"मायापुरी अंक, 57, 1975
अभिनेत्री रेखा जब आठ वर्ष की थी तभी से वह यह समझने लगी थी कि औरत होने के क्या मायने है। वह इस बात से पूर्ण सजग थी कि पुरूष क्या सोचते हैं। जब वह दस वर्ष की थी तो एक दिन सिनेमा देख कर अपनी बहन और आया के साथ लौट रही थी। रेखा को नींद की खुमारी -सी चढ़ी हुई थी और भीड़ में वह बहन और आया से बिछुड़ गई थी। नींद की खुमारी में अनजाने ही उसने किसी अजनबी की उंगली यह समझ कर पकड़ी कि आया साथ चल रही है। जल्दी ही उसकी गलतफहमी दूर हो गई जब उस अजनबी का हाथ उसकी छाती के साथ टकराया।
वह एकदम पूर्णत: सजग हो गई और सारी स्थिति को भांप लिया रेखा ने बड़े जोर से उसके मुंह पर थप्पड़ मारा और जब भीड़ जमा हो गई तो वह भाग गया इतना ही नही लड़के भी हमेशा रेखा की ओर उंगली उठाते ही रहे है। सिनेमा हॉल में भी अगर बैठी हो तो पीछे से सीट को हिला देते है और मस्ती मारते हैं एक बार वह एक लड़के की हरकत पर बहुत नाराज़ हो गई और अपनी सीट भी बदल ली। वह लड़के के पीछे वाली सीट पर जाकर बैठ गई और मुंह में से चिंगम निकाल कर उसके बालों में लगा दी।"