ओम प्रकाश का जन्म 19 दिसंबर, 1919 जम्मू में हुआ था. वह भारतीय सिनेमा जगत में प्रसिद्ध चरित्र अभिनेता थे. ओमप्रकाश ने लगभग 350 फ़िल्मों में काम किया. उनकी प्रमुख फ़िल्मों में 'पड़ोसन', 'जूली', 'दस लाख', 'चुपके-चुपके', 'बैराग', 'शराबी', 'नमक हलाल', 'प्यार किए जा', 'खानदान', 'चौकीदार', 'लावारिस', 'आंधी', 'लोफर', 'ज़ंजीर' आदि शामिल हैं. उनकी अंतिम फ़िल्म 'नौकर बीवी का' थी. महानायक अमिताभ बच्चन की फ़िल्मों में वे ख़ासे सराहे गए. 'नमक हलाल' का दद्दू और 'शराबी' का मुंशीलाल बनकर ओमप्रकाश ने प्रत्येक भारतीय के दिल में जगह बनाई. ओम प्रकाश का पूरा नाम 'ओम प्रकाश बक्शी' था. उनकी शिक्षा-दीक्षा लाहौर में हुई. उनमें कला के प्रति रुचि शुरू से थी. लगभग 12 वर्ष की आयु में उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी.
1937 में ओमप्रकाश ने 'ऑल इंडिया रेडियो सीलोन' में 25 रुपये वेतन में नौकरी की थी. रेडियो पर उनका 'फतेहदीन' कार्यक्रम बहुत पसंद किया गया. उन दिनों ओम प्रकाश 'अविभाजित भारत' के 'लाहौर रेडियो स्टेशन' पर स्थायी कलाकार के रूप में कार्यरत थे, और उनकी आवाज़ के जादू से सारा ज़माना परिचित था. द्वितीय महायुद्ध के समय की बात है. ओमप्रकाश को रावलपिण्डी से लाहौर तक का सफर करना था. फ़ौज़ी जवानों से ठसाठस भरी रेलगाडि़यां, और उस भीड़ के बावजूद यात्रा की अनिवार्यता. तीसरे दर्जे़ का रेल-टिकट था ओमप्रकाश के पास, और घुसने की जगह थी मात्र पहले दर्जे़ में – और वह भी तीन-चार अंगरेज़ सैनिकों के मध्य. मजबूरन उसी डिब्बे में घुसकर जगह बनाने की कोशिश कर डाली ओमजी ने, और अपने उन प्रयत्नों में उनको किंचित सफलता भी मिली.
सैनिक अधिकारी अपने अनजाने, अनचीन्हें लहज़े में गिटपिट किये जा रहे थे उस समय, और ओमप्रकाश उनकी उस टामी अंगरेज़ी से सर्वथा अनभिज्ञ यह नहीं समझ पा रहे थे कि आखि़र किस तरह वह उन लोगों की बातचीत में कोई हिस्सा लें. तभी उनके दिमाग़ में आया – क्यों न उन लोगों के सामने गूँगे का अभिनय कर डाला जाये? इज़्ज़त तो कम से कम बच ही जायेगी ऐसा करने से. और किस्सा-कोताह यह कि खानपान, सुरासेवन आदि के बाद फ़ौज़ी अफ़सरों ने जब ओमप्रकाश से पूछा कि क्या वह जन्म से ही गूंगे हैं तो ओमजी ने इस खबसूरती से अपना सर हिलाया जिससे न यह मालूम हो सकता था कि वह गूंगे हैं और न यही कि वह गूंगे नहीं हैं. सैनिक अधिकारियों के मन में उनके प्रति सहानुभूति जगी. उन्होंने ओमजी को न सिफऱ् भरपूर खिलाया-पिलाया बलिक लेटने के लिये एक पूरी बर्थ भी उनके हवाले कर दी.
