महिलाओं को अपने तरीके से जीवन जीने के लिए प्रेरित करती हैं ये बॉलीवुड फिल्में By Sangya Singh 18 Aug 2018 | एडिट 18 Aug 2018 22:00 IST in गपशप New Update Follow Us शेयर बॉलीवुड में अबतक देश की आजादी जैसे कई अहम मुद्दों पर फिल्में बनती आई हैं। हिंदी फिल्मों में अब तक पुरुष प्रधान फिल्मों के साथ-साथ कई महिला प्रधान फिल्में भी बनी हैं। इन फिल्मों के माध्यम से ये दिखाने और बताने की कोशिश की जाती है कि पुरुष की तरह ही महिलाएं भी समाज का एक अहम हिस्सा हैं। जिस तरह समाज में पुरुषों को अपना जीवन अपनी तरह से जीने का अधिकार है, ठीक वैसे ही महिलाओं को अपना जीवन अपनी इच्छा से जीने का अधिकार होना चाहिए। ये जरूरी नहीं कि महिलाएं हमेशा पुरुषों के बनाए हुए सिद्धान्तों के अनुसार ही अपना जीवन जी सकती हैं, महिलाएं भी अपने नियम और सिद्धान्त बनाने के लिए पूरी तरह से आजाद हैं। तो आइए हम आपको बताते हैं बॉलीवुड की उन 10 फिल्मों के बारे में जो महिलाओं को जागरुक करने काफी हद तक सहायक हुई हैं... 1- फ़ायर (1996)...डायरेक्टरः दीपा मेहता यह फ़िल्म इस्मत चुगताई की लघुकथा 'लिहाफ़' से प्रेरित है। कहानी दो लड़कियों सीता (नंदिता दास) और राधा (शबाना आज़मी) की है, जिनकी शादी एक ही परिवार में हुई है। दोनों ही अपने शादीशुदा जीवन में खुश नहीं हैं, जिसकी वजह से वे एक दूसरे के क़रीब आ जाती है और अच्छी दोस्त बन जाती हैं। धीरे धीरे उनकी दोस्ती प्यार में बदल जाती है। परिवार की अवहेलना की वजह से आज़ादी वे एक दूसरे में पाती हैं। इस फ़िल्म का काफी विरोध हुआ। जहां एक तरफ़ इसे समलैंगिक सम्बन्धों का सुंदर चित्रण माना गया, वहीं संस्कृति के ठेकेदारों ने इसे गंदा और अपमानजनक कहा। इसे बार्सिलोना, शिकागो, टोरोंटो जैसे नामी फ़िल्म उत्सवों में दिखाया गया और अवॉर्ड भी मिले। न सिर्फ भारत में ही बल्कि दुनिया की औरतों को इस फिल्म ने प्रेरणा दी है। 2- अस्तित्व (2000)...डायरेक्टरः महेश मांजरेकर यह नेशनल अवॉर्ड-विनिंग फ़िल्म की कहानी हमें अदिति पंडित (तब्बू) से मिलवाती है। उनका एक म्यूज़िक टीचर हुआ करता था मल्हार कामत (मोहनीश बहल)। वो मर जाता है और जाते-जाते अपनी सारी जायदाद अदिति के नाम कर जाता है। अदिति के पति श्रीकांत (सचिन खेड़ेकर) को शक होता है कि मल्हार का अदिति के साथ ऐसा क्या ख़ास रिश्ता रहा होगा जिसकी वजह से उसने ऐसा किया। फिल्म की कहानी फ़्लैश्बैक में 25 साल पहले जाती और वर्तमान में आती है। हम देखते हैं कि अपने वैवाहिक जीवन में अदिति कैसे घुट-घुटकर जीती थी और कैसे मल्हार का प्यार उसकी ज़िंदगी में उमंग और प्यार की बहार लाया। अब आगे बहस चलती है अदिति और उसके पति के बीच और यहां तक कि उसके अपने बेटे के बीच जो पुरुषवादी नैतिकता के नशे में अपनी मां से सवाल करने लगता है। लेकिन फिल्म अंत में जो करती है वो ऐसी मिसाल है जिसे हम कभी भुला नहीं पाएंगे । 3- डोर (2006)...