यह लेख दिनांक 1.5.1983 मायापुरी के पुराने अंक 449 से लिया गया है!
माला सिन्हा को जहाँ हम कल की खूबसूरत नाजो नजाकत से भरपूर हीरोइन के रूप में जानते हैं, वहीं उन्हें आज हम माँ, भाभी के रूप में भी पर्दे पर देख रहे हैं. बालों पर चन्द सफेद पर्त लगा लेने से ही कोई इस कदर नहीं बन जाता जिस तरह हमारे फिल्म इंडस्ट्री के डायरेक्टर प्रोडयूसर समझते हैं. माला जी के साथ जिस राजेश खन्ना ने फिल्म ‘मर्यादा’ में हीरो की भूमिका निभाई थी, वह तो आज ‘अवतार’ में भी हीरो है, जब कि राजेश की हीरोइन माला सिंन्हा फिल्म ‘असली नकली’ में चिम्पू की वृद्ध माँ बनी हुई है, वह भी ऐसी माँ जिसकी आवाज काँपती है बालों पर सफेदी की जाली बिछ चुकी है, उफ कितना बुरा लगता है न.
माला जी से जब मैं महबूब स्टूडियो में टोनी जी निर्देशित फिल्म ‘प्रो.नं. 3’ के सेट पर मिली उस वक्त लंच आवर था. वे एक-एक डोंगे में से सब्जी निकाल-निकाल कर चख रही थी, और साथ ही अपनी प्रतिक्रिया भी बता रही थी, यह सब्जी बहुत पतली है. धत्ा तेरे की चावल नहीं आया ? बाप रे मटन में मसाला कितना डाला है सुलेना तुम्हें झाल (मिर्च) नहीं लग रही है? मैंने इसी पसन्द और नापसन्दगी को आधार बना लिया और पूछ लिया-वाह माला जी कितना मन लगा कर सब्जियाँ चख रहीं हैं, आप अगर इतना ही धैर्य और मन लगा कर आप फिल्मों का चुनाव करती तो क्या आप दूसरी मीना कुमारी नहीं बन सकती थी?”
माला जी का उठा हुआ.कौर रूक गया. कौर को वापस प्लेट में रखकर कुछ देर सोचती रही फिर बोली रोल चुनना मुझे बता रही हो? लेकिन यह तो बताओ आज तक मैंने कोई इतनी बेकार फिल्म दी है, जिसे देख कर दर्शक हाॅल से उठ गए हों, शायद नहीं. हालांकि मैंने कभी उतनी गहरायीं से रोल का चुनाव नहीं किया है, फिर भी मैंने हर सामने आए ऑफर पर हाथ नहीं बढाया मेरी फिल्में ‘मिट्टी में सोना’ ‘धूल का फूल’ ‘मेरे हजूर’ ‘बहारे फिर भी आयेंगी’ ‘आसरा’ ‘आँखें’ ‘गीत’ ‘सुन्हरा संसार’ बोलो इनमें से ऐसी किसी फिल्म का नाम बताओ जो कहीं से भी यह साबित करती हो कि मैंने गलत फिल्में चुनी थीं?”
हाँ ठीक है, तो फिर आप दूसरी मीना क्यों नहीं बन पायी ?
कोई दूसरी या तीसरी नहीं होती सभी एक और सिर्फ एंक हुआ करती हैं, मीना कुमारी जी मीना थी, और माला सिन्हा माला न बन पायेंगी माला न मैं बन पाऊंगी मीना, वैैसे एक बात और भी है मैं कभी भी अपने करियर के प्रति जागरूक नही थी, और न ही बहुत लापरबाह कह सकती है सो सो....आई वाज नेवर एम्वीशियश
माला जी धीरे से फिर कौर उठाने लगी, मैंने उन्हें कहा-आप लंच खत्म कर लें फिर!
नहीं नहीं तुम पूछती रहो.
अच्छा आप यह बतायेंगी कि आपको किस आकर्षण ने अब फिर एक बार फिल्म लाइन पकड़ने पर मजबूर कर दिया?
