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कब तक यूं बॉलीबुड फिल्मों पर साउथ की फिल्में भारी पड़ती रहेगी,  अब जागने का समय आ गया है

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कब तक यूं बॉलीबुड फिल्मों पर साउथ की फिल्में भारी पड़ती रहेगी,  अब जागने का समय आ गया है

-सुलेना मजुमदार अरोरा

ज़माना वो था जब बॉलीवुड में बंगाली निर्माता निर्देशकों का वर्चस्व था, सत्यजीत राय, मृणाल सेन, हृषिकेश मुखर्जी,  बासू भट्टाचार्य, बासू चतर्जी, शक्ति सामंत, बिमल रॉय, मानिक चटर्जी, प्रमोद चक्रवर्ती, मुकुल दत्त। इनकी  बनाई हिंदी फिल्में बॉलीवुड की कल्ट और क्लासिक फिल्में मानी जाती थी, चाहे वो गंभीर फिल्में हो या कॉमेडी फिल्में, इन बंगाली फिल्म मेकर्स द्वारा निर्देशित फिल्में सौ प्रतिशत हिट होती थी लेकिन फिर धीरे धीरे बॉलीवुड जब  मांसल सौंदर्य, सेक्स अपील,  नाच गाना, गीत संगीत और लाउड शोशा की गिरफ्त में आने लगा और दर्शकों को शांत इमोशन से ज्यादा बोल्ड, मारधाड़, ओपन रोमांस और  हल्ला गुल्ला वाली फिल्में ज्यादा भाने लगी तब आया नॉन बंगाली फिल्म मेकर्स का एक और खेप जैसे रमेश सिप्पी, मनमोहन देसाई, प्रकाश मेहरा, राज खोसला, डेविड धवन, यश चोपड़ा, राजकुमार हिरानी, लीला भंसाली, रोहित शेट्टी, सुभाष घई वगैरह जिन्होंने फिल्मों को एक रंगीन, ग्लैमरस, एक्शन और ड्रामा, नाच, से भरपूर कलेवर दिया जो अब से कुछ साल पहले तक भी बॉलीवड में अपना जादू बिखेर रहा था, लेकिन वो वक्त ही क्या जो ना बदले? तो ज़माने ने फिर एक करवट ली और आज बॉलीवुड में जो हवा बह रही है वो दक्षिणी बयार है यानी पिछले चंद सालों से बॉलीवुड में और अब तो ओटीटी प्लैटफॉर्म्स में भी दक्षिणी फिल्मों का खूब चलन बढ़ गया है जो बॉलीवुड फिल्म निर्माता निर्देशकों की दो सौ करोड़ तक कमाने के  दावे को भी पिद्दी करार कर उस संख्या में कई और शून्य जोड़ कर तहलका मचा रहे हैं। इसपर जब शोध किया गया तो पता चला साउथ फिल्मों का सबसे बड़ा यूएसपी उसका कंटेंट होता है और आज की पीढ़ी अपना दिमाग घर की अलमारी में छोड़ कर फिल्में देखने नहीं आती है, वे अब हर फिल्म के कंटेंट में कब, क्यों और कहां का विस्तृत जानकारी खंगालना चाहते हैं।

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जांच से ये पता चलता है कि दर्शकों की नब्ज़ पकड़ने में साउथ के फिल्म निर्माता निर्देशक माहिर है और इसलिए उनकी फिल्में काफी सम्पन्न और विविधतपूर्ण लिए होती है यानी प्रत्येक  फिल्म अलग स्वाद देता है। इस वजह से आज आलम ये है कि साउथ की फिल्में चाहे सब-टाइटल्स के साथ बनी हो या डब की हुई हो या साउथ इंडस्ट्री द्वारा हिंदी में बनाई गई हो , उसे लपकने के लिए बॉलीवुड फिल्मों के दर्शक तैयार रहते हैं। यह सिलसिला पिछले कुछ समय से चल रहा है। गया वो जमाना जब भारतीय फिल्म का मतलब सिर्फ बॉलीवुड फिल्में होती थी। फिल्म पंडितों का मानना है कि साउथ इंडियन फिल्मों की क्वालिटी बॉलीवुड फिल्मों से काफी बेहतर होती है। साउथ से बनी फिल्में जैसे बाहुबली,  बाहुबली 2, एंथिरण, पुली, पुष्पा की दुनिया में धूम मची है यहां तक कि जब पैंडामिक के कारण थिएटर्स बन्द हो गए थे तब भी उपभोग स्वरूप एक समान रहने के कारण, साउथ की फिल्मों ने ओटीटी प्लैटफॉर्म्स जैसे अमेज़न प्राइम वीडियो, नेटफ्लिक्स, हॉट स्टार पर धूम मचा रखी थी जैसे धनुष कृत कर्नान,  साइटिंग, मास्टर, कुंबलांगी नाइट्स, रक्तांचल 2, वगैरह और इसकी वजह एक ही है, वो है बढ़िया  कंटेंट, मजबूत पकड़ वाली कहानी। अगर कंटेंट अच्छी हो तो दर्शक वो फिल्म, भाषा के विघ्न के बावजूद देखते हैं।

