त्योहार का मजा उनके बिना अधूरा ही रह जाता है!-अमिताभ बच्चन By Mayapuri Desk 13 Nov 2020 | एडिट 13 Nov 2020 23:00 IST in एंटरटेनमेंट New Update Follow Us शेयर भारत जैसे देश की शान रंगारंग त्योहार हैं! भारत में जिस कदर त्योहार मनाये जाते हैं शायद ही संसार में कहीं मनाये जाते हैं! भारत में इस कदर त्योहारों के मनाने का कारण यह है, कि भारत विभिन्न धर्मों का गहवारा है! मैं समझता हूँ कि हर धार्मिक तिधि के पीछे भौगोलिक कारण है! क्योंकि त्योहार किसी भी धर्म के हों उनका प्रकृति से गहरा संबंध होता है! चाँद का निकलना, बारिश का होना, फसल काटना आदि, इसका प्रमाण हैं! इनके साथ ही त्योहार भी जुड़े हुए हैं। पुराने जमाने में आज के से मॉडर्न कम्यूनिकेशन के साधन नहीं थे, इसलिए मैं समझता हूँ कि त्योहार ही एक जरिया रहे होंगे जिनसे लोगों को पता चलता होगा कि मौसम बंदल गया है! इसके अलावा यातायात के साधन ऐसे नही थे, कि जल्दी-जल्दी आपस में मुलाकात हो सकें! इसलिए ये त्योहार ही एक तरह से दूरदराज में रहने वाले रिश्तेदारों को एक दूसरे से मिलने का अवसर प्रदान करते थे! इसलिए लोगों को त्योहार का बहुत इंतजार हुआ करता होगा। इसी कारण त्योहारों का महत्त्व बढ़ता गया होगा! आज तो त्योहार हमारे संस्कारों का एक हिस्सा बन चुके हैं। संस्कारों में जो चीज आ जाती है, उससे छुटकारा मुरिकल होता है, मुझे याद है, कि इलाहाबाद में जब हम बच्चे थे, तो देखा करते थे कि घर की जब कोई महिला सदस्या अपनी ससुराल जाती थी, तो एक वक्त निकाल कर परिवार की सारी औरतें मिलकर बैठती थी, और घंटा आधा घंटा रोती थी, उसके पीछे भी जरूर कोई न कोई साइंटिफिक कारण होगा क्योंकि प्रथाएं ऐसी ही नहीं बन जाती! रोने से मन हल्का हो जाता है। इसके अलावा औरतों में मर्दों की अपेक्षा ज्यादा सहन शक्ति होती है। इस तरह की बातें छोटे शहरों में पता नहीं आज भी है, या नहीं! त्योहार कोई भी हो त्योहार ही होता है, किन्तु जो त्योहार बच्चों के लिए ज्यादा उत्साहजनक होता है वही त्योहार आमतौर से ज्यादा मनाया जाता है! इसलिए हम भी बचपन से दीवाली और होली ही ज्यादा मनाते आए हैं! बचपन की यादें आज भी दिल पर अंकित हैं! मुंबई के मुकाबले इलाहाबाद छोटा शहर है! अब मॉडर्न जमाना है तो दीयों की जगह बिजली के बलव जगमगाते नजर आते हैं। उस वक्त दीवाली से कई हफ्ते पहले उसकी तैयारी शुरू हो जाया करती थी। घर की संफाई की, जाती थी, दीये खरीदे जाते थे! शगुन के तौर पर पिछली दीवाली के दीए भी निकाले जाते थे, और पानी में भिगो दिए. जाते थे! क्योंकि लाई और लावा उन्हीं मिट्टी के बर्तनों में खाया जाता था, मिठाई के खिलौने और मूर्तियां खरीदी जाती थीं, नए-नए कपड़े बनाये जाते थे! दीवाली से कई दिन पहले से आतिशबाजी शुरू हो जाती थी, और