'इमली’ शो की कहानी और उसके भाव बहुत सहज हैं, यहाँ ड्रामा तो है पर मेलोड्रामा नहीं है - गश्मीर महाजनी

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By Mayapuri Desk
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'इमली’ शो की कहानी और उसके भाव बहुत सहज हैं, यहाँ ड्रामा तो है पर मेलोड्रामा नहीं है - गश्मीर महाजनी

स्टार प्लस पर 16 नवंबर को प्रसारित हुआ शो 'इमली' एक आदिवासी लड़की, इमली के जीवन पर आधारित है जहाँ दर्शकों को एक अनोखी त्रिकोणीय प्रेम कहानी देखने को मिलेगी, इमली यूपी के बाहरी इलाके में स्थित एक छोटे से समुदाय से जुड़ी लड़की है, जिसने बाहरी दुनिया भले ही न देखि हो पर वह जानकार जरूर है। फोर लायंस द्वारा निर्मित इस शो को दर्शकों का बहुत बेहतरीन प्रतिसाद मिल रहा है। शो में मुख्य किरदार निभाने वाले मराठी फेम अभिनेता गश्मीर महाजनी इसमें आदित्य कुमार त्रिपाठी की भूमिका में नज़र आ रहे हैं जो पेशे से एक पत्रकार हैं। एक ख़ास पड़ताल के सिलसिले में इमली के गांव पहुंचे आदित्य के साथ क्या होता है और उनके जीवन की कहानी किस मोड़ पर पहुँचती है यह देखना दर्शकों के लिए इंट्रेस्टिंग होगा। गश्मीर से इस शो और उनके करियर से जुड़ी ख़ास बातचीत के कुछ प्रमुख अंश:

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पहली बार हिंदी टेलीविजन पर डेब्यू करते हुए आपको कैसा महसूस हो रहा है ?

पहली बार हिंदी टेलीविजन पर डेब्यू करते हुए बहुत अच्छा लग रहा है। मैं ये कहना चाहूंगा कि कई सालों से मुझे कई प्रोडक्शन हाउस ने बुलाया था। काफी सारी जगहों पर सेलेक्शन होने के बाद हमने पायलट शूट भी किया था, लेकिन कुछ कारणों से मैं शो करने के लिए ज्यादा कम्फर्टेबल नहीं था इलसिए पायलट के बाद ही मैंने उन शोज़ को ना करने का फैसला किया। मैं हमेशा काफी दूर रहा टेलीविजन से क्योंकि मैं एक सही कहानी और सही प्रोडक्शन हाउस की तलाश में था क्योंकि फ़िल्में तो 30 से 50 दिन की शूटिंग में ख़तम हो जाती हैं पर शोज़ का सिलसिला लम्बा चलता है इलसिए मेरा प्रोडक्शन हॉउस और कहानी के साथ कॉम्फर्टेबल होना जरुरी था और फोर लायंस प्रोडक्शन हाउस के साथ मैं बिलकुल बिलकुल कम्फर्टेबल हूँ। इस शो की जो कहानी है और उसके जो एक भाव हैं वह बहुत सहज हैं। यहाँ ड्रामा तो है पर मेलोड्रामा नहीं है। इन दोनों में बहुत फर्क होता है और इस तरह का काम मैं करना चाहूंगा क्योंकि थिएटर और फिल्मों में भी कुछ ऐसा ही काम करना होता है। यहाँ कुछ भी बहुत ज्यादा नहीं है नहीं दिखाया जा रहा है । यहाँ केवल वह दिखाया जा रहा है जो लोगों के जीवन में होता है, लेकिन थोड़ा सा ड्रामा इस्तेमाल करके इसलिए मैं समझता हूँ कि यह डेब्यू करने के लिए बिलकुल सही शो है।

इस न्यू नार्मल के बीच अपने शो के लिए शूटिंग करना कैसा लगता है?

