मुझे नहीं पता कि अगर मैं किसी अन्य इंडस्ट्री का हिस्सा होता तो भी क्या मेरा जीवन ऐसा ही होता. मैं हमेशा इस उद्योग का आभारी रहूंगा जिसने मुझे बहुत कुछ दिया है. मुझे पता है कि ऐसे कई लोग हैं जो इस अमेजिंग इंडस्ट्री को चलाने में बहुत आनंद लेते हैं, मैंने उन्हें अपने तरीके और विचार बताए, लेकिन मैं हमेशा इस इंडस्ट्री को प्यार से याद रखूंगा, क्योंकि इससे मैंने जितने प्यार की उम्मीद की थी, इसने मुझे उससे कहीं अधिक प्यार दिया है.
मैं वी शांताराम, दिलीप कुमार, देव आनंद, के.ए.अब्बास जैसे महान पुरुषों और महिलाओं का प्यार पाने के लिए बहुत भाग्यशाली रहा हूं, और लिस्ट उस आखिरी आदमी तक जाती है, जिसके प्यार का मुझे अनुभव था और वह शख्स है शाहरुख खान. लेकिन, अगर कोई ऐसा व्यक्ति है जिसने मुझसे बिना किसी एक्स्पेक्टैशन के प्यार किया, तो वह जीवन और प्रेम के कवि, सफल गीतकार आनंद बख्शी थे!
उन सभी की तरह जिनका मेरे साथ बहुत करीबी संबंध रहा है, मुझे अभी भी याद नहीं है कि मैं बख्शी साहब से पहली बार कैसे और कहां मिला था. हालाँकि मुझे याद है कि मैंने खार डंडा रोड पर समुद्र के सामने उनके साथ एक लम्बी वॉक की थी. यही वह सड़क थी जिसने उन्हें अपने कुछ बेहतरीन गीतों को लिखने की प्रेरणा दी थी! वह ज्यादातर अपनी खुद की दुनिया में ही गुम रहा करते थे और मुझसे आगे निकल जाया करते थे, जिसके चलते मैं उनका पीछा करता रहता था और अक्सर सोचता था कि क्या यह वही आनंद बख्शी हैं जिनका नाम मैं अपने जीवन में आधे से ज्यादा बार सुन चुका था. लेकिन मुझे तब भी कभी कोई जवाब नहीं मिला क्योंकि उनमें सामान्य हिंदी और उर्दू कवियों के जैसा कुछ भी नहीं था. उन्होंने कभी भी कवियों और शायरों की उच्च प्रवाह शैली (हाई फ्लोइंग स्टाइल) में बात नहीं की. उन्होंने कभी पान नहीं खाया था और उनमे केवल एक बुरी आदत थी कि वह ज्यादा स्मोकिंग करते थे और रात को शराब पीते थे, जहां वह कभी-कभी ज्यादा शराब भी पी लिया करते थे. उन्होंने मुझे बताया कि वह एक सामान्य व्यक्ति थे जिन्होंने परिस्थितियों और लोगों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की और उन्होंने विभिन्न परिस्थितियों में कैसे व्यवहार किया था.
उनके अपार्टमेंट ‘कॉस्टैपीबल्स’ में उनकी जन्मदिन की पार्टी थी और उस रात उनके घर में कई लोग थे. दिलीप कुमार और राज कपूर उन लोगों में से थे जो बख्शी साहब की प्रशंसा कर रहे थे. मैं राज कपूर से कई बार मिला था, लेकिन मेरे सीनियर श्री आर.एम.कुमताकर, जिन्होंने मुझे वहां अपने सभी दोस्तों से इन्ट्रडूस कराया क्योंकि उन्हें यह पसंद था, और उन्होंने मुझे वहां उस महान शोमैन से भी मिलवाया, जो तब नशे में था! मैंने पूरी विनम्रता से उनके साथ हाथ मिलाया, लेकिन शोमैन ने तेज आवाज में कहा “ऐ लड़के तुम्हारे हाथ कहा हैं?” और इससे पहले कि मैं कुछ कह पाता, वह फिर चिल्लाए और कहा, “राज कपूर के साथ कोई ऐसे बात करता हैं?” मैं बख्शी साहब की पार्टी को बिगाड़ना नहीं चाहता था और मैंने शोमैन से कहा, “मुझे कमर में कुछ दर्द हो रहा है” और इससे पहले कि मैं अपनी बात पूरी कह पाता, शोमैन फिर बोले, “लड़के तुम्हारे दिन भर गए, मर जाएगा तुम जल्दी.”
हालांकि और दुर्भाग्य से उनके लिए और मैं उनकी भविष्यवाणी के बाद मैं नहीं मरा,भगवान का धन्यवाद और मैं अभी भी जीवित हूं, लेकिन मैं शोमैन के साथ अपने कुछ दुर्भाग्यपूर्ण पलो में से इसे कभी नहीं भूलूंगा. अगली सुबह बख्शी साहब ने मुझे फोन किया और मुझसे माफी मांगी और मुझे उनके और उनकी पत्नी के साथ दोपहर का भोजन साथ करने को कहा. यह एक निमंत्रण था जिससे हमारी दोस्ती शुरू हुई जो अंत तक चली.
यह जुहू के सन-एन सैंड होटल में उनकी बेटी की शादी का रिसेप्शन था, जहां 70 और 80 के दशक में कुछ बेहतरीन पार्टियां हुई थीं. और मुझे बख्शी साहब द्वारा आमंत्रित किया गया था. भले ही मुझे शादियों और शादी के रिसेप्शन में पार्ट लेने से नफरत थी, लेकिन मैंने एक लक्ष्य बनाया और सन-एन-सैंड तक पहुंच गया. बख्शी साहब नवविवाहित जोड़े के साथ मंच पर थे और मेहमानों का स्वागत करने में व्यस्त थे. और तब ही अचानक, मुझे बख्शी साहब की आवाज जैसी एक आवाज सुनाई दी और उस आवाज ने कहा था,
"अली अली, मेरा अली आ गया, अब मुझे और क्या चाहिए?".