उसके बाद भी कई दिन तक चलती रहती थी! आज जब दीवाली मनाते हैं तो शाम को पूजा करते हैं! दीये जलाते हैं, मिठाई बाँटते हैं! रात को आतिश बाजी करते हैं, और शगुन के तौर पर जुआ भी खेलते हैं, किन्तु बड़े पैमाने पर नहीं! शगुन के तौर 5-10 पैसे पाइंट से खेलते हैं! सोमरस का इस्तेमाल नहीं करते! हाँ होली पर जरूंर भाग का सेवन करते है! आतिशबाजी जिस प्रकार से दीवाली पर की जाती है, उससे दीवाली की रौनक तो बढ़ ही जाती है किन्तु पटाखों के धुएं से बरसात के कारण जो बहुत जीव जन्तु पैदा हो जाते हैं, उनका सफाया हो जाता है। किन्तु आतिश बाजी पर जिस तरह करोड़ों रूपये खर्च किए जाते हैं। उस पर भी बहुत से लोगों को आपत्ति है। उनका कहना है, भारत जैंसे गरीब देश को यह शोभा नहीं देता इसलिए इस पर पांबदी लगा देनी चाहिए। किन्तु अगर इस पर अगर पाबंदी लगा दी गई तो त्योहार का मजा जाता रहेगा! गरीब के लिए हर दिन खुशी का नहीं होता इसलिए वह बेचारा उधार लेकर भी त्योहार मनाता है! आतिश बाजी पर जो खर्च होता है, वह भी तो किसी के पास जाता है, उत्तर और दक्षिण भारत में ऐसे कितने ही गांव हैं जिनके यहाँ यही पेशा है। आखिर को फायर वर्कस भी तो एक इन्डस्ट्री है! साल में एक ही तो ऐसा अवसर आता है जब उनके माल की खपत होती है, तो उनका तो बड़ा रिस्की बिजनेसः है। बेचारे साल भर सामान बनाते हैं। दीवाली के आसपास पटाखे बनाकर धूप में सुखाते हैं। ऐसे में अचानक बारिश हो जाए तो उनका नुकसान हो जाता है। अभी कुछ साल पहले ऐसा ही हुआ था। उससे सामान तो बबद हुआ वह नुकसान अलग रहा। उसके बाद वह दोबारा बना भी नहीं सके। इसलिए उनके साथ कितना अन्याय होगा अगर इस इन्डस्ट्री पर पाबंदी लगा दी गई। दीवाली के साथ हमारी भी एक दुर्घटना जुड़ी हुई है। यह उसी जमाने की बात है जब बारिश के कारण आतिशबाजी का सामान नष्ट हो गया था। तब कुछ नए और नातजुर्बेकार लोगों ने पटाखे बनाये। जिसके कारण उस वर्ष ऐसी दुर्घटनाएं बहुत हई। मैं भी जमीन पर अनार रख कर उसे सुलगा रहा था, वैसे ही वह बम की तरह फट गया! जिससे मेरा हाथ जल गया जिसका बदनुमा निशान आज भी मेरे “हाथ पर मौजूद है! हर दीवाली अच्छी ही होती है। इसलिए कौन सी दीवाली सबसे अच्छी थी, इसका एहसास नहीं है। किन्तु पिछले चन्द सालों से जब से बच्चे बोर्डिंग में पढने गएँ हैं तो दीवाली की वह बात नहीं रही है। त्योहार पर उनकी कमी बहुत अखरती है। फिर भी होली पर उनकी तरंफ से रंग फेंक देते हैं और दीवाली पर उनकी तरफ से पटाखे भी छोड़ते हैं। किन्तु त्योहार का मजा उनके बिना अधूरा ही रह जाता है। अब भगवान से यही प्रार्थना है कि बच्चों की पढ़ाई जल्दी खत्म हो और वह घर आ जाएं तभी त्यहौरों का आनंद ले सकेंगे! #अमिताभ बच्चन हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article