आनंद मिलिंद: लोग फिर से मेलोडी के शौकीन हो गए है By Mayapuri Desk 21 Dec 2022 | एडिट 21 Dec 2022 07:12 IST in बीते लम्हें New Update Follow Us शेयर पूर्व इंटरव्यू किसी फिल्मी हस्ती की सफलता और लोकप्रियता का अनुमान इस बात से लगाया जाता है कि वह किस कदर न्यूज में है. गत वर्ष सर्वाधिक फिल्में आनंद मिलिन्द की रिलीज हुई और सफल भी हुई. इसके अलावा उनके नाम के साथ काफी विवादास्पद बातें भी जुड़ी हुई है. इसलिए हमने आनंद मिलिन्द से मिलकर उनका खुलासा करना चाहा. उनके घर पर हुई मुलाकात में हमने पूछा:- 'नदीम श्रवण की जोड़ी आपके बाद सफल हुई. किन्तु नाम और दाम के मामले में वह लोग आपसे आगे निकल गए. आज लोग उन्हें नम्बर वन संगीतकार मानते हैं. इस दौड़ में पीछे रहने का कारण क्या है?' 'इंडस्ट्री कोई रेस का मैदान नहीं है. इसलिए आगे पीछे या नम्बर वन का फैसला कोई कैसे कर सकता है. हम तो इतना जानते हैं कि गत वर्ष सबसे अधिक फिल्में हमारी रिलीज हुई हैं और साल की सबसे हिट फिल्में 'बेटा', 'बोल राधा बोल', और 'आज का गुंडाराज' भी हमारी ही थी . नदीम श्रवण को तो केवल एक ही फिल्म 'दीवाना' हिट हुई है. रही बात प्राइस की तो यह देने वाला जानता है या लेने वाला. हमने कभी इसका ढिंढोरा नहीं 'पीटा' आनंद ने कहा . इस तरह की शीशे बाजी से आयकर के कान खड़े हो जाते हैं. आप लोगों के बारे में कहा जाता है कि आपकी धुनें ओरिजनल नहीं होती. इसकी क्या वजह है? हमने पूछा. हम अपने तौर पर यही प्रयास करते हैं कि ओरीजनल टयून बनाएं. पापा कहते हैं आदि सभी ओरिजनल धुनें दी हैं. पापा के जमाने में निर्देशक निर्माता आदि डायरेक्टर रिकाॅर्डिग पर नहीं आया करते थे. कोई सुनता ही नहीं था कि क्या धुन बन रही है. किन्तु आज निर्माता, निर्देशक, लेखक, कलाकार आदि सभी म्यूजिक रूम में आते हैं और सुनते हैं कि क्या धुन बन रही है. इसलिए एक एक गाने के 3-3, 4-4, मुखड़े और धुनें बनानी पड़ती हैं. उनमें से जो सबको पसन्द आती है वही इस्तेमाल होती है बाकी धुनें अपनी बैंक में जमा हो जाती हैं. जो पसन्द आने पर दूसरी फिल्मों में इस्तेमाल हो जाती है.' मिलिन्द ने कहा. आप पर इल्जाम है कि आप साउथ के संगीतकार इलैया राजा की धुनें अपनी फिल्मों में बहुत इस्तेमाल करते हैं. फिर ओरिजनलिटी कहाँ रही? हमने कहा. 'कुछ फिल्में रिमेक होती है. उनका अगर संगीत लोकप्रिय हुआ हो तो निर्देशक डिमांड करता है जैसे 'दिल' के लिए इन्दर कुमार ने आग्रह किया था. 'आज का गुंडाराज' के सारे गाने नए बनाए थे. वह भी रिमेक थी जिसके ओरिजनल वर्जन में बप्पी लहरी ने संगीत दिया था. इसलिए सारे ही गाने नए बनाए थे. इसके बावजूद कोई इस तरह का आरोप लगाता है तो क्या किया जा सकता है.' आनंद ने कहा. 'हम टीम वर्क में विश्वास रखते हैं. सबकी अपनी पसन्द होती है. अपना दिमाग होता है. अगर कोई धुन उठाई हुई लगती है तो उसके लिए फिल्म के निर्माता और निर्देशक जिम्मेदार हैं.