यह लेख दिनांक 29-01-1984 मायापुरी के पुराने अंक 488 से लिया गया है
ग्लैमर न कोई खास शारीरिक बनावट फिर भी जब अभिनय में गहराई तक दिल को छू जाने की बात आती है तो इसी पद्मिनी कोल्हापुरे को नई पीढ़ी की अभिनेत्रियों में पहला दर्जा दिया जाता है. जहाँ राजकपूर जैसे सिद्धहस्त निर्देशक अपनी फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ में इस अभिनेत्री को खो देने का अफसोस मानते हैं, पुराने महारथी व्ही. शान्ताराम और सोहराब मोदी पूरी नई खेप में पद्मिनी कोल्हापुरे को अपनी फिल्मों के लिये चुन लेते हैं. पता नहीं माजरा क्या है, और कया है ऐसा कुछ जो दिन पर दिन - अनेक असफल सफल फिल्मों के साथ साथ भी पद्मिनी कोल्हापुरे को एक अनोखी अभिनेत्री का दर्जा मिलता जा रहा है.
पिछले दिनों यह अभिनेत्री कई विवादों से जुड़कर रही हैं. लगभग हर साथ काम कर रहे नायक से उनके नाम जोड़े जाते रहे हैं? ‘गहराई’ और ‘इंसाफ का तराजू में नग्नतापूर्ण भूमिकाएँ से करके “राम तेरी गंगा मैली की भूमिका वे क्यों ‘नग्नता’ से कतरा कर ठुकरा देती हैं? अमिताभ बच्चन के साथ उनकी कई फिल्में घोषित हुई उनमें से एक भी आज तक क्यों नहीं बनी? और सबसे ऊपर वे आज निर्देशकों के लिये काम लेने में उतनी आसान नहीं रह गईं जितनी की कभी हुआ करती थी? फिर भी क्वालिटी नारी प्रधान भूमिकाओं में जहाँ भी एक अच्छी अभिनेत्री की जरूरत पड़ती है उन्हें ही याद किया जाता है. अपनी भूमिकाओं को वे किस तरह से किन तैयारियों के साथ अंजाम देती हैं इस सब बातों को नये सिरे से चर्चा का विषय बनाकर हम उनके नये जहू स्थित बंगले पर निर्धारित समय पर हाजिर हुए थे. अभी अभी शूटिंग से लौटी पद्मिनी को साधारण सी घरेलू वेशभूषा में देखकर अनुमान ही नहीं लगाया जा सकता था कि वे वाकई उस केलिबर की नायिका होगी जिसके लिये वे आज जानी जाती हैं.
खैर बातों के सिलसिले को सँवारते सजोते पहले हमने ‘राम तेरी गंगा मैली’ के उस विवाद पर ही बातें शुरू की थी जो लोगों की जुबान पर तरह तरह की चर्चा का विषय बना हुआ है.
क्या वाकई ‘राम तेरी गंगा मैली’ में नग्नतापूर्ण दृश्यों की ज्यादा मांग की वजह से उन्होंने यह फिल्म छोड़ी है. अगर ऐसा है तो ‘गहराई’ और ‘इंसाफ का तराजू’ में वे इतनी बोल्ड भूमिकाएँ क्यों कर गईं थीं?”
वे संभल कर बोलीं- ‘तब और अब में बड़ा फर्क आ गया है. तब मुझे मालूम और महसूस तक नहीं होता था कि निर्देशक मुझे क्या करने को कह रहे हैं. उन्होंने बताया और मैंने अभिनय के नाम पर कर दिया. अब मुझे ऐसे रोल इसलिये करने में अच्छे नहीं लगते कि अब मेरी एक निश्चित इमेज बन चुकी है.
‘राम तेरी गंगा मैली’ छोड़ने का केवल मेरा निर्णय नहीं था राज अंकल और मैंने अलग अलग तरह से महसूस किया कि इस भूमिका के प्रति हम दोनों ही अन्याय करेंगे. उन्होंने ‘प्रेम रोग’ में मुझे जिस इमेज में पेश किया उसके बाद मैं एकदम ऐसी एक्सपोज्ड भूमिका करूँ क्या दर्शकों को अच्छा लगेगा?
यह मेरे और उनके सामने बड़ा सवाल था. और ऐसी अवस्था में एक नई लड़की को ही लेना ज्यादा मुफीद था जब कोई प्रति भा नहीं मिली तो राज अंकल ने व जब भूमिका मुझे सौंप दी लेकिन दोनों आधी-अधूरी भूमिका को सजीव कर रहे हों ऐसा लग रहा था. सो जो हुआ अच्छा ही हुआ इसमें किसी को हार्ड फीलिंग नहीं होनी चाहिए. पद्मिनी ने कहा.
