/mayapuri/media/post_banners/d184ca9337c85ca4e9700498e59bf52c0bc926371486b8744a0ed8eb147c80ed.jpg)
सुरैया का जन्म 15 जून 1929 गुजरावाला, पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था. उनका पूरा नाम सुरैया जमाल शेख है और वह हिन्दी फ़िल्मों की एक प्रसिद्ध अभिनेत्री और गायिका थीं। 40वें और 50वें दशक में इन्होंने हिन्दी सिनेमा में अपना योगदान दिया। अदाओं में नजाकत, गायकी में नफासत की मलिका सुरैया जमाल शेख ने अपने हुस्न और हुनर से हिंदी सिनेमा के इतिहास में एक नई इबारत लिखी। 'वो पास रहें या दूर रहें', 'नुक्ताचीं है ग़मे दिल', और 'दिल ए नादां तुझे हुआ क्या है' जैसे गीत सुनकर आज भी जहन में सुरैया की तस्वीर उभर आती है।
/mayapuri/media/post_attachments/0c1bef4e11854aca0438267a045f6a358378d174da76fcb30aa9f640068fa528.jpg)
15 जून, 1929 को जन्मी सुरैया अपने माता पिता की इकलौती संतान थीं। नाजों से पली सुरैया ने हालांकि संगीत की शिक्षा नहीं ली थी लेकिन आगे चलकर उनकी पहचान एक बेहतरीन अदाकारा के साथ एक अच्छी गायिका के रूप में भी बनी। सुरैया ने अपने अभिनय और गायकी से हर कदम पर खुद को साबित किया है।
/mayapuri/media/post_attachments/922fc1020f0f48827a15d7d151a1085c791a29c0ace971dbc236d9ac05f9161e.jpg)
सुरैया के फ़िल्मी कॅरियर की शुरुआत बड़े रोचक तरीके से हुई। गुजरे जमाने के मशहूर खलनायक जहूर सुरैया के चाचा थे और उनकी वजह से 1937 में उन्हें फ़िल्म उसने क्या सोचा में पहली बार बाल कलाकार के रूप में भूमिका मिली। 1941 में स्कूल की छुट्टियों के दौरान वह मोहन स्टूडियो में फ़िल्म 'ताजमहल' की शूटिंग देखने गईं तो निर्देशक नानूभाई वकील की नजर उनपर पड़ी और उन्होंने सुरैया को एक ही नजर में मुमताज महल के बचपन के रोल के लिए चुन लिया। इसी तरह संगीतकार नौशाद ने भी जब पहली बार ऑल इंडिया रेडियो पर सुरैया की आवाज सुनी और उन्हें फ़िल्म 'शारदा' में गवाया। 1947 में भारत की आजादी के बाद नूरजहां और खुर्शीद बानो ने पाकिस्तान की नागरिकता ले ली, लेकिन सुरैया यहीं रहीं।
/mayapuri/media/post_attachments/e9029b4a578c18dec7333d68e8ab85c9b42991775ab6432d878f1ccb37dd5415.jpg)
एक वक्त था, जब रोमांटिक हीरो देव आनंद सुरैया के दीवाने हुआ करते थे। लेकिन अंतत: यह जोड़ी वास्तविक जीवन में जोड़ी नहीं पाई। वजह थी सुरैया की दादी, जिन्हें देव साहब पसंद नहीं थे। मगर सुरैया ने भी अपने जीवन में देव साहब की जगह किसी और को नहीं आने दिया। ताउम्र उन्होंने शादी नहीं की और मुंबई के मरीनलाइन में स्थित अपने फ्लैट में अकेले ही ज़िंदगी जीती रहीं। देवआनंद के साथ उनकी फ़िल्में 'जीत' (1949) और 'दो सितारे' (1951) ख़ास रहीं।
/mayapuri/media/post_attachments/518f3da3b272686df72aba618a21f0479b78b29457cef16c34fb05e8d147abec.jpg)
ये फ़िल्में इसलिए भी यादगार रहीं क्योंकि फ़िल्म जीत के सेट पर ही देवआनंद ने सुरैया से अपने प्रेम का इजहार किया था, और दो सितारे इस जोड़ी की आखिरी फ़िल्म थी। खुद देव आनंद ने अपनी आत्मकथा 'रोमांसिंग विद लाइफ' में सुरैया के साथ अपने रिश्ते की बात कबूली है। वह लिखते हैं कि सुरैया की आंखें बहुत ख़ूबसूरत थीं। वह बड़ी गायिका भी थीं। हां, मैंने उनसे प्यार किया था। इसे मैं अपने जीवन का पहला मासूम प्यार कहना चाहूंगा।
/mayapuri/media/post_attachments/84c4f07983d56f9b377d6de5b66ac25e716dddcb29261821814cf22087ea2d73.jpg)
उनकी प्रमुख फ़िल्में 'शमा' (1961), 'मिर्ज़ा ग़ालिब' (1954), 'दो सितारे' (1951), 'खिलाड़ी' (1950), 'सनम' (1951), 'कमल के फूल' (1950), 'शायर' (1949), 'जीत' (1949), 'विद्या' (1948), 'अनमोल घड़ी' (1946), 'हमारी बात' (1943).
