उस फिल्म मे कुछ भी इतिहास सम्मत नहीं था। संजय लीला भंसाली की फिल्म “पद्मावत“ की आत्मा ही फिल्म से गायब थी और बेवजह देश भर के राजपूत रानी को अमर्यादित किये जाने के विरोध में मरने- मारने पर उतारू हो गए थे। सूफी कवि मलिक मोहम्मद जायसी की अमर कृति ’पद्मावत’ में ना रानी अमर्यादित हुई थी ना ही समूचे आर्यावर्त पर विजय के सपने देखने वाला मोहम्मद खिलजी एक कमजोर दिल प्रेमी था। दरअसल पूरी कहानी ’रक्षा बंधन’ के महत्व को दर्शाने की थी-जिसकी पृष्ठभूमि में था युद्ध का काल और हिन्दू मुस्लिम भाईचारे को स्थापित करना। डॉ. महेंद्र गुहा की किताब से यह बात सामने आई है।
जैसा कि सब जानते हैं कि बॉलीवुड की फिल्म “पद्मावत“ को लेकर 4 साल पहले 2018 में पूरे देश मे एक विरोध का भूचाल उठा था। राजपूताना रानी पद्मावती और अफगानिस्तान के रास्ते भारत मे आकर सत्ता लोलूप होने के सपने देखने वाले खिलजी की गिरी निगाहें फिल्मकार संजय लीला भंसाली की फिल्म की विषय वस्तु के रूप में एक बवाल बन गया था। चारों तरफ चर्चा इस बात की थी कि फिल्मकार ने व्यावसायिक लाभ लेने के लिए इतिहास से छेड़छाड़ किया है। पूरे देश और दुनिया के राजपूत फिल्म के विरोध में लामबंद हो उठे थे और फिल्मकार को लाफा तक मार दिया गया था। मध्यकाल के इतिहासवेत्ता भी फिल्म की थीम को भूलकर बहस में पड़ने से खुद को दूर कर लिए थे।किसी को यह सुनने की फुरसत नहीं थी कि राजपूताने की रानी पद्मावती (पद्मिनी) और मोहम्मद खिलजी के आक्रमण के दौरान 300 साल (12वीं से 15वीं शदी) का अंतराल था। एतिहासिक सच जो हो, कहानियां काल्पनिकता के सहारे बनती हैं।पद्मावत एक काल्पनिक कहानी है जिसके अलग अलग कई संस्करण सामने आए हैं। ऐसी ही एक कहानी है कि मेवाड़ की रानी कर्मावती ने आक्रांता शेरशाह के आक्रमण और राजपूत महिलाओं की अस्मिता की रक्षा करने के लिए हिमायूँ को “राखी“ भेजा था और हिमायूँ सहर्ष एक हिन्दू बहन की राखी पाकर उसकी रक्षा के लिए सेना लेकर निकल पड़ा था।ये सब कहानियां उस काल की घटनाओं में शामिल हैं। भंसाली ने यह सब अपनी फिल्म में शामिल ही नही किया था। वह सैकड़ों सालों के इतिहास की खिचड़ी-लव स्टोरी बना दिए थे। हमने भी मैट्रिक की कक्षा में ‘रक्षाबंधन’ पर हिंदी निबंध लिखने के लिए ये लाइने याद कर रखा था-
“वीर हिमायूँ बंधू बना था, विश्व आज भी साखी है, राखी की पत रख जिसने, पत राखी की राखी है।”
लेकिन फिल्म देखा तो कहानी कुछ और ही थी। 300 साल के घटना क्रम से जुड़ी कहानी की एक कड़ी “राखी“ फिल्म से गायब थी। हमारी टेक्स्टबुक का निबंध झूठा पड़ गया था। विरोध के बाद फिल्म रिलीज हुई तो कह दिया गया फिल्मकार ने मनोरंजन के लिए फिल्मी- लिबर्टी लिया था और कुछ नहीं। किसी ने नहीं कहा कि इस काल्पनिकता में जायसी के ‘पद्मावत’ की आत्मा तो कहीं खो गई थी।
वैसे ही जैसे भाई-बहन के रिश्तों का तार “राखी” आज के परिवेश में विलुप्त हुई जा रही है। व्ज्ज् प्लेटफॉर्म की वेब सीरीज और फिल्मों के दौर में तो भाई बहन के पवित्र रिश्ते बेधागा होने की ओर बढ़ चले हैं। ऐसे में जरूरी है कि राखी के धागों को और मजबूती से बांधा जाए ताकि फिर किसी ‘पदमावत’ में किसी पद्मिनी की ‘राखी’ की गुहार को सुनकर कोई भी हिमायूँ राखी की लाज बचाने के लिए दौड़े चला आने से रुके नहीं!