लेकिन क्या हर दूसरी फिल्म में बलिदान पूर्ण अभिनेत्री की भूमिका निभा कर आप भविष्य में कदाचित नग्नतापूर्ण भूमिकाएँ और चुम्बन जैसे दृश्य नहीं करेंगी?
“कभी नहीं किसी कीमत पर नहीं, आखिरकार होंठ से होंठ मिलाकर ही तो प्यार नहीं जताया जा सकता. इस भावना को जताने के लिये और नजाने कितनी भाषाएँ हैं. कितने ही तरीके हैं, न ही घिसे पिटे ढंग से बैड सीन, अब कोई चार्म, बाकी रह गया है. हर दूसरी फिल्म में वही सब कुछ केवल नायक नायिकाएँ बदल जाते हैं.
आपने सैक्रिफाइंग हीरोइन की बात सही कही है मेरे ख्याल से इधर भी कुछ ज्यादा हो गया है. ‘आहिस्ता आहिस्ता’, ‘सौतन’ और कई फिल्मों में मैं एण्ड में मर जाती हूँ और कई फिल्में ऐसी ही आयेंगी मुझे महसूस हो रहा है. जैसे मैंने अंग प्रदर्शन और चुम्बन वाली भूमिकाओं के लिये मना ही कर दी है आगे इस बात का भी ख्याल रखना पड़ेगा कि मैं फिल्म के एण्ड में जिन्दा रहूँ. पद्मिनी ने स्वीकारा.
‘राम तेरी गंगा मैली’ में राजकपूर द्वारा आप को हटा देने का एक कारण आपकी चिम्पू (राजीव कपूर) से बढ़ती दोस्ती भी बताया जाता है. कहीं घर में फिर डब्बू-बबीता, ऋषि-नीतू सिंह बाली कहानी न दोहराई जाये.
प्रश्न खत्म होने से पहले ही वे बोल पड़ी थीं-‘पहले तो राज अंकल कभी इन चीजों को माइंड नहीं करते. कभी किसी की गतिविधियों पर रोक टोक नहीं लगाते, दूसरे चिम्पू और मेरे बीच दोस्ती बरसों पुरानी है. दोस्ती के बीच कॉमन इन्ट्रेस्ट हमारी डांसिंग हॉबी है. मैं उसके साथ कई बार डिस्को में जाती हूँ. साथ साथ नाचती हूँ उसका अर्थ कुछ और तो नहीं हो जाता, कम से कम मैं तो इन संबंधों में कुछ ऐसा वैसा महसूस नहीं करती......पद्मिनी ने अपनी धारणा को व्यक्त किया.
हाँ, यह बड़ी अजीब बात रही है जहाँ दूसरी नायिकाएँ किसी एक नायक के नाम के साथ जुड़कर रह जाती हैं आपने इस ओर कोई स्थायित्व नहीं दिखाया....... आपके नाम जुड़ते हैं और अगले ही क्षण कोई दूसरा आ जाता है, ऐसा क्यों?
शायद मेरे बर्ताव में कुछ ऐसा होता हो कि मेरा नाम कुमार गौरव से लेकर नासिर हुसैन जैसे बुजुर्ग से जोड़ दिया जाता है, अगर अब तक जुड़े नामों को मैं गिनने बैठू तो मैं किसी भी हॉलीवुड एक्ट्रेस को बीट कर सकती हूँ. पर अफसोस ऐसा कभी भी तो कुछ नहीं हुआ और जो हुआ वह लोगों को लगा मुझे नहीं. उन्होंने कहा.
आप नई पीढ़ियों के निर्देशकों के साथ तो काम कर ही रही हैं पुराने जमाने के निर्देशकों जैसे ब्ही. शान्ताराम और सोहराब मोदी की फिल्में भी कर रही हैं?
क्या इस ओर कोई नया रिकार्ड स्थापित करने का कोई इरादा है. क्योंकि ये निर्देशक अब उतने सक्रिय नहीं हैं जितने अपने समय में हुआ करते थे.
‘मैं कभी इस लालच में इन बड़े निर्देशकों की फिल्में नहीं ली कि मेरा एक रिकार्ड बन जाये. अन्ना साहब मुझे बचपन से जानते हैं. उन्होंने मुझे अपनी फिल्म में लिया मुझे इस बात का फख्र जरूर है.
मोदी साहब की ‘गुरू दक्षिणा’ का केवल मुहूर्त ही हुआ है लेकिन ऐसा जरूर लगता हैं कि इन दोनों की कार्य-विधि आज के निर्देशकों से एकदम भिन्न है.