क्यों? मैंने यह लाइन छोड़ी ही कब थी, जो पकड़ने का क्या प्रश्न उठता. मैं तो पिछले लगभग तैतीस वर्षों से इंडस्ट्री में हूँ हाँ बीच में कह सकती हो कि मैंने कुछ कम कर दी थी!
फिल्में साइन करना, शादी कर ली तो घर का. झमेला तो रहेगा ही. खैर शादी तक तो बात ठीक थी लेकिन जब डिक्की पैदा हो गयी तो. (उनकी एकमात्र संतान) जिम्मेदारी कुछ इस कदर बढ़ने लगी कि मैंने सोचा जरा फिल्मों से रूख कुछ देर के लिए हटा कर बच्ची की देखभाल कर लूं, बच्चों की प्रारंभिक परवरिश ही मजबूत होनी चाहिए नींव अच्छी पड़ जाये तो इमारत मजबूत बनेगी और खुदा कां शुक्र है, कि मेरी बेटी आज तक अच्छी परवरिश की छांव तले पलकर बडी हो गई है. अब वो बडी हो गई है तो मैं फिर अपने फिल्म जगत में लौट आई हूँ.
आपको जिंदगी की सबसे प्रथर्म फिल्म कौन सी थी?
मेरी प्रथम फिल्म एक बंगला फिल्म थी नाम था ‘दूली’ आँखों में बेइन्तिहा खुशी तैर उठी उनकी.
मैंने फिर सवाल किया और फिल्मी जीवन में सब से प्रथम कैमरे के आगे आपने कौन सा डायलॉग बोला था?
बाप रे अदभुत प्रश्न करती हो तुम भी अब इतने सालों की बात याद रहेगी अरे हाँ ठहरों कुछ-कुछ याद आ रहा है अँ अँ याद आया (चुटकी बजाकर) हाँ मेरा सब से पहला कैमरे के आगे बोला डायलॉग था, ‘आमार नाम रात्रि राय’ (मेरा नाम रात्रि राय है) वह किलक उठी बोली देखा-देखा कितना अच्छा दिमाग पाया है मैंने अरे मैं खुद हैरान हो गयी कितना अच्छा लग रहा है अतीत को भर नजर देखते हुए, कुछ देर उन्हें खामोशी में गोता लगाते छोड़ मैंने फिर क्षेत्र संभाला-‘लोग कहते हैं कि आप एक बहुत बंद ढकी छुपी जिन्दगी जीती हैं?
मैं समझी नहीं?
यानि आपकी निजी जिन्दगी के बारे में लोगों को कुछ विशेष जानकारी नहीं है?
हाँ यह सही बात है, मेरे पति देव फिल्म इंडस्ट्री के व्यक्ति नहीं हैं वे व्यापारी हैं. वे घर में फिल्म की चर्चा पसन्द नहीं करते और बाहर घर की चर्चा पसन्द नहीं कंरते, मुझे भी घर और बाहर को मिला देना पसंद नहीं, हमारे परिवार में सिर्फ मुझे छोड़कर और कौन फिल्मों में हैं, जो उनकी चर्चा फिल्म मैगजीन में होगी.
क्या दफ्तर में काम करने वाले लोग अपने घरेलू जीवन को दफ्तर में खोल कर बैठते हैं?
हमारे लिए फिल्म इंडस्ट्री ही हमारा ऑफिस है तो हम क्यों खुली किताब बन जायें?
आप आज के नए अभिनेता-अभिनेत्रियों के बारे में क्या कहती हैं?”
मैं किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं लूंगी लेकिन सभी युवा कलाकार उत्साही हैं, हमारे जमाने की तुलना में आज का जमाना ज्यादा सूझ बूझ वाला हो गया है, खूब परख लेता है फिल्मों को और रोल को दूर दर्शी भी खूब हो गया है लेकिन इतना जरूर कहूंगी कि इनमें पहले जमाने की निष्ठा नहीं है!
