'वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन, उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा' गीत के यह बोल दिल को कहीं अंदर तक भेद देते हैं, निचोड़ देते हैं। रिश्ता क्या इतना भंगुर, इतना ब्रिटल हो सकता है कि अंजाम तक न ला पाने के कारण किसी मोड़ पर खूबसूरती से छोड़ दिया जा सकता है? मायापुरी को आमिर खान से बहुत प्यार है इसीलिए आमिर के जीवन के प्रत्येक फैसले पर हम भावनात्मक दखल दिए बिना नहीं रह सकते।
जब आमिर ने अपनी पूर्व पत्नी रीना दत्ता से विवाह किया था और बाद में दोनों का डिवोर्स हो गया तब लगा था शायद अपने कमसिन उम्र के फैसले पर पुनर्विचार करने का एक मौका दोनों का बनता ही है, लेकिन फिर किरण से विवाह के 15 वर्ष बाद, दोनों का आपस में विश्वास, प्यार, सम्मान (जैसा कि आमिर और किरण ने अपने तलाक के फैसले की खबर जारी करते हुए साझा तौर पर एक दूसरे के लिए दावा किया है) के बावजूद, प्रेम विवाह की यह परिणीति होना सबके लिए किसी सदमे से कम नहीं है खासकर उनके लिए जो हमेशा रिश्तों का उत्सव मनाते रहें हैं।
आमिर और किरण ने संभवत अपने विवाह के रिश्ते को बचाने के लिए बहुत मेहनत और प्रयास किया होगा, बहुत सोचा समझा होगा तभी तो उन्होंने 'प्लांड सेपरेशन' शब्द का इस्तेमाल किया और साथ ही आपस में प्रेम, सम्मान, विश्वास होने का दावा करते हुए सिर्फ विवाह बंधन से अपने को मुक्त करने के इरादे पर मुहर लगा दी। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि विवाह में इन्हीं तीनों भावनाओं की जरूरत तो होती है, प्रेम, विश्वास और सम्मान, अगर यह तीनों चीजें इन्टैक्ट है तो अलगाव किस बात पर?? रिश्तों का यह विचित्र परिभाषा क्या वाकई उनके मन की बात है या कि अपने चाहने वालों को सदमा ना लगे इसलिए डाइवोर्स के फैसले को खूबसूरत भाषा में सजा संवार कर प्रस्तुत करने का एक परिकल्पना मात्र है???
जो भी हो, नन्हे आज़ाद के पैरेंट्स आपस में विवाह बन्धन के रिश्ते से आज़ाद जरूर हो गए और दोनों ने यह दावा किया कि इस अलगाव का असर वे दोनों अपने बेटे आजाद पर बिल्कुल नहीं पड़ने देंगे, लेकिन प्रश्न ये उठता है कि वे दोनों आज़ाद के मन का फैसला कैसे कर सकते हैं? आज़ाद का मन उसका अपना मन है, वह जो चाहे महसूस करें ये उसका अपना एहसास होगा। उस पर किसी और का बस नहीं चल सकता। चाहे आमिर और किरण बतौर माता पिता अपनी अपनी भूमिका कितना भी सटीक निभाए लेकिन आज़ाद को क्या महसूस होगा यह संपूर्ण आजाद का निजी फीलिंग है।
हाँ, उसके माता-पिता बच्चे की फीलींग्स को शायद थोड़ा बहुत महसूस कर सकते हैं अगर वे यह कल्पना कर ले कि यदि उनके माता-पिता ने उनके साथ भी ऐसा किया होता तो? अभी आज़ाद छोटा है, शायद इस बात का लाभ आमिर और किरण को मिल सकता है। लेकिन यह बालक बड़ा तो होगा ना? अब तो वो जमाना नहीं रहा जब बच्चों के लिए माता-पिता अपने दुराव अलगाव और नॉट मैचिंग इशु को परे धकेल कर एक साथ एक छत के नीचे जीवन भर रह लेते थे, अब सब अपने अपने विकास को ज्यादा महत्व देते हैं। दोनों अपने जीवन का एक नया अध्याय शुरू करना चाहते हैं। एक नए आसमान की ऊंचाई छूना चाहते हैं। दोनों फिर आजाद परिंदा बनाना चाहते हैं।
अपने अंदर कितनी सारी और भावनाएं को जन्म देना चाहते हैं। दोनों के अलगाव का कारण चाहे जो हो लेकिन लगाव के जिस कारण ने दोनों को मिलाया होगा, अब वो निश्चित रूप में नहीं रहा। यह तो पक्की और सच्ची बात है। दोनों काफी मैच्योर्ड है, जो भी फैसला लिया, बहुत सोच समझ कर लिया होगा, किसी गहरे कारण की वजह से ही लिया होगा। दोनों साथ साथ काम करते रहने का वादा कर रहे हैं, सुख-दुख साथ बांटने और एक दूसरे की तकलीफों में साथ खड़े होने का भी इरादा है दोनों का, लेकिन वह बंधन का रिश्ता नहीं ढोना चाहते जिसमें अब दोनों को ही रस नहीं रह गया। उनके सच्चे चाहने वालों को उनके इस साझा फैसले से जरूर दुख होगा लेकिन यह सोचकर सभी उनके फैसले का सपोर्ट कर रहे हैं कि रिश्ता कड़वा होने से पहले उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना ही अच्छा।