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क्यों नहीं देश की भाषा बॉलीवुड फिल्मों की भाषा बना दी जाए? सारे झगड़े खतम!!!

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क्यों नहीं देश की भाषा बॉलीवुड फिल्मों की भाषा बना दी जाए? सारे झगड़े खतम!!!

-शरद राय

भाषा को लेकर इस देश मे लम्बा संघर्ष है।नार्थ की भाषा और साउथ की भाषा का झगड़ा पीढ़ियों से है।सड़क से संसद तक कभी बहस के बाद एक हल नहीं निकला है। इनदिनों साउथ की डब फिल्में (पुष्पा- द बिगिनिंग पार्ट 1', 'RRR', 'KGF चैप्टर2' आदि) जब नार्थ के शहरों में भरपूर बिजनेस कर रही हैं तो जानते हैं भाषा का झगड़ा गौड़ हो गया है। दक्षिण में बनी जो फिल्में खूब चल रही हैं उनमें एक बात हिंदी फिल्मों की तरह कॉमन है कि उनकी भाषा (डायलॉग) जो हिंदी में डब किये गए हैं, की भाषा बॉलीवुड फिल्मों की ही है। मजे की बात है कि इनदिनों फिल्मों की कमाई को लेकर नार्थ-साउथ हो रहा है लेकिन भाषा पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है।

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सोचिए, जब डब फिल्मों की कामयाबी को देखकर टॉलीवुड के लोग पैन इंडिया की बात करने लगे हैं, वे अगर अपनी फिल्म को प्रॉपर बॉलीवुडिया भाषा मे शूट करके ही बनाए होते तो फिल्म का कलेक्शन और भी विशाल स्कोर नही खड़ा करता ? फिर क्यों नार्थ साउथ की दुहाई? यह एक सत्य है कि देश मे तमाम भाषाई विवाद के वावजूद एक भाषा ऐसी है जिसने  पूरे देश को एक सूत्र में जोड़ने का काम किया है। वो है फिल्मों की भाषा। यह फिल्में ही होती हैं जिनको लोग बिना झगड़े में पड़े देखते हैं, सुनते हैं, समझते हैं।

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अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान और सलमान खान की फिल्में चेन्नई में और रजनीकांत, श्रीदेवी... और अब- अलू अर्जुन, रामचरण, प्रभाष, जूनियर एनटीआर और सुरिया की फिल्में बड़े चाव से उत्तर प्रदेश से झुमरी तलैया तक देखी जा रही हैं। इन फिल्मों की भाषा भले ही डब की गयी हिंदी या किसी और  बोली कि हो, हम इसको बॉलीवुड की भाषा कहते हैं।

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जब दक्षिण में सन 1965 में,  हिंदी विरोधी आंदोलन उठा था तब भी राज कपूर की फिल्मों और लता मंगेशकर के गानों की क्रेज कम नही हुई थी। वैजयंती माला, हेमा मालिनी, रेखा, कमल हासन, रजनीकांत, श्रीदेवी, जयाप्रदा भाषाई झगड़े के वावजूद बम्बईया फिल्मों में काम करने आए थे। और आज भी कुछ नेताओं, अभिनेताओं की हिंदी विरोधी बयानबाज़ी के वावजूद दक्षिण के हीरो और हीरोइन बॉलीवुड में काम करने आ रहे हैं- क्यों? इसीलिए न कि वे पूरे देश मे पॉपुलर होने की लालसा रखते हैं। हिंदी फिल्म और टीवी कलाकार साउथ की फिल्मों में काम कर रहे हैं।

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सहज बात है कि बॉलीवुड की भाषा ही असली हिंदुस्तान की भाषा है। जिसमे मद्रासी करेक्टर को उसी रूप में पेश किया जाता है और भोजपुरी करेक्टर को उसके उसी रूप में। यह भाषा हिंदी, उर्दू, सिंधी, पंजाबी या किसी और की ऑफिसियली स्टैमपड भाषा नही है। यह भाषा सड़क पर चलने वाले आम आदमी की है, सैलून में बाल कटाने आनेवाले की है, सामान्य रेस्टोरेंट में खाना खानेवाले की है, ऑटो रिक्से में बैठनेवाले की है...संक्षेप में कहें तो यह 'मायापुरी' की भाषा है, हिंदुस्तान की भाषा है। फिर क्यों नही देश की भाषा को बॉलीवुड की भाषा बनाए जाने पर बहस की जाती?

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