Birthday Special Sunny Deol: लेकिन मैं जरूर लूंगा, उनके खिलाफ लीगल एक्शन

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By Mayapuri
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Sunny Deol

फिल्मसिटी में फिल्‍म मंजिल मंजिल मंजिल के लिए फॉरेस्ट ऑफिसर की कैंबिन का सैट लगाया गया था. सैट के बाहर पेड़ के नीचे एक बेंच पर बैठीं आशा पारेख के साथ सन्‍नी देओल शॉट देने में व्यस्त थे. शॉट चल रहा था इसलिए कुछ पल हमें दूर ही खड़े रहना पड़ा. कुछ ही देर में शॉट के ओ.के होते ही निर्देशक-नासिर हुसैन दूसरे शॉट की तैयारी में जुट गये. आशा पारेख का भी काम खत्म हो चुका था सो वे भी जाने लगीं. बेंच पर सन्‍नी को अकेला पाया तो मैं उसकी ओर बढ़ी. मैंने हैल्लो कहकर उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया. मेरे हैल्लो का उत्तर देते हुए उसने मुझे वहीं बंेच पर बैठने को इशारा किया. उतने में एक ड्रेस मैंन मोजे लेकर आया उसे देखकर सन्‍नी बोला-'यह सॉक्स (मोजे) देखकर तो ऐसा लगता है जैसे मुझे फूटबॅाल खेलने जाना है. और वह ड्रेस मैंने हँस पड़ा. तभी मुझे याद आया कि सन्‍नी के लिए भी लोग यही कहते हैं कि वह अपने पिता की तरह जिदादिल और मिलनसार स्वभाव का हैं.

सन्‍नी से बातचीत का अवसर मिला तो मैंने उससे पूछा-बेताब की रिलीज और उसकी सफलता के बाद आपने अपने आप में कोई परिवर्तन महसूस किया वह बोला- बेसिकली मैं रिजर्वड पर्सन हूँ. शेरू से अपने आप में सिमट कर रहने की मुझे आदत है. मैंने महसूस किया कि अब मैं और रिजर्वड रहने लगा हूँ क्योंकि एक कलाकार को हजारों लोग मिलने आ जाते हैं और सबके माथे पर लिखा तो नहीं होता है कि वह कैसा है सो हमें रिजर्वड रहना भी पड़ता है. बाकी खास परिवर्तन मैंने अपने आप में कोई नहीं पाया और परिवर्तन आता भी कैसे एक्टिंग मेरा प्रोफेशन है. उसकी सफलता या असफलता का इतना प्रभाव मुझ पर कभी नहीं हो सकता कि मैं यानि सन्‍नी देओल, सन्‍नी देओल न रहकर कुछ और हो जाऊँ. मैं इतना कमजोर नहीं हूँ. कोई भी चीज मेरे व्यक्तित्व को इतनी आसानी से प्रभावित नहीं कर सकती.

आपने अपने आपको रिजर्वड बताया तो हमने देखा हैं कि ज्यादातर रिजर्वड टाईप्ड के पर्सन, कलाकार शाॅट के होते ही या तो मेकअप रूम में या सैट के किनारे किताब पढ़ते हुए नजर आते हैं. आपको हमने सैट पर पढ़ते हुए कभी नहीं देखा? मैंने कहा तो वह हँसते हुए बोला- मेरा शुरू से पढ़ाई में कम और खेलकूद में ज्यादा रस रहा है. बचपन में भी बस मैं पासं हो जाता था उससे अधिक कभी नहीं पढ़ा और आज भी वही हाल है मेरा. आप बहुत ही डिफेन्सिव ऐसा कुछ लोग कहते हैं. आप क्या कहोगे? मैंने प्रश्न किया.

'मैं डिफेन्सिव नहीं हूँ ऐसा मैं नहीं कहता हूँ. पर हर कोई इंसान डिफेन्सिव होता है. फिर यदि मैं भी हूँ तो क्यों सिर्फ मेरे ही बारे में टीका टिप्पणी की जाये. बह बोला.

'आपको दूसरा धर्मेन्द्र बताया जाता है तब कैसा लगता है?' मेरे पूछने पर वह बोला-अब तो सुन-सुनकर आदत सी पड़ गयी है इसलिए कुछ भी अजीब सा नहीं लगता है.
आपके पिता सालों से फिल्म क्षेत्र में हैं. उनके मुँह से फिल्म के बारे में सुन सुनकर धारणा बनाने के बाद अब जब आपने इस क्षेत्र में पर्दापण किया तो इस क्षेत्र को अपनी धारणा से अलग पाया या?