न्यू नार्मल के बीच शूट करना भाग्य की बात है क्योंकि जहाँ लोगों को काम मिल नहीं रहा है वहां हम काम कर पा रहे हैं और अब तो न्यू नार्मल का पूरी तरह नार्मल होने जा रहा है। अब तो मास्क की इतनी आदत हो गई है कि अगर कोई मास्क लगाकर न दिखे तो अजीब लगने लगता है। अब आदत इतनी पड़ गई है हर कोई मास्क लगाकर दिखाई दे रहा है, प्रोकॉशंस ले रहा है और एक दुसरे से सेफ दूरी बनाकर चल रहा है। मुझे आदत है हर डेढ़ से दो घंटे में मैं अपने हाथ साबुन से धूल लूँ। सेनिटाइज़र का इस्तेमाल मैं ज्यादा करता नहीं हूँ क्योंकि इसमें बहुत ज्यादा केमिकल होता है। मैं हमेशा यह सुनिश्चित करता हूँ कि शूट पर मेरी वेनिटी वैन में हमेशा हैंडवाश मौजूद रहे ताकि मैं वक्त- वक्त पर हाथ धुल सकूँ।

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इतने महीनों बाद सेट पर लौटकर एक्शन और कट सुनना अच्छा लग रहा है। अपने काम के प्रति जो निष्ठा है वह अब दोगुनी हो गई है। लोग जब इस 8 से 10 महीने घर बैठे तो उन्हें काम की अहमियत समझ आई। हमें खुदको लकी समझना चाहिए कि ऐसी कठिन स्थिति में भी हमारे पास काम है और हमें अब दोगुनी लगन से काम करना चाहिए।

टीवी और फिल्मों के सेट में आपको क्या बदलाव नज़र आते हैं?

वैसे तो फिल्म और टीवी के सेट में क्रू का फर्क होता है। फिल्म में ज्यादा क्रू मेम्बर्स होते हैं जबकि टीवी में फिल्म के मुताबिक कम क्रू मेम्बर्स होते हैं। उसके अलावा मुझे ज्यादा फर्क महसूस नहीं हो रहा है। इस शो के सेट पर मौजूद क्रू मेम्बर्स मुझे काफी सुलझे हुए लगे क्योंकि मैंने इससे पहले टीवी सेट के क्रू मेम्बर्स को लेकर कई डरावनी कहानियां और किस्से सुने थे। उसके बाद मैं काफी डरा हुआ था और जैसे ही मैंने यहाँ काम करना शुरू किया तो मुझे बहुत मजा आने लगा। यहाँ पूरी टीम अपने काम को लेकर बहुत फोकस्ड है। दूसरी चीज फिल्म और टीवी की स्क्रिप्ट में फर्क होता है। फिल्मों की बात करें तो आप उसकी स्क्रिप्ट में कुछ महीने या साल से उसमें इन्वॉल्व होते हैं जबकि टीवी में पहले 10 से 20 एपिसोड की स्क्रिप्ट रेडी होती है। बाकी आगे की कहानी तो हमें पता जरूर होती है पर स्क्रिप्ट हमारे हाथ में नहीं होती है, जिसे एक्टर्स को मैनेज करना होता है जो मैं कर रहा हूँ।

शो में अपने जर्नलिस्ट के किरदार के बारे में कुछ बताएं? इसके लिए आपने क्या ख़ास तैयारियाँ की हैं?

हाँ ! आदित्य कुमार त्रिपाठी इस शो में पत्रकार जरूर है पर यह शो पत्रकारिता पर आधारित नहीं है। पत्रकारिता उसका प्रोफेशन है जो इस शो का बैकड्रॉप है। इस वजह से वो इस गांव में किसी काम से पहुँचता है और जाने अनजाने में उसकी मुलाक़ात इमली से हो जाती है और फिर जब इमली के साथ वह शहर वापस आता है तो शो का रुख एकदम अलग हो जाएगा, जिसके बाद इमली और आदित्य का इक्वेशन, आदित्य के जीवन में पिछले सात साल से रह रही दूसरी लड़की का इक्वेशन और उस लड़की और इमली का इक्वेशन दर्शकों को देखने को मिलेगा। रही बात एक पत्रकार की तो मैंने इस किरदार के प्रोफेशन के लिए यह बात ध्यान रखी ही पत्रकार हमेशा हर चीजों की तह तक जाता है। इस बात को ध्यान रखते हुए मैंने आदित्य का किरदार निभाया उसके अलावा यह शो एक त्रिकोणीय प्रेम कहानी पर आधारित है।

अपने किरदार के डायलेक्ट को पकड़ने के लिए आपने क्या ख़ास तैयारियाँ की हैं?

