यह लेख दिनांक 14-2-1993 मायापुरी के पुराने अंक 960 से लिया गया है!
ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘अभिमान’ में जया भादुड़ी के लिए एक श्लोक गाकर अनुराधा पौड़वाल नामक इस चर्चित गायिका ने अपना करियर शुरू किया.
क्योंकि उनके पति अरूण पौड़वाल जो आज दुनिया में नहीं है, लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल जैसे बड़े संगीतकार के सहायक थे, तो यदाकदा छोटा मोटा गीत अनुराधा को गाने के लिए मिल जाता था, लोग उनका गीत सुनकर उन्हें लता मंगेशकर की कॉपी करने की तोहमत लगाते, तो कुछ ऐसे भी होते जो लता मंगेशकर के बाद गायिकाओं में उनका उज्जवल भविष्य देखते! नई गायिकाओं में ऊपर आने और अपनी प्रतिभा सिद्ध करने की जद्दोजहद बरसों चली! मगर फिल्मकारों ने जैसे लता मंगेशकर और आशा भौंसले के अलावा किसी आवाज को बढ़ावां न देने की कसम खा रखी थी, संगीतकार अनुराधा पौड़वाल ही क्यों अलका याज्ञनिक, कविता कृष्णामूर्ति जैसी अन्य गायिकाओं से गीत गवाने की! और इच्छुक नहीं लगते थे, तभी गुलशन कुमार नामक आज के संगीत कम्पनियों के सम्राट का सुपर कैसेट कम्पनी के जरिए एक दौर शुरू हुआ, संगीत अचानक इतना माँग में आने लगा कि पुराने गायक गायिकाओं का इन्तजार न करके गुलशन जी ने नई प्रतिभाओं से अपनी फिल्मों के गीत गवाने शुरू कर दिए!
नई गायक-गायिका ंही क्यों कई नए संगीतकारों ने भी संगीत की दुनिया में पैर जमाने शुरू कर दिए, अनुराधा पौड़वाल को जो छः महीने में कभी कभार एक गाना गाकर संतोष करना पड़ता था, अब लगभग रोज मशगूल रहने लगी, सुपर कैसट यानि के टी. सीरीज तो उनके ‘लाल दुपट्टा मलमल का’ के गीत के बाद घरेलू कम्पनी बन गई थी, उन्होंने ‘आशिकी’ के गीत गाए और देखते- देखते बरसों के संषर्ष के बाद वे एक गायिका के रूप में स्थापित हो गईं .
स्थापित होने के साथ-साथ उड़ी गुलशन कुमार से उनके अन्तरंग संबंधों की खबरें, एक साथ दो-दो शोहरतों की शमशीर चली है जो अनुराधा की आवाज से घायल न होता हो उनके रूप और उनके इश्क की गरम- गरम खबरें पढ़कर आहे भर ले.
