे। लेकिन दरहकीकत मुझे उस शाम की सबसे गहरी जो चीज याद है, वह है मेरे पिता का आदेश- ‘यहां बैठो और हिलना मत, और कहीं मत जाना।‘ आज जब मैं उस घटना को पीछे मुड़कर देखता हूं तो पाता हूं कि मैं तो बीते 25 साल से वहीं बैठा हूं, क्योंकि उसके बाद से पूरी जिंदगी मैं वहीं रहने का सपना देखता रहा और मुझे खुशी है कि मैं वहीं बैठा हुआ हूं और मुझे जो करना है वह कर रहा हूं।'
प्रोजेक्टर के जरिए फिल्में दिखाने वाले थिएटरों में बैठने की अपनी प्यारी यादों की तरफ लौटते हुए भंसाली आगे बताते हैं, 'मुझे अभी भी याद है, अपने बचपन में किसी थिएटर में जाना और उन प्रोजेक्टरों को देखना, जो परदे पर रोशनी की बौछार किया करते थे। यह बौछार मेरे दिमाग पर भी पड़ती थी और मेरा हमेशा फिल्म से ध्यान उचट जाता था। मेरा दिमाग किरणों की शक्ल में उड़ती उन नन्हीं परियों की तरफ चला जाता था, और मुझसे कहता था- ठीक है, एक दिन मेरी कहानी भी इसी तरह लहराएगी।'
बचपन का सपना पूरा करने और अपने सिनेमा के दम पर वैश्विक पहचान बनाने वाले इस डाइरेक्टर की खुशी का ठिकाना नहीं है। सबके लिए और ज्यादा विलक्षण कहानियां रचने को तत्पर भंसाली का कहना है- “ये तमाम चीजें जो मैंने बनाई हैं- मुझे लगता है कि मैं 9 फिल्में बना चुका हूं और 10वीं बनाने जा रहा हूं, इसमें 25 साल बीत गए हैं, अभी 25 साल और बिताने हैं।'
इस डाइरेक्टर की दो बहुप्रतीक्षित फिल्में रिलीज होने जा रही हैं, जिनमें आलिया भट्ट स्टारर ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ की थिएटरों में होने वाली रिलीज तथा नेटफ्लिक्स के लिए ‘हीरामंडी’ शीर्षक से बनाया गया यह महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट शामिल है। ‘हीरामंडी’ आजादी से पहले के आबाद कोठों की दास्तान सुनाती है।
नेटफ्लिक्स ने हाल ही में ‘हीरामंडी’ को अपनी वैश्विक कार्यक्रम सूची का स्पॉटलाइट शो घोषित किया है। इस ग्रैंड प्रोजेक्ट के बारे में संजय लीला भंसाली ने बताया, “हीरामंडी एक ऐसी चीज थी, जिसे मेरे दोस्त मोइन बेग मेरे लिए 14 साल पहले लेकर आए थे। आखिरकार जब हमने इसे नेटफ्लिक्स के सामने पेश किया तो उनकी बांछें खिल गईं! उन्हें लगा कि इसको एक मेगा-सीरीज में तब्दील करने की अपार संभावनाएं मौजूद हैं। यह बड़ी महत्वाकांक्षी चीज है। यह बहुत बड़ी है। यह विराट है! यह आजादी से पहले वाली तवायफों की कहानी है। वे संगीत, शायरी, नृत्य को जिंदा रखती थीं और कोठों के भीतर चलने वाली राजनीति के बीच जीने की कला के दम पर विजेता बन कर उभरती थीं।”
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इस सीरीज में उनके रोमांचक प्रोजेक्ट की अगुवाई करने के लिए एक समावेशी स्टार कास्ट और प्रतिभाशाली टीमें शामिल हैं। हम संजय लीला भंसाली के सिनेमाई जादू का बड़े पर्दे पर, और अब ओटीटी के जरिए भी लुत्फ उठाने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं!