बॉलीवुड सितारों ने शेयर कि अपनी होली कि खास यादे

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बॉलीवुड सितारों ने शेयर कि अपनी होली कि खास यादे

सुलेना मजुमदार अरोरा 

रंग गालों पर लगते ही नन्हा आमिर खान क्या सचमुच मुस्कुराया था?

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मस्ती में ही सही, लेकिन कहते है कि होली के साथ आमिर खान का रिश्ता जन्म जन्मांतर का है, यह बात बॉलीवुड में क्यों फेमस है? इसके ज़वाब में आमिर मुस्कराते हुए कहते हैं, 'सही तो है, मेरा जन्म 14 मार्च 1965 को होली के दिन ही हुआ था, इधर मैं अस्पताल में पैदा हुआ उधर होली है की धूम मच गई, सडकों पर रंगों का मेला लग गया। मस्ती में डूबे होली की टोली रंगों की बौछारों में भीगे बुरा ना मानो होली है के नारे लगाते खुशियां मनाने लगे और नर्स साहिबा मुझे नहला धुला कर जब अम्मी जी के बग़ल में लिटाने लगी तो शरारत से एक चुटकी गुलाबी रंग मेरे गाल पर लगा कर हँसती हुई चली गई। बताया जाता है कि रंग लगते ही शायद मैं मुस्कुराया भी था। इस तरह जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ तो जमकर होली खेलने लगा, सुबह सवेरे रंग गुलाल लेकर अपने पड़ोसियों के हमउम्र लड़कों के साथ होली खेलने निकल जाता, फिर घर लौटकर कपड़े बदलकर अपने पैरेंट्स के साथ अपने अंकल (फिल्म मेकर नासिर हुसैन साहब) के घर पर जाता था, वहां भी होली खेलने का दौर शुरू होता था और फिर लंच करके लौटते थे, कई बार वे लोग हमारे घर होली मनाने आते थे, अम्मी जी हर त्यौहार पर तरह तरह की मिठाइयाँ, खीर, फिरनी बनाती थी, जिसे सभी लोग रेलिश करते थे, मुँह में डालते ही वो मिठाइयाँ घुल जाती थी,  आह! क्या खूब यादें हैं। आगे चलकर बॉलीवुड के सीनियर कलाकारों की होली पार्टियों में भी मैं शिरकत करने लगा, लेकिन मैं कभी ताश  बाजी नहीं करता था और ना ही भंग या शराब कभी मैंने पी। एक और बात होली से जुड़ी कि 1984 में मैंने अपने अभिनय करियर की शुरुआत फिल्म 'होली' से की थी। और हाँ मेरी बहुत सी फ़िल्मों में होली के दृश्य और होली के नृत्य है जो मुझे बहुत पसंद है और मेरे फैंस को भी ( फिल्म मंगल पांडे में, 'देखो आई होली रंग लायी' होली गीत मेरा फेवरेट है) हालाँकि अब मैं होली नहीं खेलता,  गीला होली तो बिल्कुल नहीं खेलता, थोड़ा गुलाल लगा कर शगुन कर लेता हूं, लेकिन होली मेरा फेवरेट त्यौहार है और मैं उस दिन जी भरकर मिठाइयाँ खाकर और खिलाकर अपने परिवार के साथ मिल बैठकर मनाता हूँ। आप सबको होली की ढेर सारी बधाईयाँ। सेफ रहकर खेलिए होली और एंजॉय कीजिए।'

अमिताभ बच्चन के दिल में बसी वो होली की यादें

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होली के नाम पर ही अमिताभ बच्चन के चेहरे पर एक नर्म धूप सी खिल जाती है। जैसे अभी हाथ बढ़ाकर मुट्ठी में इंद्रधनुष के सातों रंगों को समेट कर दिल में उतार लेंगे। बचपन जैसे उन्हें हाथ हिलाकर अपने पास बुला रही हो। अमिताभ बच्चन कहते हैं, 'स्पष्ट याद है, बचपन की वो वसंत पंचमी का त्योहार। वसंत के आगमन की एक अलसाई सी खुशबू, ठण्ड की सिहरन ने अभी अलविदा नहीं कहा , लेकिन कोयल की कूक से होली के आगमन की आहट मिल जाती थी। बचपन की होली मेरी यादों में सबसे मीठी यादें हैं, जब माताजी और बाबुजी के साथ होली के रंग खरीदने हम बाज़ार जाया करते थे। शुरू से ही हमारे घर पर सारे त्यौहार पारम्परिक रूप से मनाया जाता रहा है। पूजा, होलिका दहन, रंगों का खेल, सर से पांव तक रंगीन हो जाना और फिर शाम को मल मल कर रंग उतारना, क्या मजेदार दिन थे वो बचपन के और फिर पारिवारिक मेल मुलाकात और मिठाई, गुझियों की थालियां, आह, उन गुझियों का स्वाद आज भी मुँह में है। मुंबई नगरी आने के बाद, बॉलीवुड की खूबसूरत होली खेलने का वो दौर भी रहा जब आर के स्टूडियो की होली मिलन पर राज कपूर जी, शम्मी कपूर जी के साथ हम सारे कलाकार होली खेलने जाते थे, फिर अपने घर (प्रतीक्षा) पर भी होली की धूम मचती थी, अपने घर के कंपाउंड में होलिका दहन की तैयारियां, उसके बाद  होलिका दहन, पूजा और होली के रंगों से भरा खेल, बॉलीवुड की होली की वो यादें मेरे दिल में बसी हुई है, वो इतना मासूमियत से भरा आनन्द का माहौल होता था, बस दोस्तों की टोली के साथ होली की मस्ती, सभी अपना अपना स्टेट्स, पोजिशन भूलकर होली के रंग में घुलकर एक हो जाते थे, कितना हंबलिंग फिलिंग था। जब से कोरोना का प्रकोप, पूरी दुनिया में  फैला तब से सब कुछ बदल गया। वैसे भी, वक्त के साथ सब कुछ बदल जाता है। खैर, छोड़िए, आप सबको होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं।

कंगना रनौत की वो बचपन वाली बिंदास होली और आज की होली

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कंगना की डॉल सी प्यारी सूरत और एक निडर, बेलाग, ठसकदार एटिट्यूड ने उन्हें बॉलीवुड में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में एक अलग सी पहचान दी है जो उनके प्रतिभाशाली व्यक्तिव और तीखे तेवर में और निखार ले आई है, लेकिन इस तेवर के पीछे कहीं तो छुपा हुआ है एक मासूम सा दिल जो छोटी छोटी बातों पर धड़कता है और जरा जरा सी बात पर खुश भी हो जाता है, कुछ अनकही शिकायतों से कंगना का मन रूठता भी है और मान अभिमान के पलड़े में डूबता उतराता भी है, लेकिन बात जब होली की आती है तो कंगना का ह्रदय किसी चंचल बच्चे की तरह उमंग से भर जाता है है और हाथ में अगर पिचकारी आ जाए तो कहना ही क्या? होली त्योहार को लेकर कंगना के दिल में हमेशा उत्साह देखा गया है, जब उनसे उनके बचपन की होलियों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा था, 'मेरे बचपन के सारे त्यौहार बड़े ही यादगार रहे हैं, खासकर होली तो सचमुच जबर्दस्त तरीके से मनाते थे हम लोग। दरअसल मैं जिस जगह की रहने वाली हूँ वहाँ होली एक बहुत बड़े त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। होली के कई दिनों पहले से ही, होली पर बनाएँ जाने वाले पकवानों की तैयारियां शुरू हो जाती थी। हम बच्चे लोग तो खेलने कूदने और रंगों की महफिलें सजाने की तैयारियों में लगे रहते थे लेकिन घर की बड़ी महिलाएं तरह तरह के पकवान और मिष्ठान्न बनाने की तैयारियों में लग जाती थी। होली के दिन, सुबह सवेरे से ही घर पर पकवानों और मिठाइयों की महक से घर गमगमा जाता था। हम बच्चे सो कर उठने से पहले ही खाना बनना शुरू हो जाता था और जब तक हम सो कर उठते तो तब तक होली के रंग हमारे चेहरे पर लग चुके होते थे क्योंकि सुबह सुबह घर के बड़े लोग, हम सब नींद में डूबे बच्चों के गाल पर रंग के छींटे लगा देते थे। और फिर जैसे ही हम बच्चे एक एक करके सो कर उठते, तो बिस्तर से उतरते ही, हमारी होली की हुडदंग शुरू हो जाती थी। जिन कपड़ों में सोए उन्हीं कपड़ों में होली खेलना शुरू कर देते थे। उस दिन सुबह सुबह नहाने की कोई जरूरत नहीं होती थी, सीधा रंगों से भरे टब में कूद जाना होता था। और फिर पिचकारियों में रंग भर भर कर दूसरों पर रंग बरसाने और खुद रंगो से सराबोर होने बाहर निकल जाते थे। होली के दिन कौन देखता है कि आप रात में पहनने वाले कपड़ों में ही घर से बाहर निकल आए, दोपहर तक हम सब रंगों से इतना भर जाते थे कि शक्ल पहचानना ही मुश्किल हो जाता था। एक बार तो हम बच्चे अपने स्कूल के टीचर्स के घर ही पहुंच गए थे उन्हें हैपी होली विश करने।. बचपन में पूरी तरह एंजॉय करते थे हम होली या कोई भी त्यौहार को। घर लौटकर लज़ीज़ खाने का दौर शुरू हो जाता था। हाँ हम ठंडाई भी पीते थे।' लेकिन बॉलीवुड में कदम रखने के बाद कंगना अब पहले की तरह होली नहीं खेलती, इस बारे में वे बोली थी,'बचपन में, अपने होम टाउन में जिस तरह बिंदास, बेफिक्र होली खेलते थे वैसा अब यहां नहीं खेलती। मैं कंफर्टेबल फील नहीं करती, चाहे वह कोई फिल्मी होली पार्टी हो या गैर फिल्मी होली बैश। पता नहीं, कौन कितने नशे में है और बुरा ना मानो होली है के आड़ में ना जाने कौन कैसा बरताव करे। इसलिए अब मैं घर पर ही होली की रस्म पूरी कर लेती हूँ, मैं और मेरी बहन एक दूसरे पर गुलाल लगा देतें हैं और घर पर ही तरह-तरह के पकवान बना कर होली एंजॉय करते हैं। और हाँ, मुझे खाना बनाना आता है। अब होली त्योहार पर हम पकवान बनाने में ज्यादा फोकस रखते हैं और बाकी टाईम अपने मित्रों और फैमिली मेंबर्स के साथ मिल बैठकर खूब बातें करते हैं।' हर बार की तरह इस बार भी कंगना अपने चाहने वालों, फॉलोअर्स को हैप्पी होली विश करते हुए कहती हैं, 'खूब एंजॉय कीजिए, सेफ होली मनाए और स्वस्थ तथा खुश रहिए, हैपी होली।'

आलिया भट्ट नहीं खेलती होलीकिन्तु परंतु, 'बेबी बड़ी भोली है, बेबी की रंग दी चोली है, बुरा ना मानो होली है'