इस शो में मेरा किरदार एक दिल्ली के लड़के का है बाकी लोगों को अपने डायलेक्ट पर मुझसे कही ज्यादा मेहनत करनी पड़ी। उन्होंने अवधी भाषा बोलनी सीखी। बाद में शो की कहानी भी पूरी दिल्ली में चलेगी। मुझे केवल दिल्ली का एक टोन पकड़ना था। क्योंकि मुंबईया हिंदी और दिल्ली की हिंदी में काफी फर्क होता है। तो हमारे सेट पर पवन झा नाम के एक ट्यूटर हैं जो भारत के इसी बेल्ट से आते हैं तो उन्ही से हमेशा अपनी भाषा को लेकर सलाह मशवरा लेता हूं। भाषा समान ही है, लेकिन कुछ -कुछ चीजों का ख्याल रखना पड़ता है जैसे वाक्य की रचना, उनके अल्फाज़ नार्थ साइड में अलग होते हैं। सेट पर मौजूद ट्यूटर ने इन सभी बातों को समझने में हमारी काफी मदद की।

शो में आपका किरदार आदित्य, रियल लाइफ गश्मीर से कितना अलग हैं?

आदित्य त्रिपाठी का किरदार मुझसे बहुत हद तक मिलता जुलता है। आदित्य जैसा इंसान है, उसकी जैसी सोच है, वह अपने काम को लेकर जितना गंभीर है यह सबकुछ गश्मीर से मिलता है। एक एक्टर जो भी किरदार निभाता है तो उसकी कोई न कोई बात या चीज आपसे मिलती है। कहने का मतलब यह है कि उस किरदार को देखकर आप अपने छुपे हुए उस गुण को अपने अंदर से बाहर निकलते हैं। इसलिए मुझमें आदित्य के काफी सारे गुण पहले से थे, जिसे मैंने ढूंढकर बाहर निकाला।

अपने सह-कलाकार सुम्बुल तौकीर खान और मयूरी प्रभाकर देशमुख के साथ काम करने को लेकर अपने अनुभवों और उनके साथ अपने बांड को लेकर कुछ बताएं?

मयूरी मराठी भाषी है और मैं भी मराठी भाषी ही हूं और रही बात सुम्बुल कि तो वह मराठी बहुत टूटा फूटा सा जाती है। वह उम्र में बहुत छोटी है और सेट पर हमेशा मेरा टारगेट रहती है। मैं उसे आराम से डांट सकता हूं। मैं अपने काम उससे करवा सकता हूं। अपनी बैग उससे उठवा सकता हूं और वो मुझे कुछ नहीं कहेगी मुझे पता है (हँसते हुए) इसलिए मैं उसे थोड़ासा डोमिनर्ट कर लेता हूं। मुझे थोड़ा मज़ा आ जाता है। बाकी किसी और हीरोइन से कह देता तो वो मुझे बहुत मारती पर यह छोटी है तो कुछ नहीं कहती। तो सुम्बुल कि वजह से मेरा सेट पर काफी अच्छा टाइम पास हो जाता है और सेट पर जब मयूरी आ जाती है तो वो एकदम से अचानक मराठी में चपड़-चपड़ फ़ास्ट बात करना शुरू कर देती है तो बेचारी सुम्बुल एकदम ब्लैंक फेस लेकर हम दोनों को देखती रहती है। हम हिंदी में भी बात कर सकते हैं पर हम दोनों जानबूझकर मराठी में बात करते हैं ताकि सुम्बुल परेशान हो जाए। इसलिए सेट पर दोनों के साथ अच्छा समय गुजर जाता है।

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लॉकडाउन के दौरान आपने अपना समय कैसे बिताया?

