'शराबी' फिल्म के ये मशहूर डायलॉग और किरदार याद है आपको By Chhaya Sharma 29 Jan 2020 | एडिट 29 Jan 2020 23:00 IST in बीते लम्हें New Update Follow Us शेयर 'शराबी' फिल्म के ये मशहूर डायलॉग और किरदार! अमिताभ बच्चन की मशहूर प्रकाश मेहरा निर्देशित फिल्म 'शराबी' 1984 में रिलीज़ हुई थी. 'आज इतनी भी मयस्सर नहीं मयखाने में, जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में' जैसे संजीदा और 'मूछें हो तो नत्थूलाल जैसी, वरना ना हों' जैसे हसां-हंसा कर लोट-पोट कर देने वाले संवादों से सजी इस फिल्म के हजारों दीवाने आज भी हैं. शराबी फिल्म अमीर बाप के एक ऐसे बेटे की कहानी है, जो बेतहाशा शराब पीता है. शराबी बेटे की भूमिका में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन 'विक्की कपूर' नाम का किरदार निभाते हैं, जो कि बहुत दयालु और उदार हृदय का एक रईस बेटा बना है. विक्की के शराबी बनने की वजहों से कहानी बढ़ना शुरू होती है और विक्की के दयालुता भरे कार्यों से लोगों को बांधती हुई अपने अंत तक पहुंचती है.इस फिल्म को कामयाब बनाने में इसके अनोखे क़िरदारों का योगदान कम नहीं. वो चाहे विक्की के शराबी दोस्तों में शामिल किरदार या बचपन से ही ध्यान रखने वाने मुंशी फूलचंद हों. विक्की से पहली ही मुलाक़ात में बेहतरीन संवाद अदायगी से दर्शकों को रोक लेने वानी मीना के क़िरदार में जया प्रदा हों या विक्की के बाप बने खाली बोतलों की कीमत समझाने वाले अमरनाथ कपूर की भूमिका में प्राण साहब. इन सभी क़िरदारों ने इस फिल्म को अपनी अदाकारी से सजाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. ऐसे में आइए, एक बार फिर लगभग 35 साल पहले बनी इस फिल्म के इन मशहूर क़िरदारों पर नजर डाल लेते हैं – विक्की कपूर (अमिताभ बच्चन) फिल्म में विक्की कपूर के क़िरदार में अमिताभ का अभिनय लाजवाब रहा है. विक्की स्वभाव से बहुत ही दयालु और संजीदा शराबी क़िरदार हैं. फिल्म में अमिताभ अपने कमाल की हाज़िरजवाबी से दर्शकों को बांधे रखते हैं. फिल्म के सबसे कामयाब डायलॉग 'मूंछे हो तो नत्थूलान जैसी, वरना ना हों' के सिवाय और भी बेहतरीन संवाद हैं. पूरी फिल्म के दौरान मुंशी जी के साथ हुए विक्की कपूर के संवाद भी बेहतरीन हैं. वहीं, फिल्म की हीरोइन मीना द्वारा मुंशी जी की तारीफ पर विक्की कहते हैं कि हम आपकी तारीफ क्या करें, 'आप तो सर से पांव तक तारीफ ही तारीफ हैं.' वहीं, आगे विक्की मुंशी जी की तारीफ में कसीदे पढ़ते हुए कहते हैं कि 'मेरी जिंदगी का तंबू 3 बंबू पर खड़ा है मुंशी जी'. वहीं, मीना से अपने घर पर हुए पहली मुलाक़ात के संवादों में कहते हैं कि 'तोहफा देने वाले की नीयत देखी जाती है उसकी क़ीमत नहीं' और 'वादे अक्सर टूट जाते हैं पर कोशिशें कामयाम होती है' जैसे संवाद अमिताभ के अभिनय में चार चांद लगा देते हैं. अपनी फिल्मों में अमिताभ के नाम शराबी के अलावा भी कई और हिट फिल्में हैं. इनके संवाद कहने की कला अभिनय को तो दमदार बनाती ही है, साथ ही फिल्म में भी चार चांद लग जाते हैं. 