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आलिया की धूम मची हुई है इन दिनों बॉलीवुड में, हर जगह आलिया ही आलिया छाई हुई है। बड़े स्क्रीन पर आलिया, डिजिटल दुनिया में आलिया, टीवी पर तरह तरह के प्रोडक्ट्स के ऐड में नजर आ रही है आलिया और खबरों की माने तो जल्द ही संजय लीला भंसाली की दस/बारह नारी प्रधान कहानियों पर बनने वाली वेब सीरीज 'हीरा मंडी' में एक सशक्त कहानी की मुख्य प्रोटागोनिस्ट की भूमिका में आलिया  वेब सीरीज की दुनिया में भी डेब्यू करने वाली है, ऐसे में आलिया के पास खेलने कूदने का समय कहाँ? होली हो या दिवाली, ईद हो या क्रिसमस आलिया पहले अपने काम को तरजीह देती है। वैसे भी आलिया होली के हंगामे से हमेशा जरा दूर दूर ही रही है, फिल्म 'बद्रीनाथ की दुल्हनिया में आलिया और वरुण की मस्त कर देने वाली होली डांस को देखकर कौन कह सकता है कि आलिया बिंदास टाइप की होली कभी नहीं खेलना पसंद करती। रंगों में लोटपोट होना, सर से पांव तक कलरफुल बन जाना, पकड़ धकड़, धींगामस्ती यह सब आलिया को अच्छा नहीं लगता। होली के बारे में आलिया ने कहा था, 'बचपन में मैंने खूब खेली थी होली, लेकिन अब नहीं खेलती।' दरअसल आलिया का स्किन बहुत सेंसिटिव है और किसी भी तरह के रंग रोगन से उसे एलर्जी हो जाती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आलिया होली एंजॉय नहीं करती, होली के दिन, छुट्टी का दिन होने से आलिया अपनी फैमिली और फ्रेंड्स के साथ खूब गप शप करती है, अच्छी अच्छी रेसिपी ट्राई करती है, समोसा, जलेबी का मजा लेती है और ठंडाई का लुत्फ भी उठाती है। आलिया भट्ट कहती हैं, 'मैं हर साल के, हर त्यौहार पर अपने फैंस, फॉलोअर्स, रीडर्स, और फ्रेंड्स को विश जरूर करती हूँ और जब से कोविड काल आया है तब से हर त्यौहार पर, अपनी शुभकामनाओं के साथ सेफ्टी रखने की भी अपील करती हूँ। मैं खुद होली नहीं खेलती लेकिन रंगों का मेला देखना मुझे अच्छा लगता है। ऑर्गेनिक कलर हो तो और भी अच्छा है। मेरा सिर्फ इतना कहना है कि होली की खूबसूरती को बरकरार रखते हुए इस त्यौहार का भरपूर आंनद लिया जाना चाहिए। और हाँ, कोई भी दिन हो, कोई भी खुशी हो, उसे हम सबके साथ मिलजुल कर बांटे तो वो सार्थक है। ऐसे में हमें मूक प्राणियों का भी ख्याल रखना चाहिए, ताकि हमारी वज़ह से पशु पक्षियों को कोई तकलीफ ना हो।' वैसे तो आलिया को बॉलीवुड फ़िल्मों की सभी होली गीत पसंद है लेकिन जिस होली सॉन्ग पर आलिया ने झूम झूम कर डांस किया उस बारे में उनका कहना है,' फिल्म 'बद्रीनाथ की दुल्हनिया' में मैंने होली के दृश्य दिए थे, उसमे होली का एक सुन्दर गीत भी है जिसपर हम लोगों ने खूब डांस किया, लीरिक्स कुछ इस प्रकार है, 'खेलन क्यों न जाए तू होरी रे रसिया, पूछे है तोहे सारी गुईया, कहाँ है बद्री की दुल्हनिया, कूर्ति पे तेरी मलूँ गुलाल, रंग बता ब्लू या लाल, एयर में तेरे उड़े बाल, आजा रंग दूँ दोनों गाल, अरे सा रा रा रा कबीरा सा रा रा रा, - - - - -, बेबी बड़ी भोली है, बेबी की रंग दी चोली है, अँग्रेजी में खिट पिट मैडम री, बुरा ना मानो होली है।'

राजेश खन्ना जब मनाते थे होली और जब नहीं मनाते थे

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होली त्यौहार एक ऐसा त्योहार है जिसे बॉलीवुड के ज्यादातर वेटरन स्टार्स और सुपर स्टार्स मनाना पसंद करते थे जिनमें राजेश खन्ना भी एक थे। यह वो ज़माना था जब वे बॉलीवुड के सबसे हैंडसम स्टार माने जाते थे और लड़कियां उनकी एक झलक देखने के लिए उनके घर के सामने वाले रोड पर भूखी प्यासी इंतजार करती थी और उन्हें ना पाकर उनके सफेद कार को ही अपने होंठो की लिपस्टिक से चूम चूम कर लाल कर देती थी और हैपी होली लिखकर चली जाती थी। यह उस जमाने की भी बात है, जब काका के नाम से मश्हूर राजेश खन्ना जमकर खेलते थे होली और उनके फैंस लड़कियां उनके भीगे बलिष्ठ बदन और खुली शर्ट से झांकते उनके सीने को देखने के लिए लाइन लगा कर आर के स्टूडियो या फिर राजेश खन्ना के बंगले के बाहर खड़ी रहती थी। हालांकि मैंने राजेश खन्ना का वो दौर तो नहीं देखा लेकिन नब्बे की दशक में जब फ़िल्मालया स्टूडियो में ठीक होली से पहले मेरी उनसे मुलाकात हुई थी और मैंने उनसे होली के बारे में कुछ बताने को कहा था तो उन्होंने मुझे बताया था कि होली पर वे सत्तर और अस्सी के दशक में क्या क्या करते थे। उन्होंने कहा था, 'होली मेरा फेवरेट त्योहार पहले नहीं था, मुझे कोफ्त होती थी होली की हुड़दंग से, कई लोग जिस तरह कीचड़, मिट्टी, गोबर, खतरनाक केमिकल्स या सड़े अंडों से होली खेलते हैं और जबर्दस्ती रंग लगाते है, अनजानों को भी नहीं बख्शते है और मना करने पर झगडे करते हैं, स्त्रियों के साथ भी बदतमीजी करते हैं, उनके शरीर के नाजुक अंगों को निशाना बना कर रंग से भरे गुब्बारे फेंक कर दर्द देते हैं, इन सब बातों से मैं दुखी था और होली से परहेज करता था लेकिन बॉलीवुड में आने के बाद जब यहां की खूबसूरती से खेली जाने वाली होली देखी तो मैं भी खेलने लगा।' जब मैंने उनसे राज कपूर की आर के वाली होली के बारे में पूछा तो वे बोले थे,'बहुत खेली मैंने आर के वाली होली। रंग से भरे हौज में डुबकी लगाने के बाद तो बस होली का मजा आ जाता था, फिर अपने बंगले पर भी रखते थे हम होली की पार्टी और सारा दिन, रंग में भीगे हुए, खाते पीते, होली के गानों पर डांस करते हुए कैसे सुबह से शाम हो जाती थी पता भी नहीं चलता था।' जब मैंने उनसे पूछा था कि उनका फेवरेट होली सॉन्ग कौन सा है तो वे बोले थे,' मेरा फेवरेट सॉन्ग है 'जय जय शिव शंकर, काँटा लगे ना कंकर' और मस्ती में काका जी ने गा कर सुना दिया था। जब उनसे उनके कार को लड़कियों के लिपस्टिक से रंगीन करने की घटना के बारे में पूछा तो हँसते हुए बोले थे, 'वो तो प्यार था मेरे फैंस का जो होली हो या नो होली, जब भी उन्हें मौका मिलता मेरी सफेद कार को होंठो की लाली से रंगीन कर देती थी और वो मेरे लिए होली का त्योहार जैसा ही सुन्दर एहसास हो जाता था।' हमारी बातचीत के दौरान वहां सुजीत कुमार जी भी आ गए, जो उन दिनों प्रसिद्ध डाइरेक्टर बन गए थे, राजेश खन्ना ने उनके साथ होली की बातें शुरू कर दी तो वे भी बोले,' आर के की होली में तो हम सब बहुत मस्ती करते थे। वो तस्वीरें आज भी मैंने संभाल के रखे हैं।' इस वाक्ये को बहुत दिन गुजर गए, बहुत सालों बाद पिछले दिनों जब प्रसिद्ध निर्माता निर्देशक सावन कुमार टाक जी से इसी होली विषय पर बात हुई (सावन जी राजेश खन्ना के बेहद अच्छे दोस्त थे) तो मैंने उनसे राजेश खन्ना के स्टारडम खत्म होने के बाद की होलियों का जिक्र करते हुए उनसे पूछा था, कि क्या आप राजेश खन्ना के साथ होली खेलते थे? तो सावन जी ने बताया, 'नहीं, वे होली नहीं खेलते थे। उन्हें होली खेलना पसंद नहीं था, वे रंगों में छिपे केमिकल्स से बहुत डरते थे, होली के दिन वे किसी बाहर वालों से मिलना भी पसंद नहीं करते थे, लेकिन मैं जरूर उनसे होली मिलने जाता था, उनके माथे पर होली का टीका लगा देता और वे मुझे टीका लगा देते, फिर मुँह मीठा करके हम दोनों  काफी समय बैठ कर गप्पे लड़ाते। उन दिनों की बहुत याद आती है।' यह सुनकर मुझे एहसास हुआ कि वक्त के साथ साथ इंसान के जीवन में त्योहारों का रंग रूप, अर्थ सब बदल जाता है।

'फिर होली आई लेकिन वैसी कभी नहीं आई जैसे आया करती थी' कहा था ऋषि कपूर ने

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वर्षो पहले, यह उन दिनों की बात है जब ऋषि कपूर शूटिंग में व्यस्त रहते थे। होली का त्योहार आने वाला था और मैं राज कपूर की होली नाम से एक आर्टिकल लिखना चाहती थी। मैंने प्रचारक गोपाल पांडे जी से संपर्क किया और उनसे कहा कि वे मेरी मुलाकात ऋषि जी से तय कर दें। उन्होंने वैसा ही किया और मैं तय समय में चेंबूर के आर के स्टूडियो पहुँच गई। लंच टाईम में ऋषि कपूर ने मुझे मेकअप रूम में बुला लिया। मिलते ही उन्होंने पूछा, 'और बताइए मायापुरी कहाँ तक पहुँची?' मैंने  ज़वाब दिया, 'तीन लाख से ऊपर का सर्कुलेशन है, वितरकों के बीच छीना झपटी होती है कि उन्हें ज्यादा से ज्यादा मैग्ज़ीन मिले। एक पेपर स्टैंड स्टॉल वाले ने शिकायत भी की थी कि मायापुरी मैग्जीन पाने के लिए उन्हें मुंबई के वितरक के ऑफिस के आगे रात से ही लाईन लगानी पड़ती है, वहीं गमछा बिछा कर सोना पड़ता है। ' यह सुनकर ऋषि जी खूब हँसे थे और कहा था,'मैं अपनी व्यस्तता की वज़ह से इन दिनों किसी को इंटरव्यू देता नहीं हूँ लेकिन मायापुरी की महिमा अपरम्पार है, इसलिए तुरंत तैयार हो गया। पूछो क्या पूछना है?' मैंने कहा,' होली के बारे में बातचीत करना है। 'ऋषि जी ने खुश होते हुए कहा, 'मेरा फेवरेट विषय, कोई कंट्रोवर्सी नहीं। 'तब मैंने उनसे पूछना शुरू किया,' आर के की होली का इतना बोलबाला क्यों है ?' वे बोले थे,'क्योंकि एक ज़माना था जब होली के दिन पूरी बॉलीवुड इस स्टूडियो के अंदर समा जाती थी, क्योंकि इस 'आर के' के आँगन में बने  कलर पॉन्ड में डुबकी लगाए बिना किसी की होली पूरी नहीं होती थी।' 'और आज?' इस पर ऋषि जी ने कहा था,' राज सहाब (पापा राज कपूर) के गुजर जाने के बाद वो रौनक अब नहीं लगती। उस कलर पॉन्ड को होली के दिन आज भी रंग से भरा जाता है, लेकिन वो बात नहीं है जो उनके जिवित रहते था।' जब ऋषि जी से उनके बचपन की यादों में बसी होली के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा था, 'उन दिनों मैं अचंभित होकर होली की धूमधाम देखा करता था, बड़े बड़े बॉलीवुड स्टार्स, निर्माता निर्देशक, संगीतकार, शास्त्रीय नृत्य मास्टर्स सभी लोग सुबह सवेरे आर के की आँगन में आ जाते थे, सभी सफेद कपड़ों में सजे धजे, चेहरे पर खुशियों की बारात लिए। ढोलक और मृदंग की गूँज चारों ओर एक अजब माहौल पैदा करती थी। मेरी मॉम कृष्णा राज कपूर जी, जैसे ही पापाजी, राज सहाब के साथ, स्टूडियो में कदम रखती, तो ढ़ोल, शंख की ध्वनि तेज़ हो जाती थी। सबसे पहले राज साहब मॉम को नारियल देकर उनसे स्टूडियो के प्रवेश द्वार में फोड़ने को कहते और नारियल के भूमि से टकराते ही हर्ष नाद और तालियों से वातावरण खुशनुमा हो उठता था। जो जैसा चाहे वैसा करता था, कोई मेहमान फूलों की पंखुड़ियां बरसाते तो कोई चन्दन पाउडर को गुलाल की तरह आसमान में बिखेर देते। फिर मॉम को एक और नारियल दिया जाता जिसे रंगों से भरे हौज़ के चबूतरे पर फोड़ना होता था, कभी मॉम से नारियल ना फूट पाता तो राज सहाब जोर लगाकर नारियल फोड़ देते थे और शुरू हो जाता था रंगों का विशाल उत्सव। सबसे पहले राज साहब खुद रंग भरे हौज