डायरेक्टरः नागेश कुकुनूर फिल्म 'डोर' दो बिल्कुल अलग बैकग्राउंड वाली औरतों की कहानी है। एक तरफ़ है ज़ीनत (गुल पनाग)। हिमाचल में रहने वाली एक मुस्लिम लड़की जिसकी शादी के कुछ दिनों बाद उसका पति सऊदी अरब चला जाता है। दूसरी तरफ़ है मीरा (आएशा ताकिया)। राजस्थान में रहने वाली एक राजपूत औरत जिसका पूरा जीवन कठोर रीति-रिवाजों से बंधा हुआ है। कहानी में होता ये है कि ज़ीनत के पति पर सऊदी में आरोप लगता है कि उसके हाथों आदमी का खून हुआ है और अब उसे फांसी दी जाएगी। एक ही सूरत में वो बच सकता है, अब मारे गए आदमी के परिवार वालों या पत्नी से उसके लिए माफीनामा कोई ले आए। ज़ीनत निकलती है अपने पति को बचाने और माफीनामा लाने। लेकिन वो माफीनामा उसे लाना है मीरा से क्योंकि जो मारा गया था वो उसका पति था। अब इन दोनों ही औरतों के लिए ये परीक्षा की घड़ी होती है। अंत में ये एक-दूसरे को कैसे ट्रीट करती हैं और कैसे एक-दूसरे का सहारा बनकर अपनी-अपनी आजादियों को पाती है, कहानी में यही दिखाया गया है। 4- इंग्लिश-विंग्लिश (2012)...डायरेक्टरः गौरी शिंदे फिल्म इंग्लि-विंग्लिश में शशि गोडबोले (श्रीदेवी) एक गृहिणी हैं। अपना केटरिंग बिज़नेस चलाती हैं और अपने हाथ के बने लड्डुओं से हर किसी का दिल जीत लेती हैं। बस एक समस्या ये है कि इन्हें अंग्रेज़ी नहीं आती जिसे हमारा 'आधुनिक' समाज इंसान की सबसे बड़ी कमज़ोरी समझता है। यहां तक कि शशि को पति के अलावा अपनी बेटी तक से तिरस्कार और अपमान ही सहना पड़ता है। फिर वह अपनी भांजी की शादी अटेंड करने जाती हैं न्यू यॉर्क जहां उन्हें एक इंग्लिश बोलना सिखाने वाली क्लास का पता लगता है। बस, यहीं से शुरू होता है शशि का अंग्रेज़ी-प्रशिक्षण। यह फ़िल्म बड़ी ख़ूबसूरती से दिखाती है कैसे इंग्लिश की ट्रेनिंग शशि के लिए नए रास्ते खोल देती है और उसे अपनी असुरक्षा और आत्मविश्वास की कमी से आज़ाद कर देती है। लेकिन फिल्म महज अंग्रेजी के बारे में नहीं है, ये इससे भी आगे जाकर माहिलाओं को जागरुक होने का संदेश देती है। 5- क्वीन (2013)...डायरेक्टरः विकास बहल इस फिल्म में शादी के एक दिन पहले रानी (कंगना रनौत) का मंगेतर विजय (राजकुमार राव) उससे रिश्ता तोड़ देता है। रानी की तो जैसे दुनिया ही तबाह हो गई हो। बड़ी मुश्किल से वह इस दर्द से बाहर आती है और फ़ैसला करती है कि उसे किसी और की ज़रूरत नहीं। अपने प्री-बुक्ड हनीमून पर रानी अकेले ही निकल पड़ती है और देखती है कि एक बहुत बड़ी और ख़ूबसूरत दुनिया बाहें फैलाकर उसका इंतज़ार कर रही हैं। जब वो इस हनीमून से लौटकर आती है तो एक जबरदस्त, बुलंद और आजाद महिला बनकर। 6- एंग्री इंडियन गॉडेसेज़ (2015)...डायरेक्टरः पैन नलिन इस फिल्म की कहानी में कई महिलाएं हैं। उन्हीं में प्रमुख हैं ये छह सहेलियां - फ़्रीडा (सारा-जेन डियेज़), मधुरिता (अनुष्का मनचंदा), पम्मी (पवलीन गुजराल), सुरंजना (संध्या मृदुल), नर्गिस (तनिष्ठा चैटर्जी) और जोआना (अमृत मघेरा)। ये अपनी दोस्त की होने वाली शादी सेलिब्रेट करने के लिए इकट्ठा होती हैं और एडवेंचर का माहौल हो जाता है। शादी, करियर, रिश्ते, सेक्शूअल हरैसमेंट जैसे मुद्दे निकलकर आते हैं। कहानी में बड़ा ट्विस्ट आता है और अंत में एक पॉजिटिव नोट पर रुकती है। 7- निल बट्टे सन्नाटा (2015)...डायरेक्टरः अश्विनी अय्यर-तिवारी इस कहानी में दिखाया गया है कि चंदा (स्वरा भास्कर) बाई का काम करती है। उसकी बेटी अपेक्षा उर्फ अपु (रिया शुक्ला) सरकारी स्कूल में पढ़ती है, दसवीं कक्षा में। अपु का पढ़ाई में बिल्कुल ध्यान नहीं है, ख़ासकर मैथ्स में। अपु मानती है कि बाई की बेटी बाई ही बन सकती है तो फिर पढ़ाई क्यों करें। वो लाइफ को इतना हल्के के में ले रही होती है लेकिन चंदा एक औरत के लिए शिक्षा की कीमत क्या होती है ये बहुत अच्छे से जानती है। वो खुद पढ़ नहीं पाई लेकिन चाहती है कि उसकी बेटी पढ़कर बहुत आगे जाए और सशक्त बने। बेटी जिद्दी है, पढ़ती नहीं। तो चंदा जिन मिसेज़ दीवान (रत्ना पाठक शाह) के घर काम करती है, उनकी मदद से अपु की ही क्लास में दाख़िला लेती है ताकि खुद पढ़कर बेटी को पढ़ा सके और उसे गलत साबित कर सके। अंत में हम देखते हैं चंदा न सिर्फ ग़रीब बच्चों को खुद मुफ़्त में कोचिंग दे रही होती है बल्कि उसकी बेटी ने भी यूपीएससी पास कर ली होती है। 