11 अक्टूबर, 1942 को जन्मे अमिताभ के पिता मशहूर कवि हरिवंश राय बच्चन थे. अमिताभ ने अपने करियर में 3 राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार और 12 फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार जीते हैं. इनके नाम सर्वाधिक सर्वश्रेष्ठ अभिनेता फिल्म फेयर अवाॅर्ड का रिकार्ड भी है. अमिताभ अभिनय के इतर पार्श्वगायक, फिल्म निर्माता और टीवी एंकर और 1984 से 1987 तक संसद के सदस्य भी रहे हैं. मुंशी जी (ओम प्रकाश) फिल्म में विक्की की मां की मौत के बाद विक्की की सबसे अधिक परवरिश मुंशी जी यानी कि फूलचंद ने की है. मुंशी जी का क़िरदार भारतीय सिनेमा के मशहूर कलाकार ओम प्रकाश ने निभाया था. शायरी में वज़न लाने के लिए विक्की को दिल लेने-देने की बात और एक आदमी की जिंदगी में औरत की अहमियत का ऐहसास दिलाने वाले मुंशी जी ने फिल्म की शुरुआत में ही अपने अभिनय का बेहतरीन नमूना पेश कर दिया था. जिसमें कई बार मुंशी जी विक्की को गलत शायरी बोलने पर डांट देते हैं और कई बार उन्हें इश्क मोहबबत की शेर-ओ-शायरी सिखाते नजर आते हैं. फिल्म में अमीना भाई के घर उसका झोपड़ा छुड़ाने गए मुंशी जी को जब पता चला कि वह गुज़र गई हैं, तो उनका संवाद ‘राम! राम! राम! मैं तो उसका झोपड़ा छुड़ाने आया था, वो तो दुनिया ही छोड़ गई' बेहतरीन था. ओम प्रकाश के डायलॉग बोलने और संवाद का तरीका इतना अनोखा और गजब का था कि आज भी कई हास्य कलाकार इनकी मिमिक्री करते नजर आते हैं. और फिल्म में बोले गए इनके डायलॉग दर्शकों को कभी गुदगुदाते और कभी आखों को नम कर जाते हैं. वैसे, भारतीय सिनेमा के सितारे ओम प्रकाश 19 दिसंबर 1919 को पाकिस्तान के लाहौर में पैदा हुए थे. शुरूआत में उन्होंने जम्मू में ही नाटक किए. फिर मुंबई आ गए, जहां इन्होंने फिल्म दस लाख, अन्नदाता, चरनदास, साधू और शैतान में मुख्य भूमिका निभाई. इसके सिवाय दिल दौलत, दुनिया, चुपके-चुपके, जूली, जोरू का ग़ुलाम, आ गले लग जा, प्यार किए जा और पड़ोसन जैसी फिल्मों में भी इन्होंने बेहतरीन अभिनय किया था. वहीं, इनके द्वारा निभाया गया नमक हलाल फिल्म में दद्दू और जंजीर में डी सिल्वा का क़िरदार काफी सराहा गया. मीना (जया प्रदा) फिल्म में मुख्य एक्ट्रैस मीना का किरदार जया प्रदा ने बखूबी निभाया है. फिल्म में मीना की एंट्री उनके एक डांस शो के जिक्र से शुरू होती है. जिनकी तस्वीर देखने के बाद विक्की वहां जाना पसंद करते हैं. डांस शो के दौरान अमिताभ से एक संवाद में उनके डायलॉग 'कलाकार सिर्फ तारीफ का भूखा होता है, पैसे का नहीं, तालियों की गूंज, लोगों की वाह उसके दिल के आह के निशान मिटा देती है.' ने लोगों को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया. फिल्म में 'मुझे नौ लखा मंगा दे रे, ओ संईयां दीवाने' गाना जितना लोकप्रिय हुआ, उतने ही चर्चे अमिताभ और जया प्रदा के डांस और अदाकारी के भी रहे. फिल्म में मीना की जिंदगी रहस्य और रोमांच से भरी रही. और वो अपनी एंट्री के बाद किसी न किसी वजह से केंद्र में रहीं. 