सुबह होने पर अँग्रेजी ढंग का ब्रेकफ़ास्ट भी उनको मिला और ख़ूब मज़े के साथ उनकी वह यात्रा सम्पन्न हो गयी. लेकिन लाहौर पहुंचने पर इस अभिनय का पटाक्षेप जब हुआ तो वह सैनिक अधिकारी भी हंसी से सराबोर हो उठे जिन्होंने अपंग समझ कर ओमप्रकाश की इतनी खातिरबाजी की थी. हुआ यह कि जो व्यक्ति ओमजी को लेने स्टेशन आया था उसने पूछ ही लिया – 'कहो बर्खुरदार, सफ़र कैसा कटा?' सैनिक अधिकारी घूर घूर कर ओमजी की ओर देखते जा रहे थे, और ओम थे कि उनकी ज़बान ही सिमटती जा रही थी. तभी, अपने आत्मविश्वास का संचय करते हुए ओमप्रकाश बोल उठे – 'माफ़ कीजिएगा, बिरादरान, आप लोगों की यह लंगड़ी अँग्रेजी मेरे भेजे के अन्दर नहीं घुस पा रही थी, इसीलिये मुझे गूंगे का अभिनय करना पड़ गया.
वैसे यह न समझ लीजिएगा कि अँग्रेजी ज़बान मुझे नहीं आती, मैं भी लाहौर यूनिवर्सिटी में पढ़ चुका हूं और उनकी इस बात को सुनते ही उपस्थित लोगों के मध्य हंसी का जो दौर-दौरा शुरू हुआ था उसकी समाप्ति ओमजी के स्टेशन छोड़ने के बाद ही हो पायी. हिन्दी फ़िल्म जगत में ओमप्रकाश का प्रवेश फ़िल्मी अंदाज में हुआ. वह अपने एक मित्र के यहां शादी में गए हुए थे, जहां पर 'दलसुख पंचोली' ने उन्हें देखा और तार भेजकर उन्हें लाहौर बुलवाया. दलसुख पंचोली ने फ़िल्म ‘दासी’(1950) के लिए ओम प्रकाश को 80 रुपये वेतन पर अनुबंधित कर लिया. यह ओमप्रकाश की पहली बोलती फ़िल्म थीं. संगीतकार सी. रामचंद्र से ओमप्रकाश की अच्छी दोस्ती थी.
इन दोनों ने मिलकर ‘दुनिया गोल है’, ‘झंकार’, ‘लकीरे’ आदि फ़िल्मों का निर्माण किया. उसके बाद ओमप्रकाश ने खुद की फ़िल्म कंपनी बनाई और ‘भैयाजी’, ‘गेट वे ऑफ इंडिया’, ‘चाचा ज़िदांबाद’, ‘संजोग’ आदि फ़िल्मों का निर्माण इस कम्पनी के अंतर्गत किया. क्लासिक फ़िल्म 'प्यार किये जा' का वह दृश्य लें जब महमूद और ओम प्रकाश के बीच एक हॉरर फ़िल्म की कहानी सुनाई जाती है. ओम प्रकाश यहाँ निश्चित रूप से एक 'फॉइल' की भूमिका अदा कर रहे हैं और उनके शानदार प्रदर्शन से ही महमूद का कहानी सुनाना जीवंत हो पाता है. ओम प्रकाश की भूमिका यहाँ (बिना किसी संवादों के) एकदम निष्क्रिय सी है लेकिन उनकी प्रतिक्रियाओं की बदौलत ही दृश्य उस चरम तक पहुँच पाता है जब कैमरे के फ़्रेम से परे किसी तीसरी पार्टी की आवाज़ हस्तक्षेप करती है और दोनों एक आकस्मिक नीले रंग की रोशनी से सराबोर हो डर जाते हैं.