हमने इस सुंदरी गायिका से टी.सीरीज के खार स्थित ऑफिस में ही मिलने की योजना बनायी थी बातचीतः आपके गाये गीतों की लगातार सफलता और लताजी द्वारा आशिक सन््यास व आशा भौंसले जी की घटती डिमाँड से क्या ये मान लिया जाए, कि काफी संघर्ष के बाद हिन्दी फिल्मों की गायिकाओं में आपने नम्बर वन पोजीशन हासिल करली है? हमने पहले गुद-गुदाने वाले मीठे-सवाल से ही बातें शुरू की तो वो बोली ‘मैं किस पोजीशन पर हूँ या कैसा गाती हूँ यह तो केवल मेरे सुनने वाले ही ज्यादा अच्छा बता सकते हैं! मैं तो इतना कह सकती हूँ. कि यहाँ तक पहुँचने के लिए मुझे बहुत कड़ी मेहनत करनी पड़ी है, काफी ‘फ्रेस्ट्रेशन’ सहने पड़े है तब जाकर मैं नम्बर वन या जिस पोजीशन में भी हूँ वहाँ पहुँच पायी हूं...सुना है कि जिस तरह से किसी जमाने में लताजी, आशा जी, बहने आपकी काट किया करती थी आज आप भी मौका मिलने पर उन्हें नहीं बख्शती और उनके गाने हड़प लेती हैं ? ‘जी नहीं, मैं इसे केवल इल्जाम मानती हूँ’ मेरे मन में लताजी और आशा जी दोनों के लिए बड़ा आदर भाव है! वे आज जिस आदर से देखी जाती है, उसके लिएं पूरी ‘डिजर्व’ करती है! मुझें अपने को ‘स्टैब्लिश’ करने में अगर इतना वक्त लग गया तो मैं उसके लिए जिम्मेदार उन संगीतकारों को मानती हूँ जो आशा जी, लता जी के अलावा किसी दूसरे को मौका देना उचित नहीं समझते थे”
अनुराधा ने कहा और आगे मौका मिलने के लगभग सभी रास्ते आपके लिए बन्द भी हो चले थे, अगर सुपर कैसेट.के गुलशन कुमार ने संगीत की यह लहर न दौड़ाई होती ? तो वाकई! बीच में ‘सुपर कैसेट’ के बाद ‘ऐसा दौर आया कि संगीत की माँग एकदम से बहुत बढ़ गई . नये-नये संगीतकार गीतकार और गायक गायिका ‘इन्ट्रोडयूज’ किए जाने लगे,
गुलशन जी ने मेरी प्रतिभा पर अपना भरोसा दिखाया! मुझे प्रोमोट करना शुरू कर दिया और देखते-देखते बात बन गईं एक के बाद दूसरी फिल्मों के गीत बेहद पापुलर होते गए.”
अनुराधा पौडवाल ने कहा-लेकिन जगत जानी और मानी बात है, अनुराधा-गुलशन कुमार द्वारा हर दरोदिवार पर उनका नाम और फोटो चिपकाने को प्रमोट करना कह रही है वह हद से जरा बहुत ज्यादती ही है,
‘छायागीत में संगीत’ फिल्म का गीत आए तो माधुरी दीक्षित की शक्ल कम गायिका अनुराधा पौड़वाल का मुखड़ा ज्यादा दिखायी देता है, फिल्म के गीतों के कैसेट हो या पोस्टर अनुराधा की फोटो कहीं बड़े रूप में टृष्टिगोचर होती है! ऐसे जैसे अनुराधा पौड़वाल से बढ़कर कोई दूसरी चीज दुनिया में है ही नहीं, इसको ‘पब्लिसिटी’ या ‘प्रोमोट’ करने की तिकड़म तो हर बार नहीं कहा जा सकता. ‘प्रोमोट’ करना करियर की शुरूआत में तो तर्कसंगत लगता है! जब संगीत प्रेमी किसी नाम से पूर्णतया परिचित हो तो ऐसे ‘प्रोमोशन’ या पब्लिसिटी के पीछे हजार दूसरे अर्थ खुदबखुद निकलने लगते है.
हमने जब इस बारे में अनुराधा पौड़वाल से पूछा तो वे बोलीः ‘मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत इसलिए नहीं हूँ किसी कम्पनी के द्वारा प्रोमोट की जाने वाली, मैं पहली गायक या गायिका नहीं? इससे पहले भी अनूप जलोटा और पंकज उद्यास को म्यूजिक इण्डिया और दूसरी कम्पनी ने बला की पब्लिसिटी दी है .
क्योंकि गुलशन कुमार मुझे अपनी संस्था की एक खास प्रतिभा समझ कर ऐसा कर रहे हैं, तो लोग तरह-तरह की बातें कहने लगे! मैं पूछती हूँ तब वे लोग कहाँ थे जब मैं तमाम कइयों के बराबर की आवाज दे सकती थी गा सकती थी मगर किसी में दूसरी बड़ी गायिकाओं को नाराज करके मुझसे गीत गवाने की हिम्मत नहीं थी, गुलशन जी ने सबसे पहले मुझे और मेरे टेलेन्ट को समझा, अब वह जमाना नहीं कि लोग केवल आवाज सुने और सराहे, उसके साथ-साथ विजुअल पब्लिसिटी भी उतनी ही जरूरी हो गईं है. क्या विदेशों में ऐसा नहीं होता?
