जयकिशन श्रॉफ का जन्म एक मध्यम वर्गीय गुजराती परिवार में ज्योतिषी पिता के दूसरे पुत्र के रूप में हुआ था और उनकी माँ नेपाली थी जो दक्षिण मुंबई के वॉकेश्वर एरिया में एक होम कीपर थी वह एक चॉल में रहते थे। जो सभी अमीर लोगों के बंगलों और बिल्डिंग के पास थी। जयकिशन और उनके बड़े भाई, हेमंत ऐसे दो युवक थे जो स्पष्ट रूप से इस से प्रभावित थे और एक ऐसे माहौल में पले-बढ़े थे जो शायद सही था और बहुत जल्द वे इस क्षेत्र में डर का दूसरा नाम थे। जो नाम घरों में खौफ के साथ लिया जाता जिन नामों ने माता-पिता को इस टेंशन में डाल दिया था कि उनकी बेटियाँ सूर्यास्त से पहले घर में आ जाए क्योंकि दोनों भाइयों बाहर घूम रहे हैं, जिनके नाम पहले से ही पास के पुलिस स्टेशनों के अपराध रजिस्टरों में दर्ज थे। जो इन दिनों वहा के नामी बदमाश के रूप में पहचाने जाते थे। फिर एक दिन हेमंत को अत्यधिक रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाया गया था और इस घटना ने उसके भाई जग्गू दादा कि पूरी दुनिया ही बदल दी थी
कैलाश सुरेन्द्रनाथ ने फिर उन्हें उनका पहला मॉडलिंग ब्रेक दिया
जग्गू के पास आशा और प्रकाश का केवल एक स्रोत था और वह थी उनकी लवर, आयशा, लेकिन वह जानते थे कि वह उससे शादी नहीं कर पाएगे या यहाँ तक कि वे सिर्फ एक बहुत अच्छे दोस्त बन सकते हैं। लेकिन आयशा ने उन्हें गलत साबित किया कि प्रेम कि कोई बाधा नहीं होती हैं और वह अपने जग्गू से प्यार करती रही, जो हेमंत की मृत्यु के बाद अपने जीवन में एक नया बदलाव लाना चाहते थे। उन्होंने आयशा और अपने सभी दोस्तों से कहा कि उन्हें एक नौकरी की जरूरत है, लेकिन उनमे एकमात्र योग्यता उनकी अच्छी फिज़ीक, उनकी डासिंग और उनके गुड लुक्स थे। आयशा और उनके कुछ दोस्तों ने उन्हें एक मॉडल के रूप में अपनी किस्मत आजमाने के लिए कहा, लेकिन यह इतना आसान नहीं था, उन्होंने महसूस किया और फ्लोरा फाउंटेन और फोर्ट क्षेत्रों में विविध नौकरियां देखी और यह कैलाश सुरेंद्रनाथ थे, पुराने सिंगर सुरेंद्रनाथ के बेटे, जो के.एल.सहगल के समकालीन थे, जिन्होंने उन्हें एक मॉडल के रूप में उनका पहला ब्रेक दिया था। यह ‘चारमीनार सिगरेट’ के लिए उनका विज्ञापन था जिसने उन्हें लाइमलाइट में ला दिया था। उनके बड़े-बड़े होर्डिंग हर तरफ़ थे जहां देव आनंद के होर्डिंग लगाए जाते थे, जिनपर आमतौर पर देव का ध्यान खुद खींचा जाता था, और जब देव ने उनके होर्डिंग को देखा तो तुन्होने उन्हें अपनी फिल्म 'स्वामी दादा' (जो एक प्रकार की एक मल्टी स्टार्र फिल्म थी) में एक छोटी सी भूमिका के लिए रोल ऑफर किया था। जिसमें उन्हें सिर्फ घोड़ों के पास एक कोने में बैठना था, जिसमें उनके कोई डायलाग भी नहीं थे और केवल उनके लुक और आँखों को ही दिखाया गया था।
वह जल्द ही शहर के सबसे धनी व्यक्तियों में से एक में शामिल हो गए थे
और उनके उस वन लुक ने उनके भविष्य की सूरत ही बदल दी थी। क्योंकि सुभाष घई- कुमार गौरव, संजय दत्त और सनी देओल जैसे स्टार-बेटों की फीस अफ्फोर्ड नहीं कर सकते थे और उन्होंने फिर अपनी फिल्म 'हीरो' के नायक के रूप में जैकी श्रॉफ को साइन करने का साहस किया। जैकी को स्टारडम मिला और महीनों के भीतर, वे वॉकेश्वर के एक कमरे से ‘ली पैपिलॉन’ में शिफ्ट हो गए, जो माउंट मैरी चर्च के करीब बांद्रा के सबसे पॉश और महंगे अपार्टमेंट में से एक था। वह एक स्टार थे। वह जल्द ही शहर के सबसे धनी व्यक्तियों में से एक में शामिल हो गए थे। उसके पास बहुत पैसा था जिसे वह कुछ भी खरीद सकते थे, लेकिन फिर भी वह वाक्लेश्वर की भाषा बोलते