मैंने सुना है कि यह युवा कलाकार आप जैसी मंजी हुई कलाकार से कतराते रहते हैं, जिस फिल्म में आमना सामना रोल हुआ उस फिल्म को या तो एवाइड करते हैं या डायरेक्टर से सीन चेन्ज करने को कहते हैं, यह प्रश्न मैंने आशा पारेख जी से और वहीदा जी से भी पूछा था?
वे मुस्करायी बोली-गलत कह रही हो. अब तक कई नव कलाकार मेरे साथ काम कर चुके हैं अभी चिम्पू को ही लो न इतना विश्वास के साथ मेरे साथ काम करता है मानों उम्र का फांसला ही नहीं है. हाँ शूटिंग से पहले जब यह बच्चे मेरे पाँव छूने को झुकते हैं तो इतना अच्छा लगता है!
आपके जीवन के वो क्षण जिसे आप कभी भूल नहीं पायेंगे?”
कई हैं, मेरी प्रथम हिट फिल्म, विवाह, बेटी का जन्म, प्रथम इंटरव्यू और वे क्षण जिसे मैंने बच्ची की परवरिश में गुजारे!
डिक्की अभी कितनी बड़ी है?
लड़कियों की उम्र नहीं पूछते लेकन फिर, भी समझ लो तुम्हारे बराबर है!
सुना है, आप उसे फिल्मों में लाना चाहते हैं इसलिए आप उसे हर पार्टी में अपने साथ ले जाती हैं?
मुझे इसी प्रश्न का इंतजार था, असल में हुआ यह कि उस दिन फिल्म ‘प्यास’ की पार्टी में मैं रल्हन जी से मिलने गई थी, डिक्की भी मेरे साथ थी हमारा फैमिली रिलेशन है रल्हन जी के साथ अतः बेटी को उस पार्टी में ले जाना सिर्फ मिलाने के लिए था, वह उस दिन घर में सुबह से पड़ी-पड़ी बोर हो रही थी. बस छोटी सी बात को वहाँ मौजूद पत्रकार और फोटोग्राफरों ने खूब उछाला उन लोगों ने तो यहाँ तक कह दिया, कि मैंने अपनी बेटी के वहीं उसी पार्टी में कई निर्माता निर्देशकों को दिखाया लेकिन उन लोगों ने उसे रिजेक्ट कर दिया हँसी आती है, लोगों की इस बात पर मान न मान मैं तेरा मेहमान, जब हमने बेटी को फिल्मों में लाना ही नहीं तो रिजेक्ट करने का सवाल ही पैदा नहीं होता!
तो आप अपनी बेटी को-फिल्म लाइन में” नहीं ला रहीं हैं?
नहीं बिल्कुल नहीं. मेरी लड़की अभी पढ़ रही है. फिल्मों की तरफ उसका झुकाव भी नहीं है. मैं चाहती हूँ मेरी बेटी ईश्वर के ध्यान में मग्न रहे हाँ जानती हो मेरी बेटी मुझसे अधिक ईश्वर की सेवा कर रही है मैं जब होती हूँ डिक्की मुझे बाइवल में से खोज-खोज कर लार्ड जीसस के करिश्मों की घटनायें पढ़कर सुनाती है. मैं चाहती हूँ, वह उनकी ही सेवा करे जो मैं नहीं कर पाई, इस फिल्म इंडस्ट्री की चमक-दमक ने मुझे ईश्वर से बहुत दूर कर दिया है लेकिन डिक्की समझदार है!
वैैसे मैं भी अब फिल्म लाइन सदा के लिए छोड़ देना चाहती हूँ कुछ भी कहो बेटी, अब तो मन अभिनय करते करते ऊब गया है, बस लगता है मैं फिल्म इंडस्ट्री के चकाचैंध से दूर लार्ड शशु के चरणों में पड़ी रहूं. समाज सेविका बन जाऊं शायद बहुत जल्द दो एक साल में मैं फिल्म लाइन छोड़ दूंगी!...