सुचित्रा सेन, जिनकी 'ना' को सत्यजित रे भी नहीं बदल सके! By Mayapuri 18 Jul 2022 | एडिट 18 Jul 2022 12:08 IST in बीते लम्हें New Update Follow Us शेयर सुचित्रा सेन एक ऐसी रोशनी हैं जो पचास वर्षों से अधिक समय से चमक रही है. भले ही उन्होंने लाइमलाइट छोड़ दी हो और फिल्मों और फिल्मों की दुनिया के सभी तामझामों से दूर रही हों, और एक वैरागी, एक दुनिया का जीवन जी रही हों. जो महिला कभी जादू करती थी वह अब एक रहस्यमय मिथक के रूप में जानी जाती है. सुचित्रा ने बंगाली फिल्मों में शानदार शुरुआत की थी और उन्हें वह सम्मान दिया था जिसकी फिल्में लम्बे समय से तलबगार थीं. वह एक ऐसे मुकाम पर पहुंचीं जब उन्होंने एक अन्य दिग्गज उत्तम कुमार के साथ मिलकर बंगाली सिनेमा के कुछ सर्वकालिक महान क्लासिक्स में काम किया. सुचित्रा ऐसी पहली बंगाली अभिनेत्री रहीं जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह से सम्मानित किया गया. उन्हें 1963 में मास्को फिल्म समारोह में ‘सात पाके बंध’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला था. माना जाता है कि उन्होंने 2005 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से इनकार कर दिया था,. 2012 में सेन को पश्चिम बंगाल सरकार के सर्वोच्च पुरस्कार ‘बंग विभूषण’ से सम्मानित किया गया था. सुचित्रा का जन्म बांग्लादेश के पबना जिले के पबना में हुआ था. उनके पिता करुणामय दासगुप्ता स्थानीय स्कूल के प्रधानाध्यापक थे और उनकी मां इंदिरा देवी एक गृहिणी थीं. सुचित्रा उनकी पांचवीं संतान और तीसरी बेटी थीं. उनकी औपचारिक शिक्षा पबना में हुई. उन्होंने 1947 में एक अमीर बंगाली उद्योगपति, आदिनाथ सेन के बेटे दीबानाथ सेन से शादी की और उनकी एक बेटी मुनमुन सेन हुईं, जो अपने आप में एक नामी अभिनेत्री हुईं. सेन ने 1952 में बंगाली फिल्मों में शादी के बाद एक सफल प्रवेश किया और फिर हिंदी फिल्म उद्योग में सफलतापूर्वक गईं. बंगाली प्रेस में कुछ अपुष्ट लेकिन लगातार रिपोर्टों के अनुसार, फिल्म उद्योग में उनकी सफलता से उनकी शादी बुरी तरह प्रभावित हुई थी. सुचित्रा ने जो पहली हिंदी फिल्म की, वह थी बिमल रॉय की ‘देवदास’ जिसमें दिलीप कुमार और वैजयंतीमाला उनके सह-कलाकार थे, और उन्हें फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला. उनकी फिल्में 1960 और 1970 के दशक तक चलीं. उनका आखिरी मुख्य रोल हिंदी फिल्म ‘आंधी’ में था जहां उन्होंने संजीव कुमार के साथ उनके पति के रूप में एक राजनेता की भूमिका निभाई थी. आंधी भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से प्रेरित थी और भारत सरकार द्वारा इसे प्रतिबंधित भी किया गया था. हालांकि, सुचित्रा को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के रूप में फिल्मफेयर नामांकन मिला, जबकि संजीव कुमार ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के रूप में फिल्मफेयर पुरस्कार जीता. सुचित्रा ने तारीखों की समस्या के कारण सत्यजीत रे के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, परिणामस्वरूप रे ने कभी फिल्म ‘देवी चौधुरानी’ नहीं बनाई. उन्होंने आरके बैनर के तहत एक फिल्म के लिए राज कपूर के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया था. शांत एकांत जीवन में पच्चीस साल से अधिक के करियर के बाद उन्होंने 1978 में पर्दे से संन्यास ले लिया. उन्होंने अपनी सेवानिवृत्ति के बाद जनता की निगाहों से परहेज किया और अपना समय रामकृष्ण मिशन को समर्पित किया. सुचित्रा सेन दादासाहेब फाल्के पुरस्कार की दावेदार थीं, बशर्ते वह इसे व्यक्तिगत रूप से स्वीकार करने के लिए तैयार हों. नई दिल्ली जाने और व्यक्तिगत रूप से भारत के राष्ट्रपति से पुरस्कार प्राप्त करने से उनके इनकार ने उन्हें पुरस्कार से वंचित कर दिया था. #Oscar winner Satyajit Ray #Suchitra Sen #about Satyajit Ray #about Suchitra Sen हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article