में उतर जाते और डुबकी लगाते फिर सिलसिला शुरू होता था, एक एक करके सबको हौज में धक्का लगाने का, जो उतरने से घबराते उन्हें उठा कर रंगीन पानी में पटक दिया जाता और पूछा जाता कि रंग में डुबकी लगाते इतना डर लगता है तो आर के की होली में क्या करने आए? दरअसल सभी खुशी खुशी हौज में डुबकी लगाने को तैयार रहते थे। यहां तक कि लेडीज भी, लेकिन राज साहब इस बात का भरपूर ध्यान रखते थे कि किसी लेडी के साथ कोई बदतमीजी ना हो या कोई छेड़ छाड़ ना हो। शम्मी जी, शशि जी, रणधीर भाई सभी रंग में डुबकी लगाते और राज साहब उन्हें हौज में खड़े खड़े ही गले से लगा लेते थे, मैं खुली आँखों से सब देखता था, मुझे भी गोद में लेकर उस रंगीन पानी में उतार दिया जाता था और मैं सर से पांव तक रंगीन हो जाता था। दोपहर तक रंगों का मेला लगा रहता था, झक्क सफेद कपड़ों मे सभी आर के स्टुडियो में प्रवेश करते और रंगीन होकर निकलते। ऑफ कोर्स आर के स्टूडियो के एक तरफ लेडीज और जेन्ट्स के लिए वाश रूम की भी व्यवस्था रखी जाती थी ताकि जो चाहे नहा धोकर जा सके। सुबह से दोपहर तक रंगों के गुब्बार आर के स्टूडियो के वातावरण में बिखरा रहता, जमीन लाल पीले, नीले, सुनहरे, जामुनी, हरे रंग से रंग जाती थी, एक टुकड़ा जमीन भी बिना रंग के नहीं दिखता था, और मैं यही देखता था कि कौन सी जगह रंगने से बच गई, जिसकी कसर मैं अपनी पिचकारी से पूरी कर देता था। वो भी क्या दिन थे, वो भी क्या फागुन थे, वो भी क्या होली के त्यौहार थे। ' ऋषि जी यादों के भंवर में डूब गए तो मैंने पूछा था,' सुना है आर के स्टूडियो के आंगन में उस दिन होली के खास पकवान, ठंडाई बनती थी। ' ऋषि जी का चेहरा खिल उठा था, बोले, तीन दिनों तक भोज का आयोजन रहता था, एक से बढ़कर एक डिशेज और ड्रिंक्स की खुशबू से आर के स्टूडियो के बाहर तक वातावरण महक जाता था, कोई भी बंदा बिना खाना खाए या बिना गला तर किए नहीं जाता था, सभी का स्वागत राज साहब और मॉम कृष्णा जी दिल से करते थे। खाने पीने और मेजबानी की सारी जिम्मेदारी मॉम उठाती थी और क्या खूब निभाती थी। इस वज़ह से ही कृष्णा जी को 'द बेस्ट होस्ट ऑफ बॉलीवुड का नाम दिया गया था।' फिर मैंने उनसे पूछा था कि सुना है कि आर के की होली उत्सव में पत्रकार, फोटोग्राफर अलाउड नहीं थे?' इसपर ऋषि जी ने इंकार किया था और कहा था, 'किसने कहा? बहुत सारे पत्रकार आते थे, मायापुरी से कितने पत्रकार आते थे, स्टारडस्ट, फिल्म फैयर, सिने ब्लिट्स सभी के प्रतिनिधि आते थे, कितने सारे फोटोग्राफर आते थे और पापाजी सबको गले लगाकर स्वागत करते थे, सबको खाना खिलाकर ही जाने देते थे। तभी तो होली के अगले दिन आर के की होली की कलरफुल खबरों और तस्वीरों से प्रिंट मीडिया की दुनिया रंगीन हो जाती थी और पाठकों की छीना झपटी लग जाती थी उन पत्रिकाओं को खरीदने के लिए।' यह कहकर जोर से हँस पड़े थे ऋषि जी और मैं उन्हें उस हँसते हुए मूड में हमेशा के लिए स्मृति में कैद करके उठ आई। चलते चलते ऋषि जी ने कहा,' जिसने राज कपूर की आर के वाली नहीं देखी उसने क्या देखा। होली आई, फिर से आई और आती रहेगी लेकिन राज साहब के जाने के बाद फिर वैसे कभी नहीं आई ना आएगी जैसे आया करती थी।

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