थे, फिर भी वह एक चटाई या फर्श पर ही सोते थे और अभी भी घर पर एक साधारण लुंगी और एक साधारण सफेद बनियान पहनते है। उनके पास काम करने वालो का बड़ा स्टाफ था, लेकिन उनके साधारण पहनावे के चलते बॉस और उनके कर्मचारियों के बीच में अंतर बताना मुश्किल था। उसे केवल एक ही लक्ज़री का पता था और वह कारे थी। उन्हें खुद के लिए सबसे अच्छी कारें ख़रीदी और प्रमुख उद्योगपतियों और यहां तक कि पूर्व महाराजाओं के साथ उनके तालुकात थे, जिनके अनदर कारों के लिए उनके जैसा समान जुनून था और यहां तक कि एफआर अग्नेल के टेक्निकल इंस्टिट्यूट में मैकेनिक्स के साथ जहां रेखा का बंगला है और जहां शाहरुख खान का 'मन्नत' खड़ा है। यह इंस्टिट्यूट और इसके मैकेनिक थे, जिनके साथ वह अपना अधिकांश खाली समय काम करने और कारों की दुनिया में नवीनतम विकास पर चर्चा करने में बिताते थे। कारों के लिए यह उनका जुनून इतना था कि वह अपने छोटे बेटे टाइगर को अपनी कुछ नई कारों के साथ लॉन्ग ड्राइव पर ले जाते थे और यहां तक कि उन्हें कार का स्टीयरिंग भी पकड़ाते थे जब वह केवल दो या तीन साल के थे और जब टाइगर की उम्र केवल 6 साल थी, तब वह कुछ कारों को चलाने भी लगे थे।
जग्गू दादा को अन्नदाता के रूप में जाना जाता था
जैकी ने बहुत पैसे कमाए थे और वह दिन और रातें सोचता रहते थे कि वह अपने पैसे को अधिक सार्थक तरीके से खर्च करने के लिए क्या कर सकते है। उन्होंने अपने कुछ बहुत करीबी दोस्तों के साथ बाहर जाने घुमने के विचार को एक्सेप्ट नहीं किया और वास्तव में गरीबों, भूखे, दलितों और जरूरतमंदों को जो झुग्गी-झोपड़ियों में और सड़कों पर रेहते थे की मदद करने की कोशिश की। उन्होंने अपनी एक टीम बनाई। उन्होंने अपने खुद के इस विचार पर काम किया। वह अपनी कार में आगे बढ़े और उन सभी लोगों का पता लगाएगा जिन्हें मदद की ज़रूरत थी। अच्छा खाना, कपड़े, फल, दवाइयाँ और जीवन की अन्य ज़रूरतों को पूरा करने वाला एक ट्रक उनके पीछे था। वह लोगों से बात करते और डेविड और अनीस साबरी जैसे आदमी की अगुवाई में अपनी टीम को हर मामले का प्रभार और नियंत्रण लेने के लिए कहते और यह देखते कि जरूरतमंद लोगों को उचित मदद प्रदान की जा रही है या नहीं। कुछ ही महीनों में, जग्गू दादा को अन्नदाता के रूप में जाना जाता था, आशाहीन और बेघर लोग जग्गू दादा यानी अन्नदाता के आने की आशा करते थे, और वह लोग अपने समय के इस मसीहाओं के लिए तत्पर रहते थे।
जग्गू दादा आज भी ‘दान’ करने वाले अपने इस अच्छे काम के साथ आगे बढ़ रहे है और यहां तक कि अपने प्यारे बेटे टाइगर श्रॉफ को भी यही सिखा रहे है
हालांकि जैसे वे कहते हैं कि कोई भी अच्छी चीजें लंबे समय तक साथ नहीं रहती हैं। जग्गू दादा के बारे में कहा जाता है कि उन्हें जल्द ही पता चल गया था कि उनके अपने लोग गलत तरीकों से उनके इस काम का फ़ायदा उठा रहे थे। उनके नाम पर होने वाली यह सारी मदद सही लोगों और सही जगहों तक नहीं पहुँच पा रही थी। उन्होंने पूरी तरह से ठगा हुआ और अपमानित महसूस किया और उन्होंने कहा कि आखिरकार एक व्यक्ति के इस नेक काम के साथ ऐसा क्यों किया गया। मैंने कुछ विश्वसनीय स्रोतों से जाना है कि कैसे जग्गू दादा आज भी ‘दान’ करने वाले अपने इस अच्छे काम के साथ आगे बढ़ रहे है और यहां तक कि अपने प्यारे बेटे टाइगर श्रॉफ को भी यही सिखा रहे है। और मुझे आशा है कि उनका बेटा जो उनकी ही तरह लम्बा और गुड लूकिंग है वह अपने पिता की तरह ही एक अच्छा इन्सान साबित होगा, जैकी जो आब 64 साल के हो गए है वह आज भी एक युवा व्यक्ति की भावना के साथ अपने जीवन को जीते है।