क्या ‘मेडोना’ और ‘माइकल जैक्शन’ नये हैं फिर भी कितनी विजुअल पब्लिसिटी वे हरेक नये कैसेट के साथ नये ‘एलबम’ के साथ देते हैं
फिर भी अगर लोग कुछ कहते हैं तो कहें उससे क्या बनता या बिगड़ता है ?...
अनुराधा ने बड़ी बेबाकी से कहा. हमने कहा बनता बिगड़ता भी है, आज लगभग नए गायक गायिकायों की संपूर्ण टोली आपसे नाराज लगती है, संगीतकार नदीम श्रवण ने आपके साथ गाने रिकाॅर्ड करने कब के बन्द कर दिए जिनके साथ आपने अपने करियर के बेहतरीन गीत रिकाॅर्ड किए हैं . कुमार सानू तो आपसे ज्यादा ही खफा लगते हैं, ऊल जुलूल बोलने के अलावा अफसोस व्यक्त करते हैं, कि आप बस करियर के इस पीक में केवल सुपर कैसेट की धरोहर बन कर रह गई हैं, वे जब तक आप टी. सीरीज से जुड़ी है आपके साथ आगे कोई रिकाॅर्डिंगं करने के पक्ष में नहीं ? और कई दूसरे संगीतकार लक्ष्मी प्यारे आदि भी आपसे उतने खुश नहीं लगते जितने वे आपके फेवर में पहले थे! ऐसी अवस्था में आपका केवल एक म्यूजिक कम्पनी सुपर कैसेट से जुड़े रहना कहाँ तक वाजिब और तर्क संगत कहा जा सकता है? हमने पूछा.
अब ऐसा भी तो संभव नहीं कि सबको खुश देखने के लिए मैं सुपर कैसेट को छोड़ दूँ! जहाँ से जिंदगी की इतनी बड़ी ख्वाहिश और एम्बीशन की साकारता प्रदान हुई क्या उनके लिए गद्दारी करना ठीक होगा ? मैं कहती हूँ वे लोग गद्दार हैं जो यहाँ के इस कम्पनी से नाम कमा कर आज यहीं के लिए उल्टी सीधी बातें करते हैं. उनमें कुमार सानू की बातें सुनकर तो वाकई अफसोस होता है! बाहर जाकर उसने कोई तरक्की की है, मैं नहीं मानती- लक्ष्मी प्यारे जी से मेरी कोई अनबन नहीं उनकी अनबन होगी तो गुलशन जी से फिर भी वे मेरे लिए कुछ मन में रखते हो तो उसमें मैं कर भी क्या सकती हूँ, जहाँ तक मैं अपने बारे में जानती हूँ और सोचती हूँ मैं तो सभी संगीतकारों के साथ गाने ‘रिकॅार्ड’ करने के पक्ष में हूँ, मुझ पर किसी एक व्यक्ति या ‘कम्पनी की ‘मोनोपोली’ नहीं है. ऐसा सोचना लोगो का गलत है...
अनुराधा पौडवाल ने कहा- हमने कहा अच्छा आखिरी सवाल के तहत क्या आप स्पष्ट करेंगी कि वाकई सुपर कैसेट में आपकी मनमानी नहीं चलती! अब वहाँ की कई नीतियों और निर्णयों में योगदान नहीं करती? ऑफकोर्स सुपर कैसेट के साथ फैसले गुलशन जी खुद करते है?
उसमें क्योंकि मैं बहुत निकट हूँ वे किसी म्यूजिक सिटिंग या किसी दूसरे विषय में मेरी राय पूछ लेते हैं, तो मैं उसमें कोई बुराई नहीं समझती! मैं अपनी सोच और अक्ल के मुताबिक अपना मशवरा देती हूं... अनुराधा पौडवाल ने कहा