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बर्थडे स्पेशल: क्यों बलराज साहनी को खुद से बेहतर कलाकार मानते थे अमिताभ बच्चन ?

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By Sangya Singh
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बर्थडे स्पेशल: क्यों बलराज साहनी को खुद से बेहतर कलाकार मानते थे अमिताभ बच्चन ?

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बलराज साहनी को हिंदी सिनेमा के बेहतरीन अभिनेताओं में शुमार किया जाता है। लेकिन वो सिर्फ एक एक्टर ही नहीं थे, बल्कि इसके अलावा भी वो कई ऐसी प्रतिभाओं के धनी थे, जिसके लिए लोग उन्हें आज भी याद करते हैं। यहां तक कि बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने खुद उन्हें अपने से बेहतर एक्टर बताया था। आइए आपको बताते हैं बलराज साहनी के जीवन से जुड़ी कुछ और दिलचस्प बातें...

1 मई 1913 को रावलपिंडी में जन्मे बलराज साहनी ने साल 1946 में दूर चलें फिल्म से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने धरती के लाल, हलचल, नौकरी, गरम कोट, दो बीघा जमीन, वक्त और काबुलीवाला जैसी बेहतरीन फिल्मों में काम किया।

इंग्लिश लिटरेचर में मास्टर्स की डिग्री

बलराज साहनी ने अंग्रेजी लिटरेचर में मास्टर्स की पढ़ाई की थी। इसके अलावा उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से हिंदी लिटरेचर में भी डिग्री हासिल की थी। इसके अलावा कुछ समय तक उन्होंने रवींद्र नाथ टैगोर रे शांति निकेतन में अपनी पत्नी के साथ पढ़ाया भी था।

फिल्मों में काम करने से पहले बलराज साहनी ने बीबीसी के साथ काम किया और यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध को कवर किया था। इसके चलते वो मशहूर लेखक जॉर्ज ओरवेल और टीएस एलियट की नज़रों में आ गए थे। बलराज साहनी को कई भाषाओं में महारात हासिल करने के चलते ही उन्हें ही बीबीसी में रोडियो होल्ट और न्यूज रीडर का काम मिला था।

फिल्मों से पहले बीबीसी के साथ काम किया

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने रिपोर्टिंग की और भारत के लोगों को विश्व युद्ध की खबरें मुहैया कराईं। इसके अलावा वो संस्कृत के भी ज्ञानी थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा में बताया है कि उन्होंने कालीदास की मशहूर अभिजनना शंकुतलम को संस्कृत में पढ़ा हुआ था।

बलराज साहनी को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का मेथड ऐक्टर कहा जाता था। अपने किरदार को रियल दिखाने के लिए वो बहुत मेहनत करते थे। यहां तक की फिल्म दो बीघा ज़मीन के लिए उन्होंने कलकत्ता के थर्ड क्लास कंपार्टमेंट में यात्रा की थी जिससे वो गरीब लोगों के मन की भावनाओं को समझ सकें। उन्होंने शहर के रिक्शा चलाने वाले यूनियन को जॉइन किया था और अपने रोल के लिए रिक्शा भी चलाया।

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का मेथड ऐक्टर कहा जाता था

साल 1970 में बलराज साहनी ने पीके वासुदेवन नायर के साथ काम किया और एक लेफ्टिस्ट यूथ संस्था शुरु की। ये सीपीआई की यूथ विंग थी और बलराज इसके पहले प्रेसीडेंट थे। 1972 में उन्होंने जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में अपनी यादगार स्पीच भी दी थी।

बलराज साहनी अपनी बेटी शबनम की अचानक मौत से सदमे में चले गए थे। दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई थी। अपने आखिरी वक्त में उन्होंने पत्नी को दास कैपिटल की कॉपी लाने को कहा था। जिसे कम्युनिस्ट मूवमेंट की बाइबल समझा जाता है। बलराज उस किताब को अपने सिरहाने रख कर चल बसे थे।

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