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शकीला एक राजकुमारी थी, वो ग़ुरबत में भी रही तो राजकुमारी की तरह रही

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शकीला एक राजकुमारी थी, वो ग़ुरबत में भी रही तो राजकुमारी की तरह रही

फिल्म इंडस्ट्री का ये दस्तूर है कि उठता सूरज देख सलाम किया जाता है और अगर ज़रा से मुसीबतों के मेघ भी आ जाएं झट से सूरज बदल लिया जाता है। यहाँ लोग अपने सूरज और अपनी सूरत, हर शुक्रवार बदलते हैं।publive-image

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शकीला 1935 में जब पैदा हुईं तो उनका नाम ‘बादशाह-बेगम’ रखा गया। हाँ, नाम कुछ अजीब ज़रूर लगता है पर ये कोई हिन्दुस्तानी नाम नहीं है, ये नाम उनके माता पिता, जो इरान के प्रिंसी घराने से थे; ने रखा था। उनकी माँ जल्दी ही चल बसी, पिता भी बीमार रहने लगे और एक दिन चले गये। उनके दादा को उन्हीं के भाईयों ने राजगद्दी के लिए मौत के घाट उतार दिया था। अपने परिवार का ऐसा हश्र देखकर उनकी बुआ बहुत परेशान थीं कि जिनसे उन्होंने सगाई की थी, वो मंगेतर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। अब बुआ से न रहा गया, वो अपने भाई के बच्चों को लेकर मुम्बई आ गयीं। यहाँ आकर उन्हें फिल्में देखने का शौक चढ़ गया। उन्होंने बादशाह-बेगम को शकीला नाम से अपने दोस्त करदार और महबूब खान से मिलवाया। यह दोनों ही फिल्म लाइन के माफ़ी सक्रीय थे।

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वो साल 1949 था जब 15 साल की शकीला ने दुनिया नामक फिल्म से डेब्यू किया और उस वक़्त की टॉप एक्ट्रेस और सिंगर सुरैया के साथ वो भी दूसरे नम्बर की हीरोइन बन गयीं। क्योंकि उनकी मुस्कान बहुत खूबसूरत थी, उन्हें अरबी चेहरा कहा जाने लगा और एक के बाद एक उन्हें सब बी ग्रेड की फंतासी फिल्में मिलने लगीं, जिसमें उन्होंने ‘गुमास्ता, सिंदबाद द सैलर, राजरानी दमयंती, शहंशाह, राज महल, आदि करने को मिलीं।publive-image

उनकी बुआ इतनी तंग हो गयीं कि उन्होंने अचानक से ‘अलीबाबा चालीस चोर’ के लिए दस हज़ार रुपये की भारी रकम मांग ली, पर शकीला का कोई सबस्टीट्युट था ही नहीं जो कम कीमत में उनकी जगह लेता, सो प्रोड्यूसर होमी वाडिया ने दस हज़ार में भी साइन शकीला को ही किया।publive-image

यही वो समय था जब गुरु दत्त की नज़र शकीला पर पड़ी और गुरुदत्त ने उनको अपनी फिल्म आर-पार में ले लिया। इस फिल्म में शकीला एक कैबरे डांसर का रोल कर रही थीं। यह फिल्म तो हिट हुई ही, ओपी नय्यर के कम्पोज़ किए सारे के सारे गाने चार्टबस्टर हुए और ‘बाबूजी धीरे चलना’ आज 65 साल बाद भी सुपरहिट गानों में शुमार होता है।publive-image

इसी फिल्म में उनकी बहन नूर ने भी काम किया था और आगे चलकर, इसी फिल्म के को-एक्टर स्टार कॉमेडियन जॉनी वॉकर से शादी की थी।

गुरु दत्त ने उनकी एक्टिंग से इम्प्रेस होकर शकीला को फिर अपनी फिल्म ‘सी-आई-डी’ में शामिल कर लिया। इस फिल्म को राज खोसला प्रोड्यूस कर रहे थे और देव आनंद इसके हीरो थे। फिल्म में वहीदा रहमान की परछाई में भी ख़ुद का वजूद स्थापित करने में शकीला कामयाब रही थीं।publive-image

फिल्म का गाना ‘आँखों ही आँखों में इशारा हो गया’ इतना पॉपुलर हुआ कि वहीदा रहमान से ज़्यादा ऑडियंस शकीला को देखने जाने लगी।

शकीला का जादू ऐसा चला कि सन 1956 में उन्होंने 7 फ़िल्में कीं, जिनमें सीआईडी के अलावा हातिम ताई भी अच्छी हिट रही।publive-image

इतना ही नहीं, सन 1960 में शकीला को राज कपूर के साथ फिल्म श्रीमान सत्यवादी में लीड रोल करने का मौका मिला। वह अब सेकंड हीरोइन, अरबी चेहरे की बार डांसर, अलिफ़ लैला आदि के टैग से बाहर आ चुकी थीं। शकीला का कैरियर परवान चढ़ रहा था। सन 1960 में शकीला ने 5 फ़िल्में कीं जिसमें श्रीमान सत्यवादी सबसे बड़ी और हिट फिल्म थी।publive-image

सन 1961 में शकीला की सिर्फ एक फिल्म आई, रेशमी रुमाल। पर सन 1962 में उन्होंने 5 फिल्में कीं जिसमें शम्मी कपूर के साथ चाइना टाउन ज़बरदस्त हिट हुई। यह फिल्म शक्ति सामंत ने बनाई थी, शकीला अब शक्ति सामंत की फिल्म में आ गयीं थी जिसका मतलब साफ था कि अब उनका कैरियर नई उचाईयों पर पहुँचने के लिए तैयार था।publive-image

शकीला ने 1963 में फिल्म शहीद भगत सिंह में एक बार फिर वह शम्मी कपूर के साथ कास्ट हुईं और अचानक ही उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री छोड़ दी।

शकीला के इस निर्णय से बड़े-बड़े प्रोड्यूर्स तक हैरान रह गये। शकीला ने एक फोर्नर ‘वाई-एम एलिआस’ के साथ शादी कर जर्मनी में अपना घर बसा लिया।publive-image

पर शकीला जितनी तेज़ी से मुम्बई छोड़कर गयीं, उतनी ही फुर्ती से शादी तोड़कर वापस आ गयीं। लेकिन एक बार फिर, इससे पहले की प्रोड्यूसर्स उनके पास पहुँचते, वो एक अफगानी डिप्लोमेट के साथ फिर शादी कर लन्दन शिफ्ट हो गयीं।

इन दोनों की बेटी हुई, मीनाज़, जिसकी अगली ख़बर 1991 में मिली जब उसने ख़ुद को फांसी लगा ली। मीनाज़ की मौत का सदमा शकीला नहीं सह सकीं और मुम्बई लौट आईं।

किस्मत देखिए कि फिर उन्हें कई फिल्मों के ऑफर आने लगे लेकिन उन्होंने किसी भी ऑफर के लिए हाँ नहीं की।

ऐसी काबिल, बेहद खूबूसरत और दिलफरेब मुस्कान की मल्लिका ‘शकीला’ की मौत 20 सितम्बर 2017 को हुई और पहले से भूल चुकी फिल्म इंडस्ट्री ने दोबारा मुड़कर ज़रूर देखा कि कोई अपना, या कभी अपना था जो साथ छोड़कर चला गया।

सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’

publive-image मुंबई लौटने के बाद एक इंटरव्यू के दौरान

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