यह महज कोई भावनाओं का दिखावा नहीं था! वह स्टेज से नीचे आए और मुझे एक खाली टेबल की ओर ले गए जिससे वहां मुझे आराम महसूस हो और वेटरों को मेरा विशेष ध्यान रखने को कहा. मैंने सोचा कि मैं इस भले आदमी के इतने आभार का भुगतान कैसे करूंगा.
हमने कई महत्वपूर्ण विषयों और लोगों के बारे में बात की थी, लेकिन बख्शी साहब ने अपने मित्र और आइडल दिलीप कुमार के बारे में जो कहा था, वह इतने सालों बाद भी मेरे दिमाग में ताजा है. हालांकि हम तब उसी सन-एन-सैंड होटल में बैठे और पी रहे थे, जब दिलीप कुमार अपनी सफेद ट्राउजर और बेदाग सफेद शर्ट पहने वहां से गुजरे थे. बख्शी साहब ने शहंशाह पर एक नजर डाली और अपनी फेवरेट सिगरेट का एक लम्बा कश लिया और कहा था, “लोग न जाने क्यों यहां- वहां खुदा को ढूंढते फिरते हैं, उनको कहो कि अगर खुदा को ही देखना है, तो आ कर एक बार दिलीप कुमार को देखे, उनको खुदा ही नहीं, बल्कि सारा जहां मिल जाएगा”, और यह कहते हुए उनकी आंखों में आंसू आ गए थे. मुझे अभी भी नहीं पता कि वह आंसू बख्शी साहब की आंखों में अचानक से क्यों आ गए थे.
70 के दशक के उत्तरार्ध में बख्शी साहब नियमित रूप से बीमार पड़ते रहे थे और नानावती अस्पताल में एडमिट होते रहते थे. सिगरेट पीने की उनकी लत, जिसे उन्होंने अपना प्यार कहा था, ने फेफड़ों पर भारी असर डाला था. उनकी यह बीमारी गंभीरता से बढ़ती रही. मैं खुद उनसे मिलने हर दिन उनके पास जाता था. एक दिन उनके एक बेटे ने मुझे बताया कि वह क्रिटिकल कंडीशन में थे और मैं उनके पास भागा हुआ गया और मैंने उन्हें बेहोशी की हालत में लेटे हुए पाया. लेकिन मेरा विश्वास करें, जब उन्होंने मुझे देखा, तो वह अलर्ट थे और मैं उनके उन अंतिम शब्दों को कभी नहीं भूल सकता जो उन्होंने मुझसे कहे थे. उन्होंने कहा था, “अली मैं मरना नहीं चाहता”.
इसके कुछ समय बाद ही डॉक्टरों ने डिक्लेयर किया था कि उनके सभी ऑर्गन फेल हो गए थे और भावनाओं और शब्दों के जादूगर हमें छोड़ कर चले गए थे. मरने के कुछ दिन पहले बख्शी साहब ने एक बहुत “बहादुर” कविता लिखी थी जिसमे उन्होंने दिखाया था कि वो मौत से डरते नहीं थे. लेकिन मौत का क्या कर सकता है इंसान? उसको तो आना ही है और ले जाना ही हैं, चाहे आप शहंशाह हो, या भिखारी, बहादुर शाह ज़फ़र हो या आनंद बख्शी.
अंत में जाने से कुछ दिन पहले, उन्होंने यह अप्रकाशित और अप्रयुक्त कविता लिखी, जिसे उन्होंने सुभाष घई को प्रस्तुत किया, जो बिना काम किए नहीं सोच सकते थे। वह जानता था कि वह मर रहा है, लेकिन नीचे दी गई कविता को पढ़िए और आप जान जाएंगे कि वह आदमी और उसकी अटूट भावना सब से ऊपर थी। मैं इस कविता को एक और सभी को उनकी पुण्यतिथि पर प्रस्तुत करता हूं।
मैं कोई बर्फ नहीं हूँ जो पिघल जाऊंगा
मैं कोई हर्फ़ नहीं हूँ जो बदल जाऊंगा
मैं सहारों पे नहीं खुद पे यकीं रखता हूँ
गिर पडूंगा तोह हुवा क्या मैं सम्हाल जाऊंगा.
चाँद सूरज की तरह वक़्त पे निकलता हूँ मैं
चाँद सूरज की तरह वक़्त पे ढल जाऊंगा.
काफिले वाले मुझे छोड़ गए हैं पीछे
काफिले वालों से आगे मैं निकल जाऊंगा.
मैं अंधेरो को मिटा दूंगा चिरागों की तरह
आग सिने मैं लागा दूंगा मैं जल जाऊंगा.
हुस्न्न वालों से गुज़ारिश है की पर्दे कर लें
मैं दीवाना हूँ मैं आशिक हूँ मचल जाऊंगा.
रोक सकती है मुझे रोक ले दुनिया ‘बख्शी’
मैं तोह जादू हूँ मैं जादू चला जाऊंगा.
मैं कोई बर्फ नहीं हूँ जो पिघल जाऊंगा
मैं कोई हर्फ़ नहीं हूँ जो बदल जाऊंगा
क्या तारीफ करू मैं आपकी बक्षी साहब? आप तो तारीफ का मतलब ही नहीं समझते थे. आप तो सिर्फ वो करते थे जिसके लिए आपको खुदा ने कुछ अपने ही जैसे बनाया था और खुदा के जैसे ही अमर और हमेशा के लिए है और रहेंगा.