‘अन्ना साहब हर चीज हर हाव भाव में परफेक्शन मांगते हैं. वे कई बार अपने आर्टिस्टों को एक्टिग करके भी बताते हैं. उनसे किसी भी मामले में लिबर्टी तो पाना बड़ा मुश्किल काम होता है. उनको जो चाहिये बह चाहिये.
सोहराब मोदी जी का भी काम करने का तरीका कुछ इसी प्रकार का है.
लेकिन आज आम चर्चा है कि आप निर्देशकों की बात नहीं मानतीं जब तक आप उनकी राय से पूर्णतया सहमत न हो जायें?
ऐसी बात नहीं अगर बात में कोई सेंस हो तो मैं खुद करने पर तैयार हो जाती हूँ लेकिन अटपटी चीजें जिनका कहानी से कोई ताल्लुक ही न हो. अन्दर से करने को दिल ही न करे उसको, न करने के लिये मैं अड़ भी जाती हूँ. शुरू शुरू में जो निर्देशक ने कहा मैंने कर दिया. क्योंकि तब मैं कहानी पक्ष, निर्देशक की ए. बी. सी. डी. नहीं जानती थी. अब मुझसे नहीं होता मुझे तर्क चाहिये.
लेकिन फिल्म के बारे में सबसे ज्यादा निर्देशक ही जानता है एक्टर को उसकी हिदायतें माननी चाहिये?
कबूल है, लेकिन एक्टर को भी उसकी फ्रीडम होनी चाहिये कि वह उस बात को कैसे करेगा.
‘स्वामी दादा’ में देव अंकल ने मुझे बीड़ी ’पीने के लिये कहा और मैंने इन्कार कर दिया उसके बदले मैंने उन्हें केवल बीड़ी होंठों में दबाये रखने की राय दी मेरे ख्याल से बात में कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ा. पद्मिनी ने दलील दी.
आपने अपने सीनों को करने के लिये होम वर्क करती हैं?
कभी नहीं रिहर्सल में सब कुछ करती हूँ. एक बार संवाद याद हो जाये और मैं कैमरे के सामने आ जाऊँ करेक्टर की आत्मा पता नहीं कहाँ से मेरे अन्दर समा जाती है. कैमरा बन्द हो जाने पर मैं फिर पद्मिनी कोल्हापुरे बन जाती हूँ. अभी तक मुझे किसी भी भूमिका के लिये होम वर्क करने की जरूरत महसूस नहीं हुई.
शायद मुझे कभी किसी प्रास्टीटयूट की भूमिका करनी पड़ी तो मैं ब्रो थेल हाउस देखने उनके बोल चाल हाव भाव देखने जरूर वहाँ जाऊँगी. उन्होंने कहा. आपके अवकाश के क्षणों की चिनचर्या?
अपनी बहन शिवागीं के बच्चे (शक्ति कपूर के बेटे) के साथ खेलते घंटों बिता देना. बह सो जाता है तो मैं हल्की फल्की किताबें भी पढ़ती हूँ. कॉमिक पढ़ने का शौक मुझे बचपन से ही है. मोटी किताबें मुझसे नहीं पढ़ी जाती. हाँ कुछ आत्मकथाएँ जरूर पढ़ सकती हूँ. पिछले दिनों मैंने इनग्रिड वर्गमेन नामक अभिनेत्री की बॉयोग्राफी पढ़ी है.
मैं इसके अलावा चाहती हूँ कि और लड़कियों की तरह बाजार में जाकर शार्पिग करूँ, लेकिन नहीं कर पाती , लोग पहचान लेते हैं तो बड़ी उलझन का सामना करना पड़ता है खैर शौहरत के लिये कुछ तो कीमत अदा करनी पड़ती है. मैं शॉपिंग का यह शौक विदेशो में जाकर पूरा कर लेती हूँ.
अच्छा ये बताईये कैरियर की शुरूआत में अमिताभ के साथ आपकी कई फिल्में घोषित हुईं पर उनमें से आज तक एक भी अभाव के समय भी रति अग्निहोत्री को अमिताभ बच्चन ने नायिका लिया आपको नहीं?
नायिकाएँ न अमित जी तय करते हैं न ही वे फिल्म बनाते हैं. अभी कोई फिल्म फ्लोर पर उनके साथ नहीं है. लेकिन भविष्य में आशा रखती हूँ कि मैं उनके साथ जरूर काम करूंगी. पद्मिनी ने आशा जनक दृष्टिकोण से कहा.
कुछ बातों के दौरान लगा था कि पद्मिनी कोल्हापुरे अब उन अभिनेत्रियों में नहीं रहीं जो कोई भी निर्देशक के हाथों की गुड़िया बन कर मन चाहे ढंग से नचा सके.