मेरे इस प्रश्न के उत्तर में वह बोलां- सालों से फिल्म क्षेत्र में रहने के बावजूद भी मेरे डैडी आज तक फिल्म इंडस्ट्री की कोई भी बात घर में नहीं करते हैं. और मैं भी कभी उनके साथ शूटिंग आदि पर जाता नहीं था सो इस क्षेत्र में पर्दापण करने से पहले मैं इसके बारे में कुछ भी नहीं जानता था. इसलिए मेरी कोई धारणा ही नहीं बनी थी. पर इस क्षेत्र में आने के बाद मुझे वह राज पता चल गया कि मेरे डैडी इसी इंडस्ट्री में जीना-मरना क्‍यों चाहते थे. यह लाइन, यहाँ के लोग, यहाँ का माहौल, यहाँ का संघर्ष, यह काम, सब कुछ बहुत ही सुखदायी है.

आप भी इसी में (एक्टिंग कैरियर में) जीना-मरना चाहते हो या कुछ और भी करना चाहते हो? मैंने पूछा. मैं भी अब यही (एक्टिंग) करना चाहता हूँ. अब कुछ कर ही नहीं सकता मैं. और अब करना भी क्या है इसके अलावा. कहकर सन्नी हँस पड़ा. अगर आप एक्टर न बनते तो क्‍या करते? मैंने पूछा. वह बोला- वह तो डिपेन्ड करता है सिच्युएशन पर. मैंने पढ़ाई छोड़ते ही एक्टिंग कैरियर अपना लिया इसलिए यदि एक्टर न बनता तो क्या करता सोचने का समय ही नहीं बचा मेरे पास.

'एक्टिग कैरियर में आपने अपने पिता से क्या क्‍या सीखा? मैंने पूछा.

मुझे एक्टिंग नहीं सिखायी डैड ने लेकिन मुझे एन्करेज जरूर किया है उन्होंने. आज मुझ में जो कॉन्फीडेंस है वह मेरे डैडी की ही देन है.

'आप पब्लिसिटी को कितनी अहमियत देते हो?' मेरे इस प्रश्न पर वह बोला- मैंने फिल्म कैरियर की शुरूआत की तब भी पब्लिसिटी के बारे में ज्यादा सोचा नहीं था. मैं इसे अहमियत जरूर देता हूँ लेकिन इसका क्रेजी नहीं हूँ.

'फिल्म इंडस्ट्री के प्रेसवाले आपको कैसे लगें? मैंने प्रश्न किया.

'सब अलग अलग किस्म के हैं. सब पेपरों की पॉलिसी अलग अलग है. वह बोला.

ज्यादातर कलाकारों को गैर फिल्मी प्रेसवालों से शिकायत होती है. आपके पिताजी ने भी एक पत्रकार को गुस्से में आकर मारा था. आपको भी कोई शिकायत हैं?

मेरे इस प्रश्न पर वह बोला-'वैसे तो मैं जानता था कि यहाँ गाॅसिप्स को बहुत ही ज्यादा महत्व दिया जाता है इसलिए मैं इसके लिए तैयार ही था पर फिर भी कलाकार इंसान ही होते है न. कब तक धीरज धरकर बैठे रहे. गुस्सा आ ही जाता है क्योंकि यहाँ के पत्रकारित्व की सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि वे मिस इन्टरप्रिंट करते हैं. खुद ही जजमेन्ट निकाल लेते हैं जो बहुत ही गलत है. इसी से हमारे आपसी संबंधों में तनाव आ जाता है. मैं भी दो पत्रकारों को मिलने वाला हूँ जिन्होंने मेरे बारे में उलट-पलट और गलत लिखा है. लेकिन मैं डैडी की तरह उन्हें अपने हाथों से नहीं मारूंगा, लीगल स्टेप लूंगा.

'फिर अन्य कलाकार लीगल स्टैप क्यों स्टेप क्यों नहीं लेते होंगे? मैंने पूछा.

तो बालों में हाथ फेरते हुए सन्नी बोला-'अपने देश में क्रप्शन (भ्रष्टाचार) बहुत ही है. और इसलिए हर काम बहुत ही धीरे धीरे होता है. कलाकार खुद इतने व्यस्त हैं कि उनके पास इतना समय नहीं होता है इसलिए वे लीगल स्टेप नहीं लेते हैं. लेकिन मैं जरूर लूंगा.