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हाल की तेलगु फिल्म पुष्पा द राइज  ने तो जैसी सफलता का सारा मापदंड ही खत्म करके  पैन इंडिया क्रेज़ लेवल पर आसमान ही छू लिया, जिसकी वजह से फिल्म '83' पर बहुत असर पड़ा और देखते देखते इस फिल्म का हीरो अल्लू अर्जुन, चुटकी बजाते ही बॉलीवुड के सुपरस्टार्स को पीछे छोड़ कर आगे बढ़ गए। यही सफलता 'जय भीम' और 'श्याम सिंघा रॉय' 'आर आर आर' को भी मिली जो सुपर हिट हो गई।  कुछ बॉलीवुड फिल्म मेकर्स का ये भी दावा है कि पेंडमिक के बाद से ही साउथ की फिल्मों का बोलबाला ज्यादा बढ़ा है क्योंकि उस वक्त साउथ की बेहतरीन फिल्में तरह तरह के ओटीटी प्लैटफॉर्म्स पर स्ट्रीम होने से घर-घर में लोगों ने इन फिल्मों को देखा और तब जाना की साउथ की ऑरिजीनल फिल्में क्या चीज़ है, उसकी भव्यता, बारीकियां, अभिनय, कंटेंट की पकड़, इन सबने अपना इंपैक्ट उन दर्शकों पर छोड़ा जो अब तक एक टाइप की हिंदी फिल्में देख देख कर उकता गए थे लेकिन फिर भी आदत से मजबूर होकर टिपिकल बॉलीवुड फिल्में देखे जा रहे थे। उन उक्ताए दर्शकों के लिए साउथ की फिल्में एक फ्रेश हवा क झोंका जैसा लगा।

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एक जमाना था जब साउथ की फिल्मों को बॉलीवुड फिल्म मेकर्स हिंदी में रीमेक करते थे, मिसाल के तौर पर पोकिरी बन गया वांटेड,  विक्रमारकुदू बन गया  राउडी राठौर, रामा कृत रेडी बन गया सलमान खान कृत रेडी, अर्जुन रेड्डी बन गया कबीर खान, लेकिन ओटीटी  प्लैटफॉर्म्स में साउथ फिल्मों को उनके असली रंग रूप और फ्लेवर में घर बैठे देखने के बाद अब भाषा की रुकावट टूट कर बिखर गई और अब दर्शक साउथ की फिल्मों को उनके असली रूप में ही देखना पसंद कर रहे है जिससे अब रीमेक की गुंजाइश ही ख़तम हो गई है और अब दर्शक 'KGF CHAPTER 1' सीधा देखना पसंद कर रहे है। अब वक्त आ गया है जब बॉलीवुड को जाग कर उठ बैठना है और इस बात पर ध्यान लगाना है कि उनसे गलती कहां हो रही है,  अब  रीमेक पर रीमेक बनाना छोड़ बॉलीवुड फिल्म निर्माता निर्देशकों को कमर कसकर पुष्पा, आर आर आर, वल्लमाई, बाहुबली, लिगर, आदीपुरुश, सलार, पॉन्नियिन सेलवन, रॉकेट्री, जैसी ओरिजिनल फिल्में बनाने पर जोर देना चाहिए क्योंकि अब दर्शकों को अच्छा कंटेंट और कैरेक्टर्स चाहिए सिर्फ हीरोगिरी या हिरोइन गिरी नहीं चलेगी।

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