जब ख़ुशी मिलती है तो ख़ुश हो जाता हूँ लेकिन जब दुःख मिलता है तो कुछ नहीं कहता– किशोर कुमार By Mayapuri Desk 03 Aug 2021 | एडिट 03 Aug 2021 22:00 IST in एंटरटेनमेंट New Update Follow Us शेयर ये उस उतरते दौर की बात है जब किशोर कुमार से एक नामी वीडिओफिल्म मेकिंग कम्पनी ने इंटरव्यू के लिए बार-बार इंसिस्ट कर रही थी। ये वो दौर था कि जब किशोर कुमार उम्रदराज़ हो चुके थे। अब वो सुकून चाहते थे। इंटरव्यू के लिए बार बार बुलाये जाने पर उन्होंने एक अनोखी शर्त रख दी। “भई मैं अगर इंटरव्यू दूंगा तो सिर्फ लता को, लता के अलावा किसी को इंटरव्यू नहीं दूंगा” जो किशोर दा का इंटरव्यू करना चाहते थे, वो भी उनके कोई छोटे-मोटे मुरीद नहीं थे। उन्होंने आखिरकार लता मंगेशकर को किशोर दा का इंटरव्यू लेने के लिए तैयार कर ही लिया। पर स्वर कोकिला लता मंगेश्कर ने कभी ख़ास कोई इंटरव्यू लिया नहीं था, अब सीधे किशोर कुमार का इंटरव्यू लेना उन्हें ज़रा नर्वस कर रहा था। पर उन्हें बताया गया कि उन्हें बस वैसे ही अपने किशोर दा से बात करनी है, जैसे वो अब तक उनसे करती आई थीं। फिर क्या था, इंटरव्यू शुरू हुआ और लता मंगेश्कर ने पहला सवाल पूछा “आप म्यूजिक कम्पोज़ करते हैं, सिंगिंग भी करते हैं, एक्टिंग भी करते हैं, कॉमेडी इतनी अच्छी करते।।।” पर किशोर दा ने उन्हें बीच में ही टोक दिया, बड़ा मासूम सा चेहरा बनाते हुए बोले “नहीं नहीं देखो मैं कॉमेडियन तो नहीं हूँ, हाँ मैंने कॉमेडी की है, पर।।” उनका चेहरा देख लता मंगेश्कर ज़ोर से हँसने लगी और बोलीं “अच्छा कॉमेडियन तो नहीं पर आप इन सबमें अपनी पहली पसंद किसे मानते हैं?” किशोर दा बोले “देखो लता, मेरे गुरु थे, गुरु हैं, स्वर्गीय श्री कुंदनलाल सहगल, मैंने संगीत सुनना, समझना उन्हीं से शुरू किया था तो मेरे लिए सबसे पहले, प्रथम स्थान तो गायन का ही है। एक्टिंग में तो मैं अपने भाई, दादा मुनि की वजह से आया। उन्होंने बोला कि एक्टिंग कर ले, तो मैं कर लिया। तुम्हें तो याद है न मैं कैसे आया था यहाँ?” किशोर दा ज़रा रुककर ड्रेमिटिक अंदाज़ में बोले “तुम भी ट्रेन में आ रही थीं, मैं भी ट्रेन में आ रहा था, फिर तुमने मुझे देखा, मैंने तुम्हें देखा। फिर तुम ट्रेन से उतरीं, मैं भी ट्रेन से उतरा, फिर तुम तांगे पर बैठीं, मैं भी तांगे पर बैठा। फिर तुम पहुंची बॉम्बे टॉकीज़ के दरवाज़े पर, मैं भी पहुँचा। फिर तुम्हें लगा कि मैं तुम्हारा पीछा कर रहा हूँ। फिर वहाँ याद है तुम्हें स्वर्गीय खेमराज प्रकाश जी रिकॉर्डिंग कर रहे थे, तुम महल के गानों के लिए पहुँची थीं और मैं ज़िद्दी के लिए, वहाँ ये हमारी जर्नी शुरू हुई थी” किशोर दा फिर अपने अंदाज़ में अपने भाई का ज़िक्र करते हुए बोले “वहाँ खेमचंद जी ने मुझे बहुत एंकरेज किया। क्योंकि हमारे भाई ने तो हमें बहुत डिस्करेज किया था। दादा मुनि तो कहते थे, सुनों तुम्हारी आवाज़ में वो मोड्यूल नहीं है। ये क्वालिटी नहीं है’, लेकिन उन्होंने मुझे तराशा। श्री खेमचंद ने दादा मुनि से कहा कि तुम जाओ, मैं इसे समझाता हूँ, मैं इसे सिखाता हूँ कि कैसे गाना है, उन्होंने मेरा बहुत साथ दिया, उनके बाद किसी ने मुझे समझा तो वो थे मेरे दूसरे गुरु, स्वर्गीय श्री सचिन देव बर्मन, उन्होंने हमेशा मेरा साथ दिया। वो ऐसे पूछते थे ‘ए किशोर, तुझे ये ट्यून मुश्किल लग रही है? इसे चेंज कर दूँ?’ मैं कहता, ‘हाँ दादा, इसे चेंज कर दो न’ और वो कर देते। तुम्हें तो याद ही है लता, तुम तो मुझसे इतनी सीनियर हो, मुझे तो सही मायने में कुछ नहीं आता, मैं तो अलग-अलग तरह से ये सरगम भी नहीं बोल पाता। मुझे तो बस तुम लोगों ने, गुरुजनों ने, वो जो बीते दौर के उस्ताद लोग थे उन्होंने प्यार दिया, उन्होंने मुझे निखारा, उन्होंने मुझे बनाया। मेरी हमेशा कोशिश होती है कि मैं लोगों को ज़्यादा से ज़्यादा एनर्टैन करूँ। बस वही करता रहता हूँ। दुनिया समझे मुझको पागल, मैं समझूँ दुनिया को पागल, बस मेरा तो यही फलसफा है। कुछ लोग मुझे पागल समझने लगते हैं पर तुम तो जानती हो न मैं इतना पागल हूँ नहीं। हाँ जब मुझे समझ ही लेते हैं तो मैं थोड़ा सा पागलपन दिखा देता हूँ” लता जी हँसने लगीं और पूछ बैठीं “क्या आपको कोई कमी लगती है अपने सफ़र में? कोई अधूरी ख्वाहिश है?” “अरे नहीं नहीं लता, मैं अपनी ज़िंदगी से बहुत संतुष्ट हूँ। मैंने बहुत कुछ देख लिया है। बहुत उतार चढ़ाव आए मेरी ज़िंदगी में। लेकिन अच्छा रहा जो भी रहा, जैसी रही अच्छी रही। हाँ अब भागता रहता हूँ क्योंकि अब संगीत में वो बात नहीं लगती जो एक समय लगती थी। तब जो मज़ा आता था वो अब उतना नहीं आता। फिर अब घर की याद आती है। जहाँ से सफ़र शुरु किया था वहीं जाने का मन करता है। सुकून की तरफ जाने का मन करता है। इसी लिए भागता रहता हूँ। बस यही सोचता हूँ कि एक रोज़ भाग जाऊंगा घर की तरफ। तुझे पुकारे घर, चल रे मुसाफिर चल रे, अब अपने घर को चल रे। मेरा वो गाना याद है न, मैंने लिखा भी था कि “आ चल के तुझे मैं ले के चलूँ, एक ऐसे गगन के तले, जहाँ ग़म भी न हो, आँसू भी न हो बस प्यार ही प्यार पले, एक ऐसे गगन के तले” कुछ ठहरकर लता जी ने पूछा “जब आप सब छोड़कर वापस लौट जाने की बात करते हैं तो क्या उसमें संगीत भी शामिल है? क्या आप अपना गायन छोड़ सकेंगे?” किशोर दा निःसंकोच बोले “नहीं, भला ये कैसे छोड़ सकता हूँ। बस अब इसका तरीका दूसरा करना चाहता हूँ। अब चाहता हूँ कि तुम्हारी तरह, जैसे तुम चैरिटी के लिए स्टेज पर गाती हो, ऐसे मैं भी करूँ, मैं भी लोगों के काम आऊँ, मैं भी लोगों के भले के लिए कुछ करूँ” “तो हम आप मिलकर करते हैं न, हम मिलकर भी तो चैरिटी कर सकते हैं” “हाँ हाँ बिल्कुल लता, क्यों नहीं। अब मैं तुम्हारे साथ, या कहीं ज़रूरत हो तो निःस्वार्थ गाना चाहता हूँ। बाकी ज़िंदगी से कोई गिला नहीं है मुझे, जहाँ खुशी मिलती है वहाँ खुश हो जाता हूँ आई एम हैप्पी, जहाँ दुख मिले चुप हो जाता हूँ, कुछ नहीं कहता। ज़्यादा दुखी नहीं होता क्योंकि” किशोर दा अपने दिल पर हाथ रखकर बोले “यहाँ ज़ोर पड़ता है, इसका भी ख्याल रखना पड़ता है न” ये उस समय की बात है जब किशोर दा ने लगातार चार साल फिल्मफेयर अवार्ड्स अपने नाम किये थे। यूँ तो उनके पास टोटल आठ (अब तक के