हमने जानने की कोशिश की टीवी के कुछ पॉपुलर चेहरों से इस पर उनके क्या विचार है? By Mayapuri Desk 22 Nov 2020 | एडिट 22 Nov 2020 23:00 IST in एंटरटेनमेंट New Update Follow Us शेयर ज्योति वेंकटेश इंटरनेट के मौजूदा समय में, लोग अपने लैपटॉप और मोबाइल के साथ सबसे ज़्यादा समय बिताते हैं, ऐसे में क्या टेलीविजन अभी भी महत्व रखता है? हमने जानने की कोशिश की टीवी के कुछ पॉपुलर चेहरों से इस पर उनके क्या विचार है? क्या उनको वो दिन याद है जब टेलीविजन सेट उनके घर में पहली बार घर आया था? उनकी क्या प्रतिक्रिया थी? बातचीत के प्रमुख अंश with Jyothi venkatesh विजयेंद्र कुमेरिया: यह सच है कि पिछले कुछ वर्षों में टेलीविज़न के दर्शकों की संख्या पर प्रभाव पड़ा है क्योंकि बहुत से लोग मनोरंजन के लिए डिजिटल माध्यम की ओर रुख कर गए हैं क्यूंकि वहां ऑन डिमांड आपको मनोरंजन मिलता है , लेकिन अभी भी एक बड़ा घरेलू दर्शक वर्ग है जो मनोरंजन के लिए अपने टेलीविजन पर ही निर्भर है. आने वाले वर्षों में मनोरंजन के माध्यमों में और बदलाव आएगा लेकिन टेलीविजन मनोरंजन का एक भूला हुआ माध्यम नहीं बनने वाला है । हाल के वर्षों में तो बिल्कुल भी नहीं। मेरा सौभाग्य है कि मेरे जन्म से पहले ही मेरे परिवार के पास एक टेलीविज़न सेट था, मुझे अभी भी याद है कि उसमें बहुत कम चैनल थे और वह एक एंटीना और डिश मैकेनिज्म पर काम करता था , जब हमने नया टीवी लिया जिसमें लगभग 100 चैनल के विकल्प थे।उसको देखकर हम सभी कहते थे कि यह पूरी तरह से वेस्ट है क्यूंकि हम अधिक से अधिक १५ चैनल ही देख पाते हैं। मौजूदा समय की बात करें तो हमें पता ही नहीं कि कितने चैनल हैं।। अनिरुद्ध दवे: जब तक हमारा देश स्त्री प्रधान है , तब तक भारतीय टेलीविजन हर घर में दिखाई देगा। वेब ने अपनी अलग जगह बना ली है, इसमें कोई संदेह नहीं है कि मनोरंजन अब हर हाथ में है, लेकिन भारतीय टेलीविज़न ऐसा है कि यहां रिमोट हमेशा महिलाओं के हाथ में ही रहने वाला है मतलब जब तक सूरज चांद रहेगा टेलीविज़न तो रहेगा। लोग टीवी देखना बंद नहीं करेंगे। टेलीविजन भी बदल रहा है अच्छी सामग्री बेहतर और यथार्थवादी कहानियों के साथ आ रही है। मनोरंजन बहुत उतार-चढ़ाव वाला उद्योग है, यह सब समय और किस्मत पर निर्भर करता है। हमें 1992 में अपना पहला रंगीन टीवी सेट मिला है और मैं बहुत खुश था, म्यूजिक रियलिटी शोज मेरे आल टाइम फेवरेट शो रहे हैं। एशा रूघानी: तकनीक बहुत बदल गई है, लेकिन मुझे लगता है कि टेलीविजन का अपना चार्म है। यह अभी भी मेरे लिए बहुत महत्व रखता है। मैं हमेशा वह लड़की रही हूं जो बहुत उत्सुक रहती थी टेलीविजन देखने के लिए । मैं बचपन से ही टेलीविज़न देखने की बहुत शौक़ीन रही हूँ इसलिए एग्जाम के वक़्त भी मुझे एक घंटे टेलीविज़न देखने की छूट मिलती ही थी। मुझे याद है कि मेरे लिविंग रूम में टीवी था लेकिन एक बार एक नवरात्रि प्रतियोगिता हुई थी जिसमें मैंने छोटी टीवी जीती थी. मैं यह सोचकर टॉप ऑफ़ द वर्ल्ड थी कि अब मेरे कमरे में भी टीवी होगा. मैं बहुत सारे कार्टून और गेम देखती थी । मैं निकेलोडियन चैनल पर कार्टून देखती थी , आर्ट शो मैड, सर्कस, सोनपरी , शाका लाका बूम बूम, शरारात जैसे शोज बहुत चाव से देखती थी । सुबुही जोशी: आजकल लोग मोबाइल और लैपटॉप का अधिक इस्तेमाल करते हैं लेकिन आज भी मैं हर रात टीवी देखते हुए ही सोती हूं अगर मैं धारावाहिक नहीं देखती हूं तो मैं इंटरनेट कनेक्ट करती हूं और कुछ देख लेती हूं लेकिन टीवी पर ही देखती हूं।