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एक कलाकार से रूबरू आज एक नौसिखिया एक मंझे हुए अदाकार नसीरुद्दीन शाह से मिली... ऐसा लगा मानो, अचानक धरती पे बैठ के आसमान को देखने वाली एक चिड़िया, आज खुद आसमान में उड़ना सीखने लगी हो... मानो, पानी की तलाश में भटकते एक मुसाफ़िर ने समंदर देख लिया हो...
उस आसमान, उस समंदर का नाम नसीरुद्दीन शाह जी हैं जो एक मंझे हुए कलाकार हैं.
पृथ्वी जैसे नामी थिएटर में एक प्ले ‘आइंस्टीन’ जिससे देखने का मौका मुझे मिला. मेहेज़ एक प्ले ही नहीं खुद में एक अनुभव था... वो जो उस 1 घंटे 45 मिनट के प्ले ने हमें जो सिखाया, वो कोई स्कूल भी नहीं सिखा सकता.
नसीर सर खुद में ही एक स्कूल है. जिस तरह से उन्होंने अकेले ही इतने समय तक पूरी स्टेज का बखूबी इस्तेमाल किया, शब्दों के साथ खेला, वो काबिले तारीफ़ था. जब वो परफॉर्म करते है तो पूरी जनता खामोश... बस उनके अलफ़ाज़ पूरी फिजा में गूंजते है.
हम ऐसे खुश किस्मत थे की हमे उनसे रूबरू होने का मौक़ा मिला. वो आम ज़िन्दगी में इतने सरल व्यक्ति है और यही उनके व्यक्तित्व की सबसे ख़ास बात है. उन्होंने हमें उस 10 मिनट की मुलाक़ात में ज़िनदगी भर का पाठ पड़ा दिया.
जब तक दुनिया में ऐसे चिराग रोशन है, तब तक यहाँ ज्ञान का उजाला हमेशा फैलता रहेगा.
आरती