Birthday Special: दोस्ताना संबंधों की आलोचना  छोटे दिलवालों का काम है! - अमृता सिंह

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By Mayapuri Desk
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Birthday Special: दोस्ताना संबंधों की आलोचना  छोटे दिलवालों का काम है! - अमृता सिंह

अखबार वाले अमृता सिंह को ‘मर्द सिंह’ कहते हैं! यह अलंकरण अमृता को नागवार लगता होगा लेकिन किसी लड़की को लोग एक लड़के की शक्ल में देखकर चैंकने लगें तो कोई न कोई मनोवैज्ञानिक तथ्य तो अवश्य ही होगा! लड़की जात ही ऐसी है जिसे कुदरत ने इस हद तक मुलायम बनाया है कि श्रृंगार रस के कवियों ने उसे फूल माना! - अरुण कुमार शास्त्री

दोस्ताना संबंधों की आलोचना  छोटे दिलवालों का काम है! - अमृता सिंहभला अपनी तारीफ किसे अच्छी नहीं लगती? अब किसी को फूल कहकर उसे ‘फूल’ बनाकर उसका भावनात्मक शोषण तो एक प्रक्रिया की तरह है! आदमी तो हाथ झटक कर चल देता है लेकिन औरत कितनी दुगर्ति झेलती है, वह तो वही जाने! यह माना कि संपन्‍नता की आड़ में स्त्रियां ज्यादा सुरक्षित होती हैं किन्तु सुरक्षा एक बाहरी कवच होता है! मन और भावना पर प्रहार जो होते हैं, उसे तो संपन्‍नता के बीच भी झेलना पड़ता है! यह सब फूल मान लेने की बदगुमानी में होता है!

लोगों ने अमृता में अगर नारीत्व नहीं देखा तो उसे अमिताभ बच्चन की हीरोइन बनने का गौरव कैसे मिलता

दोस्ताना संबंधों की आलोचना  छोटे दिलवालों का काम है! - अमृता सिंहबहरहाल अमृता सिंह का ‘मर्द सिंह’ कहा जाना मुझे कुछ हद मज़ाकिया लहजे से बेहतर लगता है! लोगों ने अमृता में अगर नारीत्व नहीं देखा तो उसे अमिताभ बच्चन की हीरोइन बनने का गौरव कैसे मिलता अगर उसमें काबलियत न होती तो महेश भट्ट जैसे निर्देशक उसके साथ काम कैसे करते और अगर सचमुच उसमें कोई बात नहीं होती तो बड़ी फिल्मों से कैसे जुड़ती और फिर आप उसे अमृता सिंह के नाम से जानते कैसे?

इन दिनों अमृता सिंह खबरों के बाजार में गर्म हैं, उनकी यह गर्मी अपने से दुगुने उम्र के विनोद खन्ना के साथ उनके खुले रिश्तों के कारण हैं, तो कभी विवाह की झूठी अफवाहों को लेकर (अब तक इस विवाह की प्रामाणिक खबरें नही मिलीं और जब एक स्त्री पुरूष अपनी स्वतंत्र इच्छा से रहते हों फिर विवाह जैसी मृत संस्था का महानगरीय संदर्भमें क्या मायने हैं! जिस पर अखबार नवीस अपना वक्‍त बर्बाद करते हैं)।

दोस्ताना संबंधों की आलोचना  छोटे दिलवालों का काम है! - अमृता सिंहजहाँ तक फिल्म करियर की बातें हैं अमृता पिछले दिनों ‘कब्जा’, ‘बंटवारा’ एवं ‘जादूगर’ जैसी फिल्मों में दिखाई पड़ी! इससे पहले ‘नाम’ जैसी महत्त्वपूर्ण फिल्म में भी वह हमारा ध्यान आकर्षित करती हैं! उनके संबंधों के साथ उनकी फिल्मों के बारे में उनसे जानना बेहतर है।

‘बंटवारा’ और ‘जादूगर’ जैसी फ्लॉप फिल्मों में अपनी उपस्थिति के बारे में अमृता क्या कहना चाहेंगी? इस सवाल के जवाब में वे कहती हैं ‘बंटवारा’ में सितारों की अपेक्षा निर्देशक का महत्त्व ज्यादा था! एक बड़ी भव्य फिल्म की रूप रेखा के साथ यह फिल्म शुरू हुई थी! जिसमें ‘मेरा गांव मेरा देश’ के बाद धर्मेन्द्र विनोद खन्ना का आकर्षण था! इतनी बड़ी फिल्म में काम करना भी एक उपलब्धि से कम नहीं लेकिन फिल्म में इतने ज्यादा चरित्रों की भीड़ थी कि, यह फिल्म दो चरित्रों के आपसी बदले की कहानी बनकर रह गई! नायिका के तौर हमारे लिए स्कोप ही कम था, किन्तु जितना था उससे मैं संतुष्ट हूं।

फिल्म अच्छी बनी, चल नहीं सकी तो इसके पीछे बात यह थी कि, इसमें टेक्नीक के बारे में जे.पी.दत्ता ने अधिक सोचा जबकि विषय में गंभीरता नहीं आ सकी.

दोस्ताना संबंधों की आलोचना  छोटे दिलवालों का काम है! - अमृता सिंह‘जादूगर’ अमिताभ बच्चन की फिल्म थी, मेरी भूमिका मिथुन के साथ थी! जिसे बाद में आदित्य ने किया, इस फिल्म का विषय इतना कमजोर था कि, इस फिल्म से किसी को भी क्रेडिट नहीं मिला। अमिताभ बच्चन जैसे समर्थ एक्टर भी इस फिल्म को कमजोर कहानी के कारण संभाल नहीं पाये! फिल्म नहीं चली और किस्सा खत्म अमृता के दो टूक जवाब से उसकी सफाईगोई के लिए उसकी तारीफ होनी चाहिए!

अमृता अपने करियर के बारे में कहती है! आर्टिस्ट को अपनी काबलियत दिखाने का मौका मिलता है, मसलन ‘नाम’ में अपनी भूमिका से मुझे तसल्ली मिली, ठीक इसी तरह ‘मर्द’ में मैंने जिद्दी राजकुमारी की भूमिका अदा की!

अमिताभ बच्चन के साथ ही मेरी भी तारीफ हुई! अपनी पहली फिल्म ‘बेताब’ की रोमांटिक भूमिका मेरी पहली ही बड़ी उपलब्धि थी! ये सारी बड़ी फिल्में थीं और खूब चली थी!

सुना है, आपको हिन्दी फिल्में देखना बिल्कुल पसंद नहीं? क्या वजह है जबकि आप हिन्दी फिल्मों में काम करती हैं? अमृता ने इस सवाल के जवाब में कहा ‘किसी की पसंद नापंसद पर कोई पाबंदी नहीं! अंग्रेजी फिल्में देखना कोई अपराध नहीं! अगर मेरी अपनी ही फिल्म हो और उसमें कुछ खास देखने लायक नहीं हो तो मैं उसे जबर्दस्‍ती क्‍यों पसंद करूं?

हिन्दी फिल्मों में काम करना मेरे करियर से जुड़ा है। इसलिए इसे झुठलाया नहीं जा सकता, अच्छी चीजें कहीं की भी हों उसे पसंद किया जाना चाहिये इसमें कोई बुराई नहीं?

दोस्ताना संबंधों की आलोचना  छोटे दिलवालों का काम है! - अमृता सिंहक्या यह सही है कि, आप किसी फिल्म को सिर्फ इस शर्त पर छोड़ सकती हैं कि आउटडोर शूटिंग में आपको कोई मनपसंद होटल अथवा उस होटल का कमरा नहीं मिला! इससे निर्माताओं के बीच आपकी लोकप्रियता को आघात लग सकता है, सवाल किसी होटल अथवा कमरे का नहीं।

अगर मैं किसी फिल्म में काम करती हूं तो उस फिल्म के निर्माता का कोई अधिकार नहीं, जो वह अन्य सितारों की तरह मेरा सम्मान न करे! मैं आत्म सम्मान की शर्त पर फिल्म में काम करना पसंद नहीं करूंगी! और अंत में बातें विनोद खन्‍ना के साथ अमृता के रिश्तों के बारे में लेकिन बातें सीधे हों, बेहतर है दूसरे संदर्भ को सामने रखा जाये।

दो सितारों के आपसी रिश्ते में उम्र के फासले से भावनात्मक दूरी का संबंध किस हद तक प्रभावित होता है? अमृता का जवाब है ‘दोस्ती में उम्र की अहमियत नहीं! दोस्ती हम मानसिक धरातल पर स्थापित करते हैं, बहुत से लोग पच्चीस वर्ष के होकर भी अपनी मानसिक में पांच वर्ष से अधिक नहीं होते हैं। ऐसे लोगों को दोस्त का दर्जा कैसे दिया जाये जो आपकी भावना और विचारों के साथ तालमेल नहीं बैठा सकते और किसी दोस्ताना संबंधों की आलोचना छोटे दिलवालों का काम हैं। बहुत थोड़े में अपनी बात कहना ज्यादा अच्छा है!दोस्ताना संबंधों की आलोचना  छोटे दिलवालों का काम है! - अमृता सिंह

यह लेख दिनांक 15.4.1990  मायापुरी  के पुराने अंक 812 से लिया गया है!
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