टीवी पर मेरा आल टाइम फेवरेट शो फ्रेंड्स रहा है। मुझे लगता है कि यह मेरा नहीं कई लोगों का पसंदीदा शो है। मैंने इस शो को लगभग 8 बार देखा है और अभी भी मैं जब फ्री होती हूं तो यह शो देख लेती हूं । जब टीवी मेरे घर पर आया था , मैं बहुत छोटी थी। वह मेरे लिए चकित हो जानेवाला पल था क्योंकि मुझे नहीं पता था कि टीवी मेरे घर आ रहा है। जब टीवी घर पर आया तो मैं बहुत उत्साहित थी और अब भी मैं टीवी देखने के लिए उत्साहित ही रहती हूं। निशांत सिंह मलखानी: बहुत कम लोग हैं, जो मोबाइल फोन का इस्तेमाल सिर्फ बातचीत करने के लिए करते हैं लेकिन मोबाइल पर एप्प डाउनलोड करना , अपने पसंदीदा कंटेंट के लिए सब्सक्रिप्शन लेना। इसके लिए थोड़ी तकनीक की जानकारी होनी ज़रूरी है। जो अभी भी सभी के लिए आसान नहीं है। यही वजह है कि हमारे देश और घरों में मनोरंजन के लिए टेलीविजन है और टेलीविजन रहेगा । मुझे लगता है कि टेलीविजन समाज में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि भारत में हम जिस तरह की खबरें देखते हैं, उससे बच्चे का जन्म तक प्रभावित होता है. यह हमारी सोच है। हम कंटेंट को अच्छे और बुरे से अभी भी चिन्हित करते हैं। मुझे लगता है कि टेलीविजन आनेवाले समय में भी कहीं नहीं जा रहा है। मैं छह साल का था, तब मेरे घर में टीवी आया था। उस वक़्त रविवार को महाभारत और रामायण आता था। उसके बाद विक्रम बेताल ,शक्तिमान की कहानियां आयी। जो काफी मज़ेदार थी। शशांक व्यास: टीवी का महत्व इस बात पर निर्भर करेगा कि वहां क्या महत्वूर्ण देखने को है। मेरे बचपन में टीवी पूरी तरह से कंटेंट वाले शोज से भरा हुआ था आज की तरह नहीं। मैं उन शोज को बहुत मिस करता हूँ। जहां रचनात्मकता किसी भी व्यवसाय से ऊपर था, लेकिन किसी को दोष क्यों देना। यह दर्शकों की पसंद है । हमारे घर में सबसे पहले ब्लैक एंड वाइट टीवी आयी फिर हमने रंगीन खरीदा था . पूरा परिवार एक साथ बैठकर शो या फिल्मों का आनंद लेता था। टीवी मनोरंजन का एकमात्र स्रोत था लेकिन अब हर कोई अलग-अलग कमरों में बैठा है .. फैमिली बंट गयी है। जो अच्छा नहीं है। उस से ऊपर सकारात्मक, ज्ञानवर्धक सुरभि, भारत की खोज जैसे अब कोई शोज नहीं आते है. आज लोग रियलिटी शोज में लोगों को आपस में भिड़ता देख खुश होते हैं। बच्चे क्या सीखेंगे ? मुझे पता है कि मेरी बात भाषणबाज़ी लग सकती है लेकिन यही हकीकत है।. आज के समय में आपको शायद ही कोई ऐसा शो मिले जिसमें मनोरंजन के साथ साथ मैसेज भी हो।