मिलिन्द ने कहा. 'दिल' के जिस गीत पर लोगों ने आपत्ति उठाई है. उसमें हमने केवल मुखड़ा लिया था . अंतरे सारे बदल दिए थे. वह धुन इसलिए लेनी पड़ी थी कि पूनम ढिल्लों और अशोक थाकेरिया ने हमें मजबूर किया था. इस्पायरेशन लेना गुनाह नहीं है. कॉपी करना गुनाह है. जिन्दगी में हर कोई किसी न किसी से इंस्पायर होता है. लताजी नूरजहाँ से इंस्पायर थी तो आशाजी गीता दत्त से. क्योंकि किसी भी फील्ड में जब तक किसी को आदर्श न बनाए जाए तो इंस्प्रेशन नहीं मिलती.' 'आपका आइडियल कौन है?' हमने पूछा. 'हमारे आइडियल हमारे फादर (चित्रगुप्त) हैं. आनंद ने कहा. 'दोनों को उनके अलावा और किसने प्रभावित किया है?' हमने पूछा. 'मुझे पापा के अलावा बर्मनदा, शंकर जयकिशन, ओ.पी.नय्यर, मदन मोहन, आर.डी.बर्मन बहुत पसंद रहे हैं किन्तु मैं फैन सलिल चौधरी का रहा हूँ. आनंद ने कहा. 'मुझे लेट 50 का संगीत ज्यादा पसंद है. उससे पहले का नहीं.' मिलिन्द ने कहा. मेरे आइडियल शंकर जयकिशन और ओ.पी.नय्यर हैं. 'आपने एल.पी (लक्ष्मीकांत प्यारेलाल) का नाम नहीं लिया. जबकि आपके संगीत पर उनकी गहरी छाप है.' हमने कहा. 'शुरू में लोगों ने ऐसा कहा था किन्तु 'कयामत से कयामत तक' में हम अपना स्टाइल लेकर आए थे जिसमें इस्टर्न टयून वेस्टर्न स्टाइल में सैट की थीं. 'महासंग्राम', 'बागी' आदि में उससे भी हटकर संगीत दिया था. हमने पापा के अलावा एल. पी. रोशन, शंकर जयकिशन का संगीत बहुत सुना था आनंद ने कहा. 'पापा और हमें राजेश रोशन का भी संगीत पसन्द था. मेरी अपनी फीलिंग यह है कि इधर दो तीन या चार पाँच साल से हम जो नई धुनें बना रहे हैं उनको सुनकर पापा की याद आती है. पप्पा वाली बात तो नहीं है किन्तु झलक नजर आने लगी है.' मिलिन्द ने कहा. 'चित्रगुप्त जी का आपके संगीत के बारे में क्या ख्याल था?' हमने पूछा. 'वह बहुत खुश थे. कहते थे अब तुम्हारे गाने सुनकर लगता है यह आनंद मिलिन्द के गाने हैं. वह बोलते थे कि मैं ज्यादा नहीं रहूँगा. 'दिल' के बाद 'बागी' भी चल गई तो उन्होंने कहा था अब तुम चल गए. तुम लोग बड़े ग्रुप में पहुँच गए. पापा को इसका दुख था कि देव आनंद, दिलीप कुमार और राज कपूर आदि की फिल्मों के लिए संगीत नहीं दे सके. जब शम्मी कपूर का टाॅप का समय था तो कहीं पप्पा से मिल गए और बोले आप ही वह म्यूजिक डायरेक्टर हैं जिन्होंने 'काली टोपी लाल रूमाल' में संगीत दिया था. पापा से बोले कभी आकर मिलिए. किन्तु पापा कभी मिलने नहीं गए. पापा का यह हाल था कि 'कयामत से कयामत तक' के मुहूर्त पर नासिर साहब ने राज साहब (राजकपूर) को बुलाया था. हमारा परिचय कराते हुए उन्होंने कहा मैं इन्हें ब्रेक दे रहा हूँ. यह चित्रगुप्त के लड़के हैं. राज साहब ने पूछा वह कहाँ है ? वह तो बड़े गुणी है. तब मैंने उनसे कहा वह यही हैं. फिर मैंने जब पापा को राज जी से मिलवाया तो मुझे बड़ा अजीब सा लगा कि उनके काल के संगीतकार को हम उनसे मिलवा रहे थे.