/mayapuri/media/post_attachments/8b8baff18f0a1544fba4c248c1ca52036044a39bee58f8ecefb05b52a96ac0b4.jpg)
अभिनय के अलावा सुरैया ने कई यादगार गीत गाए, जो अब भी काफ़ी लोकप्रिय है। इन गीतों में 'सोचा था क्या मैं दिल में दर्द बसा लाई', 'तेरे नैनों ने चोरी किया', 'ओ दूर जाने वाले', 'वो पास रहे या दूर रहे', 'तू मेरा चाँद मैं तेरी चाँदनी', 'मुरली वाले मुरली बजा' आदि शामिल हैं।
/mayapuri/media/post_attachments/954e7db4917f90456be55db9dc6b49b6dc66be29a34abeeabd2afaf3d1e56793.jpg)
1948 से 1951 तक केवल तीन वर्ष के दौरान सुरैया ही ऐसी महिला कलाकार थीं, जिन्हें बॉलीवुड में सर्वाधिक पारिश्रमिक दिया जाता था। हिन्दी फ़िल्मों में 40 से 50 का दशक सुरैया के नाम कहा जा सकता है। उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि उनकी एक झलक पाने के लिए उनके प्रशंसक मुंबई में उनके घर के सामने घंटों खड़े रहते थे और यातायात जाम हो जाता था।
/mayapuri/media/post_attachments/0a44e03566925e3ad43898b2e5a1fc444b6f68d44119cea21c7b1412abeb9960.jpg)
'जीत' फ़िल्म के सेट पर देव आनंद ने सुरैया से अपने प्यार का इजहार किया और सुरैया को तीन हजार रुपयों की हीरे की अंगूठी दी। हिंदी फ़िल्मों में अपार लोकप्रियता हासिल करने वाली सुरैया उस पीढ़ी की आखिरी कड़ी में से एक थीं जिन्हें अभिनय के साथ ही पार्श्व गायन में भी निपुणता हासिल थी और इस वजह से उन्हें अपनी समकालीन अभिनेत्रियों से बढ़त मिली।
/mayapuri/media/post_attachments/2501ff297cda681313739d5f8079c0359c721866619b0e14ddd038d84fcdda5e.jpeg)
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी सुरैया की महानता के बारे में कहा था कि उन्होंने मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी को आवाज़ देकर उनकी आत्मा को अमर बना दिया।
/mayapuri/media/post_attachments/a0568476bf052940dac369b9d51934d2665cd255ff110bd3eac4898ba53ede0d.jpg)
31 जनवरी 2004 को सुरैया दुनिया को अलविदा कह गईं। संगीत का महत्व तो हमारे जीवन में हर पल रहेगा लेकिन सार्थक और मधुर गीतों की अगर बात आएगी तो सुरैया का नाम जरूर आएगा। उनका गाया गीत वो पास रहें या दूर रहें उनपर काफ़ी सटीक बैठता है। उनकी अदाएं और भाव भंगिमाएं उनकी गायकी की सबसे बड़ी विशेषता थीं। अपने चेहरे के भाव से ही वे सभी भावों को प्रदर्शित कर देती थीं। आज भी उनके कद्रदानों की कमी नहीं है। सुरैया भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका अभिनय, उनका संगीत हमेशा हम सबको उनकी याद दिलाता रहेगा।
/mayapuri/media/post_attachments/5f76985cb4707836e0363f9941226e6fa86a47387387d05e4d78cf5930d6be50.jpg)
Follow Us
/mayapuri/media/media_files/2025/10/03/cover-2661-2025-10-03-18-55-14.png)