8- लिपस्टिक अंडर माई बुर्क़ा (2016)...डायरेक्टरः अलंकृता श्रीवास्तव यह चार औरतों की कहानी है। उषा 'बुआजी' (रत्ना पाठक शाह) जो एक बड़ी सी हवेली में अपने बच्चों और उनके भी बच्चों के साथ रहती हैं। समाज में तो तय कर दिया है कि ये उम्र भगवान का नाम लेने की है लेकिन बुआजी को रोमैंटिक उपन्यास पढ़ने पसंद हैं। लीला (आहाना कमरा) है जो अपना ब्यूटी पार्लर चलाती है और फ़ोटोग्राफर अरशद (विक्रांत मैसी) के साथ भागकर शादी करना चाहती है। रेहाना (प्लाबिता बरठाकुर), एक कट्टर मुस्लिम परिवार की लड़की है जो सिंगर बनना चाहती है मगर बुर्क़े से निकलने तक की इजाज़त नहीं और शीरीन (कोंकना सेन शर्मा) है जिसका पति उसे बस बच्चे पैदा करने की मशीन समझता है, एक सेक्स ऑब्जेक्ट। क्या होता है जब बुआजी उम्र में अपने से बहुत छोटे स्विमिंग कोच जसपाल की दीवानी हो जाती हैं ? जब लीला की शादी किसी और से तय हो जाती है? जब रेहाना के घरवाले जान जाते हैं कि वह अपने कॉलेज बैंड का हिस्सा है ? जब शीरीन अपने पति के अफ़ेयर के बारे में जान जाती है ? अंत में ये समाज इन सब औरतों की आज़ादी को कुचलने के लिए एका कर लेता है और इन्हें अहसास होता है कि अब और नहीं सहना। 9- अनारकली ऑफ आरा (2017)...डायरेक्टरः अविनाश दास फिल्म में अश्लील गानों को गाकर और उन पर नाचने का काम करती हैं अनारकली (स्वरा भास्कर)। एक बुलंद और बाग़ी तेवरों वाली महिला लोगों ने कम ही देखी हैं। एक प्रोग्राम में बड़े नेता धर्मेंद्र चौहान (संजय मिश्र) दारू पीकर उसे छेड़ने की कोशिश करते हैं और अनारकली बोलती है नहीं, वो तब भी नहीं रुकता तो थप्पड़ लगा देती है। इस घटना के बाद कयामत आ जाती है। उसकी जिंदगी बर्बाद कर दी जाती है। उसे समझौता करने और माफी मांगने के लिए कहा जाता है। रात बिताने के लिए कहा जाता है। लेकिन अनारकली ऐसी मिट्टी की बनी है जो समाज की सब औरतों को चाहिए। वो लड़ती है और अंत में उस नेता से अपनी बेइज्जती का बदला लेती है। 10- बेग़म जान (2017)...डायरेक्टरः श्रीजीत मुखर्जी यह श्रीजीत की ही बंगाली फ़िल्म 'राजकाहिनी' का हिंदी रीमेक है। कहानी है 1947 की जब भारत का विभाजन होने वाला था। भारत और नए बनने जा रहे देश पाकिस्तान की बीच प्रस्तावित सीमा पर एक कोठा है। कोठे की मालकिन बेग़म जान (विद्या बालन) को मिलाकर बारह वेश्याएं रहती हैं। बॉर्डर बनना है तो कोठा ख़ाली करना पड़ेगा, ये उनको बोला जाता है। लेकिन बेग़म जान मना कर देती हैं। 'भारत', 'पाकिस्तान', 'विभाजन' जैसे शब्द उन्हें समझ नहीं आते। यह कोठा ही उनका मुल्क है और वह मरते दम तक उसकी हिफ़ाज़त करने की ठान लेती हैं। अपने हक के लिए वो दो मुल्कों से टकरा जाती है। #Angry Indian Goddesses #queen #English Vinglish #'Nil Battey Sannata #Anarkali of Aarah #Begum Jaan #dor #fire हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article