सबसे ज़्यादा) फिल्मफेयर अवार्ड्स थे पर लगातार चार साल फिल्मफेयर जीतने का रिकॉर्ड भी उन्हीं के पास है। फिल्म नमक हराम के गाने – पग घुंघरू बाँध मीरा नाची थी (1983) फिल्म अगर तुम न होते का टाइटल ट्रैक (1984) फिल्म शराबी से – मंज़िले अपनी जगह है रास्ते अपनी जगह (1985) और फिल्म सागर से – सागर किनारे दिल ये पुकारे (1986) इन्हीं गानों का कॉन्सर्ट करने के लिए किशोर कुमार इंदौर गये थे। वहीँ से उनका मन हुआ कि वो खांडवा, अपने घर भी कुछ समय के लिए हो आएं, आखिर वो हमेशा घर लौटने के बारे में ही तो बात करते थे। लेकिन मुंबई में उनका रिकॉर्डिंग शेड्यूल था, उसी के लिए वह वापस आ गये और घर लौटना फिर कुछ दिनों के लिए टल गया। किशोर दा बप्पी लहरी को न नहीं कह पाते थे क्योंकि वह उनका भांजा लगता था। लेकिन अब वह इस भागदौड़ से उकता गये थे। एक रोज़ बप्पी लहरी के स्टूडियो से रिकॉर्डिंग करके लौटे किशोर दा घर आए और सो गये। अगले रोज़ वह अपने बेटे और पत्नी लीना के साथ बैठे, शाम के वक़्त अपने भाई दादा मुनि (अशोक कुमार) का जन्मदिन मनाने के बार में चर्चा कर रहे थे कि उनको दिल में भीषण दर्द महसूस हुआ और वह ईज़ी चेयर से गिर पड़े। उनके बेटे अमित कुमार उन्हें तुरंत हॉस्पिटल ले गये लेकिन वहाँ पहुँचते ही पता चला कि किशोर दा नहीं रहे। मेरे जैसे बहुत से लोग ये बात मानने को तैयार ही न हुए, भला किशोर कुमार कैसे गुज़र सकते थे? हाँ ये हो सकता है कि उन्होंने एक शरीर छोड़ इस देश हर संगीतप्रेमी के हर दिल में शामिल हो अपने करोड़ों रूप बना लिए हों। आज, कोई 34 साल बाद भी किशोर कुमार से ज़्यादा फैन्स किसी भी सिंगर के नहीं हैं। किशोर कुमार के जन्मदिवस पर, उनके गाया हुआ ये गाना हम उन्हें समर्पित करते हैं किशोर दा की विश्वख्याति भले ही उनके गायन के चलते हुई हो पर हम आप जानते हैं कि वह एक बेहतरीन एक्टर, सिंगर, म्यूजिक डायरेक्टर, फिल्म डायरेक्टर, प्रोड्यूसर और गीतकार भी थे, तो इसी कॉम्बिनेशन में बने उनका ये गाना पेश है जो उन्होंने अपने बेटे अमित कुमार के लिए लिखा, कम्पोज़ किया और गाया था – चित्रपट - दूर गगन की छॉंव में संगीतकार - किशोर कुमार गीतकार - किशोर कुमार गायक - किशोर कुमार आ चल के तुझे, मैं ले के चलूं इक ऐसे गगन के तले जहाँ ग़म भी न हो, आँसू भी न हो बस प्यार ही प्यार पले इक ऐसे गगन के तले सूरज की पहली किरण से, आशा का सवेरा जागे चंदा की किरण से धुल कर, घनघोर अंधेरा भागे कभी धूप खिले कभी छाँव मिले लम्बी सी डगर न खले जहाँ ग़म भी नो हो, आँसू भी न हो ... जहाँ दूर नज़र दौड़ आए, आज़ाद गगन लहराए जहाँ रंग बिरंगे पंछी, आशा का संदेसा लाएं सपनो मे पली हँसती हो कली जहाँ शाम सुहानी ढले जहाँ ग़म भी न हो, आँसू भी न हो ... आ चल के तुझे मैं ले के चलूं ... – सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’ #Kishore Kumar Birthday Celebration #Kishore Kumar #about Kishore Kumar #KISHORE KUMAR article #Kishore Kumar films #kishore kumar songs हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article