मैं लकी हूं कि मैं बालिका वधु जैसे शो का हिस्सा था. पहले पूरी कहानी पर काम किया जाता था अब सिर्फ मौजूदा कहानी के ट्रैक पर फोकस किया जाता है। यदि अच्छा कंटेंट टीवी में आएगा तो लोग टीवी को हमेशा ही महत्व देंगे। अब न्यूज़ चैनल भी किसी रियलिटी शो की तरह लग रहे हैं जहाँ लोग सिर्फ चिल्ला रहे हैं और अनावश्यक जानकारी दे रहे हैं। दर्शकों को यह तय करना चाहिए कि उन्हें किस चीज़ की ज़रूरत है अपनी भारतीय संस्कृति को ध्यान में रखते हुए । सानंद वर्मा: टेलीविज़न कभी खत्म नहीं होना चाहिए क्योंकि परिवार को एक साथ देखने के लिए टेलीविज़न ही चाहिए। टेलीविज़न ऐसा माध्यम है। जिसे बहुत से लोग एक साथ देख सकते हैं। आज पूरा परिवार एक साथ बैठकर वेब कंटेंट नहीं देख सकता है, लेकिन टीवी शोज ऐसे हैं जिन्हें हम पूरे परिवार के साथ देख सकते हैं। हमारा देश पारिवारिक देश है इसलिए टेलीविजन का अस्तित्व है। अब स्मार्ट टीवी अस्तित्व में आ गए हैं, वहां हम अपनी पसंद के अनुसार कंटेंट देख सकते हैं। टेलीविजन कंटेंट हमेशा ही चलेंगे क्योंकि टेलीविजन दूसरे एंटरटेनमेंट माध्यमों की तुलना में सबसे मजबूत माध्यम है। हमारी जनसंख्या बहुत बड़ी है और इंटरनेट की पहुंच अभी भी अन्य देशों की तुलना में हमारे यहां बहुत कम है। पूरे देश में इंटरनेट का प्रसार लगभग असंभव है हम आर्थिक रूप से बहुत मजबूत नहीं है । हर घर में इंटरनेट होने का मतलब है कि परिवारों का आर्थिक रूप से मजबूत होना, तभी हम ओटीटी प्लेटफॉर्म देख सकते हैं। टेलीविज़न की अपनी अलग जगह है. जिसे कोई भी नहीं ले सकता है टेलीविज़न किंग है और हमेशा राजा की तरह शासन करेगा। मेरा ऑल टाइम फेवरेट टेलीविज़न शो भाबीजी घर पर है. जब मेरे पिता ने टेलीविज़न सेट खरीदा था तो मैं बहुत छोटा था और उस समय रामायण के अलावा, हमलोग और ये जो है जिंदगी टेलीकास्ट हुआ करता था। मानित जोरूआ : पहले मैं दुनिया भर के सभी दर्शकों को विश्व टेलीविजन दिवस की शुभकामना देना चाहता हूं। दूसरी बात मुझे लगता है कि टीवी का अस्तित्व कभी भी खत्म नहीं होगा। मैंने देखा है कि किसी भी मेट्रो शहरों की दुकानों में जहां टीवी सेटस की बिक्री होती है। जो लोग गांव से आते हैं , टीवी सेट्स नहीं खरीद सकते वे दुकान के बाहर खड़े हो टीवी देखते हैं, खासकर क्रिकेट मैच. आप उनके चेहरे पर उत्साह देख सकते हैं जो टीवी उनके लिए लेकर आता है। टीवी परिवारों को जोड़ता है। इसमें कोई शक नहीं कि इंटरनेट ने अधिकांश दर्शकों को अपने कब्जे में ले लिया है लेकिन अभी भी बहुत से लोग टीवी से जुड़े हैं। जब टीवी शो की बात आती है तो मुझे लगता है कि धीरे-धीरे निर्माता भी महसूस कर रहे हैं कि मेट्रो के दर्शक उनसे दूर हो रहे हैं इसलिए वे भी अपने कंटेंट में सुधार कर रहे हैं। मैं बहुत खुश हूं कि टीवी भी अपना गेम एक लेवल अप कर रहा है। जब मैं पैदा हुआ था तो टीवी पहले से ही मेरे घर पर था. मुझे याद है कि जब मैं 5 साल का था तब हम महाभारत और अलादीन देखते थे। बीच बीच में हम फिल्में भी देखते थे। मैं एक संयुक्त परिवार से आता हूं, हम सभी क्यूंकि , कहानी घर घर की जैसे शोज बहुत पसंद करते थे। जब मैं मुंबई आया और पैसे भी कमाए लेकिन उसके बावजूद मैंने टीवी नहीं ख़रीदा। मुझे उसकी कभी ज़रूरत ही महसूस नहीं हुई लेकिन फिर मैंने महसूस किया कि टीवी घर की ज़रूरत है। मैंने ५५ इंच का टीवी ख़रीदा। मेरा हमेशा से बड़े टीवी का सपना था. उसे खरीदकर मैं बहुत बहुत खुश हुआ था #टेलीविजन हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article