3 अप्रैल 1962 को आंध्र प्रदेश के राजाहमुंद्री जिले में पैदा हुईं जया प्रदा का असली नाम ललिता रानी था. इनके पिता कृष्णा राव तेलुगू फिल्मों के निर्माण में पैसा लगाते थे. जया के फिल्मी करियर की शुरुआत एक तेलुगू फ़िल्म 'भूमिकोसम' से हुई थी. जब जया अपने करियर के शीर्ष पर थीं, तब वो 1994 में तेलुगू देशम पार्टी में शामिल हो गईं. वहीं इसके बाद वह तेदेपा छोड़ समाजवादी पार्टी में शामिल हुईं. अपने फिल्मी सफर में वो दक्षिण के लाइफ़टाइम एचीवमेंट अवार्ड 2007, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री सरगम (1979) के लिए, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री शराबी (1984), सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री संजोग (1985) से नवाज़ी गईं. अमरनाथ कपूर (प्राण) फिल्म में विक्की के पिता बने अमरनाथ कपूर की भूमिका में प्राण साहब ने कमाल का अभिनय किया है. फिल्म की शुरूआत में अमरनाथ का डायलॉग, अपनी ज़बान और आवाज़ पर काबू रखिए मुंशी फूलचंद.. हमें ऊंची आवाज़ सुनने की आदत नहीं' उनके किरदार को मजबूत बनाता है. अपने कारोबार और पैसे कमाने में मशगूल अमरनाथ का रईस किरदार पूरी फिल्म के दौरान हीरो के समानांतर प्रतीत होता है. फिल्म में कंपनी बोर्ड की मीटिंग के बाद विक्की और उनके बाप अमरनाथ कपूर के बीच हुए एक संवाद में अमरनाथ बिजनेस के लिहाज से कहते हैं कि, 'आज की दुनिया में अगर जिंदा रहना है, तो दुनिया के बटन अपने हाथ में रखने पड़ते हैं. वरना ये दुनिया जिंदा नहीं रहने देगी.' वहीं, आगे अमरनाथ अपने शराबी बेटे विक्की से कहते हैं कि 'तुमने होश संभाला ही कब था, एक लेबल की तरह शराब की बोतल से जो चिपके, तो आज तक अगल न हो सके.' तुमने जिंदगी में शराब पीने और हंसने के अलावा और किया ही क्या है...?' बहरहाल, अपनी बुलंद आवाज और ख़ास अंदाज वाले विशेष तेवर के लिए विख्यात अभिनेता प्राण साहब का पूरा नाम प्राण कृष्ण सिकंद था. सन 1940 में उन्हें 'यमला जट' नाम की पंजाबी फिल्म में पहली बार अभिनय करने का मौका मिला. हिंदी सिनेमा में अहम योगदान के लिए 2001 में उन्हें भारत सरकार के पद्म भूषण सम्मान से, 1997 में उन्हें फिल्म फेयर के लाइफ टाइम अचीवमेंट खिताब से और लंबे फ़िल्मी करियर और शानदार सफलता को देखते हुए साल 2012 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. फिल्म में 5 बेटियों की शादी का बोझ विक्की को बताने वाले नत्थूराम की भूमिका मुकरी ने निभाई. जिनकी मूछों की दीवानगी विक्की कपूर में देखने को मिली. फिल्म के एक सीन में नत्थूलाल की मूछों की तारीफ करते हुए विक्की कहते हैं कि 'नत्थूलाल जी, हमने आपसे कितनी बार कहा है कि जब भी हम यहां आएं, अगल बगल नहीं हमारे सामने रहा कीजिए, ताकि हम आपकी मूछें देख सकें.' इसके अलावा एक डायलॉग 'भई वाह! जवाब नहीं आपकी मूछों का. मूछें हों तो नत्थूलाल जी जैसी हों, वरना न हों.' ने तो तहलका ही मचा दिया था. ये अमिताभ बच्चन द्वारा बोले गए आज तक के सभी डायलॉग में सबसे चर्चित रहा है. हिंदी सिनेमा के इन चर्चित और बेहतरीन अदाकारों से सजी ये मशहूर फिल्म sगर आप ने आज तक नहीं देखी है, तो कम से कम एक बार आपको जरूर देखनी चाहिए. यह भी पढ़ें- 5 ऐसी एक्ट्रेसेस जिन्होंने विदेशी से की शादी ,3 और 5 वी अभिनेत्री को जानकार हो जायेंगे हैरान #latest bollywood news #Amitabh Bacchan #Hindi movie #Bollywood sharabi movie #Sharabi हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article