ग्रुपइज्म उनके वक्त में था किन्तु उसमें भी कुछ बात थी. ए.वी.एम. वाले जब हिन्दी फिल्म शुरू कर रहे थे तो बर्मनदा के पास गए थे. उन्होंने कहा मैं 4 फिल्में ही करता हूँ. उन्होंने ही पापा का नाम सजेस्ट किया था. आज कौन संगीतकार किसी दूसरे संगीतकार के पास इस तरह फिल्म भेजता है.' मिलिन्द ने कहा. 'टी.सीरीज की बदौलत आपको लोकप्रियता और सफलता मिली. फिर आपने गुलशन कुमार से संबंध क्यो तोड़ लिए?' हमने पूछा. 'इस विषय को न छेंड़े तो अच्छा है. संबंध अपनी जगह हैं और बिजनेस अपनी जगह है.' आनंद ने कहा. 'जीना मरना तेरे संग' में हम ही संगीत देने वाले थे. बाद में पता चला कि उसके गाने रिकाॅर्ड हो गए हैं. 'संगीत' के सारे गाने 'शिव महिमा' में डब करके डाल दिए.' मिलिन्द ने कहा. 'इतना ही नहीं अनुराधा पौडवाल के कारण अलका याज्ञनिक से भी आपका मन मुटाव हुआ था. फिर सुलह कैसे हुई?' हमने पूछा. 'अलका के 'दिल' के गाने रिकार्ड कम्पनी ने अपने आप ही अनुराधा की आवाज में डब कर दिये थे. जिसके कारण अलका को लगा कि हमने ऐसा किया है इसलिए वह नाराज हो गई थी. सुर मंदिर म्यूजिक कम्पनी हमारे संगीत में एक अलबम निकालना चाहती थी उन्होंने अलका से बात की थी. हमें उसके साथ काम करने पर कोई एतराज नहीं था. अलका ने भी कोई आपत्ति नहीं उठाई. उससे इतने पुराने संबंध थे कि वह पापा के लिए भी गाने गा चुकी थी. फिर 'कयामत से कयामत तक' के सारे गाने उसी ने गाए थे. इस बीच शायद उसे भी पता चल गया था कि गलती हमारी नही थी. उसे शिकायत यह थी कि हमने डबिंग के लिए आपत्ति क्यों नहीं उठाई जबकि हमें पता भी नही था. बात साफ हो गई. मन मुटाव दूर हो गया .' मिलिन्द ने कहा. 'इसी प्रकार क्या गुलशन कुमार से भी संधि होने के चांसेज हैं?' हमने पूछा. 'हमारा कोई झगड़ा नहीं हुआ है. हम लोग बाहर बहुत बिजी हैं. उधर गुलशन जी भी अपने ही संगीतकारों के साथ काम कर रहे हैं. नए नए संगीतकारों को आजमा रहे हैं. हो सकता है बाद में साथ काम करें. हमें कोई इगो नहीं है.' आनंद ने कहा. 'लव स्टोरी का दौर शुरू भी हुआ और खत्म भी हो गया. क्या फिर भी मेलोडी बाकी रहेगी?' हमने पूछा. 'लगता तो हैं. लोग फिर से मेलोडी के शौकीन हो गए हैं. पहले गाना आने पर लोग उठकर चले जाते थे. तब लगता था कहानी रूक रही है किन्तु अब वह बात नहीं रही है.' मिलिन्द ने कहा. 'क्या कोई महत्त्वाकांक्षा है ?' हमने पूछा. रफी साहब को गवाने और राज जी (राज कपूर) की फिल्म में संगीत देना चाहते थे. वह तो तमन्ना अब पूरी न हो सकेगी.' आनन्द ने कहा. अब बस अमिताभ बच्चन की फिल्म के लिए संगीत देना और यश चोपड़ा व सुभाष घई के साथ काम करने की तमन्ना है.' -जैड.ए.जौहर #Anand Milind #Anand Milind BIRTHDAY हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article