लॉकडाउन के समय सबसे अच्छी बात यह हुई कि मेरा बेटा उस वक़्त सिर्फ डेढ़ साल का था। अब वो पौने दो साल का हो गया है। लॉकडाऊन से पहले वो जब सवा दो साल था तब मै बहुत काम कर रहा था। दो मराठी फ़िल्में और उसके साथ एक हिंदी वेब सीरीज भी चल रही थी। मैं दिन रात काम कर रहा था। डर गया था कि कहीं मेरा बेटा मुझे पहचान भी न पाए बाद में क्योंकि उसके उठने से पहले सुबह 6 बजे तक मै शूटिंग के लिए घर से निकल जाता था और रात को उसके सोने के बाद घर पहुँचता था। तो लॉकडाऊन में एक अच्छी चीज यह हुई कि मुझे अपने बच्चे, बीवी और माँ के साथ बहुत क्वालिटी टाईम गुज़ारने का मौका मिला जो बहुत ज़रूरी था।

अब मुझे बिल्कुल डर नहीं लगता क्योंकि अब मेरा बेटा मुझे बहुत अच्छे से पहचानता है कि ये मेरे बाबा (पापा) हैं । अब कितने भी महीने बाहर रहूं मुझे यह पूरा विश्वास है कि वह मेरा चेहरा भूलेगा नहीं। दूसरी बात यह है कि मैं शेयर मार्केट का इन्वेस्टर बन गया। बैठे - बैठे जब घर पर कोई काम नहीं था तो मैंने काफी पढ़ाई कि शेयर मार्केट की और अब मेरे एक अलग लाइन ऑफ बिजनेस शुरुआत हो गई है। सेट ज्यादातर नेटवर्क नहीं होता है तो मैं लोगों से वाईफाई लेकर ब्रेक मिलने पर अपनी इन्वेस्टिगेशन शुरु कर देता हूं। इसके अलावा मैं एक एक्टर भी हूं तो मैं इंतज़ार कर रहा था कि कब लॉकडाऊन ख़तम होगा और कब मैं सेट पर जाकर एक्शन और कट सुनूंगा और अब सेट पर आने के बाद यह सुनकर अच्छा लग रहा है।

कई विभिन्न शैलियों में काम करने के बाद, ऐसा कौन सा जेनरे है, जिसे आपने सबसे अधिक एन्जॉय किया ?

सारे माध्यमों में अबतक काम कर चूका हूं। मैंने शुरुआत में 5 से 6 साल थिएटर किया था। ऑलओवर महाराष्ट्र के थिएटर्स में काफी प्ले किए और काफी थिएटर वर्कशॉप्स किए। उसके बाद मैंने फिल्में करना शुरु की। 6 साल पहले मैंने अपनी पहली मराठी फिल्म की। फिर मैंने एक वेब सीरीज की, जिसे मैंने हाल ही में ख़तम किया है जो अबतक रिलीज नहीं हुई है उसका पोस्ट प्रोडक्शन शुरु है। उसके बाद अब यह मेरा पहला टीवी शो है। तो मैंने सारे माध्यमों में काम किया है तो मेरे लिए तो सबसे फेवरेट फिल्म होगा।

मुझे फिल्में बनाने का क्राफ्ट बहुत पसंद है पर कब मैं टेलिविजन में आया तो मैं इस सोच से पहले यहाँ नहीं आना चाहता था क्योंकि मैं सोचता था कि अब मैं टीवी करने जा रहा है हूं तो सभी को इस बात का उत्तर देना होगा कि टीवी में आकर कैसा लग रहा है। मैं इस बोझ के साथ कभी नहीं आना चाहता था। बल्कि मैं कहूंगा टीवी और फिल्म में क्या फर्क है वही लोग, वही कैमेरा, टीवी का काम थोड़ा फ़ास्ट होता है पर यह एक अच्छी बात है कि हमें रोज़ नए तरीके से काम करने का मौका मिलता है। जिस दिन सीन्स ज्यादा शूट होते हैं तो मुझे लगता है एक एक्टर होने के नाते मेरी प्रैक्टिस हो रही है और यह मेरी वर्कशॉप है। मैं कोशिश करता हूं यहाँ कि स्पीड में मुझे भी काम करने आना चाहिए और मैं पूरी कोशिश करता हूं कि मैं टीवी के माध्यम में भी अपनी मास्टरी कर पाऊं और हर एक माध्यम कि अपनी खूबसूरती होती है।

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