यहाँ इन दोनों के बीच में एक शानदार लेन-देन है जो इनकी भूमिकाओं को और धार प्रदान करता है. जितना अधिक ओमप्रकाश डरते हैं अर्थात जितना ज्यादा वे पिटे हुए आदमी का अभिनय करते हैं उतना ही दृश्य में मज़ा आता है. इसी सिलसिले में यह भी प्रचलित है कि जब महमूद को इस फ़िल्म में उनके प्रदर्शन के लिए पुरस्कार दिया गया, तब न सिर्फ़ उन्होंने अपने 'फॉइल' ओम प्रकाश को इसका पूरा श्रेय दिया बल्कि मंच से दर्शकों के बीच जाकर उनके पैर भी छुए. एक हास्य अभिनेता हमेशा अभिनय में सहयोगी के महत्व को समझता है और इसे विनम्रता से स्वीकार करता है. जिस खुले दिल से ओमप्रकाश ने दुनियादारी निभाई थीं इसके ठीक विपरित उनके अंतिम दिन गुजरे. उन्हीं दिनों ओमप्रकाश ने अपने साक्षात्कार में कहा था- 'सभी साथी एक एक करके चले गए.
आगा, मुकरी, गोप, मोहनचोटी, कन्हैयालाल, मदनपुरी, केश्टो मुकर्जी आदि चले गए. बड़ा भाई बख्शीजंग बहादुर, छोटा भाई पाछी, बहनोई लालाजी, पत्नी प्रभा सभी तो चले गए… लाहौर में पैदा हुआ. बचपन में चंचल था. रामलीला प्ले में सीता बना करता था. क्लासिकल संगीत की खुजली थीं-10 साल सीखा. रेडियो सीलोन में खुद के लिखे प्रोग्राम पेश किया करता था. मेरा प्रोग्राम बहुत पापुलर हुआ. लोग मुझे देखते तो फतेहदीन नाम से पुकारते थे. असली नाम पर यह नाम हावी होने लगा. ‘मैंने कई फ़ाकापरस्ती के दिन भी देखे हैं, ऐसी भी हालत आई जब मैं तीन दिन तक भूखा रहा. मुझे याद है इसी हालात में दादर खुदादाद पर खडा था. भूख के मारे मुझे चक्कर से आने लगे ऐसा लगा कि अभी मैं गिर ही पडूंगा. क़रीब की एक होटल में दाखिल हुआ.
बढिया खाना खाकर और लस्सी पीकर बाहर जाने लगा तो मुझे पकड लिया गया. मैनेजर को अपनी मजबूरी बता दी और 16 रुपयों का बिल फिर कभी देने का वादा किया. मैनेजर को तरस आ गया वह मान गया. एक दिन 'जयंत देसाई' ने मुझे काम पर रख लिया और 5,000 रुपये दिए. मैंने इतनी बडी रकम पहली बार देखी थीं. सबसे पहले होटल वाले का बिल चुकाया था और 100 पैकेट सिगरेट के ख़रीद लिए.’- ओम प्रकाश बहुत कम लोग जानते हैं कि ओमप्रकाश ने ‘कन्हैया’ फ़िल्म का निर्माण भी किया था, जिसमें राज कपूर और नूतन की मुख्य भूमिका थी. कई रंगारंग व्यक्ति उनके जीवन में आए. इनमें चार्ली चैपलिन, पर्ल एस.बक, सामरसेट मॉम, फ्रेंक काप्रा, जवाहरलाल नेहरू जी भी शामिल हैं. ओमप्रकाश के समय में हिंदी फ़िल्मों के बडे सितारे मोतीलाल, अशोककुमार, और पृथ्वीराज हुआ करते थे. अपने समय में लोग उन्हें ‘डायनेमो’ कहा करते थे. ओम प्रकाश की मृत्यु 21 फ़रवरी, 1998 मुम्बई में हुई. उनके बेहतरीन कलाकारी को लोग आज भी याद करते है और हमेशा उनकी मेहनत को सराहते रहेंगे.